ब्रिटेन व अमेरिका के स्पीकर की तुलना

प्रश्न 10. ब्रिटिश कॉमन सभा के अध्यक्ष की अमेरिकी प्रतिनिधि सभा अध्यक्ष से तुलना कीजिए।

अथवा '' ब्रिटिश कॉमन सभा के स्पीकर तथा अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर की शक्तियों की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए।

अथवा '' निर्वाचन, शक्तियों, कार्यों और स्थिति की दृष्टि से ब्रिटिश कॉमन सभा स्पीकर की तुलना अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर से कीजिए।

अथवा '' अमेरिकी प्रतिनिधि सदन के अध्यक्ष के चुनाव और शक्तियों की कॉमन सभा के अध्यक्ष से कीजिए।

अथवा "स्पीकर का पद बड़े सम्मान और गौरव का पद है।" ब्रिटिश कॉमन के स्पीकर के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए और उसकी तुलना अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर से कीजिए।

उत्तर- ब्रिटेनअमेरिका, दोनों ही देशों में व्यवस्थापिका के निचले सदन क्रमश: कॉमन सभा और प्रतिनिधि सभा में स्पीकर के पद की व्यवस्था की गई है लेकिन कॉमन सभा और प्रतिनिधि सभा के स्पीकरों में निर्वाचन, शक्तियोंकार्यों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अन्तर हैं, जिसका विवरण निम्न प्रकार है

ब्रिटेन में कॉमन सभा के स्पीकर का निर्वाचन

ब्रिटिश शासन व्यवस्था में कॉमन सभा का अध्यक्ष पद ऐतिहासिक और प्रतिष्ठायुक्त पद है। 'स्पीकर' शब्द का प्रचलन 14वीं शताब्दी से है। स्पीकर का  पद उतना ही पुराना है, जितनी पुरानी कॉमन सभा है। सर थॉमस हंगरफोर्ड देश के पहले स्पीकर थे। यह पद ब्रिटिश शासन पद्धति का अनुपम पद है। आरम्भ मे जब कॉमन सभा सम्राट के पास याचिका भेजने की संस्था थी, तो उस समय इस पद पर प्रतिष्ठित व्यक्ति को सदन की ओर से सम्राट के पास जाने और बोलने का अधिकार था। सदन का प्रवक्ता होने के कारण उसका नाम 'स्पीकर' पड़ा परिवर्तित प्रजातन्त्रीय परिवेश में स्पीकर सदन के एक तटस्थ संचालक की स्थिति में आ गया। प्राचीन समय में राजा ही स्पीकर की नियुक्ति करता था, पर आज यह कार्य सदन के सदस्य करते हैं। सर्वसम्मति से निर्वाचित अध्यक्ष जब तक चाहे अपने पद पर बना रहता है। सरकारें बदल जाती हैं, अध्यक्ष प्रायः पुराने ही बने रहते हैं। इस प्रकार ब्रिटेन में 'Once a Speaker, always a Speaker's की परम्परा विकसित हो चुकी है। सन् 1945, 1950 और 1964 में मजदूर दल ने इस परम्परा को छोड़ने का प्रयास किया, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली।

ब्रिटेन व अमेरिका के स्पीकर की तुलना

अमेरिका में प्रतिनिधि सभा के स्पीकर का निर्वाचन

अमेरिका में प्रतिनिधि सभा के निर्वाचन के उपरान्त दोनों राजनीतिक दल डेमोक्रेटिक दल और रिपब्लिकन दल अपनी-अपनी काकस (Caucus) में स्पीकर हेतु उम्मीदवारों का चयन करते हैं। प्रतिनिधि सभा की प्रथम बैठक में दोनों दलो की ओर से स्पीकर पद हेतु अपने उम्मीदवारों को नामांकित किया जाता है । चूँकि चुनाव का फैसला बहुमत से होता है, इसलिए बहुमत दल का उम्मीदवार ही स्पीकर पद पर निर्वाचित किया जाता है।

कॉमन सभा के स्पीकर की शक्तियाँ  

ब्रिटेन की राजनीतिक व्यवस्था में कॉमन सभा के अध्यक्ष का पद बहुत अधिक सम्मान और गौरव का पद बन गया है।

इस्कीन मे के मतानुसार, “कॉमन सभा का अध्यक्ष सदन की शक्ति, उसकी कार्यवाही व ज्ञान का प्रतिनिधि है। वह सदन का एक विशिष्ट व्यक्ति होता है। कॉमन सभा के अध्यक्ष के कार्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।"

डॉ. जैनिंग्स ने अध्यक्ष की शक्ति के सम्बन्ध में कहा था कि "अध्यक्ष के सम्मान व आदर को,उसकी शक्ति तथा उन्मुक्तियों को गिनकर प्रकट करना असम्भव है।स्पीकर को निम्न शक्तियाँ प्राप्त हैं-

