अमेरिका और ब्रिटेन की दलीय व्यवस्था की तुलना

प्रश्न 14. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में राजनीतिक दलों की भूमिका एवं कार्य-प्रणाली की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।

अथवा ''दलीय व्यवस्था का वर्गीकरण कीजिए। संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की दलीय व्यवस्था की तुलना कीजिए।

अथवा ''अमेरिका और इंग्लैण्ड की दल प्रणाली की तुलना कीजिए।

अथवा '' राजनीतिक दल को परिभाषित कीजिए तथा दलीय प्रणाली का महत्त्व बताइए। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में राजनीतिक दलों की भूमिका एवं कार्य-प्रणाली की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए। - उत्तर-

लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली बिना दलों के सम्भव नहीं है। शासन व्यवस्था चाहे संसदीय हो अथवा अध्यक्षीय, यदि उसमें लोकतन्त्र को सही अर्थों में स्वीकार किया गया है, तो राजनीतिक दलों का अस्तित्व भी निश्चित होगा। प्रसिद्ध विद्वान् मुनरो ने इस सम्बन्ध में कहा है कि "लोकतन्त्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। विश्व के इतिहास में कभी भी ऐसी स्वतन्त्र सरकार नहीं रही है जिसमें राजनीतिक दल का अस्तित्व न हो।" संयुक्त राज्य अमेरिका,

अमेरिका और ब्रिटेन की दलीय व्यवस्था की तुलना

ग्रेट ब्रिटेन, भारत, फ्रांस, जापान, सोवियत रूस सहित लगभग सभी देशों में राजनीतिक दल सक्रिय हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों को 'प्रजातन्त्र का जीवन-रक्त' कहा जाता है।

राजनीतिक दल का अर्थ एवं परिभाषाएँ

राजनीतिक दल लोगों के उस व्यवस्थित समूह को कहते हैं जो किसी सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक कार्यक्रम पर एकमत हो और अधिक-सेअधिक मतदाता को अपनी विचारधारा के अनुरूप बनाकर शासन पर अपना अधिकार करके अपने विचारों और नीतियों को लागू करना चाहता हो।

गैटेल के मतानुसार, "एक राजनीतिक दल न्यूनाधिक संगठित उन नागरिकों का एक समूह होता है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं और जो अपनी मतदान की शक्ति के प्रयोग द्वारा सरकार पर नियन्त्रण करना अपना लक्ष्य समझते हैं और अपने सामान्य सिद्धान्तों को लागू करते हैं।"

लीकॉक ने राजनीतिक दल को परिभाषित करते हुए लिखा है कि "राजनीतिक दल से हमारा अर्थ नागरिकों के उस न्यूनाधिक संगठित समूह से है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं । सार्वजनिक प्रश्नों पर उनके विचार समान होते हैं और वे एक सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए मतदान की शक्ति का प्रयोग कर सरकार पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते हैं।"

गिलक्राइस्ट ने भी लिखा है, "एक राजनीतिक दल नागरिकों का वह संगठित समूह है जो राजनीतिक रूप से एक विचार के हों और जो राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करके शासन पर नियन्त्रण करना चाहते हैं।"

एडमण्ड बर्क के अनुसार,राजनीतिक दल ऐसे लोगों का समूह होता है जो किसी सिद्धान्त के आधार पर, जिस पर वे एकमत हों, अपने सामूहिक प्रयत्नों द्वारा जनता के हित में कार्य करने के लिए एकता में बँधे हों।"

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर राजनीतिक दलों के कुछ मुख्य लक्षणों का संकेत मिलता है, जो निम्न प्रकार हैं  -

(1) संगठित मानव समुदाय,

(2) नीति एवं सिद्धान्तों की एकरूपता,

(3) वर्ग विशेष के हितों का संवर्द्धन,

(4) राजनीतिक सत्ता प्राप्ति हेतु निर्वाचन में भाग लेना, तथा

(5) राजनीतिक सत्ता प्राप्त कर अपने सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देना।

अतः राजनीतिक दल एक विशेष प्रकार का संगठन है, जिसके विशिष्ट लक्षण होते हैं तथा यह अन्य समूहों से मिलता-जुलता होते हुए भी अपनी पृथक् पहचान रखता है।

उपर्युक्त परिभाषाएँ राजनीतिक दलों के सम्बन्ध में परम्परागत दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। आधुनिक युग में नये दृष्टिकोणों से राजनीतिक दल को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।

