नौकरशाही का अर्थ,परिभाषा ,गुण,दोष

BA-III-Political Science I

प्रश्न 8 . नौकरशाही की परिभाषा दीजिए। इसके गुण-दोष क्या हैं ?

अथवा ‘’नौकरशाही से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण तथा दोषों का वर्णन कीजिए।

अथवा ‘’नौकरशाही क्या है ? इसकी विशेषताएँ तथा प्रकार बताइए।

अथवा ‘’नौकरशाही के दोषों का उल्लेख कीजिए तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।

उत्तर- नौकरशाही का अर्थ एवं परिभाषाएँ

'नौकरशाही' (Bureaucracy) का शाब्दिक अर्थ है-'डेस्क सरकार' (Desk Government) | व्यापक अर्थ में हम इसे कोई भी ऐसी सेविवर्ग व्यवस्था कह सकते हैं जहाँ कर्मचारियों को प्रशासन की ऐसी व्यवस्था में वर्गीकृत कर दिया जाए जिसमें सम्भागों, विभागों आदि के पद सोपान हों। सीमित अर्थ में इसका आशय लोक सेवकों के एक ऐसे निकाय से है जो एक पद सोपान की व्यवस्था में संगठित हो तथा प्रभावशाली सार्वजनिक नियन्त्रण के क्षेत्र से बाहर रहता है।

naukarshahi ki paribhsha dijiye

नौकरशाही प्रत्येक प्रशासन का एक अनिवार्य अंग है। विद्वानों ने नौकरशाही को 'सरकार का चौथा अंग' कहा है। परन्तु 'नौकरशाही' शब्द का प्रयोग देशकाल के अनुसार बदलता रहता है। यूरोपीय देशों में यह शब्द सामान्यतया नियमित सरकारी कर्मचारियों के समूह के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

ग्लैडन के अनुसार, "नौकरशाही एक ऐसा विनिर्मित प्रशासकीय तन्त्र है जो अन्त:सम्बन्धीय पदों की श्रृंखला के रूप में संगठित होता है।"

अमेरिकी एनसाइक्लोपीडिया में नौकरशाही का स्पष्ट अर्थ दिया गया है। इसके अनुसार, "नौकरशाही संगठन का वह रूप है जिसके द्वारा सरकार ब्यूरो के माध्यम से संचालित होती है। प्रत्येक ब्यूरो कार्य की एक विशेष शाखा का प्रबन्ध करता है। प्रत्येक ब्यूरो का संगठन पद सोपान से युक्त होता है। इसके शीर्ष पर अध्यक्ष होता है, जिसके हाथ में समस्त शक्ति रहती है। नौकरशाही में प्रायः प्रशिक्षित और अनुभवी प्रशासक होते हैं। वे बाहर वालों से बहुत कम प्रभावित होते हैं, उनमें एक जातिगत भावना होती है तथा वे लालफीताशाही एवं औपचारिकताओं पर अधिक जोर देते हैं।"

मैक्स वेबर ने नौकरशाही को प्रशासन की एक ऐसी व्यवस्था कहा है जिसमें विशेषज्ञता, निष्पक्षता और मानवता का प्राय: अभाव पाया जाता है।

नौकरशाही के प्रकार -

 एफ. एम. मार्क्स ने नौकरशाही के निम्न चार रूपों का वर्णन किया है

(1) अभिभावक नौकरशाही-

मार्क्स का मानना है कि चीनी नौकरशाही (शुंग वंश के उदय से 960 . तक) प्रशा की नौकरशाही (1640 से 1740 . तक) में अभिभावक नौकरशाही के गुण दिखाई देते थे। यह नौकरशाही अपने आपको लोकहित का अभिरक्षक मानती थी, किन्तु लोकमत से स्वतन्त्र थी तथा उसके प्रति उत्तरदायी भी होती थी। एक ओर तो यह न्यायपूर्ण, सक्षम, कार्यकुशल तथा लोकहितकारी होती थी, किन्तु दूसरी ओर अनुत्तरदायी तथा अधिकारयुक्त होती थी।

एफ. एम. मार्क्स के अनुसार, "इस नौकरशाही के अधिकारीगण विद्वान् होते हैं, जो शास्त्रोक्त आचरण में दीक्षित होते हैं।"

(2) जातीय नौकरशाही-

ऐसी व्यवस्थाओं में जहाँ केवल वे ही व्यक्ति सरकारी अधिकारी हो सकते हैं जो उच्चतर वर्गों या जातियों के होते हैं, वहाँ जातीय नौकरशाही पाई जाती है। इस नौकरशाही का आधार एक वर्ग विशेष होता है। उदाहरण के लिए, प्राचीन भारत में केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय ही उच्चाधिकारी हो सकते थे। मार्क्स ने जातीय नौकरशाही के सम्बन्ध में रोमन साम्राज्य जापान के मेजी संविधान का उल्लेख किया है। इस नौकरशाही को विलोबी ने 'कुलीन तन्त्र' की संज्ञा दी है। इस प्रकार की नौकरशाही अल्पतन्त्रीय राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है।

