राजनीतिशास्त्र - पद्धतियों का वर्णन

B.A-I-Political Science-I/2021

प्रश्न 3. राजनीतिशास्त्र की विभिन्न अध्ययन पद्धतियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की पद्धतियों के विषय में जिन विचारकों ने मत प्रकट किए हैं, उनमें प्रमुख हैं- अगस्त कॉम्टे, मिल, ब्लण्टशली, लॉर्ड ब्राइस आदि । इन विद्वानों ने जो अलग-अलग पद्धतियाँ बतलाई हैं, उनके निष्कर्ष स्वरूप प्रमुख पद्धतियाँ निम्न प्रकार हैं

(1) प्रयोगात्मक पद्धति -

प्रयोगात्मक पद्धति प्रमुखतः वैज्ञानिक पद्धति है। चूंकि राजनीतिशास्त्र भी एक विज्ञान है, अतः एक विषय के अध्ययन में प्रयोगात्मक पद्धति का पूर्ण अनुसरण स्वाभाविक है। राजनीति विज्ञान में मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धित कुछ नियमों का निर्धारण किया जाता है । वस्तुतः राज्य की प्रत्येक नीति, प्रत्येक कानून, शासन प्रणाली का संचालन, देश का संविधान आदि एक प्रकार के प्रयोग ही होते हैं। जैसा कि कॉम्टे ने कहा है,“राज्य के अन्तर्गत किया गया प्रत्येक परिवर्तन एक प्रयोग ही होता है । परन्तु राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में प्रयोगात्मक पद्धति का पूर्ण अनुसरण सम्भव नहीं है। राजनीति में इस प्रकार प्रयोग नहीं हो सकते जैसे विज्ञान में होते हैं,क्योंकि राजनीतिक प्रयोग के लिए विस्तृत क्षेत्र व लम्बे काल की आवश्यकता होती है।
rajniti ki sakhaye

(2) तुलनात्मक पद्धति - 

इस पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम अरस्तू ने किया। आधुनिक युग में इसका प्रयोग सर हेनरी मेन, डी. टॉकविले, ब्राइस, मॉण्टेस्क्यू आदि विद्वानों ने किया है । इस पद्धति के अन्तर्गत अध्ययनकर्ता विभिन्न राज्यों, उनके संगठन, उनकी नीतियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन करता है और इस तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर सामान्य राजनीतिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है। अरस्तू ने अपने समय में प्रचलित 158 संविधानों का अध्ययन किया और उनकी तुलना करने के बाद क्रान्ति के कारणों की विवेचना की तथा सर्वोत्तम विधान के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाले।

 (3) ऐतिहासिक पद्धति -

राजनीति विज्ञान के अध्ययन की पद्धतियों में ऐतिहासिक पद्धति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजनीतिक संस्थाओं का निर्माण नहीं किया जाता,वरन् वे विकास का परिणाम होती हैं । अतः प्रत्येक राजनीतिक संस्था का एक अतीत होता है और उस अतीत से परिचित होकर ही उसके यथार्थ स्वरूप का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए राजनीति विज्ञान में ऐतिहासिक पद्धति का बहुत अधिक महत्त्व है । ऐतिहासिक पद्धति की उपयोगिता के कारण ही अरस्तू के समय से इस पद्धति का प्रयोग किया जाता रहा है । लास्की, हीगल, मैकियावली, मॉण्टेस्क्यू, कार्ल मार्क्स, हरबर्ट स्पेन्सर, मैक्स वेबर, कॉम्टे आदि विद्वानों ने किसी-न-किसी रूप में इस पद्धति का प्रयोग किया है।

(4) पर्यवेक्षणात्मक पद्धति -

इस पद्धति का सर्वाधिोग प्राकृतिक विज्ञानों . में किया जाता है। किन्तु वास्तविकता पर आधारित होने के कारण वर्तमान समय में राजनीति विज्ञान में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है। इस पद्धति के अन्तर्गत राजनीतिक संस्थाओं तथा शासन प्रणाली का पर्यवेक्षण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं। लावेल के अनुसार, “राजनीति पर्यवेक्षणात्मक विज्ञान है, प्रयोगात्मक नहीं। राजनीतिक संस्थाओं की वास्तविक कार्यविधि की प्रयोगशाला पुस्तकालय नहीं,वरन्. राजनीतिक जीवन सम्बन्धी बाहरी विश्व है।" राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत इस पद्धति का प्रयोग लॉर्ड ब्राइस, माण्टेस्क्यू, सिडनी वेब, बैट्रिस वेब आदि विद्वानों ने किया है।

