शीत युद्ध के कारण और परिणाम
B.A. III, Political Science III
प्रश्न 11. शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं ? इसके उदय के कारण बताइए तथा अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति पर शीत युद्ध के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा '' शीत युद्ध के उद्देश्य बताइए तथा इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा '' शीत युद्धोत्तर काल में वर्तमान विश्व व्यवस्था का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर - द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व का शक्ति सन्तुलन बिगड़ गया। जर्मनी, जापान और इटली की पराजय के बाद यूरोप के राष्ट्र दुर्बल हो गए। ब्रिटेन तथा फ्रांस की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई और वे विजयी होते हुए भी द्वितीय श्रेणी के राष्ट्र बनकर रह गए। अब रूस तथा अमेरिका विश्व की प्रमुख शक्तियों के रूप में उभरे। दोनों ही विश्व में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे, अत: उनमें दिन-प्रतिदिन प्रतिद्वन्द्विता बढ़ती गई। फलतः विश्व दो शिविरों में बँट गया। एक शिविर साम्यवादी देशों का था, जिसका नेतृत्व रूस कर रहा था तथा दसरा शिविर पश्चिम के पूँजीवादी देशों का था, जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था।
नव-स्वतन्त्र राष्ट्र अथवा अन्य दुर्बल राष्ट्र इन दोनों में से किसी-न-किसी एक को अपना नेता मान रहे थे और उन्हीं के राजनीतिक निर्देशों के अनुसार अपने विभिन्न राष्ट्रों के विकास कार्या में संलग्न थे। ये दोनों महाशक्तियाँ आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से इतनी अधिक शक्तिशाली हो गई कि एक या कई राष्ट्र भी मिलकर इनका सामना नहीं कर सकते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये दोनों शक्ति गट अपने प्रभाव में लगातार वृद्धि करते रहे। इससे मतभेद, तनाव और बैर-विरोध की वृद्धि हुई। विश्वम राजनीतिक तनाव युद्ध जैसी स्थिति में पहंच चका था किन्तु वास्तविक युद्ध से डरते हैं। अत. युद्ध जैसी बनी हुई इस तनावपूर्ण स्थिति को शीत युद्ध कहत है।
शीत युद्ध का अर्थ एवं प्रकृति
द्वितीय विश्व युद्ध से पहले सोवियत संघ और अमेरिका स्वार्थवश एक हो गए थे, परन्तु बाद में दोनों के मध्य मतभेद गम्भीर रूप धारण करने लगे। विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं और अपने-अपने स्वार्थों के कारण मतभेदों ने विश्व में एक गहरा तनाव उत्पन्न कर दिया। इस तनाव व युद्ध की स्थिति को ही शीत युद्ध की संज्ञा दी जाती है। यह एक प्रकार का वाक युद्ध है.जिसे पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो तथा प्रचार साधनों द्वारा लड़ा जाता है। यह एक प्रचारात्मक युद्ध है, जिसमें एक महाशक्ति दूसरे के खिलाफ घृणित प्रचार का सहारा लेती है। यह एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध भी है।
प्रश्न 10 विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ? इसको निर्धारित करने तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
शीत युद्ध अस्त्र-शस्त्रों से न लडा जाकर अन्य साधनों से लड़ा जाता है
। इस युद्ध में किसी भी पक्ष के एक व्यक्ति की हत्या नहीं होती,परन्तु इस युद्ध के द्वारा भयानक सर्वनाश और
लाखों हत्याओं की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है । शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है
जिसका रणक्षेत्रमनुष्य का मस्तिष्क है । यह मनुष्यों के मन से लड़ा जाने वाला युद्ध
है,अतएव इसे 'स्नायु युद्ध' भी कहा जा सकता है । यह विभिन्न देशों के सम्बन्धों को
घृणा और वैमनस्य से गन्दा कर देता है। ___
पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “शीत युद्ध पुरातन शक्ति सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप
है ! यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।" _
डी. एफ. फ्लेमिंग के अनुसार, “शीत युद्ध शक्ति-संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम
है। दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है। दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों
