ऋणजल धनजल - सारांश
प्रश्न 13. 'ऋणजल धनजल' रिपोर्ताज के पठित अंश के आधार पर दक्षिणी बिहार में आई बाढ़ का वर्णन कीजिए।
अथवा
‘’फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'ऋणजल धनजल' रिपोर्ताज का
सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर -रिपोर्ताज नामक गद्य विधा के रचनाकारों में फणीश्वरनाथ 'रेणु' का नाम शीर्ष पर है। 'ऋणजल
धनजल' शीर्षक रिपोर्ताज में रेणु जी ने सन् 1966 में बिहार के सूखे और अकाल का तथा सन् 1975 में
दक्षिणी बिहार में आई बाढ का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। हमारी पाठ्य-पुस्तक में
धनजल का वर्णन ही संगृहीत है, जिसका शीर्षक है-'पंछी की लाश'।
फणीश्वरनाथ 'रेणु' बचपन से ही 'बाढ़' शब्द सुनते ही विगलित हो उठते थे और उनके हृदय में बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में जाकर काम करने की अदम्य लालसा जाग्रत हो जाती थी। उनकी इस प्रवृत्ति के पीछे उनकी बहिन द्वारा गाया जाने वाला सावन-भादों नामक एक करुण ग्राम्य गीत रहा है। इस लोकगीत में नवविवाहित कन्या सावन-भादों में नैहर वालों के द्वारा पिता के घर न बुलाए जाने पर कहती है कि “अब तो चारों ओर काँस भी फूल गए हैं अर्थात् वर्षा का मौसम बीतने को है। पिछली बार तो बाबा खुद आए थे। इस बार बाबा ने सुधि नहीं ली। बाबा अब निर्मोही हो गए हैं। भैया को जमीन-जगह के मामले में हमेशा कचहरी में रहना पड़ता है। लेकिन मेरी प्यारी भाभी मुझे कैसे भूल गईं।"
दूसरा
ग्राम्य गीत अत्यन्त कारुणिक था, जिसे अपनी बहिन और उसकी सहेलियों से सुनकर रेणु जी करुणार्द्र हो जाते थे
और उनकी आँखों से अश्रु प्रवाहित होने लगते थे। रेणु जी ने अपने रिपोर्ताज में इस
गीत का हिन्दी अर्थ इस प्रकार लिखा है
नदी की उत्ताल तरंगों
और घूर्णिचक्र में फंसकर बेड़ा टूट गया। भाई का हाथ छूट गया और भाई का बेड़ा भी
डूब गया। भाई ने तैरकर बहिन को बचाने की चेष्टा की, किन्तु
तेज धारा के कारण असफल रहा। डूबती हुई बहिन ने अन्तिम सन्देश दिया
माँ के नाम, बाप के नाम' फिर किसी बेटी को सावनभादों में नैहर
बुलाने में कभी कोई देरी न करें और देरी हो जाए, तो जामुन के
पेड़ कटवाकर नाव बनवाएँ और तभी लड़की को बुलाने भेजें।"
इन गीतों की पंक्तियाँ रेणु जी के मन में गूंजती
रहीं और उनकी आँखें बरसती रहीं। इसी के साथ कई वर्षों से रेणु जी के मन में
शैलेन्द्र की बन्दिनी' फिल्म का एक गाना और जुड़ गया,
जो शैलेन्द्र जी ने रेणु जी को सुनवाया था। 'बन्दिनी'
के इस टेक हुए गीत ने शैलेन्द्र जी और रेणु जी को काफी देर तक
रुलाया, तत्पश्चात् रेणु जी को नींद आ गई। भोर के समय रेणु
जी को स्वप्न में रोते देखकर लतिका जी (उनकी पत्नी) ने उनको जगा दिया। इन्हीं
गीतों की पृष्ठभूमि में लेखक ने बिहार में सन् 1975 में आई
बाढ़ के दृश्य अंकित किए
भोर में देखे गए
स्वप्न से अभिभूत रेणु जी आवास की पश्चिमी खिड़की से झाँककर देखने लगे। उन्हें
आभास हुआ कि जल प्रवाह की गति कुछ कम हो गई है। उन्हें बाढ़ के बहाव में तैरती हुई
अनेक वस्तुएँ दिखाई दी। पहले दिन हवाई चप्पल, बच्चों के
खिलौने, कंघी, साइकिल की बास्केट,
प्लास्टिक के रंगीन कटोरे पानी में उतराते हुए दिखाई दिए थे,
आज एक सफेद मुर्गी दिखाई दी, जो दूर से खरगोश
या विलायती चूहे जैसी दिख रही थी। आज सुबह उठकर लेखक की दृष्टि पंछी की लाश पर
पड़ी, जिसे अपशकुन समझकर लेखक का हृदय आशंकित हो गया। ____
पाठ्य-पुस्तक में
संकलित 'ऋणजल धनजल' के अंश का शीर्षक
इसी दृश्य के आधार पर चुना गया है। रिपोर्ताज लेखक की वर्णन शैली तथा निरीक्षण
शक्ति अद्भुत है। बाढ़ के दृश्य को उन्होंने इस तरह चित्रित किया है मानो पाठक
स्वयं बाढ़ का दृश्य देख रहे हों। मछआरों का मछली पकड़ने के लिए जल में घर सुअरों
की लाशों को लाठी की बँहगी पर लटकाए भंगियों के दल द्वारा मुर्गी कर सडा हआ न
बताकर उसे भी बँहगी पर लटका लेना तथा कुछ अन्य व्यक्तियों तार पैर से टटोल कर काम
की वस्तुओं को थैले में रख लेने आदि का रेण जी चित्रात्मक शैली में वर्णन किया है।
बाढ़ की विभीषिका से