(3) संरक्षक नौकरशाही-

यह नौकरशाही का वह रूप है जिसमें लोक सेवकों की नियुक्ति उनकी तुलनात्मक योग्यता के आधार पर नहीं की जाती, वरन नियोक्ता और प्रत्याशियों के राजनीतिक सम्बन्धों के आधार पर की जाती है। इस प्रकार की नौकरशाही में चुनाव में विजया दल अपने समर्थकों को ऊँचे पदों पर नियुक्त करता है। इसे 'लूट पद्धति' भी कहा जाता है। इस प्रकार की नौकरशाही संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित है। वस्तुत: इस प्रकार की नौकरशाही का अस्तित्व वहाँ होता है जहाँ सरकारी पद पर नियुक्ति किसी व्यक्तिगत अनुग्रह या राजनीतिक पुरस्कार के रूप में की जाती है। इस प्रकार का उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका में देखने को मिलता है। वहाँ नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के साथ कार्य कर रहे अनेक उच्च प्रशासनिक पदाधिकारी पद-मुक्त कर दिए जाते हैं और उनके स्थान पर ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में व्यापक समर्थन किया हो, जो उसके दल का प्रमुख व्यक्ति हो अथवा अन्य किसी कारण से वह राष्ट्रपति को पसन्द हो। इस नौकरशाही का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें प्रशासक राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ नहीं रह पाता है। __

(4) योग्यता नौकरशाही-

नौकरशाही का वह रूप जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है, योग्यता नौकरशाही कहलाती है। इसके अन्तर्गत व्यक्तियों की योग्यता की जाँच हेतु निष्पक्ष तथा वस्तुगत परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं। इसका लक्ष्य प्रतिभा के लिए खुला पेशा' होता है। इस व्यवस्था में लोक सेवक किसी के अनुग्रह भार से दबा हुआ. नहीं रहता तथा सदैव सामान्य हित की अभिवृद्धि में रुचि ले सकता है। योग्यता नौकरशाही में लोक सेवक निष्पक्ष तटस्थ होकर संविधान के प्रति प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर सकते हैं। वर्तमान समय में विश्व के अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों में नौकरशाही का यही रूप प्रचलित है।

नौकरशाही की विशेषताएँ (लक्षण)
अथवा ''नौकरशाही के गुण-

नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण/गुण) निम्नलिखित हैं

(1) कानून नियमों में अटूट विश्वासनौकरशाही संगठन में अधिकारी वर्ग की सत्ता कानून पर आधारित होती है। कानून के अनुसार ही प्रत्येक अधिकारी कार्यों को पूरा करने के लिए जवाबदेय होता है।

(2) कानून के शासन के अनुसार कार्य-संचालननौकरशाही में सरकारी अधिकारी विधि के अनुसार काम करते हैं। उनका व्यवहार कानून के अनुकूल होता है। प्रशासनिक विधि, नियम, निर्णय आदि लिखित रूप में रहते हैं, फलतः अधिकारियों द्वारा शक्ति का प्रयोग भिन्न-भिन्न रूपों में किया जाता है।

(3) प्राविधिक विशेषता-नौकरशाही के काम करने का एक विशिष्ट ढंग होता है। वर्षों से जो संगठन कार्यरत है उनकी अपनी विशेषता स्थापित हो जाती है। एक सरकारी कर्मचारी अपना समस्त जीवन एक विशिष्ट कार्य में लगा देता है।

(4) पद सोपान का सिद्धान्त-नौकरशाही पद सोपान के सिद्धान्त के आधार पर गठित होती है। इसमें आदेश ऊपर से नीचे की ओर चलता है तथा उत्तरदायित्व नीचे से ऊपर की ओर चलता है। प्रत्येक अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी के प्रति उत्तरदायी होता है तथा उसी के निर्देशन और नियन्त्रण में कार्य करता है।

(5) कार्यों का बुद्धिमत्तापूर्ण विभाजन करना-नौकरशाही का प्रमुख गुण यह है कि इसमें नियोजित और बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से कार्यों के विभाजन की व्यवस्था की जाती है। इस श्रम-विभाजन से प्रत्येक पद को कानूनी सत्ता प्रदान की जाती है, ताकि वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।

(6) निष्पक्ष कार्य-प्रणाली-नौकरशाही के अन्तर्गत कार्यों का विभाजन कार्मिक संगठन के मध्य होता है, जिससे प्रत्येक कर्मचारी अपने-अपने कार्यों को निष्पक्ष एवं सही तरीके से करते हैं। इसलिए नौकरशाही को निष्पक्ष कार्य-प्रणाली का आधार माना जाता है।

नौकरशाही के दोष-

 नौकरशाही व्यवस्था में निम्न दोष पाए जाते हैं

(1) सार्वजनिक नियन्त्रण का अभाव - लोक कर्मचारियों के सम्बन्ध में यह बात स्पष्ट रूप से कही जाती है कि वे प्रभावशाली जन नियन्त्रण की परिधि से बाहर रहते हैं। जनता द्वारा उनके कार्यों की आलोचना का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि उन्हें शासक वर्ग का समर्थन प्राप्त होता है।