(1) सदन की अध्यक्षता-

अध्यक्ष के रूप में वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करता है । मुनरो के अनुसार वह सदन का उत्कृष्ट व्यक्ति है।"

(2) सदन में व्यवस्था व अनुशासन रखना-

अध्यक्ष सदन में व्यवस्था व अनुशासन बनाये रखता है । वह सदन की गरिमा की रक्षा के लिए किसी व्यक्ति को नाम लेकर बोलने अथवा सदन के बाहर चले जाने का आदेश दे सकता है वह अशोभनीय भाषा व वाद-विवाद पर भी नियन्त्रण रख सकता है। डॉ. जैनिंग्स ने कहा है, "दन के भीतर उसका शब्द कानून होता है। उसका अपने स्थान से उठना सदन में खड़े व्यक्तियों के लिए इस बात का सूचक है कि वे अपने स्थान पर बैठ जाएँ।"

डिजरायली के शब्दों में, स्पीकर की पोशाक की खड़खड़ाहट ही गड़बड़ को शान्त करने के लिए पर्याप्त होती है।" अनुशासनहीन सदस्य को वह सार्जेण्ट की सहायता से सदन के बाहर करा सकता है।

(3) सदस्यों के अधिकारों का रक्षक-

वह कॉमन सभा के सदस्यों के अधिकारों का रक्षक है। जॉर्ज कोर्टहोप के शब्दों में,"स्पीकर हमारा अधिवक्ता है वह हमारे विशेषाधिकारों का रक्षक है, वह हमारे व्यवहार का न्यायाधीश है, हमारे प्रयत्नों का निर्देशक है। उसकी दृष्टि में पिछली सीटों पर बैठने वाले सदस्य और बड़े-से-बड़े मन्त्री की स्थिति बराबर होती है।"

(4) वित्त विधेयक को प्रमाणीकृत करने का अधिकार-

सन् 1911 के  संसदीय कानून के अनुसार स्पीकर को यह निर्णय करने की शक्ति है कि कौन सा विधेयक वित्त विधेयक है और कौन-सा नहीं।

(5) मतगणना एवं परिणामों की घोषणा

विभिन्न विधेयकों पर जब सदस्यों द्वारा मतदान होता है, तो उसकी गणना एवं परिणामों की घोषणा करना उसी का दायित्व है।

(6) निर्णायक मत का अधिकार-

साधारणत: स्पीकर मतदान में भाग नही लेता, परन्तु जब किसी विधेयक पर बराबर मत प्राप्त होते हैं, तो उसे निर्णायक मत देने का अधिकार है। लेकिन ऐसी स्थिति में वह पूर्व स्थापित सिद्धान्तों के अनुसार ही कार्य करता है।

(7) समिति सम्बन्धी शक्तियाँ

अध्यक्ष ही सदन की विभिन्न समितियों के लिए अध्यक्ष की नियुक्ति करता है। स्थायी समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति भी उसी के द्वारा होती है।

(8) बोलने की अनुमति-

सदन में बोलने वालों की संख्या चूँकि ज्यादा होती है, इसलिए अध्यक्ष ही निर्णय करता है कि कौन-से सदस्य वाद-विवाद में भाग लेंगे। सदस्य उसी को सम्बोधित करके अपने विचार प्रकट करते हैं।

(9) सदन का प्रतिनिधित्व

अध्यक्ष के रूप में वह सदन का प्रतिनिधित्व करता है । वह दूसरे देशों में जाने वाले प्रतिनिधिमण्डलों का भी नेतृत्व करता है।

प्रतिनिधि सभा के स्पीकर की शक्तियाँ प्रतिनिधि सभा के स्पीकर को ब्रिटिश कॉमन सभा के स्पीकर के सदृश कुछ शक्तियाँ प्राप्त होती हैं; जैसे

(1) बैठकों की अध्यक्षता करना।

(2) वाद-विवाद को संचालित करना।

(3) सदन में शान्ति व अनुशासन बनाए रखना।

(4) औचित्य के प्रश्नों पर निर्णय देना।

(5) विभिन्न प्रस्तावों पर मतदान कराकर परिणाम की घोषणा करना।

(6) बराबर मत होने पर निर्णायक मत देना।

(7) सदन की मान-मर्यादा और सदस्यों के हितों और अधिकारों की रक्षा करना।

प्रतिनिधि सभा के स्पीकर की खोई हुई शक्तियाँ

सन् 1911 से पूर्व प्रतिनिधि सभा के स्पीकर को निम्नांकित शक्तियाँ भी प्राप्त थीं

(1) सदन की विभिन्न समितियों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति करना।

(2) नियम निर्माण समिति की अध्यक्षता करना और उसके दो सदस्यों को मनोनीत करना।

सन् 1910 में स्पीकर जोसेफ कैनन ने इन शक्तियों का दुरुपयोग किया। परिणामस्वरूप उसके विरुद्ध उसके अपने दल रिपब्लिकन दल के सदस्यों ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने डेमोक्रेटिक दल के सदस्यों के साथ मिलकर स्पीकर की उपर्युक्त शक्तियाँ छीन लीं।

