व्यवहारवाद- अर्थ , विशेषताएँ तथा महत्त्व
B. A. I, Political Science I / 2021
प्रश्न 4. व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएँ तथा महत्त्व बताइए।
उत्तर - व्यवहारवाद की नींव ग्राहम वैलास, आर्थर बेण्टले, चार्ल्स मेरियम आदि ने 20वीं शताब्दी के
प्रारम्भ में रखी। सर्वप्रथम ग्राहम वैलास ने सन् 1908 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'Human Nature in Politics' में राजनीतिवैज्ञानिक तत्त्वों; जैसे—भावनाएँ, व्यक्तित्व, रुझानों आदि के
प्रभाव के अध्ययन पर बल दिया। इन तत्त्वों के प्रभाव का विश्लेषण राजनीति में
व्यावहारिकता का समावेश स्वयं कर देता है। इसी प्रकार सन् 1908 में ही प्रकाशित आर्थर बेण्टले की पुस्तक 'Process
of Government' में राजनीतिक संगठनों व
सस्थाओं के अध्ययन के स्थान पर राजनीतिक प्रक्रियाओं के अध्ययन व विश्लेषण का
समर्थन किया गया। इसी क्रम में सन् 1925 में चार्ल्स मेरियम ने अपनी पुस्तक 'New Aspects of Politics' में सैद्धान्तिक अध्ययन के स्थान पर
व्यवहारवादी तथा वैज्ञानिक अध्ययन की संस्तुति की। राजनीतिक व्यवहारवाद से
सम्बन्धित उपर्युक्त विचारों को संकलित कर सन् 1950 के दशक में अमेरिका के राजनीतिशास्त्री डेविड ईस्टन ने एक
व्यवस्थित सिद्धान्त के रूप में व्यवहारवादी दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया, इसलिए उन्हें 'व्यवहारवाद का जनक' कहा जाता है ।
व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन को वैज्ञानिक
व यथार्थवादी आधार प्रदान करता है। व्यवहारवाद के अन्य समर्थकों में कैटलिन,
स्टुअर्ट राइस, फ्रैंक कैण्ट, हैरॉल्ड लासवेल, डेविड ट्रमैन, हरबर्ट साइमन, आमण्ड पॉवेल, एडवर्ड शिल्स आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
व्यवहारवाद का अर्थ एवं परिभाषाएँ
व्यवहारवाद के अर्थ के सम्बन्ध में व्यवहारवादियों के विचारों में एकरूपता का अभाव है। कुछ
विद्वानों के अनुसार व्यवहारवाद एक मनोदशा तथा मनोवृत्ति है। व्यवहारवाद के जनक
डेविड ईस्टन के अनुसार यह व्यक्ति की वैज्ञानिक मनोदशा का प्रतिबिम्ब है। ईस्टन ने
उसे विभिन्न नामों-बौद्धिक प्रवृत्ति, तथ्यात्मक शैक्षणिक आन्दोलन, व्यवहारवादी
क्रान्ति आदि नामों से सम्बोधित किया है। रॉबर्ट ए. डहल ने व्यवहारवाद को 'परम्परावादी पद्धति का सैद्धान्तिकता के
विरुद्ध एक विरोध आन्दोलन' की संज्ञा दी है।
अत: व्यवहारवादी उपागम में अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु संस्थाएँ न होकर व्यक्ति का
राजनीतिक व्यवहार है।
व्यवहारवाद में व्यक्ति के व्यवहार का एक सामाजिक संगठन के सदस्य के रूप में
विश्लेषण किया जाता है । यह अध्ययन पद्धति अपना ध्यान राजनीतिक व्यवहार पर
केन्द्रित करती है और राजनीतिक व्यवहार के माध्यम से राजनीति,संगठन,प्रक्रिया तथा समस्याओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करती है। यह एक व्यापक अवधारणा
है,जो मनोदशा, मनोवृत्ति, सिद्धान्त, कार्यविधि,
पद्धति, दृष्टिकोण, अनुसन्धान तथा
सुधार आन्दोलन सभी कुछ है। व्यवहारवाद मानव की क्रियाओं से सम्बन्धित है और समाज