का परिणाम है। विरोधी चिन्तन पद्धतियों और संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति
है, जिसका अनुपात समय और
परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहा है।"
वस्तुतः शीत युद्ध विश्व को दो विरोधी विचारधाराओं,दो पद्धतियों,दो गुटों तथा दो पृथक् चिन्तन सारणियों से उत्पन्न तनावों का परिणाम था। ये विरोधी विचारधाराएँ पँजीवादी तथा साम्यवादी हैं। इनमें से एक जनतन्त्र का सहारा लेती है, तो दूसरी सर्वहारा वर्ग की तानाशाही का । ये गुट क्रमशः नाटो तथा वारसा पैक्ट के समर्थक थे। इनका संचालन अमेरिका के विदेश मन्त्री जॉन फास्टर डलेस तथा सोवियत रूस के अधिनायक जोसेफ स्टालिन द्वारा किया जाता था। वस्तुत: शीत युद्ध को हम युद्ध न कहकर युद्ध का वातावरण कह सकते हैं । इसका मुख्य साधन उग्र या नरम सभी प्रकार के कूटनीतिक दाँवपेंच खेलना है तथा दूसरे पक्ष को कमजोर बनाने का प्रयास करना है। |
शीत युद्ध का उद्देश्य
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर विश्व-शान्ति एवं सुरक्षा
की नितान्त आवश्यकता थी। आपसी झगड़े न हों और यदि हों तो उन्हें शान्तिपूर्वक निपटाया
जाए, इस दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र
संघ की स्थापना की गई। इससे सम्पूर्ण विश्व में एक आशा की लहर दौड़ गई। किन्तु आशा
की यह मधुर कामना बहुत दिनों तक नहीं टिकी और युद्धकालीन मित्र राष्ट्रों के दो गुट
बन गए । उनमें परस्पर द्वेष, वैमनस्य
एवं अपने प्रभाव-वर्धन के लिए होड़ लग गई। इनमें एक गुट का अगुआ था अमेरिका और दूसरे
गुट का नेता बना सोवियत रूस।
वस्तुतः द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे के विरोधी थे, क्योंकि दोनों का जीवन-दर्शन अलग-अलग था। अमेरिका लोकतन्त्र और व्यक्तिवाद को बढ़ावा देता था, जबकि सोवियत संघ साम्यवाद को। किन्तु परिस्थितिवश युद्ध में दोनों को फासिस्टवाद के विरुद्ध एकजुट होकर युद्ध करना पड़ा, अन्यथा सम्पूर्ण यूरोप ही नहीं सम्पूर्ण विश्व फासीवाद की चपेट में आ जाता। युद्धोन्मादी जर्मनी और इटली फासिस्ट ताकतों के पतन के बाद ही पश्चिमी शक्तियों और रूस की अस्थायी मैत्री में दरार पड़नी प्रारम्भ हो गई। विश्व समस्याओं और विजित राष्ट्रों को लेकर उनमें गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गए। दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर कीचड़ उछालने लगे। फलतः वैमनस्य बढ़ता गया और बैर-विरोध इतना बढ़ गया कि विश्व दो गुटों में बँट गया। दोनों गुटों के पृथक्-पृथक् चौधरी क्रमश: अमेरिका तथा सोवियत संघ हुए। इस प्रकार शीत युद्ध का उदय हुआ। पारस्परिक अविश्वास के वातावरण में दोनों चौधरियों ने अपने-अपने क्षेत्रीय सैनिक संगठन बनाए और एक-दूसरे को कूटनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा सैनिक मोर्चे पर पराजित करने का प्रयास किया। इस प्रकार दूसरे विश्व युद्ध के उपरान्त ही दो महाशक्तियों में शीत युद्ध प्रारम्भ हो गया।
शीत युद्ध के उदय के कारण
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीत युद्ध के उदय के निम्नलिखित
कारण थे
(1) ऐतिहासिक कारण -
सामान्यतः शीत युद्ध की उत्पत्ति का कारण सन् 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति मानी जाती है। बोल्शेविक क्रान्ति के पश्चात् रूस में साम्यवाद का उदय हुआ और पश्चिमी राष्ट्र इसके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर शंकित होने लगे। उन्होंने इसे विश्व में फैलने से रोकने के लिए इसको समाप्त करने का विचार बना लिया तथा हिटलर को रूस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया गया।
(2) द्वितीय मोर्चे का प्रश्न -
द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर द्वारा सावि अत्यधिक हानि पहुँचाए जाने पर स्टालिन ने मित्र राष्ट्रों से अनुरोध किया कि व के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोल दें,लेकिन रूजवेल्ट और चर्चिल काफी समय तक टालते रहे । इससे स्टालिन की समझ में यह बात आ गई कि पश्चिमी देश रूस को नष्ट हुआ देखना चाहते हैं।
(3) युद्धोत्तर उद्देश्य में अन्तर -
