सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर
प्रश्न 9. शासकीय (सरकारी) एवं अर्द्ध-शासकीय (अर्द्ध सरकारी) पत्र में अन्तर स्पष्ट करते हुए शासकीय पत्र की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा ‘’कार्यालयी पत्राचार से आप
क्या समझते हैं ? शासकीय पत्र व अर्द्ध-शासकीय पत्र के अन्तर
को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शासकीय पत्र –
कार्यालयी पत्र तकनीकी पत्र होते हैं। यह किसी कार्यालय
द्वारा किसी अन्य कार्यालय, अधिकारी, व्यक्ति,
संस्था अथवा फर्म को ले जाते हैं। कार्यालयी पत्राचार उन लोगों के
साथ किया जाता है जो किसी सार्वजनिक पद पर आसीन होते हैं। इसलिए कार्यालयी पत्रों
में मुख्य विषय पर सदैव ध्यान रखा जाता है। कार्यालयी पत्रों का एक निश्चित
प्रारूप होता है। यह पत्र सरकारी आदेश देने अथवा प्रशासन के द्वारा किसी मत पर
कार्यवाही करने के लिए लिखे जाते हैं। इनमें अपने मन की भावनाओं को प्रकट नहीं
किया जाता, लेकिन इन पत्रों की सदैव एक निश्चित शब्दावली
होती है।
इन पत्रों के चार उपभाग होते हैं-
(1) सम्बोधन,
(2) समाचार,
(3) निवेदन,
(4) पता।
अर्द्ध-शासकीय पत्र-
ये पत्र सरकारी अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर विचारों या सूचना के आदान-प्रदान या प्रेषण के लिए लिखे जाते हैं। कई बार सरकारी व्यवस्था के फलस्वरूप कोई मामला उलझ जाता है तब अपने समकक्ष अथवा अपने से कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों को प्रस्तावित कार्य शीघ्र निस्तारण हेतु जिस पत्र का प्रयोग किया जाता है उसे अर्द्ध-सरकारी पत्र कहा जाता है।
अर्द्ध-शासकीय पत्र लिखने का मूल उद्देश्य होता है पत्र में निहित बातों या मामलों पर व्यक्तिगत रूप से विशेष ध्यान देकर कार्यवाही की जाए। अतः अपेक्षा, की जाती है कि इस प्रकार के पत्र प्राप्त होने के बाद उस पर विशेष ध्यान देकर,जहाँ तक सम्भव हो सके,सम्बन्धित समस्या का निस्तारण अतिशीघ्र किया जाए।
इन पत्रों में विचारों के आदान-प्रदान के लिए विशेष शासकीय
औपचारिकता का निर्वहन नहीं किया जाता है।
सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी पत्रों में अन्तर-
(1) अर्द्ध-सरकारी पत्र अनौपचारिक रूप से लिखे
जाते हैं, जबकि सरकारी पत्र औपचारिक होते हैं।
(2) अर्द्ध-सरकारी पत्र सरकारी अधिकारियों को
व्यक्तिगत नाम से लिखे जाते हैं,जबकि सरकारी पत्रों में पाने
वाले अधिकारी के केवल पद का उल्लेख किया जाता है।
(3) अर्द्ध-सरकारी पत्र में सम्बोधन के
अन्तर्गत 'प्रिय श्री' ......या 'आदरणीय श्री' ..... का प्रयोग किया जाता है, महोदय' का प्रयोग नहीं किया जाता। जब कोई अधिकारी
समान पद, आयु का होता है, तो उसके लिए 'प्रिय श्री'........... का प्रयोग करते हैं और जब वह
वयोवृद्ध एवं उच्च पदस्थ होता है तब ‘आदरणीय श्री
.............का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत सरकारी पत्र में सम्बोधन के
अन्तर्गत 'महोदय' या प्रिय महोदय लिखा
जाता है।
(4) अर्द्ध-सरकारी पत्रों का सम्बोधन पत्र
प्राप्त करने वाले अधिकारी के नाम से होने के कारण इनमें आत्मीयता और मैत्री की