में मानव-व्यवहार से सम्बन्धित सामान्य अनुमान स्थापित करने का उद्देश्य रखता है।
व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान को अनुभवमूलक विज्ञान बनाता है।
रॉबर्ट ए. डहल के अनुसार, “व्यवहारवादी क्रान्ति परम्परागत राजनीति विज्ञान की
उपलब्धियों के प्रति असन्तोष का परिणाम है, जिसका उद्देश्य राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिक बनाना
है।”
जोसेफ डनर के अनुसार, “व्यवहारवाद सामाजिक घटना का पूर्वाभिमुखीकरण है, जो मुख्य रूप से अनुभववाद, तार्किक, प्रत्यक्षवाद और अनुशासनिक स्वार्थों से सम्बन्धित रहता
है।"
डेविड ट्रमैन के अनुसार, “व्यवहारवाद एक ऐसे विचार का प्रतिनिधित्व करता है जिसका
उद्देश्य सभी राजनीतिक घटनाओं को मानव के अवलोकित तथा अवलोकनात्मक व्यवहार के आधार
पर विवेचित करना है।”
व्यवहारवाद की विशेषताएँ
वर्तमान समय में व्यवहारवाद राजनीतिक तथ्यों, गतिविधियों एवं व्यवहार का अध्ययन तथा विश्लेषण करने के
कारण अत्यधिक प्रचलित, व्यापक एवं मान्य
सिद्धान्त हो गया है। किन्तु इसके अर्थ के सम्बन्ध में सभी विद्वानों का दृष्टिकोण
समान नहीं है । किर्क पैट्रिक के अनुसार इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
हैं
(1) यह शोध में राजनीतिक संस्थाओं को मौलिक इकाई न मानकर
व्यक्तियों के व्यवहार को विश्लेषण की मौलिक इकाई मानता है।
(2) यह सामाजिक विज्ञानों को व्यवहारवादी विज्ञान मानता है और
सामाजिक विज्ञानों की एकता अथवा समग्रता पर बल देता है।
(3) यह तथ्यों के सूक्ष्म पर्यवेक्षण, वर्गीकरण तथा माप की शुद्ध विधियों पर बल देता है।
(4) इसमें राजनीतिक लक्षण को एकरूप,व्यवस्थित व अनुभवमूलक सिद्धान्त के रूप में परिभाषित किया
जाता है।
डेविड ईस्टन ने अपने लेख 'The Current Meaning of Behaviourism'
में व्यवहारवाद की निम्नलिखित विशेषताओं का
उल्लेख किया है
(1) नियमितताएँ - मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार में हमें नियमितताएँ तथा अनियमितताएँ, दोनों ही देखने को मिलती हैं। एक ही समस्या के
प्रति समाज के व्यक्तियों के दृष्टिकोण यद्यपि भिन्न-भिन्न होते हैं, परन्तु इन विचारों में कुछ ऐसे समान बिन्दु मिल
जाते हैं जिनको एकत्रित करके शोधकर्ता नये सिद्धान्तों का निर्माण कर सकता है। इन
समानताओं को सामान्यीकरण व सिद्धान्तों के माध्यम से प्रकट किया जा सकता है।
(2) सत्यापन - राजनीतिक व्यवहार के सामान्य परिणामों तथा सिद्धान्तों का | सत्यापन सम्भव होता है । सत्यापन के उपरान्त
संगृहीत तथ्यों में वैज्ञानिकता की मात्रा बढ़ जाती है।
(3) शुद्ध तकनीक - व्यवहार के अध्ययन हेतु एकत्र सामग्री को पर्यवेक्षण, परीक्षण और शुद्ध तकनीक के माध्यम से समझा जाता है।
(4) परिमाणीकरण - सामग्री का प्रयोजन के सन्दर्भ में मापन तथा परिमाणीकरण किया जाता है।
(5) मूल्य निरपेक्षता - व्यवहारवाद में व्यक्तिगत मूल्यों को पृथक् रखा जाता है तथा
अध्ययनकर्ता को तथ्यों का संग्रह करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना | चाहिए कि उसके मूल्यों तथा मान्यताओं का