सोवियत संघ और पश्चिमी देशों के युद्धोपरान्त उद्देश्यों में भी अन्तर था । भविष्य में जर्मनी से अपनी सुरक्षा के लिए सोवियत संघ यूरोप के देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाना चाहता था, लेकिन पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र को सीमित करने के लिए कटिबद्ध थे।
(4) सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते की अवहेलना -
सन् 1945 में याल्टा सम्मेलन में स्टालिन, रूजवेल्ट और चर्चिल ने कुछ समझौते किए थे, लेकिन स्टालिन ने पोलैण्ड में अपनी संरक्षित लूबनिन सरकार लादने का प्रयत्न किया। उसने चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया, हंगरी तथा रूमानिया से युद्ध-विराम समझौते और याल्टा और पोट्सडाम सन्धियों का उल्लंघन किया और मित्र राष्ट्रों से सहयोग करने से इन्कार कर दिया।
(5) रूस द्वारा बाल्कन समझौते का अतिक्रमण -
सोवियत संघ ने सन् 1944 में चर्चिल के पूर्वी यूरोप के विभाजन को स्वीकार कर लिया था। किन्तु युद्ध की समाप्ति पर सोवियत रूस ने समझौते का अतिक्रमण करते हुए साम्यवादी दलों को खुलकर सहायता दी और यहाँ सर्वहारा की तानाशाही स्थापित कर दी गई। इससे पश्चिमी देशों का नाराज होना स्वाभाविक था।
(6) ईरान से सोवियत सेना का न हटाया जाना —
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत सेना ने ब्रिटेन की सहमति से उत्तरी ईरान पर अधिकार जमा लिया था। युद्धोपरान्त सोवियत संघ ने वहाँ से सेना हटाने से इन्कार कर दिया। बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव के फलस्वरूप ही सोवियत संघ ने वहाँ से सेनाएँ हटाईं। इससे भी पश्चिमी राष्ट्र नाराज हो गए।
(7) यूनान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप –
सन् 1944 में एक समझौते के
द्वारा यूनान.ब्रिटेन के अधिकार क्षेत्र में स्वीकार कर लिया गया था, परन्तु बाद में सोवियत संघ के प्रोत्साहन से
पड़ोसी साम्यवादी राष्ट्रों-अल्बानिया, यूगोस्लाविया एवं बुल्गारिया आदि द्वारा यूनानी कम्युनिस्ट छापामारों को परम्परागत
राजतन्त्री शासन उखाड़ फेंकने के लिए सहायता दी जाने लगी।
(8) टर्की पर सोवियत संघ का दबाव -
युद्ध के तुरन्त बाद सोवियत संघनेरी के कुछ प्रदेश और वास्फोरस में नाविक अड्डा बनाने का अधिकार देने के लिए दबाव डालना शुरू किया, परन्तु पश्चिमी देश इसके विरुद्ध थे।
(9) परमाणु बम का आविष्कार -
शीत युद्ध के सूत्रपात का एक अन्य कारण परमाणु बम का आविष्कार था। अमेरिका और ब्रिटेन को परमाणु बम पर अभिमान हो गया था। सोवियत संघ से परमाणु बम के रहस्य को छुपाया गया। अतः इस कारण भी दोनों पक्षों में मनोमालिन्य की स्थिति उत्पन्न हो गई।
(10) सोवियत संघ द्वारा अमेरिका विरोधी प्रचार -
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पूर्व से ही सोवियत संघ के प्रमुख समाचार-पत्रों में अमेरिका विरोधी लेख प्रकाशित होने लगे। अमेरिका ने इस प्रचार अभियान का विरोध किया।
(11) पश्चिम की सोवियत विरोधी नीति और प्रचार अभियान -
पश्चिम की सोवियत विरोधी नीति ने जलती आग में घी का कार्य किया। 18 अगस्त, 1945 को अमेरिका के राज्य सचिव और ब्रिटेन के विदेश मन्त्री ने अपनी विज्ञप्ति में कहा कि "हमें तानाशाही के एक स्वरूप के स्थान पर उसके दूसरे स्वरूप के संस्थापन को रोकना है।" अत: सोवियत संघ एवं अमेरिका में मतभेद और उग्र हो गए।
(12) बलिन की नाकेबन्दी -
सोवियत संघ द्वारा लन्दन प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए बलिन की नाकेबन्दी कर दी गई। इसे पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद् में रखा और शान्ति के लिए घातक बताया।।
(13) सोवियत संघ द्वारा वीटो का बार-बार प्रयोग -
सोवियत संघ ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रत्येक प्रस्ताव को निरस्त करने के लिए बार-बार वीटो का प्रयोग किया। वीटो के इस दुरुपयोग के कारण पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ की आलोचना करने लगे।
(14) सोवियत संघ की लैण्ड -
लीज सहायता बन्द करना-लैण्ड-लीज एक्ट के अन्तर्गत सोवियत संघ को अमेरिका द्वारा दी जा रही अल्प सहायता राष्ट्रपति टुमेन द्वारा बन्द किए जाने पर सोवियत संघ असन्तुष्ट हो गया। इससे भी शीत युद्ध को बढ़ावा मिला।
