जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक विचार

B.A-III-PoliticalScience-II

प्रश्न 10. पं. जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक विचारों की विवेचना कीजिए।

अथवा '' समाजवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद पर नेहरूजी के विचारों का परीक्षण कीजिए।

उत्तर - पं.जवाहरलाल नेहरू आधनिक भारत के निर्माता थे। लोकप्रियता की दृष्टि से वे गांधीजी के पश्चात दूसरे व्यक्ति थे। नेहरूजी के विषय में गांधीजी ने कहा था कि वे नितान्त उज्ज्वल हैं और उनकी सच्चाई सन्देह के परे है। राष्ट्र उनक हाथों में सुरक्षित है।"

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में नेहरूजी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। वे न केवल विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर राष्ट्रीय आन्दोलन में कूदे, वरन् उन्होंने। सन 1928 में अपने पिता के नेतृत्व में तैयार की गई नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया, क्योंकि उसमें औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई थी। कांग्रेस ने सन् 1929 में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज्य' का लक्ष्य घोषित किया। 31 दिसम्बर,1929 की अर्द्ध-वि को उन्होंने लाहौर में रावी नदी के तट पर तिरंगा फहराकर भारत के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता के संकल्प को दोहराया। उन्होंने गांधीजों के सन् 1940 के व्यक्तिगत सविनय सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सन् 1945 में वायसराय लॉर्ड वेवल ने नेहरूजी से अन्तरिम सरकार बनाने को कहा। 15 अगस्त, 1947 को विभाजन की कीमत पर देश को आजादी मिली,तो पं. नेहरू स्वत्व भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने तथा 27 मई,1964 अर्थात् अपनी मृत्यु तक इसी पद पर बने रहे। उन्होंने 17 वर्षों तक देश का प्रधानमन्त्री के रूप में नेतृत्व किया और स्वतन्त्र भारत को एक सबल आर्थिक और राजनीतिक स्वरूप प्रदान किया। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की धाक जमाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।

जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक विचार

नेहरूजी के राजनीतिक विचार

 नेहरू के राजनीतिक विचारों को निम्न शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट कर सकते है

(1) समाजवाद सम्बन्धी विचार - नेहरूजी ने समाजवाद की अपनी विचारधारा विकसित की। समाजवाद के इस आदर्श सिद्धान्त पर उनका आग्रह था कि आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है। उन्होंने यह मत व्यक्त किया कि उनका समाजवाद रूसी समाजवाद या अन्य समाजवादों का अनुकरण नहीं है। एक स्थान पर उन्होंने कहा कि भारत की समस्याओं का समाधान केवल समाजवाद द्वारा ही सम्भव दिखाई देता है और जब मैं। इस शब्द (समाजवाद) का प्रयोग करता हूँ, तो समाजवाद आर्थिक दृष्टि के सिद्धान्त से भी महत्वपूर्ण है। यह एक जीवन-दर्शन है और मुझे जंचता भी है।" समाजवादी विचारधारा पर चलते हुए नेहरूजी ने देश के नियोजित विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। तीव्र आर्थिक विकास के लिए उन्होंने औद्योगिक विकास को गति दी और कृषि तथा भूमि सुधार द्वारा जमींदारों के शोषण से दबी हई ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने की चेष्टा की। उनका उद्देश्य एक ऐसे आधुनिक ढाँचे का निर्माण करना था जो बिना व्यक्ति एकाधिकार और पूंजी के केन्द्रीकरण के अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सके और शहरी व ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उपयुक्त सन्तुलन पैदा कर सके। उन्होंने लोकतन्त्रीय साधनों के माध्यम से समाजवादी समाज की स्थापना में निष्ठा व्यक्त की।

(2) धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी विचार - 

नेहरूजी ने धर्मनिरपेक्षता में अपनी गहन निष्ठा व्यक्त की। धर्मनिरपेक्षता पर विचार व्यक्त करते हुए पं.नेहरू ने कहा "भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, इसका अर्थ धर्महीनता नहीं है। इसका अर्थ धमों के प्रति समान आदर भाव व सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का अनुयायी क्यों न हो। इसलिए हमें अपने मस्तिष्क में अपनी संस्कृति के इस आदर्शमय पहलू को सदैव ध्यान में रखना चाहिए. जिसका आज के भारत में सबसे अधिक महत्त्व है ।उन्हीं के शब्दों में, "हम देश में किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता सहन नहीं करेंगे। हम एक ऐसे आजाद धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण कर रहे हैं जिसमें प्रत्येक धर्म तथा मत को पूर्ण आजादी और सम्मान आदर भाव मिलेगा और प्रत्येक नागरिक को समान स्वतन्त्रता तथा समान अवसर की सुविधा मिलेगी।" धर्म से उनका आशय था निष्ठापूर्वक सत्य की खोज करना.सत्य के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार रहना। अपने स्वस्थ स्वरूप में धर्म असंख्य व्याकुल आत्माओं को शान्ति और सांत्वना देने वाली महान शक्ति है.ऐसा पं. नेहरू का विश्वास था।

(3) लोकतन्त्र सम्बन्धी विचार - 

नेहरूजी महान लोकतन्त्रवादी थे। उन्होंने लोकतन्त्र को केवल राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा, बल्कि आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र को भी लोकतन्त्र की परिधि में लिया। उनका कहना था कि सामाजिक अस्पृश्यता व आर्थिक असमानताओं से पूर्ण समाज कभी लोकतान्त्रिक नहीं हो सकता। उनके लोकतन्त्र सम्बन्धी विचार निम्न प्रकार हैं

