जोसेफ़ स्टालिन की गृह नीति

BA-III-History II / 2021
प्रश्न 8. गृह क्षेत्र में अपनाई गई स्टालिन की उन नीतियों का परिचय दीजिए जिनसे सोवियत रूस महाशक्ति बन गया।
अथवा '' सन् 1919 से 1945 तक की रूस की गृह नीति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - सन् 1924 में लेनिन की मृत्यु के पश्चात् बोल्शेविक दल में मतान्तर पराकाष्ठा पर पहुँच गया था। लेनिन के उत्तराधिकार को प्राप्त करने के लिए बोल्शेविक दल के दो प्रमुख नेता ट्राट्स्कीस्टालिन आमने-सामने थे। स्टालिन साम्यवादी दल का मन्त्री था, इसलिए दल के पूर्ण संगठन पर उसका नियन्त्रण था। उसने ट्राटस्की और उसके अनुयायियों के विरुद्ध प्रचार किया। सन् 1927 में ट्राट्स्की को दल से तथा सन् 1929 में रूस से निष्कासित कर दिया गया। स्टालिन, एक उग्र राजनीतिज्ञ था। वह अपने विरोधियों का समूल नाश करना चाहता था । सन् 1940 में मेक्सिको में ट्राटस्की की हत्या कर दी गई। इस प्रकार स्टालिन सही अर्थों में रूस का नया तानाशाह बन गया।
History of Joseph Stalin in hindi

स्टालिन की गृह नीति

स्टालिन ने अपने देश को सुदृढ़ बनाने एवं सभी क्षेत्रों (कृषि, कारखाने, शिक्षा, धर्म और आर्थिक व्यवस्था) में आत्म-निर्भर बनाने का प्रयास किया।

प्रथम पंचवर्षीय योजना- 

सन् 1925 में देश की आर्थिक समस्याओं पर विचार करने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने लम्बी अवधि की पंचवर्षीय योजना के निर्माण की संस्तुति की, जिसके अन्तर्गत सन् 1928 में अगले पाँच वर्षों तक देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन की भावी रूपरेखा का उल्लेख किया गया था। पंचवर्षीय योजना के मुख्य बिन्दु व्यक्तिगत सम्पत्ति की समाप्ति और आर्थिक आत्मनिर्भरता थे। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित योजनाएँ तैयार की गई थीं
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प्रश्न 7. वर्साय की सन्धि के प्रमुख अनुबन्धों का वर्णन कीजिए। यह सन्धि द्वितीय विश्व युद्ध के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी ?


(i) कृषि का राष्ट्रीयकरण - 

खाद्यान्न के उत्पादन में कृषि के लिए स्टालिन ने सर्वप्रथम कृषि के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की। व्यक्तिगत रूप से कृषि कार्य को पूर्णतया प्रतिबन्धित कर दिया गया और समस्त कृषि योग्य भूमि को दो भागों में बाँट दिया गया-सरकारी कृषि और सामूहिक कृषि।  सरकारी कृषि का उद्देश्य खाली और बंजर पड़ी भूमि को कृषि के अनुकूल बनाना था और सामूहिक कृषि को छोटे किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा संयुक्त रूप से सहकारिता के आधार पर कार्य करने के लिए प्रारम्भ किया गया था। सामूहिक कृषि में छोटे-छोटे टुकड़ों को संयुक्त करके वृहत्तर रूप प्रदान कर दिया गया था। 
उन समृद्धशाली किसानों से खेती करने का अधिकार व भूमि का स्वामित्व वापस ले लिया गया था जो व्यक्तिगत रूप से अपने कृषि कार्य को करने में सक्षम नहीं थे। इसके विपरीत सहकारी व सामूहिक कृषि को प्रोत्साहित किया गया और सरकार ने करों में रियायत व ऋण सुविधाएँ देकर लोगों को सहकारिता की ओर आकर्षित किया। सामूहिक खेती के सम्बन्ध का दायित्व सभी सदस्यों की एक प्रबन्ध समिति को प्रदान किया गया। प्रत्येक किसान को उत्पादन का कुछ निश्चित भाग सरकार को देना पड़ता था और शेष भाग को वह स्वतन्त्र रूप से खुले बाजार में बेच सकता था। कुल लाभ में किसान का भाग उसके श्रम के अनुपात और किस्म के अनुसार होता था।

