महादेवी वर्मा एक सफल रेखाचित्र लेखिका -परीक्षण
प्रश्न 8. महादेवी वर्मा एक सफल रेखाचित्र लेखिका हैं। गिल्लू रेखाचित्र के आधार पर इस कथन का परीक्षण कीजिए।
महादेवी
वर्मा एक सफल रेखाचित्र लेखिका -परीक्षण
उत्तर-महादेवी वर्मा की गद्य रचनाएँ मुख्य रूप से 'अतीत के चलचित्र' और 'स्मृति की रेखाओं' में संकलित हैं। इन गद्यात्मक निबन्धों को पूर्ण रूप से न तो संस्मरण की कोटि में रखा जा सकता है और न पूरी तरह रेखाचित्र ही कहा जा सकता है। ये निबन्ध लेखिका के सम्पर्क में आए व्यक्तियों को स्मरण करके लिखे गए हैं, अतः ये संस्मरण की कोटि में भी रखे जा सकते हैं, साथ ही स्मरण किए गए उन व्यक्तियों को सुनिश्चित, ठोस, नुकीला और प्रभावशाली व्यक्तित्व प्रदान करने से इन्हें रेखाचित्र भी कहते हैं। वैयक्तिक संस्पर्श न्यूनाधिक दोनों विधाओं में विद्यमान रहता है । यथार्थ का आधार भी दोनों (संस्मरण और रेखाचित्र) विधाओं का अनिवार्य तत्त्व है, क्योंकि दोनों ही विधाएँ जीवनी मूलक हैं। इसी आधार पर समीक्षक महादेवी वर्मा की इस प्रकार की रचनाओं को संस्मरणात्मक रेखाचित्र अथवा रेखाचित्रात्मक संस्मरण की संज्ञा देना अधिक उचित मानते हैं।
हिन्दी के
रेखाचित्रकारों में महादेवी वर्मा निःसन्देह सर्वोच्च स्थान की अधिकारिणी
हैं। उनके रेखाचित्र हिन्दी गद्य साहित्य की अमूल्य निधि हैं। रेखाचित्रों में
उनकी प्रतिभा का विशेष पल्लवन हुआ है। अतीत के चलचित्र',
'स्मृति की रेखाएँ, 'पथ के साथी' और 'मेरा परिवार' उनके
प्रसिद्ध रेखाचित्र संग्रह हैं। 'अतीत के चलचित्र'
और 'स्मृति की रेखाएँ' में शोषित-पीड़ित निम्न जातियों के लोगों की करुण गाथा है। उनका ध्यान
विशेष रूप से नारी व्यथा की ओर गया है। श्रृंखला की कड़ियाँ'
में महादेवी जी ने पुरुषों पर तीखे प्रहार किए हैं। वहाँ वे
विद्रोहिणी की भूमिका ग्रहण कर लेती हैं। उनका गद्य लेखन कल्पना जगत् से बाहर आकर
यथार्थ की भूमि से टकराता है। 'पथ के साथी' में युगीन साहित्यकारों का परिचय है। 'मेरा परिवार'
रेखाचित्र संग्रह में महादेवी जी ने पशु-पक्षियों से सम्बन्धित
संस्मरणात्मक रेखाचित्र प्रस्तुत किए हैं।
महादेवी
जी के रेखाचित्रों में करुणा की प्रधानता है तथा ऐसे दीन-हीन, दुःखी, पीड़ित पात्रों को वे अपने रेखाचित्र का विषय
बनाती हैं जो पाठकों की पूरी सहानुभूति प्राप्त कर लेते हैं। विधवा युवतियाँ,
विमाता द्वारा सताये बच्चे, दीन-हीन किन्तु
कर्मठ पात्र उनके रेखाचित्रों के विषय बने हैं। महादेवी जी के रेखाचित्रों में
सूक्ष्म निरीक्षण की प्रवृत्ति है, पात्र का पूरा चित्र है,
उसकी करुण दशा का चित्रोपम वर्णन है। महादेवी जी की भाषा सशक्त है
तथा उसमें चित्रोपमता का गुण विद्यमान है। आवश्यकतानुसार वे अपनी शैली बदलती रहती
हैं। सरल, सहज, संस्कृतनिष्ठ
प्रवाहपूर्ण शब्दावली उनकी भाषा की अन्यतम विशेषता है।
महादेवी
जी ने अपने रेखाचित्र संग्रह 'मेरा परिवार' में पशु-पक्षियों से सम्बन्धित रेखाचित्र प्रस्तुत किए हैं। इस रेखाचित्र
संग्रह में गिल्लू (गिलहरी), गौरा (गाय),
दुर्मुख (खरगोश) और सोना (हिरनी)
का वर्णन है। पशु-पक्षियों के परिवार में महादेवी जी को सर्वाधिक प्रिय गिल्लू था।
गिल्लू उन्हें मरणासन्न अवस्था में अपने बगीचे में मिला था, जिसे
कौवे नोंच रहे थे। महादेवी जी के करुण-संवेदनशील मन ने उसे स्वस्थ कर डाला। वे उसे
दूध पिलाती हैं और काजू खिलाती हैं। उन्होंने उसके झूलने के लिए एक झूला भी डाल
दिया। धीरे-धीरे गिल्लू की महादेवी जी के प्रति ममता बढ़ती गई और वह उन्हें एक पल
के लिए भी नहीं छोड़ता था। जब महादेवी जी कार दुर्घटना में घायल होकर
अस्पताल में भर्ती हो गईं, तो वह बहुत उदास हो गया। जब वे
अस्पताल से लौटकर आई तो वह उनके सिरहाने बैठकर परिचारिका के समान धीरे-धीरे उनके
बालों को सहलाता रहता था। मृत्यु के समय तक गिल्लू ने लेखिका का साथ नहीं छोड़ा।
'गिल्लू'
रेखाचित्र महादेवी जी की स्वानुभूति
और संवेदना की देन है। एक छोटे-से प्राणी गिलहरी के जीवन और स्वभाव पर प्रकाश डाला
गया है। महादेवी जी ने गिल्लू को परमात्मीय प्राणी के रूप में चित्रित किया है तथा
उसके माध्यम से पौराणिक प्रसंग और भारतीय संस्कृति का भी चित्रण कर दिया है। 'गिल्ल' रेखाचित्र की भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रांजल है। हिन्दी के तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू
और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भी सहज रूप में किया गया है। यह रेखाचित्र
वर्णनात्मक, भावात्मक आदि शैलियों में लिखा गया है, पर मुख्यत: संस्मरणात्मक शैली को अपनाया गया है।
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