(5) दार्शनिक पद्धति – 

दार्शनिक पद्धति उपर्युक्त पद्धतियों से इस दृष्टि से भिन्न है कि जहाँ एक ओर अन्य पद्धतियाँ विशेष अवस्थाओं के आधार पर नियमों का निरूपण करती हैं, दार्शनिक पद्धति अपने प्रतिष्ठित नियमों के आधार पर विशेष अवस्थाओं की व्याख्या करती है । यह राज्य के लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों के सम्बन्ध में कुछ पूर्व निश्चित धारणाओं तथा मान्यताओं को लेकर चलती है और उनके आधार पर यह निश्चित करती है कि व्यवहार रूप में जो नियम व संस्थाएँ विद्यमान हैं, उन आदर्शों के कितने निकट हैं। प्लेटो, मिल, रूसो, थॉमस मूर, सिजविक, बोसाँके आदि विद्वानों ने इस पद्धति का अनुसरण किया है।

 (6) समाजशास्त्रीय पद्धति - 

इस पद्धति के अन्तर्गत राज्य को एक सामाजिक इकाई मानकर उसका अध्ययन किया जाता है । इसके अन्तर्गत व्यक्ति के जीवन की भाँति राज्य के जीवन का भी विकास के नियमों के आधार पर अध्ययन किया जाता

(7) मनोवैज्ञानिक पद्धति - 

मनोवैज्ञानिक पद्धति मनुष्य के मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली का अध्ययन करती है। राज्य स्वयं मनुष्य के मस्तिष्क की उपज है। मानव के आचरण को मनोविज्ञान की सहायता से समझा जा सकता है। यही कारण है कि आजकल मानव आचरण के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। चुनाव, जनमत, राजनीतिक दल आदि का अध्ययन करने के लिए मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होता है । आधुनिक काल में बेजहॉट टार्ने, मैक्डूगल, समनर आदि विद्वानों ने इस पद्धति का प्रयोग किया

 (8) व्यवहारवादी पद्धति - 

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में व्यवहारवादी दृष्टिकोण का उदय और विकास हुआ। रॉबर्ट ए. डहल ने कहा है कि व्यवहारवादी क्रान्ति परम्परागत राजनीतिशास्त्र की उपलब्धियों के प्रति असन्तोष का परिणाम है जिसका उद्देश्य राजनीतिशास्त्र को अधिक वैज्ञानिक बनाना है।" व्यवहारवाद में व्य के व्यवहार का एक सामाजिक संगठन के सदस्य के रूप में विश्लेषण किया जाता है। यह पद्धति राजनीति व्यवहार पर अपना ध्यान केन्द्रित करती है और राजनीतिक व्यवहार के माध्यम से राजनीति, संगठन, प्रक्रिया तथा समस्याओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करती है। यह एक व्यापक अवधारणा है, जो मनोदशा, मनोवृत्ति, सिद्धान्त, कार्यविधि, पद्धति, दृष्टिकोण, अनुसन्धान तथा सुधार आन्दोलन सभी कुछ है । व्यवहारवाद मानव की क्रियाओं से सम्बन्धित है और यह समाज में मानव व्यवहार से सम्बन्धित सामान्य अनुमान स्थापित करने का उद्देश्य रखता है। व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान को अनुभवमूलक विज्ञान बनाता है। व्यवहारवाद के समर्थकों में रॉबर्ट ए. डहल, कैटलिन, स्टुअर्ट राइस, फ्रैंक कैण्ट, हैरॉल्ड लासवेल, डेविड बी. ट्रमैन, हरबर्ट साइमन, आमण्ड और पॉवेल, एडवर्ड शिल्स आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

·         कौन-सी अध्ययन पद्धति सर्वोत्तम है ?

राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की उपर्युक्त पद्धतियों में से कोई भी एक पद्धति अपने आप में पूर्ण नहीं है । राजनीतिशास्त्र का क्षेत्र इतना व्यापक है कि किसी एक परिस्थिति में एक पद्धति उपयोगी हो सकती है,तो दूसरी परिस्थिति में वह अनुपयुक्त हो सकती है। अतः राजनीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए यह आवश्यक है कि उपर्युक्त पद्धतियों का सम्मिश्रण कर दिया जाए। ये सभी अध्ययन पद्धतियाँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं,वरन् एक-दूसरे की पूरक हैं।

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