राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार
प्रश्न 5-राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचारों का उल्लेख कीजिए।
राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार
राजा राममोहन राय केवल समाज
सुधारक ही नहीं थे,
वे उच्च कोटि के राजनीतिक विचारक भी थे। उनके प्रमुख राजनीतिक विचारों का
उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है
(1) वैयक्तिक तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता का प्रतिपादन - राजा राममोहन राय वैयक्तिक स्वतन्त्रता के प्रबल समर्थक थे। जॉन लॉक और टॉमस पेन की भाँति उन्होंने भी प्राकृतिक अधिकारों की पवित्रता को स्वीकार किया। राजा राममोहन राय ने जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पति के प्राकृतिक अधिकारों के साथ व्यक्ति के नैतिक अधिकारों का भी समर्थन किया। परन्तु अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की व्यक्तिवादी धारणा के समर्थक होते हुए भी राजा राममोहन राय चाहते थे कि समाज-सुधार और शैक्षिक पुनर्निर्माण के लिए राज्य को कानून बनाने चाहिए।
वॉल्टेयर, मॉण्टेस्क्यू और रूसो की भाँति राजा राममोहन राय स्वतन्त्रता के हिमायती थे। वैयक्तिक स्वतन्त्रता के प्रबल समर्थक होने के साथ साथ वे राजनीतिक स्वतन्त्रता के आदर्श में भी विश्वास रखते थे। उनके अनुसार स्वतन्त्रता मानव मात्र के लिए एक बहमूल्य वस्तु है, परन्तु राष्ट्र के लिए भी आवश्यक है । विपिनचन्द्र पाल ने लिखा है कि “राजा राममोहन राय ही वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को स्वतन्त्रता का सन्देश प्रसारित किया ,
(2) प्रेस की स्वतन्त्रता -
राजा राममोहन राय प्रेस की
स्वतन्त्रता के प्रबल समर्थक थे। उनका पत्र ‘संवाद कौमुदी' बंगला और अंग्रेजी भाषा में और दूसरा पत्र 'मिरात-उल-अखबार' फारसी भाषा में प्रकाशित होता था। प्रेस की स्वतन्त्रता के समर्थन में
उन्होंने 1823 ई.में हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत करके लिखित अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता की माँग की थी। जब याचिका अस्वीकृत कर दी गई, तब सपरिषद् सम्राट के पास अपील की गई। जब सपरिषद सम्राट से भी अपील अस्वीकृत
हो गई, तो उन्होंने अपने पत्र 'मिरात-उल-अखबार'
का प्रकाशन स्थगित कर दिया। राजा राममोहन राय ने जिस रूप में अपना विरोध
व्यक्त किया, वह प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति उनकी गहन निष्ठा का प्रतीक था।
(3) न्यायिक व्यवस्था -
राजा राममोहन राय ने भारत की न्यायिक
व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने 1827 ई. के ज्यूरी एक्ट का विरोध किया। इसका आधार यह था कि ईसाई अफसर को हिन्दू और
मुसलमानों के मुकदमे में सुनवाई करने का अधिकार था,किन्तु ईसाइयों के मुकदमे
सुनने का अधिकार हिन्दू अथवा मुसलमान को नहीं था।
1833 ई.के चार्टर एक्ट निर्माण
के समय राजा राममोहन राय को इंग्लैण्ड की संसदीय समिति में अपने विचार प्रकट करने
का अवसर मिला। प्रवर समिति के अनुरोध पर उन्होंने भारत की प्रचलित न्यायिक
व्यवस्था की विवेचना की तथा प्रशासन को न्यायिक व्यवस्था से पृथक् करने की माँग
की। उन्होंने न्यायपालिका के पुनर्गठन पर जोर दिया तथा विद्वान् एवं निष्पक्ष
व्यक्तियों को प्रशासक बनाने का सुझाव दिया।
(4) प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप -
1833 ई. में कॉमन सभा की प्रवर
समिति के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए राजा राममोहन राय ने प्रशासनिक व्यवस्था