(i) नेहरूजी ने जनसम्पर्क को लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना। उनके अनुसार शासक और शासितों के मध्य निकट का सम्बन्ध लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है।

(ii) नेहरूजी ने लोकतन्त्र की सफलता के लिए आत्म-अनुशासन पर बल दिया और आत्म-अनुशासन व मानसिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए नागरिकों को शिक्षित करने की आवश्यकता बताई।

(iii) नेहरूजी लोकतन्त्र के लिए रूढिवादिता को घातक मानते थे। उनका विचार था कि लोकतन्त्र तो गतिशील विचारधारा है. वह अपनी समस्याओं को तर्क-वितर्क से सुलझाए।

(iv) नेहरूजी संसदीय सरकार व माँगें मनवाने के संवैधानिक साधनों के पक्षधर थे।

(v) वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व स्वतन्त्रता के हिमायती थे।

(4) राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचार - 

पं. नेहरू ने राष्ट्रवाद को एक भावात्मक वस्तु के रूप में देखा। उन्होंने लिखा है कि राष्टवाद वास्तव में गत प्रगतिशील प्रथाओं एवं अनुभवों की एक सामूहिक स्मृति है और राष्ट्रवाद की भावनाएँ पहले के युग की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। जब-जब देश पर संकट उपस्थित हुआ है, राष्ट्रवाद ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है।

नेहरूजी यह मानते थे कि राष्ट्रवाद व्यक्ति की प्रकृति में निहित है और अपने देश के प्रति निष्ठा एवं भक्ति रखना भी मानव का एक विशेष गुण है । परन्तु पं.नेहरू उग्र राष्ट्रवाद के विरोधी थे। उनका कहना था कि ऐसा राष्ट्रवाद जो अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक हो, जिसका स्वरूप आक्रामक हो, सर्वथा त्याज्य है। उनका मत था कि उग्र राष्ट्रवाद मनुष्य के हृदय को संकीर्ण बना देता है, देशभक्ति की भावना को इतना तीव्र बना देता है कि मनुष्य-मनुष्य में पृथकता की भावना जाग्रत हो जाती है। पं.नेहरू इस संकीर्ण मनोवृत्ति के कभी शिकार नहीं हुए। वे चाहते थे कि भारतीय राष्ट्रवाद शान्ति, सह-अस्तित्व, सहयोग एवं मैत्री भावना से पूर्ण आदर्श विश्व के समक्ष रखे तथा अन्तर्राष्ट्रीयतावाद को प्रोत्साहन दे।।

(5) नेहरू और मानवतावाद -

नेहरूजी एक राजनीतिज्ञ थे, किन्तु नैतिक आदर्शवाद में उनकी गहन आस्था जीवनभर बनी रही। पीडित और शोषित लोगों के प्रति उनके हृदय में अगाध प्रेम और सहानुभूति थी। नेहरूजी जीवनपर्यन्त मानव-जीवन के उच्चतर मानदण्डों के लिए संघर्षरत रहे । उनका मानव अस्तित्व और उसकी सत्ता में पूर्ण विश्वास था । मानवतावादी मूल्यों में अटूट विश्वास के कारण ही। वे लोकतान्त्रिक समाजवादी बने रहे और साम्यवाद के हिंसक तथा अनैतिक साधनों के प्रति उन्हें कभी कोई आकर्षण नहीं रहा।

(6) नेहरू और अन्तर्राष्ट्रीयतावाद - 

नेहरू महान् अन्तर्राष्ट्रीयतावादी थे। वे। शान्तिपर्ण सह-अस्तित्व एवं विश्व राज्य के आदर्श में विश्वास करते थे। संयक्त राष्ट्र संघ के आदर्शों में उनका दृढ़ विश्वास था। भारत के लिए गुटनिरपेक्षता की विदेश नीति उनका सबसे बड़ा योगदान है। पंचशील सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर उन्होंने अन्तर्राष्टीय क्षेत्र में भारत की शान्तिप्रियता का परिचय दिया।

(7) यद्ध व शान्ति सम्बन्धी विचार

पं. जवाहरलाल नेहरू विश्व-शान्ति के लिए अनवरत प्रयास करते रहे । अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को दूर करने और विश्व शान्ति की स्थापना में योग देने के लिए उन्होंने गुटों से अलग रहने की विदेश नीति अपनाई । उनका दढ विश्वास था कि विभिन्न देशों के मध्य होने वाले विवादों का हल मध्यस्थता तथा पंच निर्णय के द्वारा हो सकता है । युद्ध से किसी समस्या का हल सम्भव नहीं है। उन्होंने युद्ध से चाहे कितनी घृणा की हो, परन्तु वे आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के लिए तैयार रहते थे।

मूल्यांकन -विचारधारात्मक दृष्टि से नेहरूजी के सिद्धान्तों और व्यवहार जो भी कमजोरियाँ रहीं हों, लेकिन उन्होंने नई पीढ़ी को एक प्रगतिशील वैज्ञानिक दिशा प्रदान की। वे समन्वयवादी थे। उन्होंने गांधी और मावर्स के श्रेष्ठ सिद्धान्तों एवं मूल्यों को मिलाकर नवीन भारत का निर्माण करने का प्रयास किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को नई दिशा प्रदान की। उन्होंने स्वयं अपने विषय में कहा था, “यदि कोई व्यक्ति मेरे सम्बन्ध में सोचना पसन्द करे, तो मैं उससे कहूँगा कि यह एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अपने सम्पूर्ण मन और मस्तिष्क से भारतीय जनता को प्रेम किया और इसके बदले में भारतीय जनता ने भी उसे अपना अपार प्रेम प्रदान किया।

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