राजनीति विज्ञान का अर्थ और परिभाषा
B.A. I, Political Science I
प्रश्न 1. राजनीति
विज्ञान को परिभाषित कीजिए तथा इसकी प्रकृति की विवेचना कीजिए।
अथवा '' राजनीति विज्ञान, विज्ञान है अथवा कला अथवा दोनों। स्पष्ट कीजिए तथा राजनीति विज्ञान की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
अथवा "राजनीतिशास्त्र
विज्ञान और कला, दोनों ही
है।"
विवेचना कीजिए।
अथवा "ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति
विज्ञान को विज्ञान मानना तो बहुत दूर रहा, यह तो कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला है।" विवेचना कीजिए।
अथवा '' आधुनिक राजनीति विज्ञान के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
उत्तर - 'राजनीति' का अंग्रेजी रूपान्तरण 'Politics' यूनानी
भाषा के 'Polis
शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-'नगर' । प्राचीन यूनान में आज की तरह बड़े-बड़े राज्य न होकर छोटे-छोटे
'नगर राज्य' (City States) थे। उस समय 'राजनीति' से
तात्पर्य उस विधा से था जो नगर या राज्य की समस्याओं का ज्ञान कराती थी। आज 'राजनीति' (राजनीति
विज्ञान) में राज्य तथा सरकार से सम्बन्धित समस्याओं और प्रश्नों का अध्ययन किया
जाता है।
राजनीति विज्ञान की परिभाषा
राजनीति विज्ञान के
विद्वानों द्वारा इस विषय की विभिन्न परिभाषाएँ प्रस्तुत की गई हैं, जिन्हें प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जा सकता
है
(1) राजनीति विज्ञान : राज्य का अध्ययन - मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन करने के लिए उन संस्थाओं का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है जिनके अन्तर्गत मानव ने अपना राजनीतिक जीवन प्रारम्भ किया और जिनके माध्यम से वह अपने राजनीतिक जीवन को विकसित करने के लिए प्रयत्नशील है । इस प्रकार राजनीतिक संस्थाओं में राज्य सबसे प्रमुख है। इस दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान के कुछ विद्वानों ने इस
विषय की परिभाषा केवल राज्य के अध्ययन के रूप में की है। ब्लण्टशली के अनुसार, राजनीति विज्ञान वह विज्ञान है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्त्व क्या हैं , उसका आवश्यक स्वरूप क्या है, उसकी किन
विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है तथा उसका विकास कैसे होता है।
" गार्नर के अनुसार, “ राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ और अन्त राज्य के साथ होता
है, जेम्स के शब्दों में, राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान है।"
(2) राजनीति विज्ञान : सरकार का अध्ययन –
वर्तमान समय में राजनीति विज्ञान के कुछ विद्वान् उपर्युक्त परिभाषाओं को स्वीकार नहीं करते । वे राज्य के स्थान पर सरकार के अध्ययन पर बल देते हैं। उनका मत है कि राज्य तो एक अमूर्त संस्था है और प्रभुत्व शक्ति के प्रयोग के सम्बन्ध में इस संस्था का मूर्त रूप सरकार ही वह अंग अथवा साधन है जिसके माध्यम से राज्य की इच्छा कार्य रूप में परिणत की जाती है। इसलिए ' सीले , लीकॉक, आदि विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन कहा है।
सीले के शब्दों
में “राजनीति विज्ञान उसी प्रकार के तत्त्वों
का अनुसन्धान करता है। जैसे अर्थशास्त्र सम्पत्ति का, जीव विज्ञान जीवन का, बीजगणित
अंकों का तथा ज्यामितिशास्त्र स्थान एवं परिमाण का करता है।"