उत्तरदाता पर प्रभाव नहीं पड़े।
(6) क्रमबद्धीकरण - इसमें अध्ययन क्रमबद्ध ढंग से होता है।
(7) विशुद्ध विज्ञान - राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन शुद्ध विज्ञान के
रूप में | करना चाहिए । विभिन्न
प्रकार की वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करके निष्कर्षों को इस स्थिति में ले जाना
चाहिए जिससे कि वे ठोस सिद्धान्तों का रूप धारण कर लें तथा राजनीति विज्ञान को
प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी में रखा जा सके।
(8) एकीकरण - समस्त सामाजिक विज्ञान एक हैं और उनकी उपलब्धियों का प्रयोग एक-दूसरे में हो
सकता है। इस रूप में व्यवहारवादी अध्ययन पद्धति [अन्तर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण पर
बल देती है।
व्यवहारवाद का राजनीति विज्ञान पर प्रभाव
राजनीति विज्ञान पर व्यवहारवाद के प्रभाव का उल्लेख अग्रलिखित विंदुओ में किया जा सकता है
(1) व्यवहारवाद मात्र
एक उपागम या दृष्टिकोण नहीं है, वरन् यह तो
राजनीति विज्ञान की समस्त विषय-वस्तु को नवीन रूप में प्रस्तुत करने का एक साधन है
। इसने राजनीति विज्ञान को नये मूल्य, नई भाषा, नई पद्धतियाँ,
उच्चतर प्रस्थिति, नवीन दिशाएँ और सबसे बढ़कर अनुभवात्मक वैज्ञानिकता प्रदान
की है।
(2) व्यवहारवाद ने राज वैज्ञानिक के दृष्टिकोण को व्यापक बनाया
है और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया है कि एक समाज विज्ञान का अध्ययन दूसरे
समाज विज्ञान के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए। व्यवहारवादियों के इस विचार को
अन्तर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण कहा जा सकता है।
(3) व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को यथार्थ के धरातल पर खड़ा
करने का कार्य किया है। उसने इस बात पर बल दिया है कि राज वैज्ञानिक का सम्बन्ध
क्या है' से है न कि क्या होना
चाहिए' से । व्यवहारवाद ने
संस्थाओं के स्थान पर व्यक्ति को राजनीतिक दृष्टिकोण की इकाई बनाने पर जोर देने की
बात कही है,वह इसी दिशा में एक
महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
(4) व्यवहारवाद ने अपने वैज्ञानिक अनुभववाद के माध्यम से नवीन
दृष्टि,नवीन पद्धतियाँ, नये मापन और नूतन क्षेत्र प्रदान किए हैं ।
व्यवहारवाद के परिणामस्वरूप ही राजनीति विज्ञान साक्षात्कार प्रणाली, मूल प्रश्नावली प्रणाली और सोशियोमैट्री आदि
अपनाने की ओर प्रवृत्त हुआ है। राजनीति के अन्तर्गत अब न केवल मतदान व्यवहार,
वरन् राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं
का अध्ययन भी इस पद्धति के आधार पर किया जाने लगा है।
"व्यवहारवाद के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए रॉबर्ट ए. डहल ने कहा है,
"व्यवहारवाद राजनीतिक
अध्ययनों को आधुनिक मनोविज्ञान, समाजशास्त्र,
मानवशास्त्र और अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों,
उपलब्धियों और दृष्टिकोणों के निकट सम्पर्क में
लाने में सफल हुआ है।”
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