जेम्स प्रथम - संसद के मध्य संघर्ष

M.J. P. R.U., B. A. I, History II / 2020 

प्रश्न 10. जेम्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष के कारण बताइए। 

उत्तर-1603 ई. में ट्यूडर वंश की अन्तिम शासिका महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के पश्चात् मेरी स्टुअर्ट का पुत्र जेम्स प्रथम इंग्लैण्ड की गद्दी पर बैठा इस प्रकार इंग्लैण्ड में नये वंश का शासन प्रारम्भ हुआ। इससे पहले के ट्यूड शासक यद्यपि निरंकुश थे, परन्तु प्रजा उनका सम्मान व समर्थन करती थी। रानी एलिजाबेथ के शासनकाल में इंग्लैण्ड की जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने लगी। जिस समय जेम्स प्रथम गद्दी पर बैठा, संसद में जागरूकता आ गई। और वह अनेक सुधार करने की इच्छा रखती थी। परन्तु इंग्लैण्ड का राजा जेम्स प्रथम शासन सम्बन्धी सुधारों का विरोधी था। वह दैवी सिद्धान्त में विश्वास करता था। उसका कथन था कि "राजा ईश्वर का भेजा हुआ एक प्रतिनिधि है। वह उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।"
जेम्स प्रथम इंग्लैण्ड में विदेशी शासक था। वह संसद के कार्यों एवं परामर्श बिल्कुल ध्यान नहीं देता था। वह पूर्णतया स्वेच्छाचारी शासक था। अतः वह जनता एवं उसके प्रतिनिधियों की परवाह नहीं करता था। उसके इन कार्यों को सेन्ट पसन्द नहीं किया, जिसके कारण राजा और संसद के मध्य संघर्ष प्रारम्भ