एल्डर्स वेल्ड ने राजनीतिक दल की व्यवहारवादी परिभाषा दी है। उनके अनुसार, "राजनीतिक दल एक शासन तन्त्र या राजनीति है। यह एक सूक्ष्म राजनीतिक व्यवस्था है.... कुल मिलाकर दल एक निर्णय प्रक्रिया है।"

रेने एवं केण्डल ने राजनीतिक दल की कार्यात्मक परिभाषा प्रस्तुत की है। उनके अनुसार, "राजनीतिक दल संगठित स्वायत्त समूह है, जो सरकार की नीतियों एवं कर्मचारियों पर अन्ततः नियन्त्रण प्राप्त करने की आशा में चुनाव में उम्मीदवारों का नामांकन करता है और चुनाव लड़ता है।"

रॉबर्ट सी. बोन ने राजनीतिक दल की संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक आधार पर । परिभाषा दी है। उनके अनुसार, "राजनीतिक दल व्यक्तियों का एक ऐसा संगठन है जो अपने उद्देश्यों को सरकार पर औपचारिक नियन्त्रण प्राप्त करके समाज में मूल्यों के अधिकारिक वितरण में प्राथमिकता देने का प्रयास करता है।"

ला पालोम्बरा (La Palombara) ने राजनीतिक दल को परिभाषित करते हुए कहा है, "राजनीतिक दल एक औपचारिक संगठन है, जिसका स्व-चेतन एवं प्रमुख उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को सार्वजनिक पदों पर पहुँचाना तथा उनको बनाए रखना है जो अकेले या किसी से मिलकर शासन तन्त्र पर नियन्त्रण रखेंगे।"

इन परिभाषाओं से राजनीतिक दलों की संरचना के साथ-साथ उनके उद्देश्य, कार्य और कार्यविधि का भी बोध होता है।

दलीय व्यवस्था का महत्त्व

दलीय व्यवस्था व्यक्तियों के उस व्यवस्थित समूह को कहते हैं जो किसी सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक कार्यक्रम पर एकमत हो तथा अधिक-सेअधिक मतदाताओं को अपनी विचारधारा के अनुकूल बनाकर शासन पर अपना अधिकार करके अपने विचारों व नीतियों को लागू करना चाहता हो।

मुनरो के अनुसार, "लोकतन्त्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। विश्व के इतिहास में कभी भी ऐसी स्वतन्त्र सरकार नहीं रही है जिसमें राजनीतिक दल का अस्तित्व न हो।"

लॉर्ड ब्राइस के शब्दों में, "राजनीतिक दल अनिवार्य हैं। कोई भी बड़ा देश जनके बिना नहीं रह सकता। किसी व्यक्ति ने यह नहीं दिखाया है कि लोकतन्त्र उनके बिना कैसे चल सकता है।"

हरमन फाइनर ने दल प्रणाली के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा है कि "दलों के बिना मतदाता ऐसी असम्भव नीतियों का अनुसरण करने लगेंगे जो उन्हें शक्तिहीन बना देगी या विनाशकारी जिससे राजनीतिक यन्त्र ध्वस्त हो जाएगा।"

एडमण्ड बर्क ने भी ठीक ही कहा है, "दलीय प्रणाली चाहे पूर्ण रूप से भले के लिए हो या बुरे के लिए, लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के लिए अपरिहार्य   है  I इस प्रकार दलीय प्रणाली संसदात्मक अथवा अध्यक्षात्मक, किसी भी व्यवस्था के लिए आवश्यक है। दलीय प्रणाली लोकतन्त्र का आधार मानी जाती   है  I

दलीय व्यवस्था का वर्गीकरण दलीय

व्यवस्था को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता  है  -

(1) एकदलीय प्रणाली-

यदि शासन शक्ति का प्रयोग करने वाले सभी सदस्य एक ही दल के हों और देश में एक ही राजनीतिक दल का आधिपत्य हो, तो वह एकदलीय प्रणाली कही जाती है। इसमें किसी अन्य दल के पनपने की गुंजाइश नहीं होती। एकदलीय शासन का व्यवहार अधिनायक तन्त्र के समान होता है। इसमें दल विशेष के विरुद्ध न तो कोई बोल सकता है और न ही किसी अन्य दल का गठन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, नाजी जर्मनी, फासिस्ट इटली आदि।

