रिपोर्ताज का अर्थ एवं परिभाषा

प्रश्न 11 . हिन्दी के रिपोर्ताज साहित्य के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।

अथवा ''रिपोर्ताज का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।

अथवा ''रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं ? हिन्दी के रिपोर्ताज साहित्य पर एक सारगर्भित निबन्ध लिखिए।

उत्तर-

रिपोर्ताज का अर्थ एवं परिभाषा

हिन्दी में 'रिपोर्ताज' को 'सूचनिका' और 'रूपनिका' भी कहा जाता है, परन्तु प्रचलित शब्द 'रिपोर्ताज' ही है। कुछ लोग इसका उच्चारण "रिपोर्टाज' भी करते हैं। मूलतः 'रिपोर्ताज' शब्द फ्रेंच भाषा का है, लेकिन हिन्दी में यह अंग्रेजी शब्द 'रिपोर्ट के माध्यम से आया है।

डॉ. भागीर मिश्र रिपोर्ताज को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, "किसी घटना या दृश्य का अत्यन्त विवरणपूर्ण सूक्ष्म, रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठे।"

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के अनुसार, "रिपोर्ताज घटना का हो, दृश्य का हो या मेले का, उत्सव का हो, उसमें ज्ञान और आनन्द का संगम होना चाहिए।"

डॉ. ओमप्रकाश सिंहल के अनुसार, "जिस रचना में वर्ण्य-विषय का आँखों देखा तथा कानों सना ऐसा विवरण प्रस्तत किया जाए कि पाठक के हृदय के तार झंकृत हो उठे और वह उसे भूल न सके, उसे रिपोर्ताज कहते हैं।"

डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार, "किसी घटना या घटनाओं का ऐसा वर्णन कि वस्तुगत सत्य पाठक के हृदय को प्रभावित कर सके, रिपोर्ताज कहलाएगा।"

reportraj ka arth aur paribhasha

रिपोर्ताज के तत्त्व रिपोर्ताज के प्रमुख तत्त्व निम्न प्रकार हैं

(1) वस्तुमय तथ्य-

रिपोर्ताज में कल्पना का स्थान नहीं होता। उसमें वस्तुस्थिति का, आँखों देखी घटना अथवा दृश्य का तथ्यात्मक चित्रण होता है।

(2) कथात्मकता-

उसमें वर्णन के साथ कथा तत्त्व का भी समावेश होता है। कथा तत्त्व के अभाव में रिपोर्ताज रिपोर्ट मात्र ही रह जाएगा। यह कलात्मकता ही उसमें साहित्यिकता का समावेश करती है।

(3) पत्रकारिता-

रिपोर्ताज लेखक में साहित्यिकता के साथ-साथ पत्रकार के भी गुण अपेक्षित हैं, क्योंकि इसकी शैली पत्रकारिता के निकट है।

(4) जनजीवन के प्रति सहानुभूति-

जनजीवन के प्रति सहानुभूति से उभरा चित्र भावनात्मक, संवेदनशील होगा, जिससे उसकी नीरसता समाप्त होकर उसमें सरसता समाहित हो सकेगी।

(5) सीमित आकार-

आकार का बड़ा होना, अनपेक्षित वर्णन-विस्तार रिपोर्ताज को नोट्स बना देगा और उसका प्रभाव भी कम हो जाएगा।

(6) प्रभाव की एकता -

इसमें प्रभाव की एकता भी आवश्यक है।

हिन्दी रिपोर्ताज : उद्भव और विकास

रिपोर्ताज सामयिक आवश्यकता की उपज है। हिन्दी में इसके लेखन की परम्परा बहुत नवीन है। हिन्दी में रिपोर्ताज लेखन का सूत्रपात करने का श्रेय रांगेय राघव को है, जिन्होंने सन् 1941 में बंगाल के भीषण अकाल पर अपने रिपोर्ताज प्रस्तुत किए थे। अमृतलाल नागर ने उस अकाल से प्रभावित होकर 'महाकाल' उपन्यास लिखा था। सन् 1948, 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध, 1962 में चीन से युद्ध आदि घटनाओं ने भी लेखकों को रिपोर्ताज लिखने के लिए प्रेरित किया। बाढ़, अकाल, अग्निकाण्ड, विमान दुर्घटना आदि के सम्बन्ध में भी रिपोर्ताज लिखे गए। सन् 1971 के बाँग्लादेश स्वाधीनता संग्राम के दिनों में धर्मवीर भारती ने बाँग्लादेश से रिपोर्ताज भेजे थे, जो 'धर्मयुग' में छपते थे। -

'दिनमान', 'ज्ञानोदय', 'कल्पना', 'अवकाश', 'माध्यम', 'सारिका', 'नया पथ', 'हिन्दी एक्सप्रेस' आदि अन्य हिन्दी पत्रिकाएँ हैं, जिनमें रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे हैं। इन पत्र-पत्रिकाओं में न केवल पेशेवर पत्रकार रिपोर्ताज लिख रहे हैं अपितु प्रतिष्ठित साहित्यकार भी सक्रिय हैं। रांगेय राघव, धर्मवीर भारती, फणीश्वरनाथ 'रेणु', अमृतराय, प्रभाकर माचवे, विष्णु प्रभाकर आदि लेखक रिपोर्ताज लेखकों में प्रमुख स्थान रखते हैं।

साहित्यिक गोष्ठियों, सभा-सम्मेलनों आदि पर आधारित रिपोर्ताज भी अब प्रायः सभी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। 'आजकल', 'सारिका', 'धर्मयुग', 'दिनमान' आदि में इस प्रकार की सूचनिकाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। 'माध्यम' नामक पत्रिका में वर्षों तक रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे। आज भी समसामयिक घटनाओं, महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों आदि पर गोष्ठियाँ व सम्मेलन होते हैं

और उन पर भी रिपोर्ताज छपते रहते हैं।

 वर्तमान में पुस्तक रूप में भी उत्कृष्ट रिपोर्ताज प्रकाशित हुए हैं। 'गरीब और अमीर पुस्तकें ' (रामनारायण उपाध्याय), 'मैं छोटा नागपुर से बोल रहा हूँ' (कामताप्रसाद), 'पीकिंग की डायरी' (जगदीशचन्द्र माथुर), 'चक्कर क्लब' (यशपाल), 'कहनी-अनकहनी' (धर्मवीर भारती), 'गोरी नजरों में' (प्रभाकर माचवे), गन्धमादन' (कुबेरनाथ राय) आदि ऐसी ही पुस्तकें हैं। विशुद्ध रूप से रिपोर्ताज प्रस्तुत करने वालों में तीन-चार लेखकों के नाम ही उल्लेखनीय हैंरेणु, अमृतराय, विवेकीराय आदि।

निष्कर्ष

रिपोर्ताज हिन्दी साहित्य की सबसे नवीन विधा है, मात्र 40 वर्ष का इतिहास है इसका। फिर भी इसने जो प्रगति की है, वह सूचित करती है कि इसका भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल है। सम्प्रति, हिन्दी रिपोर्ताज मुख्यतः पत्र-पत्रिकाओं में ही प्रकाशित हो रहा है, लेकिन निकट भविष्य में रिपोर्ताज पुस्तकाकार रूप में भी पर्याप्त संख्या में प्रकाशित होंगे।

 

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