लीकॉक के शब्दों में,“राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित विधा है।”
(3) राजनीति विज्ञान : राज्य और सरकार का अध्ययन -
उपर्युक्त सभी विद्वानों द्वारा दी गई राजनीति विज्ञान की परिभाषाएँ वस्तुतः एकांगी हैं और जहाँ तक राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध है, इसमें राज्य और सरकार, दोनों का अध्ययन किया जाता है। राज्य के बिना सरकार की कल्पना ही नहीं की जा सकती,क्योंकि सरकार राज्य द्वारा प्रदत्त प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है और सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है।
डिमॉक के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य तथा उसके साधन सरकार से है।”
पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य का वह अंग है जो राज्य के आधारों एवं शासन के सिद्धान्तों की समीक्षा करता है।"
गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन है।"
परिभाषाओं का विश्लेषण -
राजनीति विज्ञान की उपर्युक्त परिभाषाओं में से कुछ का
सम्बन्ध केवल राज्य से है और कुछ का केवल सरकार से । कुछ विचारकों के अनुसार
राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य तथा सरकार, दोनों से
है। वास्तव में राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य तथा सरकार, दोनों से ही है, क्योंकि
सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके साथ ही राजनीति
विज्ञान का सम्बन्ध मानव-जीवन से भी है, जिसका
उल्लेख उपर्युक्त परिभाषाओं में नहीं है । अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है
कि--
“राजनीति
विज्ञान मानव के राज्य नामक संगठन से सम्बन्धित कार्यों का अध्ययन करता है, जिसमें सरकार का व्यापक अध्ययन भी निहित
है।"
राजनीति विज्ञान की प्रकृति राजनीति विज्ञान के अधिकांश विद्वान् इस विषय को विज्ञान नहीं मानते । इसी कारण राजनीति विज्ञान की प्रकृति का प्रश्न अत्यधिक विवादास्पद हो गया है। इसीलिए यह कहना कठिन है कि राजनीति विज्ञान 'विज्ञान' है अथवा 'कला' या दोनों।
क्या राजनीति विज्ञान 'विज्ञान' है ?
राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत
अधिक मतभेद हैं। एक ओर बकिल, कॉस्टे, मेटलैण्ड एमास, बियर्ड
कैटलिन, मोस्का, ब्रोगन, बर्क आदि
विद्वान् हैं,जो राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं
मानते,
तो दूसरी ओर अरस्तू इसे 'सर्वोच्च विज्ञान' (Master Science) और
बर्नार्ड शॉ इसे 'मानवीय
सभ्यता को सुरक्षित रख सकने वाला विज्ञान' कहते हैं।
अरस्तू के अतिरिक्त बोदाँ, हॉब्स, मॉण्टेस्क्यू, ब्राइस, ब्लण्टशली, जैलीनेक, फाइनर, लास्की आदि
विद्वान् भी इसे विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं।
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के विपक्ष में तर्क
बकिल, कॉम्टे आदि विद्वानों के अनुसार विज्ञान ज्ञान
की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत कार्य और कारण में सदैव निश्चित सम्बन्ध पाया जाता
है और जिसके निष्कर्ष निश्चित एवं शाश्वत होते हैं। विज्ञान की इस परिभाषा के आधार
पर ये विद्वान् राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार
नहीं हैं। - राजनीति विज्ञान को विज्ञान न मानते हुए जो तर्क दिए जाते हैं,उनका वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है
(1) सर्वमान्य नियमों का अभाव -
