आलेखन/प्रारूपण का अर्थ-नियम,विशेषताएँ

प्रश्न 5. प्रारूपण का अर्थ स्पष्ट करते हुए एक अच्छे प्रारूपण की विशेषताएँ बताइए।

अथवा ‘’ आलेखन की परिभाषा दीजिए। आलेखन तैयार करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है ? सविस्तार वर्णन कीजिए। 

अथवा ‘’आलेखन किसे कहते हैं ? आलेखन की विशेषताएँ बताइए।

अथवा ‘’ प्रारूपण से क्या अभिप्राय है ? प्रारूपण के नियम समझाइए। 

अथवा ‘’ प्रारूपण किसे कहते हैं ? इनमें किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए या क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं ?

अथवा ‘’ एक श्रेष्ठ प्रारूपण में क्या-क्या विशेषताएँ होनी चाहिए ? 

अथवा  ‘’ प्रालेख और आलेखन में क्या अन्तर है ? भाषा की दृष्टि से दोनों का विवेचन कीजिए।

 प्रारूपण (आलेखन)

उत्तर- प्रारूपण (आलेखन) का अभिप्राय उन पत्रों, सूचनाओं, परिपत्रों और समझौतों के मसौदे' तैयार करने से है जिनकी आवश्यकता सरकारी कार्यालयों और व्यावसायिक संस्थानों में प्रतिदिन पड़ती रहती है। इस मसौदे को तैयार करने की प्रक्रिया आलेखन' है जिसे अंग्रेजी में Drafting कहते हैं । प्रालेख तैयार मसौदा है जिसे अंग्रेजी में Draft कहा जाता है, जबकि आलेखन प्रालेख को तैयार करने की प्रविधि है।

किसी निर्दिष्ट विषय पर चिन्तन मनन से लेकर संयोजित सामग्री को लिखित रूप देना ही प्रालेख है, जबकि आलेखन मसौदे' का कच्चा रूप होता है। । इसे आलेखन,मसौदा आदि भी कहा जाता है । इसका प्रयोग कार्यालयी पत्रों में किया जाता है ।

alekhan ka arth

डॉ. मानसिंह वर्मा के अनुसार, प्रारूपण से हमारा अभिप्राय उस पत्र-लेखन से है जिसे दिये गये संकेत, निर्देश अथवा अन्य किसी भी प्रकार की दी गयी सामग्री के आधार पर पत्र प्रक्रिया की समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए तैयार किया जाता है।"

डॉ. महेन्द्र चतुर्वेदी का कथन है, प्रारूप वस्तुतः प्राक् रूप होता है अर्थात् पत्र का कच्चा अन्तिम रूप और इसे तैयार करने का कार्य प्रारूपण' कहलाता है ।"

 जब कोई पत्र प्राप्त होता है तो पहले टिप्पणी का कार्य किया जाता है और उसके बाद उस पर आदेशानुसार प्रारूप तैयार किया जाता है। अधिकारी द्वारा संशोधन या । सुधार किये जाने पर उसे टाइप करा दिया जाता है तब वह प्रारूप पत्र का रूप ले लेता है । इस प्रकार किसी पत्र का कच्चे रूप में तैयार होकर अधिकारी के पास अवलोकन, अनुमोदन हेतु जाने तक की प्रक्रिया प्रारूपण कहलाती है।

प्रारूपण के नियम-

ये नियम निम्नलिखित हैं-

1. सबसे ऊपर पत्रांक तथा दिनांक दिया जाना चाहिए।

2. उसके नीचे पत्र-प्रेषक के कार्यालय का उल्लेख होना चाहिए। बहुत बार कार्यालय का नाम पत्र-शीर्ष पर छपा भी होता है।

3. उसके बाद प्रेषक का नाम और पद लिखा जाए।

4. उसके बाद प्रेषित का नाम, पद और पता लिखा जाए।

5. फिर प्रेषक का पता और दिनांक लिखा जाए।

6. इसके पश्चात् मध्य में विषय का उल्लेख किया जाए । एक वाक्यांश द्वारा यह बतला दिया जाये कि प्रस्तुत पत्र किस विषय में भेजा जा रहा है, जिससे पत्र का विषय ढूँढ़ने के लिए प्रापक को असुविधा न हो।

7. इसके बाद सम्बोधन बाएँ हाथ पर लिखा जाना चाहिए। यह सम्बोधन महोदय', 'महोदया', 'प्रिय महोदय', 'महानुभाव' में से अवसर के अनुसार कुछ भी दिया जा सकता है।

 

8. सम्बोधन के बाद पत्र प्रारम्भ करते हुए पिछले पत्र-व्यवहार का उल्लेख किया जाये जो सुनिश्चित और सुस्पष्ट हो।

9. पत्र के अन्त में स्वनिर्देश तथा नीचे हस्ताक्षर होंगे।

10. कुछ प्रकार के पत्रों में प्रेषिती का नाम और पद, प्रेषक के नाम और पते के नीचे लिखा जाता है और कुछ में पत्र की समाप्ति पर बायीं ओर।

11. संलग्न पत्रादिक के बारे में लिखें।

12. अन्त में उनकी संख्या भी लिखें । प्रतिलिपियाँ, यदि भेजी जा रही हों तो किन-किनको भेजी जा रही हैं, यह उल्लेख करें। .