में कुछ सुधारों की सिफारिश की थी। ये सिफारिशें थीं-देशी लोकसेवा की स्थापना, देशवासियों को अधिक नौकरियाँ और उच्च पद देना, रय्यतवाड़ी की दशा में
सुधार तथा उसकी रक्षा के लिए कानूनों का निर्माण और स्थायी भूमि प्रबन्ध । राजा
राममोहन राय लोक सेवाओं में अपरिपक्व व्यक्तियों की नियुक्ति के विरुद्ध थे।
प्रशासनिक व्यवस्था और सेवाओं के सम्बन्ध में उनका सुझाव था कि यदि ब्रिटिश सरकार
चाहे कि भारतवासी सरकार के प्रति आस्थावान हों, तो भारतीयों की शक्ति एवं
योग्यता के अनुसार उन्हें दायित्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना पड़ेगा।
(5) भारत में यूरोपीय लोगों का आवास -
1832 ई.में ब्रिटिश कॉमन सभा की
प्रवर समिति ने राजा राममोहन राय से भारत में यूरोपीय लोगों के रहने के सम्बन्ध
में सलाह माँगी। राजा राममोहन राय का विचार था कि यदि कुछ यूरोपीय स्थायी रूप से
भारत में रहकर कृषि कार्य करने लगें,तो इससे भारत को काफी लाभ
होगा,क्योंकि यूरोपीय लोग अपनी पूँजी लगाकर वैज्ञानिक ढंग से व्यापार करेंगे, जिससे देश के कषि कार्य,खनिज, व्यापार, शिल्पकला आदि की उन्नति होगी। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में
बसने वाले यूरोपीय लोगों को भारत में विशेष सुविधाएँ नहीं दी जानी चाहिए।
(6) मानवतावाद और विश्वव्यापी धर्म -
राजा राममोहन राय सहयोग, सहिष्णुता और भ्रातृत्व की धारणाओं में आस्था रखते थे। वे परम्परागत बन्धनों
और बाधाओं से मुक्त विवेक और सहानुभूति के आधार पर समाज की रचना करना चाहते थे। वे
सम्पूर्ण मानव जाति को आध्यात्मिक एकता के आधार पर विश्व धर्म में दीक्षित करना
चाहते थे। उनके द्वारा फ्रांस के विदेश मन्त्री को लिखे गए एक पत्र में स्पष्ट रूप
से कहा गया,“अब यह सबको मान्य है कि केवल धर्म से नहीं, वरन सहज बुद्धि और
वैज्ञानिक अनुसन्धान के शुद्ध निष्कर्षों से भी यह नतीजा निकला है कि सम्पूर्ण
मानवता एक महान् परिवार है और विभिन्न जातियाँ उसकी अनेक शाखाएँ हैं। इसलिए सब
देशों के प्रबुद्ध मनुष्य हर प्रकार से यथासम्भव मानव सम्पर्क को बढ़ाने और फैलाने
का प्रयास करें, ताकि समस्त मानव जाति के पारस्परिक कल्याण और उन्नति में वृद्धि हो सके।"
मूल्यांकन संक्षेप में,राजा राममोहन राय आधुनिक
भारत के निर्माता थे। वे न केवल धार्मिक-सामाजिक सुधारक थे,वरन् एक राजनीतिक चिन्तक भी थे। उन्होंने एक नवीन समाज के निर्माण की आधारशिला
रखी। उन्होंने हिन्दू,
मुस्लिम तथा ईसाई धर्मों के अच्छे सिद्धान्तों को चुनकर ब्रह्म समाज' की स्थापना की। इस प्रकार आधुनिकता के प्रभाव में उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता
का मार्ग चुना। उन्होंने देश में नये राजनीतिक जीवन का सूत्रपात किया। राजा
राममोहन राय के चिन्तन में पूरब और पश्चिम, दोनों का सम्मिश्रण था।
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Bhout aacha
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ReplyDeleteBhai saab maza aa gya
ReplyDeleteMai book se padh raha tha to mujhe ye bahut boring lag raha tha
Thanks 👍 for this post🙂
🙏🙏🙏👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteVery nice post for political science
ReplyDeleteSir aapne hamari bhut madad ki thanks sir
ReplyDeleteThanks for very easy language 👌
ReplyDeleteThank for this post🙏
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks you rba aapko sdha khushi rakhe
ReplyDeleteBahut badiya
ReplyDeleteGood💙
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