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता पर सन्देह प्रकट करते हुए तर्क दिया जाता है कि राजनीतिविज्ञान में ऐसे नियमों का अभाव है जिन्हें सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त हो ।
राजनीति विज्ञान में गणित के दो और दो चार या भौतिक विज्ञान के 'गुरुत्वाकर्षण के नियम' की भाँति
ऐसे नियमों का नितान्त अभाव है जिन पर सभी विद्वान् सहमत हों।
(2) कार्य और कारण में निश्चित सम्बन्ध का अभाव -
भौतिक एवं रसायन विज्ञान में
कार्य और कारण में निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है। किन्तु राजनीतिक क्षेत्र में
घटित होने वाली घटनाओं में कार्य-कारण सम्बन्ध का अभाव रहता है। उदाहरण के लिए, फ्रांस, रूस तथा
चीन तीनों ही देशों में क्रान्तियाँ हुई, लेकिन
क्रान्तियों के कारण अलग-अलग थे।
(3) प्रयोग व परीक्षण सम्भव नहीं -
भौतिक विज्ञानों के तथ्यों को परीक्षण की कसौटी पर कसा जा सकता है। किन्तु राजनीति विज्ञान में ऐसे परीक्षण सम्भव नहीं हैं । अतः यह विज्ञान नहीं है । इस सम्बन्धमें ब्राइस ने कहा है कि “भौतिक विज्ञान में एक निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बार-बार प्रयोग किया जा सकता है,लेकिन राजनीति में एक प्रयोग बार-बार नहीं दोहराया जा सकता है, क्योंकि उसी प्रकार की दशाएँ दुबारा नहीं पैदा की जा सकतीं,जैसे कोई नदी के एक ही प्रवाह में दुबारा प्रवेश नहीं कर सकता।"
(4) भविष्यवाणी का अभाव -
पदार्थ विज्ञान के नियम निश्चित होने के कारण किसी भी विषय के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है । उदाहरण के लिए, यह सही-सही बताया जा सकता है कि किस दिन और किस समय चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण लगेगा। किन्तु भौतिक विज्ञान की भाँति राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी सम्भव नहीं है। यह कहना कि चुनाव में कौन-सा उम्मीदवार विजयी होगा,कठिन है। बर्क ने तो यहाँ तक कह दिया है कि “राजनीति में भविष्यवाणी करना मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है।”
(5) निश्चितता का अभाव -
राजनीति विज्ञान के तथ्य इतने अटल, स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होते जितने अन्य विज्ञानों के निष्कर्ष होते हैं। डॉ. अप्पादोराय का मत है कि राजनीति विज्ञान के आधार अनिश्चित होते हैं और निष्कर्ष सन्देहात्मक।
(6) मानव स्वभाव की परिवर्तनशीलता -
अन्य विज्ञानों का सम्बन्ध निर्जीव पदार्थों से है, जबकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध चेतनशील मनुष्य से है। राजनीति विज्ञान का पात्र स्वयं मनुष्य है,जो सोच सकता है तथा गतिशील है। किसी निर्जीव वस्तु के लिए दो या दो से अधिक विद्वानों की राय एक हो सकती है, परन्तु मनुष्य के लिए एक राय सम्भव नहीं है। अलग-अलग व्यक्तियों के स्वभाव में अन्तर होताहै। एक समान परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति भी भिन्न-भिन्न रूप से आचरण करते हैं।
उपर्युक्त तर्कों के आधार पर बकिल कहते हैं कि “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो बहुत दूर रहा, यह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला है।” इसी बात को
मेटलैण्ड ने उपहासमयी भाषा में इस प्रकार कहा है, "जब मैं राजनीति विज्ञान शीर्षक के अन्तर्गत परीक्षा प्रश्नों को देखता हूँ तो मुझे प्रश्नों के प्रति नहीं,वरन् शीर्षक के प्रति खेद होता है।”
