हानियों की पूर्ति से आप क्या समझते हैं ?
प्रश्न 8. हानियों की पूर्ति से आप क्या समझते हैं ? हानियों की पूर्ति से सम्बन्धित आयकर विधान के प्रावधान समझाइए।
अथवा '' कौन-कौन सी
हानियों को आगे ले जाया जाता है ? हानियों को आगे ले जाने एवं
उनकी पूर्ति करने के प्रावधान बताइए I
हानियों की पूर्ति
से तात्पर्य है कि जिस वर्ष आय के किसी स्रोत से हानि हो,
उसकी पूर्ति उसी वर्ष की जाए। यदि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के
अन्तर्गत हानि की पूर्ति उसी वर्ष सम्भव न हो, तो कुछ
निर्धारित हानियों को आगे ले जाकर उनकी पूर्ति की जा सकती है।
हानियों की पूर्ति
के सम्बन्ध में प्रावधान-
आयकर अधिनियम के
अन्तर्गत हानि की पूर्ति सम्बन्धी प्रावधान निमंलिखित है-
(1) एक ही शीर्षक में एक स्रोत की हानि की पूर्ति उसी शीर्षक के किसी अन्य स्रोत की आय से करना-
धारा 70
के अनुसार एक स्रोत की हानि की आय के उसी शीर्षक के अन्य
स्रोत की आय से की जा सकती है। उदाहरण लिए, मोहन कपड़े व लोहे का व्यापार
करता है। उसे गत वर्ष में कपडे के या से हानि होती है तथा लोहे के व्यापार से लाभ
होता है, तो वह अपने कपडे व्यापार की हानि की पूर्ति लोहे के
व्यापार से कर सकता है।
अपवाद–इस नियम के निम्न अपवाद हैं-
(i) सट्टे के व्यापार की हानि की
पूर्ति गैर-सट्टे के व्यापार के लाभ से नहीं की जा सकती।
(ii) दीर्घकालीन पूँजी हानि की
पूर्ति अल्पकालीन पूँजी लाभ से नहीं की जा सकती।
(iii) घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रखरखाव की क्रिया से होने वाली हानि की पूर्ति केवल घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व व रखरखाव की आय से की जा सकती है। ‘अन्य साधनों से आय’ शीर्षक में ही अन्य किसी स्रोत की आय से इसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है।
(iv) आकस्मिक प्रकृति की हानि की
पूर्ति किसी भी आय से नहीं की जा सकती।
(v) कर-मुक्त आय के स्रोत की
हानि की पूर्ति किसी भी कर-योग्य आय से नहीं की जा सकती।
(2) आय के एक शीर्षक की हानि की पूर्ति अन्य शीर्षक की आय से करना अर्थात् अन्तरशीर्षक पूर्ति-
यदि किसी
कर-निर्धारण वर्ष में आय के किसी एक शीर्षक की हानि की उसी शीर्षक की आय से
पूर्णतया पर्ति न हो पाए, तो करदाता को ऐसी हानि की
पूर्ति अन्य किसी शीर्षक की आय से करने का अधिकार है, परन्तु
इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं
(i) सट्टे के व्यापार की हानि
तथा पूँजी हानि की पर्ति अन्य किसी शीर्षक की आय से नहीं की जा सकती है।
(i) घुड़दौड़ के घोड़ों के
स्वामित्व तथा रखरखाव की क्रिया से होने वाली हानि की पूर्ति अन्य किसी शीर्षक की
आय से नहीं की जा सकती है। [धारा 71]
(3) गैर-सट्टा व्यापार अथवा पेशे की हानि की पूर्ति-
गैर-सट्टा व्यापार
अथवा पेशे की हानि की पूर्ति 'व्यापार अथवा पेशा शीर्षक'
में किसी स्त्रोत की आय से (सट्टा व्यापार के लाभ सहित) की जा सकती
है। यदि उस शीर्षक में अन्य आय नहीं बची है अथवा आय हानि से कम है, तो शेष हानि की पूर्ति किसी अन्य शीर्षक ('वेतन'
शीर्षक छोड़कर) से की जा सकती है। [धारा 72]
(4) सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति-