जेम्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष के कारण

जेम्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे--
(1) परिवर्तित परिस्थितियाँ - ट्यूडर शासकों ने इंग्लैण्ड में गृह युद्ध को मादकके शान्ति की स्थापना की थी, अतः उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त था।
ट्यूडर शासकों ने सभी महत्त्वपूर्ण कार्य संसद की सहमति से ही किए, यहाँ तक धर्मसुधार जैसे महत्त्वपूर्ण मामले में भी संसद की अनुमति ली। किन्तु स्टुअर्ट बंश की स्थापना के समय स्थिति में परिवर्तन हो चुका था। विदेशी आक्रमण का डर समाप्त हो चुका था। देश समृद्धि की ओर बढ़ रहा था, अराजकता समाप्त हो चुकी थी ,और सामन्त दुर्बल हो चुके थे। सामन्तों तथा चर्च के दुर्बल होने से मध्यम बर्ग शक्तिशाली हो गया था। इस वर्ग में धनी व्यापारी तथा बौद्धिक प्रवृत्ति के लोग थे। इसी वर्ग की सहायता से ट्यूडर शासकों ने राजतन्त्र को सुदृढ़ किया , इस वर्ग का प्रशासन पर पर्याप्त प्रभाव था और संसद में भी उसके प्रतिनिधि थे , यह वर्ग आर्थिक रूप से समृद्ध था और राज्य को पर्याप्त राजस्व प्रदान करता था , जेन्स प्रथम की निरंकुश नीति उनकी आर्थिक प्रगति में बाधक बन रही थी। अत: यह वर्ग राजा की सत्ता को सीमित करके संसद को शक्तिशाली बनाना चाहता था। इससे राजा और संसद के मध्य संघर्ष होना स्वाभाविक था।
(2 ) बाह्य आक्रमणों से निश्चिन्तता ट्यूडर शासकों के समय में तो बाह्य कम का कुछ भय बना रहता था, परन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं थी। अतः निश्चिन्त होकर जब जनता को सोचने-समझने का अवसर प्राप्त हुन तो जनता अपने अधिकारों के सम्बन्ध में विचार करने लगी थी। इस परिवर्तित परिस्थिति में संसद भी अपने अधिकारों को प्रभावी बनाकर राजा की ना को सीमित करना चाहती थी। अतः दोनों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
(3) दैवी सिद्धान्त में विश्वास - जेम्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष का प्रमुख कारण यह था कि जेम्स प्रथम स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। अत: वह निरंकुश शासक बनकर रहना चाहता था। वह संसद या अन्य किसी भी प्रकार का नियन्त्रण मानने को तैयार न था, जबकि संसद उसके अधिकारों को सीमित करना चाहती थी।
(4) जेम्स प्रथम का चरित्र - जेम्स प्रथम बहुत ही घमण्डी स्वभाव का था। यद्यपि वह शिक्षित तथा योग्य व्यक्ति था, परन्तु वह स्वयं को सर्वशक्तिमान तथा संसद को तुच्छ समझता था। वह अनावश्यक रूप से अधिक बोलता था तथा व्यंग्य करता था। वह संसद से परामर्श करना अनावश्यक समझता था। इस कारण जेम्स प्रथम और संसद के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया।  
(5) जेम्स प्रथम की धार्मिक नीति - जेम्स प्रथम की धार्मिक नीति भी संसद के साथ संघर्ष का कारण बनी। इस समय इंग्लैण्ड में रोमन कैथोलिक, प्यूरिटन तथा ऐंग्लिकन धर्मों का प्रभाव था। तीनों धर्म सम्राट का समर्थन प्राप्त करने की आशा करते थे। परन्तु उसने केवल ऐंग्लिकन धर्म का समर्थन किया, जिससे कैथोलिक तथा प्यूरिटन लोग उससे नाराज हो गए और उन्होंने राजा का विरोध करना आरम्भ कर दिया।
(6) जेम्स प्रथम की आर्थिक नीति - जेम्स प्रथम आर्थिक मामलों में बड़ा लापरवाह था। इसके अतिरिक्त वह अपव्ययी भी था। उसने अपने भोग-विलास के लिए राजकोष का दुरुपयोग करना प्रारम्भ कर दिया था। चापलूस व्यक्तियों द्वारा स्वयं की प्रशंसा किए जाने पर वह उन्हें बड़े-बड़े इनाम दिए करता था। राजस्व प्राप्त करने के लिए उसने जनता पर नवीन कर लगाए और अनेक व्यक्तियों से धन लेकर उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त किया। चूँकि उसने ये कार्य संसद की स्वीकृति के बिना किए थे, इसलिए संसद सदस्यों ने जेम्स प्रथम के इन कार्यों का खुलकर विरोध किया।
(7) जेम्स प्रथम की विदेश नीति - जेम्स प्रथम अपने पुत्र चार्ल्स का विवा स्पेन की राजकुमारी से करना चाहता था। इस विवाह के पीछे उसका उद्देश्य दोन देशों के मध्य व्याप्त वैमनस्यता को समाप्त करना था। परन्तु स्पेन के कैथोलि होने के कारण संसद इस विवाह के पक्ष में नहीं थी। जेम्स प्रथम का मत था कि संसद को इस पर विचार करने का अधिकार नहीं है, जबकि संसद इसे राष्ट्र का मामला मानती थी और उस पर विचार करने का अधिकार रखती थी। इधर स्पेन ने भी अपनी राजकुमारी का विवाह चार्ल्स से करने से इन्कार कर दिया। जेम्स प्रथम ने अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह फ्रांस की राजकुमारी से किया तथा स्पेन विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। किन्तु इस युद्ध में जेम्स प्रथम को निराशा ही हाथ लगी। जेम्स प्रथम के इन कार्यों से संसद सदस्य क्रुद्ध हो गए।
(8) जेम्स प्रथम का पक्षपाती स्वभाव - जेम्स प्रथम स्कॉटलैण्ड का निवासी था, इसलिए उसने उच्च पदों पर स्कॉटलैण्ड के लोगों को नियुक्त करना प्रारम्भ कर दिया। ये उच्चाधिकारी शासन सम्बन्धी कार्यों के योग्य नहीं थे। अत: संसद सदस्य जेम्स प्रथम से रुष्ट हो गए।
(9) संसद सदस्यों के अधिकारों पर नियन्त्रण - जेम्स प्रथम ने संसद सदस्यों के अधिकारों को समाप्त करना प्रारम्भ कर दिया था। इससे पूर्व सदस्यों को संसद में भाषण देने की स्वतन्त्रता थी। उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा प्राप्त थी तथा उन्हें बन्दी नहीं बनाया जा सकता था। संसद की स्वीकृति के बिना कोई कर नहीं लगाया जा सकता था। संसद को कानून बनाने का अधिकार था। जेम्स प्रथम ने संसद के इन विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। अत: अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संसद को संघर्ष का मार्ग अपनाना पड़ा।
(10) जेम्स प्रथम का विदेशी होना - जेम्स प्रथम स्कॉटलैण्ड का निवासी था, इसलिए इंग्लैण्ड के लोग उसे विदेशी मानते थे। उसके विदेशी होने के कारण भी जनता उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखती थी।
उपर्युक्त समस्त कारणों से जेम्स प्रथम और संसद के मध्य विवाद प्रारम्भ हुआ तथा जेम्स प्रथम के 22 वर्षों के शासनकाल में राजा और संसद के मध्य घर्ष चलता रहा। यदि जेम्स प्रथम ने सूझबूझ और कुशलता से स्थिति को सुधारने का प्रयत्न किया होता, तो सम्भवतः राजा और संसद के मध्य संघर्ष इतना गम्भीर रूप धारण नहीं करता। इस संघर्ष के व्यापक प्रभाव हुए, जिसके दुष्परिणाम उसके पुत्र चार्ल्स प्रथम को भुगतने पड़े।

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