बर्क व्यंग्यमयी भाषा में कहते हैं कि “जिस प्रकार हम सौन्दर्य विज्ञान को विज्ञान की संज्ञा नहीं दे सकते, उसी प्रकार राजनीति विज्ञान को भी विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।"
इसी प्रकार विलोबी ने भी कहा है, “राजनीति का विज्ञान बनना न तो सम्भव है और न ही वांछनीय।”
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के पक्ष में तर्क
उपर्युक्त विचारों में सत्यता का कुछ अंश अवश्य है, किन्तु बकिल, कॉम्टे आदि
विद्वानों का दृष्टिकोण विज्ञान की संकुचित एवं त्रुटिपूर्ण धारणा पर आधारित है।
गार्नर के शब्दों में “एक विज्ञान
किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान राशि को कहते हैं जो विधिवत् पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गई हो और जिसके तथ्य
परस्पर सम्बद्ध,
क्रमबद्ध तथा वर्गीकृत किए गए
हों।” राजनीति विज्ञान को यदि विज्ञान की इस
परिभाषा के सन्दर्भ में देखा जाए, तो इसे भी
विज्ञान कहा जा सकता है । राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में निम्न तर्क
दिए जा सकते हैं
(1) क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित -
विज्ञान का सर्वप्रमुख लक्षण यह है कि उसका समस्त ज्ञान क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित होना चाहिए। राजनीति विज्ञान राज्य, सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं व विचारों का क्रमबद्ध ज्ञान प्रस्तुत करता है। अतः इस आधार पर राजनीति विज्ञान एक विज्ञान है।
(2) सुनिश्चितता -
राजनीति विज्ञान में भी प्राकृतिक तथा भौतिक विज्ञानों की भाँति कुछ सामान्य नियम एवं शाश्वत सिद्धान्त हैं । राज्य,विधि,न्याय,शिक्षा,कानून, क्रान्ति आदि के सम्बन्ध में कुछ ऐसे नियम व सिद्धान्त हैं जो प्रत्येक परिस्थिति तथा देश में लागू होते हैं। निःसन्देह राजनीति विज्ञान के निष्कर्ष इतने शुद्ध तथा अटल नहीं होते जितने कि अन्य प्राकृतिक विज्ञानों के होते हैं। वैसे तो अनेक बार प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्ष भी गलत होते हैं। मौसम के सम्बन्ध में की जाने वाली अनेक भविष्यवाणियाँ गलत होती हैं। लॉर्ड ब्राइस ने उचित ही कहा है कि “यदि ऋत विज्ञान, विज्ञान है, तो राजनीति विज्ञान भी विज्ञान हो सकता है।"
(3) परीक्षण सम्भव -
यदि परीक्षण से अभिप्राय किसी भी क्रमबद्ध प्रयोग से है, तो राजनीति विज्ञान में परीक्षण का अभाव नहीं है । यद्यपि राजनीति विज्ञान में पदार्थ विज्ञानों की भाँति प्रयोगशाला में बैठकर पूर्ण निश्चितता एवं सरलता से तो प्रयोग नहीं किए जा सकते,फिर भी राजनीति विज्ञान में प्रयोग होते रहते हैं और एक प्रकार से सम्पूर्ण मानव जगत्इ सकी प्रयोगशाला है । इस सम्बन्ध में गार्नर ने ठीक ही लिखा है कि “प्रत्येक नये कानून का निर्माण,प्रत्येक नई संस्था की स्थापना और प्रत्येक नई बात का प्रारम्भ एक प्रयोग ही होता है, क्योंकि उस समय तक वह अस्थायी या प्रस्ताव रूप में ही समझा जाता है जब तक कि परिणाम उसके स्थायी होने की योग्यता सिद्ध न कर दें।"
(4) कार्य और कारण में सम्बन्ध -
इसमें कोई सन्देह नहीं कि पदार्थ विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में कार्य तथा कारण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं किया जा सकता, फिर भी विशेष घटनाओं के अध्ययन से कुछ सामान्य परिणाम तो निकाले ही जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, फ्रांस, रूस तथा चीन में हुई क्रान्ति के अलग-अलग कारण बताए जाते हैं, परन्तु यदि ध्यान से देखा जाए तो इन तीनों ही देशों में क्रान्ति के मुख्य कारण एक जैसे ही थे। तीनों देशों में अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था, लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया था।