सट्टे के व्यापार की
हानि को केवल सट्टे के किसी अन्य व्यापार के लाभ से पूरा किया जा सकता है,
परन्तु गैर-सट्टा व्यापार अथवा पेशे की हानियाँ तथा 'अन्य साधनों से आय' शीर्षक की हानियाँ सट्टे के
व्यापार के लाभ से पूरी की जा सकती हैं।
[धारा 73(1)]
(5) घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रख-रखाव की क्रिया से होने वाली हानि की पूर्ति-
इस प्रकार की हानि
की पूर्ति केवल घोड़ों के स्वामित्व तथा रखरखाव की क्रिया से होने वाली आय से की
जा सकती है, अन्य किसी आय से नहीं।
[धारा 74A(3)]
(6) पूँजीगत हानियाँ—
पूँजीगत हानियाँ दो
प्रकार की होती हैं-अल्पकालीन व दीर्घकालीन।
अल्पकालीन हानियाँ केवल अन्य किसी अल्पकालीन या दीर्घकालीन पूँजी लाभ से पूरी की जा सकती
हैं।
दीर्घकालीन हानियों की पूर्ति केवल दीर्घकालीन लाभ से की जा सकती है।
(7) लॉटरी, पहेली, जुआ, शर्त आदि की हानियों की पूर्ति-
इन हानियों की पूर्ति किसी भी आय से नहीं की जा सकती है।
(8) व्यक्तियों के समुदाय/समूह की हानियों की पूर्ति-
इनकी हानियाँ यदि
इन्हीं की आय के किसी शीर्षक की आय से पूरी नहीं की जा सकतीं,
तो इनके सदस्यों को अपनी व्यक्तिगत आय से ये हानियाँ पूरा करने का
अधिकार नहीं है।
(9) साझेदारी फर्म की हानियों की पूर्ति-
एक साझेदारी फर्म की
हानि फर्म स्वयं अपनी आय से कर सकती है। कोई भी साझेदार उस फर्म की हानियों में
अपने हिस्से की हानि की पूर्ति उस वर्ष हुई अपनी व्यक्तिगत आय से नहीं कर सकता है।
हानियों को आगे ले जाकर पूरा करने सम्बन्धी नियम
जब किसी वर्ष की
हानि उसी वर्ष के विभिन्न स्रोतों या शीर्षक से परी नहीं की जा सकती,
तो ऐसी अपूरित हानि को अगले वर्षों के बार" पूरा करने के लिए आगे ले जाया जाता है तथा अगले वर्ष के लाभों में किया
जाता है। इसी को 'हानियों को आगे ले जाना और पूरा करना'
कहते हैं
I
वे हानियाँ जो आगे
ले जाई जा सकती हैं I-
(1) न वसूल हुए किराये के कारण 'मकान-सम्पत्ति शीर्षक' की हानि
(2)
गैर-सट्टा व्यापार अथवा पेशे की हानियाँ,
(3) सट्टे की हानियाँ,
(4) पूँजीगत हानियाँ (अल्पकालीन
तथा दीर्घकालीन),
(5) घुड़दौड़ के घोड़ों के
स्वामित्व एवं रखरखाव के कार्यों से उत्पन्न हानियाँ।
हानियों को आगे ले
जाकर पूर्ति करने के सम्बन्ध में प्रावधान निम्न प्रकार हैं I-
(1) न वसूल हुए किराये के कारण 'मकान-सम्पत्ति' शीर्षक की हानि-
यदि किसी गत वर्ष में न वसूल हुए किराये की हानि, जो गत वर्ष 1998-99 अथवा इसके बाद आने वाले गत वर्षों से सम्बन्धित है, की पूर्ति 'मकान-सम्पत्ति से आय' शीर्षक से उसी वर्ष में न हो सके, तो उसे 8 वर्षों तक आगे ले जाया जा सकता है। [धारा 71B]
(2)सामान्य व्यापार अथवा पेशे की हानि-
सामान्य व्यापार
अथवा पेशे की अपूरित हानि को अगले 8 वर्षों तक व्यापार अथवा पेशे
के लाभों से पूरा करने के लिए आगे ले जाया जा सकता है। यह उल्लेखनीय है कि जिस व्यापार
एवं पेशे की हानि को आगे ले जाया जा रहा है, यदि वह व्यापार
अथवा पेशा गत वर्ष 1998-99 में अथवा इससे
पूर्व बन्द कर दिया गया है, तो ऐसे व्यापार की हानि को आगे
ले जाकर पूरा नहीं किया जा सकता है। परन्तु यदि वह व्यापार अथवा पेशा गत वर्ष 1999-2000