 

ब्रिटिश कॉमन सभा के स्पीकर और अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर की तुलना

दोनों अध्यक्षों के पद में असमानताएँ- ब्रिटिश व अमेरिकी स्पीकरों में हत्वपूर्ण अन्तर उनकी शक्तियों व स्थिति में हैं । संक्षेप में

(1) ब्रिटेन में अध्यक्ष के निर्वाचन में विरोध नहीं होता है, परन्तु अमेरिका में अध्यक्ष  के निर्वाचन का विरोध अवश्य होता है। इस सम्बन्ध में जॉनसन ने कहा है कि अल्पसंख्यक दल का उम्मीदवार जानता है कि वह निर्वाचन में हार जाएगा, परन्तु वह फिर भी इसलिए निर्वाचन लड़ता है जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि उसके दल को बहुमत दल के उम्मीदवार की निष्पक्षता में विश्वास नहीं है।"

(2) ब्रिटेन का अध्यक्ष अपने पद पर निर्वाचित होने के पश्चात् अपने दल से सम्बन्ध विच्छेद कर लेता है और निष्पक्षता से कार्य करता है, परन्तु प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष दल से सम्बन्ध तोड़ने की बजाय सदन में अपने दल के हितों की रक्षा करता है।

(3) अमेरिका के अध्यक्ष को अपने निर्वाचन क्षेत्र से जीतने के लिए जी-तोड़ परिश्रम करना पड़ता है, परन्तु ब्रिटिश अध्यक्ष को अपने निर्वाचन क्षेत्र में चुने जाने कोई परेशानी नहीं होती।

(4) ब्रिटेन के अध्यक्ष की भाँति अमेरिका के अध्यक्ष को यह निर्णय करने का अधिकार नहीं है कि अमुक विधेयक धन विधेयक है या नहीं।

(5) ब्रिटेन में अध्यक्ष के निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं होती, जबकि अमेरिका में अपीलें होती हैं।

(6) कॉमन सभा का अध्यक्ष निर्णायक मत का प्रयोग सावधानी से करता है परन्तु प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष अपने दल के हित में मतदान करता है।

(7) कॉमन सभा का अध्यक्ष अशिष्ट व्यवहार करने पर किसी सदस्य को सदन छोड़कर चले जाने को बाध्य कर सकता है, कुछ समय के लिए सदन से निलम्बित भी कर सकता है, परन्तु प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष को ये शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं।

दोनों की स्थिति में अन्तर-

ब्रिटिश व अमेरिकी स्पीकर की शक्तियों में तो अन्तर है ही, उनकी स्थिति में भी बड़ा अन्तर है। अमेरिकी स्पीकर को वह सम्मान व गौरव प्राप्त नहीं है जो कि ब्रिटिश स्पीकर को प्राप्त है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी स्पीकर सदैव अपने दल का पक्ष लेता है। ब्रिटेन में यह पद दल के किसी जाने-माने व्यक्ति को नहीं दिया जाता, जिससे उसके निष्पक्ष या तटस्थ रहने में कठिनाई पैदा हो । परन्तु अमेरिका में यह पद दल के प्रभावशाली व्यक्ति को दिया जाता है। राष्ट्रपति के बाद वह अपने दल का सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति होता है। ब्रिटिश स्पीकर का किसी भी दल से सदन के भीतर या सदन के बाहर कोई सम्बन्ध नहीं रहता। अमेरिका में इनका सर्वथा अभाव है। अपनी उपयुक्त विशेषताओं के कारण ही ब्रिटेन के स्पीकर का सम्मान सदन के सभी सदस्य करते हैं। ब्रिटिश स्पीकर के शब्द कानून के समान प्रभावशाली होते हैं। सदन में शान्ति व अनुशासन रखने में उसे बिल्कुल कठिनाई नहीं होती है। अमेरिका में स्पीकर को ऐसा सम्मान व प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है।

ब्रिटेन और अमेरिका के स्पीकर की स्थिति के अन्तर को स्पष्ट करते हुए। फाइनर ने लिखा है,“कॉमन सभा का स्पीकर केवल नियमों का उल्लेख करता है, उन्हें निष्पक्षता से लागू करता है,जबकि प्रतिनिधि सभा का स्पीकर अपनी इच्छा से नियमों का पुनर्निर्माण करता है और सदन की कार्यवाही के निर्धारण में भी भाग लेता है।"

ऑग रे के शब्दों में, अमेरिका में स्पीकर के पद का विकास ब्रिटेन से बहुत भिन्न रूप में हुआ है और वह दलीय सम्बन्ध से मुक्त नहीं है। रीड और कैनन के समय में तो वह राष्ट्रपति से दूसरे स्थान पर दल का नेता होता था।"

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