(ii) कारखानों का राष्ट्रीयकरण - 

पंचवर्षीय योजना की सफलता के लिए कारखानों का पुनर्गठन नितान्त अनिवार्य था । लेनिन ने अपनी नई आर्थिक नीति की घोषणा कर दी थी, जिसके अन्तर्गत लघु स्तर पर व्यक्तिगत संस्थाओं को कार्य की आज्ञा प्रदान कर दी गई। इसलिए यह आवश्यक था कि लघु उद्योगों को मान्यता प्रदान कर दी जाए। व्यक्तिगत कारखाना स्वामियों को अपने ट्रस्ट बनाने के लिए बाध्य किया गया। कुछ समय बाद इन ट्रस्टों को 19 बड़े सिण्डीकेटों में सम्मिलित कर दिया गया,जो लघु उद्योगों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए सक्षम घोषित किए
गए थे। उन्हें यह शक्ति भी प्राप्त थी कि वे यह देखें कि पंचवर्षीय योजना को लघु उद्योगों पर पूरी तरह से लागू किया गया है अथवा नहीं। प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करना व औद्योगिक मशीनरी का विकास करना था। निःसन्देह इस क्षेत्र में इस योजना को महान् सफलता प्राप्त हुई । कोयला, लोहा और पेट्रोलियम पदार्थों के कच्चे माल का उत्पादन पहले से दुगुना हो गया था और बिजली की वस्तुओं का उत्पादन तिगुना हो गया। विशाल कारखानों, ऑटोमोबाइल्स आदि के क्षेत्र में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए।

(iii) शिक्षा की उन्नति - 

स्टालिन ने 16 वर्ष की आयु तक के सब बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की घोषणा की। सभी स्कूलों पर साम्यवादियों का कठोर नियन्त्रण स्थापित किया गया। स्टालिन की सरकार को अशिक्षा को दूर करने में विशेष सफलता प्राप्त हुई। सन् 1914 में रूस की लगभग 73% जनता अशिक्षित थी, किन्तु सन् 1932 में वहाँ केवल 9% लोग ही अशिक्षित रह गए थे। योजना का उद्देश्य केवल अशिक्षा को दूर करना ही नहीं था, अपितु लोगों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करना भी था। अनेक ऐसी तकनीकी संस्थाओं की स्थापना की गई जो छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करती थीं। जो इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, उनके लिए भी सरकार ने व्यवस्था की थी। सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर प्रौढ़ शिक्षा की भी व्यवस्था की गई थी।

(iv) धर्म - 

मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार धर्म लोगों के लिए एक नशा है व एक साधन है, जिसके द्वारा व्यक्ति को वर्तमान बुराइयों से अलग होकर आगामी संसार में पुरस्कार प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है । इसलिए उसने धर्म को हतोत्साहित करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। पादरियों को मतदान का अधिकार प्रदान नहीं किया गया था। जब उन्होंने विद्रोह करने का प्रयास किया, तो उन्हें बन्दी बना लिया गया। उनमें से अधिकांश को मृत्युदण्ड दिया गया। चर्च की इमारतों को अजायबघरों और क्लबों में परिवर्तित कर दिया गया। साम्यवादी दल के सदस्यों को प्रार्थना के लिए भी चर्च में जाने की आज्ञा नहीं थी। किन्तु सब व्यक्तियों को अपने-अपने धर्म का पालन करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी।
इस प्रकार प्रथम पंचवर्षीय योजना रूस के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कदम था। इतिहासकार बेन्स ने लिखा है, "इस सबका अवश्यम्भावी परिणाम यह हुआ कि निर्धारित उत्पादन की कीमत में कमी, श्रम में अत्यन्त कुशलता और उत्पादित वस्तुओं में सुधार के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका।"