में अथवा इसके पश्चात् बन्द किया जाता है, तो
ऐसे व्यापार अथवा पेशे की हानियाँ आगे ले जाकर पूरी की जा सकती हैं। [धारा 72]
(3) सट्टे के व्यापार की
हानि-सट्टे के व्यापार की ऐसी हानि जो उसी वर्ष में पूरी न की जा सके, को भविष्य में सट्टे के लाभों से पूरा करने के लिए, जिस
वर्ष यह हानि हुई थी, अगले 4 वर्षों तक
ले जाया जा सकता है। [धारा 73]
(4) पूँजीगत हानियाँ-
पूँजीगत हानियाँ दो
प्रकार की होती हैंअल्पकालीन एवं दीर्घकालीन। पूँजी हानि जो उसी वर्ष में पूर्णतया
पूँजी लाभ' शीर्षक में किसी आय से पूरी न की जा सके,
तो अशोधित हानि को, जिस वर्ष यह हानि हुई थी,
उससे अधिक-से-अधिक 8 कर-निर्धारण वर्षों में
आगे ले जाकर इसी शीर्षक की आय से पूरा किया जा सकता है। [धारा 74]
अल्पकालीन व
दीर्घकालीन, दोनों प्रकार की पूँजी हानियों को अलग-अलग
ले जाएँगे तथा अल्पकालीन पूँजी हानि को किसी भी पूँजी लाभ (अल्पकालीन अथवा
दीर्घकालीन) से पूरा कर सकते हैं। किन्तु दीर्घकालीन पूँजी हानि की पूर्ति केवल
दीर्घकालीन पूँजी लाभों से की जा सकती है।
(5) घुड़दौड़ के घोड़ों के रखने से हानि-
यदि करदाता घुड़दौड़
के घोड़ों का स्वामी है और ऐसे घोड़ों को रखने से उसे कोई हानि होती है जिसकी
पूर्ति अगले कर-निर्धारण वर्ष में इस शीर्षक की आय से नहीं होती,
तो ऐसी हानि की पूर्ति बाद के 4 वर्षों तक उसी
शीर्षक की आय से की जा सकती है। [धारा 74A]
(6) साझेदारी फर्म के संगठन में परिवर्तन होने पर हानि-
यदि किसी साझेदारी
फर्म के संगठन में कोई परिवर्तन किसी एक या अधिक साझेदारों की मृत्यु अथवा अवकाश
ग्रहण करने के कारण हुआ है, तो अवकाश ग्रहण करने । वाले
अथवा मृतक साझेदार के हिस्से की हानि को आगे ले जाने तथा उसकी पूर्ति करने का
अधिकार समाप्त हो जाता है। कोई भी फर्म ऐसे साझेदार के हिस्से की हानि को आगे नहीं
ले जा सकती तथा उसकी पूर्ति नहीं कर सकती है। [धारा 78(1)]
(7) व्यापार अथवा पेशे का
स्वामित्व बदलने पर हानि–यदि व्यापार अथवा पेशे का स्वामित्व
बदल जाने के कारण उसका स्वामित्व एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित हो
जाता है, तो व्यापार के नये स्वामी को पुराने स्वामी की
हानियों को आगे ले जाने का अधिकार नहीं है। यदि स्वामित्व परिवर्तन उत्तराधिकार के
कारण हुआ हो, तो हानियाँ पूर्ति के लिए आगे ले जाई जा सकती
हैं। [धारा
78(2)]
(8) एकीकरण की योजना के अन्तर्गत बैंकिंग संस्था के लाभों से बैंकिंग कम्पनी की हानि की पूर्ति-
आयकर अधिनियम की
धारा 72AA के अनुसार यदि एक बैंकिंग कम्पनी को बैंकिंग संस्था में बैंकिंग नियमन अधिनियम की
धारा 45 की उप-धारा (7) के
अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गई योजना के अन्तर्गत एकीकत किया जाता है,
तो एकीकरण होने वाली बैंकिंग कम्पनी की दर हानियाँ एवं अशोधित ह्रास
को बैंकिंग संस्था की उस वर्ष की हानि मानेंगे वर्ष में ऐसा एकीकरण हुआ है। इस
सम्बन्ध में हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे जाकर पूरा करने से सम्बन्धित अधिनियम
के सभी प्रावधान लागू होंगे।
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