(5) भविष्यवाणी की क्षमता -
राजनीति विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति तो भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है,परन्तु इतना मानना होगा कि इस विषय में भी भविष्यवाणी सम्भव है। फाइनर के शब्दों में, हम निश्चिततापूर्वक भविष्यवाणियाँ नहीं कर सकते, लेकिन सम्भावनाएँ तो व्यक्त कर ही सकते हैं।" वस्तुतः राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के सम्बन्ध में बकिल, कॉम्टे और मेटलैण्ड द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ बहुत अधिक सीमा तक निराधार हैं । अरस्तू, मॉण्टेस्क्यू, बोदाँ, हॉब्स, सिजविक, ब्राइस, ब्लण्टशली, बर्गेस, विलोबी, जैलीनेक, गार्नर आदि ऐसे विद्वान् हैं जिन्होंने राजनीति विज्ञान को विज्ञान माना है। सर फ्रेड्रिक पोलक का भी विश्वास है कि “जिस प्रकार नैतिकता का विज्ञान है, उसी भाव में और उसी तरह अथवा लगभग उसी सीमा तक राजनीति भी विज्ञान है।"
राजनीतिविज्ञान 'कला' के रूप में
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार कला प्रकृति से भिन्न एक मानवीय कुश
राता है,किसी कार्य के निष्पादन में कल्पनात्मक
कुशलता का प्रयोग है । कला कल्पनात्मक है, विज्ञान की
भाँति सुनिश्चित व नियमबद्ध नहीं है। कला का आधार व्यक्तिगत विवेक,विभिन्नता,अनुभव व
कुशलता है । इस आधार पर राजनीति विज्ञान न केवल विज्ञान है, अपितु इसे कला भी कहा जा सकता है।
राजनीति विज्ञान को कला मानने के पक्ष में निम्न तर्क दिए जाते हैं
(1)
राजनीति विज्ञान कला है, क्योंकि राजनीति विज्ञान में राज्य के भूतकालीन और वर्तमान
स्वरूप का अध्ययन करने के साथ-साथ राज्य के भावी आदर्शात्मक स्वरूप का अध्ययन भी
किया जाता है और यह बतलाया जाता है कि भविष्य में राज्य और राजनीतिक व्यवस्था कैसी
होनी चाहिए।
(2) राजनीति विज्ञान उसी रूप में कला है जिस रूप में एक राजनीतिज्ञ कलाकार होता है। शासन संचालन एक कला है। राजनीति विज्ञान के विद्वान् राजनीति से सम्बन्धित नियमों का निर्धारण करते हैं और एक राजनीतिज्ञ उन नियमों को व्यावहारिक रूप देकर अपनी कला का प्रदर्शन करता है।
(3) राजनीति विज्ञान रूपी कला का एक रूप और भी है। कला जीवन का चित्रण है। राजनीति विज्ञान राजनीतिक जीवन का चित्रण करता है । राजनीति विज्ञान मानव को सर्वोत्तम नागरिक जीवन का उपयोग करने के योग्य बनाता है।
(4) ब्लण्टशली भी राजनीति विज्ञान को कला के रूप में देखते हुए कहते हैं—“राजनीतिशास्त्र से विज्ञान की अपेक्षा कला का अधिक बोध होता है। इसका सम्बन्ध राज्य के व्यावहारिक संचालन अथवा निर्देशन से है।” इस प्रकार राजनीति विज्ञान, विज्ञान और कला, दोनों ही है। अपने व्यापक अर्थ में तथा सामाजिक विज्ञान के एक अंग के रूप में हम इसे विज्ञान की संज्ञा प्रदान कर सकते हैं तथा आदर्श जीवन की प्राप्ति में सहयोग करने के कारण इसे कला भी मान सकते हैं। कैटलिन ने राजनीति विज्ञान का अर्थ विस्तार करते हुए उसे कला, दर्शन और विज्ञान तीनों माना है। लासवेल ने भी इसे 'कला, विज्ञान और दर्शन का संगम' कहा है।
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