(15) सैद्धान्तिक व वैचारिक संघर्ष -
यह एक वैचारिक संघर्ष था, क्योंकि अमेरिका एक पूँजीवादी राष्ट्र है, जबकि सोवियत संघ साम्यवादी 'विश्व के मजदूरों एक हो जाओ' की साम्यवादी घोषणा 'बुर्जुआ पूँजीवादी व्यवस्था' को नष्ट करने का खुला ऐलान था।
(16) शक्ति संघर्ष -
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् दो शक्तिशाली राष्ट्रों का उदय हुआ-अमेरिका और सोवियत संघ। इन दोनों राष्ट्रों में विश्व में अपने प्रभाव को कायम रखने के लिए शक्ति संघर्ष अनिवार्य था। मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति संघर्ष की राजनीति है।"
(17) हित संघर्ष -
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनेक मुद्दों पर अमेरिका
और सोवियंत संघ के हित एक-दूसरे के विरुद्ध थे और दोनों अपने स्वाथों के लिए संघर्षरत
थे।
उपर्युक्त सभी कारणों के फलस्वरूप शीत युद्ध की भावना का विस्तार हुआ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के प्रभाव
अथवा
शीत युद्ध के परिणाम
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते
(1) भय एवं सन्देह के वातावरण को जन्म देना -
शीत युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भय,घृणा, परस्पर अविश्वास के वातावरण को न केवल जन्म दिया,वरन् इसे निरन्तर बनाए रखा। यहाँ तक कि देतान्त के युग में भी यह मनोवृत्ति बनी रही।
(2) विश्व का दो विरोधी गुटों में विभाजित होना -
सन् 1945 के बाद द्विध्रुवीकरण की राजनीति शीत युद्ध की
प्रमुख देन है । विश्व की सभी समस्याओं को दो गुटों के आधार पर हल करने का असफल प्रयास
किया गया, जिससे समस्याओं ने गम्भीर
रूप धारण किया; जैसे-कोरिया विवाद,
बर्लिन प्रश्न, वियतनाम समस्या, अरब-इजरायल संघर्ष आदि।
(3) सैनिक गठबन्धनों को राजनीतिक मान्यता -
शीत युद्ध ने सैनिक मनोवत्ति को पुख्ता किया, जिसके फलस्वरूप नाटो,सेण्टो,सीटो तथा वारसा सन्धि जैसे सैनिक गठबन्धनों का जन्म हुआ। इससे न केवल शीत युद्ध में उग्रता आई.वरन निःशस्त्रीकरण समस्या और भी अधिक जटिल हो गई।
(4) संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में बाधा -
शीत युद्ध ने इस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन को पंगु बनाया है। शीत युद्ध के कारण यह संस्था महाशक्तियों के हितों की पोषक बनकर रह गई तथा यह अपने आदशों एवं लक्ष्यों से भटक गई। परस्पर मनोमालिन्यता के कारण वीटो शक्ति का अत्यधिक दुरुपयोग हुआ। फलतः चार्टर में उपयुक्त संशोधन भी नहीं हो सके।
(5) आण्विक युद्ध की सम्भावना का भय -
शीत युद्ध के वातावरण ने महाशक्तियों को आणविक शस्त्रों की होड़ में लगा दिया, जिससे विश्व के देशों को आण्विक आतंक मानसिक रूप से परेशान करने लगा। आणविक शस्त्रों के परिप्रेक्ष्य में परम्परागत राजनीतिक व्यवस्था की संरचना ही बदल गई।
(6) मानवीय कल्याण कार्यक्रमों की उपेक्षा -
शीत युद्ध के फलस्वरूप विश्व की राजनीति दो भीमाकार देशों के मध्य केन्द्रित हो गई तथा मानव-कल्याण से सम्बन्धित कई कार्य ठप्प हो गए। यह शीत युद्ध का ही प्रभाव था कि अमेरिका यूनेस्को' से अलग हो गया।
(7) शीत युद्ध के सकारात्मक परिणाम -
शीत युद्ध ने विश्व राजनीति को सकारात्मक दृष्टिकोण से भी प्रभावित किया है; जैसे
(i) शीत युद्ध के प्रभाव के कारण ही विश्व की राजनीति में शक्ति सन्तुलन स्थापित हुआ।
(ii) इससे राष्ट्रों की विदेश नीति में यथार्थवादी दृष्टिकोण
का आविर्भाव हुआ।
(ii) शीत युद्ध के कारण औद्योगिक, तकनीकी,आणविक आदि क्षेत्रों में विशेष प्रगति हुई।
(iv) शीत युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्षता
के सिद्धान्त को मान्यता प्राप्त हुई।
शीत युद्ध की समाप्ति और एकध्रुवीय विश्व
अथवा
शीत युद्ध की समाप्ति और बदलता राजनीतिक परिदृश्य