(2) द्विदलीय प्रणाली-

द्विदलीय प्रणाली का तात्पर्य है कि वह शासन व्यवस्था जिसमें सत्ता दो शक्तिशाली दलों के मध्य घूमती है। द्विदलीय व्यवस्था में मात्र दो ही दल हों, यह आवश्यक नहीं है। अनेक दल वाले देश में भी द्विदलीय व्यवस्था हो सकती है, यदि दी ही दल सत्ता के इर्द-गिर्द घूमते हों।

 सेट के अनुसार, "द्विदलीय व्यवस्था से हमारा अभिप्राय यह नहीं है कि राज्य में केन्ल दो ही राजनीतिक दल हों, अपितु हमारा आशय यह है कि यदि दल हों इतने छोटे कि उनका राजनीति पर विशेष प्रभाव न हो....।" उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका व ब्रिटेन।

(3) बहुदलीय प्रणाली-

बहुदलीय प्रणाली में अनेक दल राजनीति में क्रियाशील होते हैं। बहुत अधिक दल होने के कारण कोई भी दल स्पष्ट (पूर्ण) बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है। बहुदलीय व्यवस्था वाले देशों में जब संसदात्मक व्यवस्था को अपनाया जाता है, तो कोई भी राजनीतिक दल अकेले ही मन्त्रिमण्डल का निर्माण करने की स्थिति में नहीं होता। इसी कारण मिले-जुले मन्त्रिमण्डल का निर्माण किया जाता है। बहुदलीय व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता यह है कि विभिन्न दलों की प्रतिस्पर्धात्मक उपस्थिति प्रजातन्त्र को जीवित रखने में अत्यन्त उपयोगी है। बहुदलीय व्यवस्था अनेक देशों में अपनाई गई है; जैसे फ्रांस, जापान व भारत।

इस प्रकार दलीय व्यवस्था लोकतान्त्रिक देशों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। द्विदलीय व बहुदलीय व्यवस्था का प्रचलन वर्तमान समय में बहुत अधिक है। एकदलीय व्यवस्था प्रायः कम दृष्टिगोचर होती है। द्विदलीय प्रणाली सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है।

ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका की दलीय  व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन -

संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन, दोनों ही देशों में दलों का वहाँ की शासन व्यवस्था में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। दोनों देशों के संविधानों का सर्वांगीणअध्ययन वहाँ की दलीय व्यवस्था को जाने बिना सम्भव नहीं है। राजनीतिक दल दोनों देशों की लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली के अभिन्न अंग बने हुए हैं। बेजहाट ने उचित ही कहा है कि प्रत्येक लोकतान्त्रिक राज्य में दलों का होना आवश्यक है। बिना उनके लोकतन्त्र चल ही नहीं सकता, क्योंकि स्वतन्त्र रूप से पृथक्पृथक् राजनीतिक विचार रखने वाले व्यक्ति सामूहिक रूप से शासन की कार्यवाही चला सकते हैं।"

ब्रिटिश तथा अमेरिका की दलीय व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है  -

समानताएँ

संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की दलीय व्यवस्था में दो प्रमुख समानताएँ हैं  -

(1) इन दोनों ही देशों में राजनीतिक दल संविधानेत्तर विकास के परिणाम हैं। न तो ब्रिटिश संविधान और न ही अमेरिकी संविधान में राजनीतिक दलों का कोई उल्लेख किया गया है। किन्तु वर्तमान समय में स्थिति यह है कि राजनीतिक दलों का अध्ययन किए बिना इन दोनों ही देशों की शासन व्यवस्था को भलीभाँति नहीं समझा जा सकता। दोनों ही देशों में राजनीतिक दलों को कानूनी स्थिति प्राप्त न होते हुए भी वे शासन व्यवस्था की आधारशिलाएँ हैं।