द्वितीय पंचवर्षीय योजना - 

सन् 1933 से 1937 की योजना अधिक बड़ी और युक्तिसंगत थी। इस योजना के अन्तर्गत सर्वाधिक बल उत्पादित वस्तु की किस्म पर दिया गया, जिसकी ओर प्रथम पंचवर्षीय योजना में कोई ध्यान नहीं दिया गया था। सरकार ने उन वस्तुओं के उत्पादन की ओर विशेष ध्यान दिया जिनकी सर्वाधिक आवश्यकता गरीब व्यक्तियों को पड़ती थी। इस समय कच्चे माल के उत्पादन में भी पर्याप्त वृद्धि हुई । कृषि के क्षेत्रों में सामूहिक खेती को विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया गया। किसानों को अधिकार प्रदान किया गया था कि वे सरकार के हिस्से का अनाज कर के रूप में जमा करने के बाद शेष अनाज जहाँ चाहें स्वतन्त्र बाजार में बेच दें। औद्योगिक प्रगति सराहनीय रही। भारी उद्योगों का विकास हुआ, किन्तु हिटलर के अभ्युदय एवं युद्ध के भय से उपभोक्ता सामग्री के उत्पादन में अधिक वृद्धि नहीं की जा सकी। भारी उद्योग और शस्त्र निर्माण में विनियोग की मात्रा बढ़ानी पड़ी।

तृतीय पंचवर्षीय योजना - 

तृतीय पंचवर्षीय योजना जनवरी, 1938 में प्रारम्भ हुई। यह योजना एक नवीन लक्ष्य प्राप्त करना चाहती थी। यद्यपि पुरानी योजनाओं से उत्पादन में वृद्धि हुई थी और सोवियत यूनियन विश्व के प्रमुख देशों में से एक गिना जाने लगा था, तथापि जनगणना के अनुसार प्रति व्यक्ति उत्पादन के सन्दर्भ में रूस अब भी ब्रिटेन,जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पिछड़ा हुआ था। सन् 1941 में जब जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया, तो शत्रु का सामना करने की दृष्टि से यह योजना युद्ध की सामग्री योजना में परिवर्तित हो गई।

सन् 1936 का संविधान - 

सन् 1936 में एक नया संविधान तैयार किया गया, जो 'स्टालिन संविधान' कहलाता था। सन् 1936 में सोवियत रूस में संघ राज्य स्थापित किया गया। इसे 'समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ' कहा गया। उस समय इसमें कई गणतन्त्र शामिल थे। संघीय संसद में 2 सदनों की व्यवस्था की गईसंघीय परिषद् (Council of Union) और राष्ट्रीयताओं की परिषद (Council of Nationalities)। संघीय परिषद् में जनता के प्रतिनिधि और राष्ट्रीयताओं की परिषद् में जातियों, राष्ट्रों व राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। सोवियत संघ में सम्मिलित राज्यों के प्रतिनिधि जनसंख्या के अनुपात के आधार पर चुने जाते थे। राष्ट्रीय परिषद् में 3 लाख जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुना जाता था। निर्वाचन क्षेत्र एक सदस्यीय बनाए गए। दोनों सदन मिलकर सुप्रीम काउन्सिल कहलाई। सुप्रीम काउन्सिल की कार्यकारिणी 'प्रेसीडियम' (Presidium) कहलाई। सुप्रीम काउन्सिल की एक अन्य समिति को लोक प्रबन्ध परिचय कहते हैं। 
इसके अतिरिक्त मन्त्रिमण्डल के हाथों में शासन की सत्ता सौंपी गई। इस मन्त्रिमण्डल को संसद के प्रति और संसद का अधिवेशन न होने की स्थिति में प्रेसीडियम के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। रूस में न्यायिक व्यवस्था के लिए संघीय सर्वोच्च न्यायालय .का स्थान सबसे ऊँचा रखा गया । संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए । यद्यपि नागरिकों को प्रजातान्त्रिक अधिकार मिले, पर ये केवल दिखावे के लिए ही थे। रूस में साम्यवादी दल का कठोर नियन्त्रण था, जिसके खिलाफ कोई आवाज भी नहीं उठा सकता था।
इस प्रकार स्टालिन की सुदृढ़ गृह नीति के माध्यम से साम्यवादी दल ने इतनी जल्दी और इतनी अधिक उन्नति की कि वह यूरोप में नहीं, वरन् सम्पूर्ण विश्व की महान् शक्तियों में से एक हो गया।



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