सन् 1990 में सोवियत संघ, जो कि 15 गणराज्यों से मिलकर बना था, उसके विखर जाने के बाद विश्व की राजनीति में अमेरिका का वर्चस्व पूरी तरह स्थापित हो गया है। अब एकमात्र महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका ही रह गया है. अतः अब शीत युद्ध के दिन समाप्त हो गए हैं। रूस ने अमेरिका के साथ सामरिक क्षमता की समदक्षता का दावा पूरी तरह छोड़ दिया है। विनाशकारी अस्त्रों को सीमित करने के मामले में दोनों देशों के बीच बार-बार जो गतिरोध पैदा हो रहा था,उसका कारण यही था कि हथियारों को कम करने की इच्छा के बावजूद दोनों में से कोई यह नहीं चाहता था कि उसकी स्थिति दूसरे से कमजोर हो । सोवियत संघ के टूटने के बाद उसके उत्तराधिकारी रूस ने पूरी तरह से अमेरिका के सामने आत्म-समर्पण कर दिया है।
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका विश्व की सर्वोच्च शक्ति बन गया है। किसी प्रबल प्रतिरोध के न होने पर कभी स्वतन्त्र समझे जाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय संगठन-संयुक्त राष्ट्र संघ, सुरक्षा परिषद्, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि आज अमेरिका के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए हैं। विश्व व्यापार संगठन तथा
अंकटाड जैसे संगठन भी अमेरिकी नीतियों के हितों के संरक्षण के लिए कार्य करते दिखाई
पड़ते हैं। विश्व स्तर पर जो भी आर्थिक नीतियाँ निर्धारित हो रही हैं,उन पर अमेरिकी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे
रहा है। यह अमेरिका की सर्वोच्च शक्ति का ही परिणाम है कि वह अपने सुपर-301 कानून के तहत किसी भी देश को लेकर उसके
विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने की धमकी दे रहा है। यदि विश्व की राजनीति पर दृष्टिपात
करें, तो यही प्रतीत होता है कि
आज विश्व पर अमेरिका का वर्चस्व पूरी तरह स्थापित हो गया है। रूस तो पूरी तरह से अमेरिका
के सामने आत्म-समर्पण कर ही चुका है और अमेरिका ने भी उसे अपना सबसे प्रिय देश माना
है। इसके साथ ही अमेरिका समस्त विश्व पर अपनी सैनिक पकड़ मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील
है। प्रशान्त महासागर, अटलाण्टिक
महासागर व फारस की खाड़ी में ही नहीं अरब सागर व हिन्द महासागर में भी उसने अपनी नौसैनिक
उपस्थिति बढ़ाने का निश्चय कर लिया है।
The perfect answer i have ever received.... 👏👏👏
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद,
Deletethanks for this best answer its help me a lot for my exams
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
Deleteआपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे ,
Ji sir thank you very much sir
DeleteVery nice information
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
Deleteआपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे ,
Post cold war के बाद अमेरिका, रशिया के विदेश नीति भी बताए
DeleteThanks for sharing
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
Deleteआपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे ,
Thanks for answer
ReplyDeleteIt's very important in this time becoz now we have zero time to search or right something so thank you so much
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
Deleteआपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे ,
This time it is very helpful for me 🙂
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
Deleteआपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे ,
The perfect answer it's help me a lot for my exam
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद , आपसे अनुरोध है कि , इस वैबसाइट को अपने सहपाठियों के साथ , share करे
Deleteअद्भुत लेखनी सर
ReplyDeleteतनिक सा भी किताब की भाषा नहीं है
Good Explain
ReplyDeleteBhai sheet yudh ke ant ke karad or paridam nahi btain hai
Thanks_For Lot of Help🎯
ReplyDeleteThank you so much sir/ ma'am
ReplyDeleteAap ke es notes ki vjh se ye tought topics smjhna aasan ho jata h thankyou
ReplyDeleteGood sir
ReplyDeleteVery helpful ✨👏
ReplyDeleteThank you sir
ReplyDeleteUhh
ReplyDeleteDo you also have an app?? Cuz this content is indeed very useful
ReplyDeleteWow, very nice explanation it's very useful for me.
ReplyDeletethank you sir
ReplyDelete