(2) अधिकारियों का असीमित नियन्त्रण नौकरशाही में अधिकारियों का नियन्त्रण आवश्यकता से अधिक होता है। इस नियन्त्रण के कारण जनता के मौलिक अधिकारों पर संकट उत्पन्न हो जाता है।

जैसा कि लास्की ने लिखा है, "नौकरशाही एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें अधिकारियों का नियन्त्रण इतना बढ़ जाता है कि सामान्य नागरिकों की स्वतन्त्रता खतरे में पड़ जाती है।"

(3) प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली की विरोधी नौकरशाही व्यवस्था प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली के भौतिक सिद्धान्तों के विरुद्ध है। इस व्यवस्था में अधिकारी वर्ग धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा लेता है और कर्मचारी वर्ग सेवक के स्थान पर मालिक बनने का स्वप्न देखने लगते हैं। ऐसी दशा में वे जनता के अधिकारों की भी कोई चिन्ता नहीं करते। रैम्जे म्योर ने लिखा है, "नौकरशाही एक अग्नि के समान है, जो एक सेवक के रूप में बहुमूल्य सिद्ध हो जाती है, किन्त जब मालिक या स्वामी बन जाती है, तब घातक सिद्ध होती है।"

(4) लालफीताशाही नौकरशाही का एक प्रमुख दोष यह भी है कि इसमें लालफीताशाही पाई जाती है। चाहे कितनी भी शीघ्रता का कार्य क्यों हो, ये कानून की दुहाई देकर उसकी चिन्ता नहीं करते। सार्वजनिक कार्यों में इसी कारण बहुत देर लग जाती है। उच्च कर्मचारी अपने ऊपर कोई उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते, इसीलिए कार्य को इधर-उधर घुमाते रहते हैं।

(5) व्यक्तिगत महत्त्व पर बल - नौकरशाही में पदाधिकारी अपने महत्त्व का प्रदर्शन करना चाहते हैं।

(6) वर्गीय चेतना प्रशासन के अधिकारी अपने आपको समाज में एक विशिष्ट पुरुष मानने लगते हैं। वे समझने लगते हैं कि वे समाज में अन्य के मुकाबले श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार नौकरशाही में शासित एवं शासक नाम के दो वर्ग बन जाते हैं। यह वर्गीय चेतना विघटन को प्रोत्साहन देती है।

(7) व्यक्तिगत स्वाधीनता की विरोधी - नौकरशाही व्यक्तिगत स्वाधीनता की विरोधी है। नौकरशाही में उच्च अधिकारी अपने आत्म-गौरव का प्रदर्शन करने में लगे रहते हैं। वे जनता के मौलिक अधिकारों को महत्त्व नहीं देते और ही लोक कल्याण की बातें करते हैं। ऐसी दशा में कल्याणकारी राज्य की कल्पना स्वप्न मात्र रह जाती है। नागरिकों को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं मिल पाती है।

नौकरशाही के दोषों को दूर करने के उपाय-

 नौकरशाही के दोषों को निम्न तरीकों से दूर किया जा सकता है

(1) सत्ता का विकेन्द्रीकरण-

नौकरशाही की सत्ता पर नियन्त्रण रखने के लिए सत्ता का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है।

(2) संसद तथा मन्त्रिपरिषद का नियन्त्रण-

लोक सेवा के कर्मचारियों पर यदि संसद तथा मन्त्रिपरिषद् का नियन्त्रण रहेगा, तो वे किसी भी रूप में मनमानी नहीं कर सकेंगे।

(3) प्रशासकीय न्यायाधिकरणों की स्थापना-

एक ऐसे प्रशासकीय मण्डल की स्थापना होनी चाहिए जिसके सम्मुख नागरिक लोक सेवा के कर्मचारियों के विरुद्ध अपनी शिकायतें कर सकें। इस व्यवस्था के द्वारा लोक सेवा में कर्मचारी सार्वजनिक उत्तरदायित्व का अनुभव करेंगे।

(4) अन्य सुझाव-

प्रो. रॉब्सन ने नौकरशाही के दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए हैं

(i) लोक सेवा को प्रत्येक नागरिक के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।

(ii) लोक सेवा में सामाजिक वर्गों के विभिन्न प्रतिनिधि होने चाहिए।

(iii) शासित एवं शासकों के मध्य सम्पर्क बनाए रखने के लिए पत्र-व्यवहार की व्यवस्था होनी चाहिए।

या (iv) प्रशासन के कार्य में गैर-सरकारी मनुष्यों को भी सतत् रूप में भाग लेना चाहिए।

निष्कर्ष नौकरशाही की समयानुसार प्रशंसा भी करनी चाहिए, किन्तु उसकी अनावश्यक आलोचना के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। नौकरशाही आधुनिक युग की अनिवार्य आवश्यकता है, इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। केवल उस पर अवरोध लगाना ही पर्याप्त होगा, जिससे वह अपने को जनता का सेवक समझे।

 

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