(2) दोनों ही देशों के राजनीतिक दलों में अन्य प्रमुख समानता द्विदलीय पद्धति है। दोनों देशों में दो ही राजनीतिक दलों को देश की राजनीति में प्रभावशाली स्थिति प्राप्त है और देश की राजनीति में अन्य राजनीतिक दलों का कोई महत्त्व नहीं है। ब्रिटेन में कभी-कभी तीसरे प्रभावशाली दल का भी उदय हुआ है, लेकिन अमेरिका में द्विदलीय पद्धति के विकसित होने के कई कारण हैं। प्रथम, अंग्रेजी भाषा-भाषी देशों के रहने वाले अव्यावहारिक काल्पनिक न होकर समझौतावादी होते हैं। दूसरे, वंश, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म आदि से सम्बन्धित समस्याएँ अमेरिका में उतनी उग्र नहीं हैं, जितनी यूरोप के अन्य देशों में हैं। यह उग्रता ही अधिक गुटबन्दी उत्पन्न करती है। तीसरे, अमेरिका की सांविधानिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है जो तीसरे दल को हतोत्साहित करती है। यदि तीसरे दल का कुछ प्रतिनिधित्व कांग्रेस में हो भी जाए, तो भी वह दल राष्ट्रपति के निर्वाचन पर प्रभाव नहीं डाल सकता, क्योंकि राष्ट्रपति का निर्वाचन किसी क्षेत्र से न होकर पूरे राष्ट्र द्वारा होता है। मैकमोहन के शब्दों में, "राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रणाली तीसरे दल को हतोत्साहित कर देती है, जिसके फलस्वरूप द्विदलीय पद्धति सुदृढ़ हो गई है। एक सदस्य जिला निर्वाचन पद्धति के कारण भी छोटी-छोटी पार्टियाँ निर्वाचन मैदान में आने का साहस नहीं करतीं  I 

असमानताएँ

यद्यपि उपर्युक्त दोनों बातों में दोनों देशों की दलीय व्यवस्था में समानताएँ दृष्टिगोचर होती हैं, किन्तु इन समानताओं की अपेक्षा दोनों में असमानताएँ बहुत अधिक हैं। इस सम्बन्ध में पॉवेल का कथन बड़ा उपयुक्त है, "संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनीतिक दल उद्देश्य एवं स्वरूप की दृष्टि से ब्रिटेन तथा अधिकांश अन्य देशों से भिन्न हैं।"

इन दोनों देशों की दलीय व्यवस्था में जो अन्तर हैं, उसका उल्लेख निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है  -

(1) आधारभूत सिद्धान्तों के आधार पर -

अमेरिकी दलीय पद्धति और ब्रिटिश दलीय पद्धति में एक मौलिक अन्तर सिद्धान्त सम्बन्धी मतभेदों को लेकर है। ब्रिटेन में दोनों राजनीतिक दलों में सिद्धान्त और विचारधारा का स्पष्ट अन्तर है। अनुदारवादी दल पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और विद्यमान स्थिति को कम-सेकम परिवर्तनों के साथ बनाए रखने के पक्ष में है, लेकिन श्रमिक दल का उद्देश्य है शान्तिपूर्ण और संवैधानिक पद्धति से प्रजातान्त्रिक समाजवाद की स्थापना। किन्तु अमेरिकी राजनीति के दो प्रमुख दलों 'रिपब्लिकन दल' और 'डेमोक्रेटिक दल' में विचारधारा सम्बन्धी भेद का अभाव है। विदेश नीति या राजनीति और आर्थिक जीवन के आदर्शों के सम्बन्ध में इन दोनों राजनीतिक दलों का एक समान  दृष्टिकोण है। फाइनर के शब्दों में, "ब्रिटेन के अनुदार और श्रमिक दलों की स्पष्ट भिन्नता के समान विभिन्न आदर्शों की साधना के आधार पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दो दलों के मध्य अन्तर की कोई रेखा नहीं खींची जा सकती। वास्तव में इन्हें एक ही दल के दो अंग कहना अधिक उचित होगा, जिनको रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दो विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।" लॉर्ड ब्राउन ने अमेरिकी राजनीति के दो दलों की तुलना दो ऐसी खाली बोतलों से की है जिनमें अलगअलग पेय के लेबिल लगे हुए हैं। इमर्सन की यह उक्ति भी ब्रिटिश दलों से अमेरिकी दलों का भेद ही बताती है कि "साधारणतः हमारे दल (अमेरिकी दल) परिस्थितियों के दल हैं, सिद्धान्तों के नहीं।"

(2) संगठन और दृष्टिकोण का अन्तर

सामान्यतया संसदीय शासन व्यवस्था वाले देशों में, जैसे ब्रिटेन में राजनीतिक दलों का स्थायी संगठन होता है, जिससे दलों को स्थायी नेतृत्व प्राप्त होता है। लेकिन अमेरिकी राजनीतिक दलों में स्थानीयता की प्रवृत्ति प्रबल है। अमेरिकी राजनीतिक दल केवल राष्ट्रपति के चुनाव के समय ही राष्ट्रीय रूप धारण करते हैं, अन्यथा वस्तुतः वे स्थानीय और राज्य संगठन ही होते हैं।