भावना आ जाती है। सरकारी पत्रों में यह भावना नहीं होती है।
(5) अर्द्ध-सरकारी पत्र के अन्त में
स्वनिर्देशन के लिए 'आपका' का प्रयोग
किया जाता है, जबकि सरकारी पत्रों में 'भवदीय' का प्रयोग किया जाता है।
(6) अर्द्ध-सरकारी पत्र के समापन पर भेजने
वाले अधिकारी का केवल नाम दिया जाता है, उसका पद अथवा मुहर
नहीं होती, जबकि सरकारी पत्रों में नाम के बाद पद का उल्लेख
आवश्यक रूप से रहता है।
(7) अर्द्ध-सरकारी पत्र में प्रेषिती का नाम,
पद व पता ऊपर न लिखकर पत्र के अन्त में बायीं ओर लिखा जाता है। इसके
विपरीत सरकारी पत्रों में पत्र प्राप्त करने वाले अधिकारी का नाम, पद और पता पत्र के ऊपर प्रेषक अधिकारी के नाम, पद और
पते के बाद लिखा जाता है।
(8) अर्द्ध-सरकारी पत्र में 'मैं' सर्वनाम का प्रयोग होता है,जबकि सरकारी पत्र में 'हम' सर्वनाम
का प्रयोग किया जाता है।
(9) भारत सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों में
आपस में पत्रों के आदान-प्रदान के लिए शासकीय पत्रों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
इसके लिए अर्द्धशासकीय पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
शासकीय पत्र की प्रमुख विशेषताएँ-
1. स्पष्टता–पत्र प्राप्त करने वाला यदि पत्र भेजने वाले का अर्थ नहीं
समझ पाता है तो पत्र लिखने का उद्देश्य व्यर्थ है । अत: शासकीय पत्र में स्पष्टता
को पूर्णतः महत्व दिया जाना चाहिए।
2. तथ्यात्मकता-इसमें तथ्यात्मकता होती है जिसके कारण सन्देह, भ्रम
आदि के लिए कोई अवकाश नहीं रहता।
3. सत्यता-इसके
अन्तर्गत शुद्धता एवं वास्तविकता को रखा जाता है । पत्र यदि अशुद्ध या अवास्तविक
तथ्यों पर आधारित होगा तो वह सम्बन्धित व्यक्ति को संकट में डाल सकता है।
4. संक्षिप्तता-शासकीय पत्र की यह अनिवार्य विशेषता है कि पत्र संक्षिप्त
हो,परन्तु उसमें अपेक्षित सभी सत्य तथ्यों का
सन्निवेश हो । अनावश्यक विस्तार से विषय उलझ जाता है।
5.शिष्टता-शासकीय
पत्र की आवश्यक विशेषता (गुण) शिष्टाचार है। इसमें शासकीय दृढ़ता के साथ-साथ
शिष्टता का होना भी आवश्यक है।
पूर्णता-इसके लिए आवश्यक है कि इसमें सभी सूचनाएँ, सन्दर्भ
निर्देश. तिथि आदि की यथास्थान स्थिति हो । यही कारण है कि वर्तमान में आलेख
प्रारूप को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। इससे क्रमबद्धता भी बनी रखती है और
अपूर्णता की सम्भावना भी कम हो जाती है।
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ReplyDeleteBest education
DeleteThanku so much
DeleteThanks for this valuable content
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ReplyDeleteVery nice 👍👍👍👍👍
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteFine😇👍👍🏻
ReplyDelete🙏🙏🙏👍
ReplyDeleteगुड
ReplyDeleteVery nice day
ReplyDeleteThank you 💕
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DeleteTerrific content
ReplyDeleteThanks you 😊👍
ReplyDeleteDhanyavaad
ReplyDeleteIsme aapne उदाहरण nahi diye wakvaas page ☹️
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