ध्यातव्य बातें-

प्रारूपण के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक हैं 

(1) इसके लिए पहले विषय को भली-भाँति समझना चाहिए जिससे उसके लिखने में कोई भ्रम न रहे।

(2) प्रारूप में यदि पिछले पत्र व्यवहार का इतिहास जुड़ा हो तो प्रारूप में संक्षिप्त रूप से उसका उल्लेख कर देना चाहिए।

(3) मोटे तौर पर प्रत्येक प्रारूप को तीन भागों में बाँट लेना चाहिए। पहले भाग में प्रारूप के विषय का कथन हो । दूसरे में उस विषय के समर्थन में सतर्क युक्तियाँ प्रस्तुत की जायें। तीसरे भाग में उन युक्तियों के आधार पर निष्कर्ष निकालकर अपनी संस्तुति दी जाये।

(4) ऐसे पत्रों में क्रम संख्या डालनी चाहिए जहाँ प्रारूप बहुत लम्बे हों, वहाँ उसके छोटे उपशीर्षक भी दे देने चाहिए।

(5) प्रारूपण में तथ्यों का सीधा तथा स्पष्ट उल्लेख तथा स्पष्ट कथन हो। उसके पक्ष-विपक्ष में आवश्यकतानुसार युक्तियाँ प्रस्तुत की जायें। आलंकारिक प्रयोग न हों।

(6) इसकी भाषा संयत, सरल एवं परिमार्जित हो । वाक्य छोटे तथा विचारों को स्पष्ट करने में समर्थ हों।

(7) जब एक ही पत्र या आदेश किसी एक व्यक्ति के पास भेजना होता है तब उसकी प्रतिलिपियाँ अन्य अधिकारियों को भी भेजी जानी चाहिए।

(8) आलेख के अन्त में संलग्न पत्रों की सूची भी अंकित होनी चाहिए।

श्रेष्ठ प्रारूपण की विशेषताएँ-

एक श्रेष्ठ प्रारूपण की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं

1. संक्षिप्तता-

संक्षिप्त पत्र प्रभावशाली होता है। एक अच्छे प्रारूपण में संक्षिप्त और व्यवस्थित रूप में सारी बातें रखी जाती हैं किन्तु आवश्यक बातें छूटें नहीं।

2. यथार्थता-

पत्र में तथ्य, यथार्थ पर ध्यान दिया जाता है,व्यर्थ के तथ्यों का समावेश नहीं होता।

3. स्पष्टता-

पत्र लिखते समय पत्र-लेखन का मन्तव्य स्पष्ट रहता है,भाषागत सावधानी रखी जाती है, किसी उलझावदार शब्दावली का प्रयोग नहीं होता।

4. विषय ऐक्य-

प्रारूपण में एक ही पहलू से सम्बन्धित बातों का उल्लेख रहता है । इसमें प्रायः विषय वैविध्य नहीं रहता।

5. अनुच्छेद विभाजन-

एक श्रेष्ठ प्रारूपण को क्रमानुसार विभिन्न अनुच्छेदों में विभक्त करके लिखने पर ध्यान दिया जाता है। यह अनुच्छेद विभाजन विषय के अनुरूप ही होता है।

6. शैली

पत्र लिखते समय उसकी शैली विषयानुसार होती है क्योंकि कार्यालय में विविध प्रकार के पत्र होते हैं और उनकी शैली भी निश्चित होती है।

7. विनम्रता-

पत्र से विनम्रता झलकती है, उसकी भाषा ऐसी होती है कि प्रापक को किसी प्रकार की ठेस नहीं पहुँचती। शिकवा-शिकायत भी विनम्रता के साथ प्रस्तुत की जाती है।

8. आकर्षण-

भेजा गया पत्र आकर्षक होता है । आशय यह है कि उसका कागज,छपा पैड, उत्तम, शुद्ध टंकण तथा वर्तनी की अशुद्धियों का अभाव आदि का ध्यान रखा जाता है।

 

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