त्रस्त जनमानस के सभी सम्पर्क-सूत्र कट जाने के कारण बाढ़ की स्थिति का कोई पता
नहीं चल रहा था। तभी संवाददाता श्री एच पी. शर्मा ने अनेक कठिनाइयों और बाधाओं को
पार कर दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र से सम्पर्क स्थापित करके बाढ का ताजा समाचार दिया, तो सभी ने शर्मा जी को हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। शर्मा जी द्वारा प्रसारित
समाचार ने पटना के गर्क हो जाने की आशंका को दूर कर दिया था।
लेखक ने बाढ़ के
दृश्यों को दिखाने के लिए कैमरामैनों के कर्त्तव्य का भी अंकन किया है। फोटो
खिंचवाने के लिए उस व्यक्ति का दृश्य भी लेखक की लेखनी से नहीं छूटा है जो पहले
कैमरामैनों की आलोचना कर रहा था, परन्तु खुद का फोटो
खिंचवाने के लिए वह फोटो खिंचवाने की मुद्रा में आ गया था। बाढ़ के पानी में नहाते
हुए कुछ लड़कों की अश्लील हरकतों का भी प्रस्तुत रिपोर्ताज में वर्णन किया गया है।
इससे रिपोर्ताज में बाढ़ का यथार्थ चित्र उपस्थित हो गया है।
लेखक बाढ़ के दृश्यों
के छायांकन हेतु आए कैमरामैनों के प्रति अभद्र व्यवहार को अनुचित बताता है। वह
लड़कों को समझाने के लिए अपनी छत पर जा पहुँचा और फोटो खींचने वालों को हूट न करने
के लिए कहा। लड़के रेणु जी को चाचा कहते थे, इसलिए लेखक
के ब्लॉक के लड़कों ने नीचे जाकर अन्य लड़कों को भी समझाना स्वीकार कर लिया। इसी
समय सड़ी हई गाय की लाश से निकलती हुई दुर्गन्ध ने नहाने वालों के उत्साह को बाधित
कर दिया। इस दुर्गन्ध ने रेणु जी को यह सोचकर चिन्तित कर दिया कि यदि यह सड़ी हुई
गाय ब्लॉक के नीचे बनी हुई किसी दुकान में अटक गई, तो जीना
दूभर हो जाएगा। परन्तु मुख्य धारा के पास आती हुई वह तीव्र गति से बहकर चली गई। बाढ के समय दैनिक उपयोग की वस्तुओं का समाप्त हो जाना स्वाभाविक है।
लेखक की पत्नी रसोई गैस समाप्त हो जाने की सूचना देकर कोयले की अंगीठी जलाने की
तैयारी करने लगी।
लेखक ने हालचाल लेने
के लिए आए अपने मित्र परेस जी से कैरोसिन तेल की फरमाइश की, क्योंकि गैस खत्म हो चुकी थी।
आलोच्य रिपोर्ताज में लेखक ने
बाढ़ से राहत देने के लिए प्रशासन की ओर से की जाने वाली व्यवस्थाओं का पूरे
मनोयोग से वर्णन किया है, जिनमें सेना द्वारा लोगों को
सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना, हेलीकॉप्टरों से खाद्य सामग्री
गिराया जाना । तथा बीमारियों से बचने के लिए पानी को उबालकर पीने के स्वास्थ्य
विभाग के निर्देश प्रमुख हैं।
बाढ़ की विभीषिका में
समाजसेवी नरेन्द्र 'घायल' आते
हुए दिखाई देते हैं, जिन्हें रेणु जी ने 'स्वामी मुश्किल आसानानन्द' नाम दे रखा है। उसके
द्वारा पहुँचाई जाने वाली सहायता की प्रशंसा करता हुआ लेखक प्रकृति का उग्र रूप
देखकर परेशान हो उठता है, उसका मन अशान्त हो जाता है। वह कोई
पुस्तक पढ़कर हृदय के उद्वेलन को शान्त करने की चेष्टा करता है। जिस पुस्तक को
पढ़ने के लिए पृष्ठ खोला, उसमें भी बाढ़ का ही प्रसंग निकला।
यह 'काकतालीय' संयोग था। रवीन्द्रनाथ
ठाकुर की पुस्तक पढ़कर कुछ शान्ति चाही, परन्तु उसमें भी
टैगोर ने एक पंछी का लाश का वर्णन किया था। लेखक ने टैगोर द्वारा लिखित इस बंगला
भाषा के अंश को हिन्दी अनुवाद सहित उद्धृत किया है, जो इस
प्रकार
"किसी एक
गाँव के बाहर बाग में आम की डाली पर उस (पंछी) का बासा (घोंसला) था। साँझ को बासा
में लौटकर वह संगी-साथियों के नरम-नरम गर्म डैनों के साथ अपना पंख मिलाकर श्रान्त
देह सो रहा होगा। हठात् पद्मा (नदी) ने जरा करवट ली (बाढ़ आई) और पेड़ के नीचे की
मिट्टी अरअराकर धंस गई। नीड़च्युत पंछी ने हठात् एक मुहूर्त के लिए जग कर 'चें' किया। इसके बाद उसको जगना नहीं पड़ा।"
इस पंछी की लाश की
तरह ही लेखक ने पटना की बाढ़ में पंछी की लाश देखी थी। पाठ्य-पुस्तक में संकलित
अंश यहीं समाप्त हो गया है। इसी कारण इसका शीर्षक 'पंछी
की लाश' रखा गया है। प्रस्तुत रिपोर्ताज में रेणु जी ने
रिपोर्ताज विधा की सभी विशेषताओं को चित्रात्मक शैली में सँजोया है। संकलित अंश
में ऋणजल अर्थात् सूखे का वर्णन नहीं है।
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