ब्रिटेन के विपरीत अमेरिका के दोनों राजनीतिक दलों में सभी प्रकार के विचारों के लोग रहते हैं, उनमें प्रगतिवादी भी हैं और रूढ़िवादी भी। बीयर्ड के शब्दों में, "कभी-कभी तो एक दल के बाएँ और दाएँ पक्षों में इतना अधिक मतभेद होता है जितना दो दलों के मध्य नहीं होता।" अमेरिकी राजनीतिक दल विभिन्न वर्गीय हितों के समूहीकरण से बने हैं और इन दलों का उद्देश्य अपनेअपने समर्थकों को अधिकतम लाभ पहुँचाना है।

(3) अनुशासन की दृष्टि से अन्तर

ब्रिटिश राजनीतिक दल अपने कठोर अनुशासन के लिए सुविख्यात हैं और ब्रिटिश राजनीतिक दल के सदस्यों द्वारा दलीय अनुशासन की अवहेलना की घटनाएँ बहुत कम घटित होती हैं। लेकिन यह कठोर दलीय अनुशासन अमेरिकी राजनीतिक दलों के लिए ऐसी ईर्ष्या की वस्तु है जिसे उनके द्वारा कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों द्वारा अनेक बार अपने दल के नेता के आदेशों और निर्देशों की अवहेलना की जाती रही है। इसका प्रधान कारण यह है कि अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था होने के कारण कांग्रेस में किए गए मतदान का सरकार के स्थायित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(4) निरन्तर सक्रियता  -

अमेरिका और अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था वाले अन्य देशों में राजनीतिक दल चुनाव के पश्चात् दो वर्ष के लिए राजनीति के प्रति  उदासीन हो जाते हैं, क्योंकि यह स्पष्ट रहता है कि एक निश्चित समय से पूर्व सरकार में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। लेकिन ब्रिटेन में संसदीय शासन व्यवस्था होने के कारण विरोधी राजनीतिक दल सरकार के पतन हेतु और शासक दल सत्ता बनाए रखने हेतु सदैव सक्रिय रहते हैं। राजनीतिक दलों के लिए सक्रिय रहना इसलिए भी आवश्यक होता है कि कभी भी तीन सप्ताह के नोटिस पर चुनाव की घण्टी बज सकती है। अतः राजनीतिक दल ब्रिटेन में सभाएँ बुलाने, साहित्य तैयार करने, स्थानीय शाखाओं को संगठित कर स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनावों में भाग लेने, उप-चुनावों में भाग लेने और सामान्य जनता के साथ सम्पर्क स्थापित करने के कार्यों में निरन्तर सक्रिय रहते हैं।

(5) लूट की प्रथा

अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के पश्चात् स्थायी पदाधिकारियों का बड़ी संख्या में परिवर्तन होता है। पहले से कार्य कर रहे पदाधिकारियों के स्थान पर उन व्यक्तियों को इन पदों पर नियुक्त किया जाता है जिन्होंने चुनाव के समय राष्ट्रपति को विजयी बनाने में योगदान दिया था। इसे ही 'लूट की पद्धति' कहते हैं। लेकिन ब्रिटिश राजनीति में राजनीतिक दलों द्वारा इस प्रकार का आचरण नहीं किया जाता। प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की निश्चित पद्धति है और चाहे जिस राजनीतिक दल की सरकार का निर्माण हो, प्रशासनिक अधिकारी स्थायी रूप से अपने पदों पर बने रहते हैं। ब्रिटेन की यह पद्धति अमेरिका की पद्धति की तुलना में निश्चित रूप से श्रेष्ठ है।

(6) दल के नेता का स्थान  -

ब्रिटेन में दल के नेता का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वह दल का प्रतीक होता है और समस्त चुनाव चक्र उसी के इर्द-गिर्द भ्रमण करता रहता है। किन्तु संयुक्त राज्य अमेरिका में दल के नेता का इतना महत्त्व नहीं   है। 

(7) दबाव गुटों का प्रभाव  -

संयुक्त राज्य अमेरिका की दलीय प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता दबाव गुटों का प्रभाव है। अमेरिका में छोटे-छोटे दबाव गुटों का पर्याप्त प्रभाव पाया जाता है। ये गुट विभिन्न दलों पर दबाव डालकर अपने हितों की सिद्धि करते रहते हैं। किन्तु ब्रिटेन में ऐसा नहीं है।

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