विदेश नीति : अर्थ एवं परिभाषा

 B.A. III, Political Science III  

प्रश्न 10 विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ? इसको निर्धारित करने तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
'' विदेश नीति का अर्थ स्पष्ट कीजिए। विदेश नीति के आधारभूत निर्धारक की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- विदेश नीति : अर्थ एवं परिभाषाएँ

विदेश नीति के अन्तर्गत वे सभी दृष्टिकोण और कार्य सम्मिलित हैं जो एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों के प्रति करता है। आधुनिक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ अनेक प्रकार के सम्बन्ध स्थापित करते हैं, जो औपचारिक या अनोपचारिक, सरकारी या गैर-सरकारी, नियोजित या अनियोजित हो सकते हैं। लेकिन विदेश नीति से इन सभी सम्बन्धों और उनसे प्रेरित व्यवहारों का कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहीं होता क्योंकि विदेश नीति के अन्तर्गत केवल उन्हीं सम्बन्धों की गणना होती है जो एक राष्ट्र सरकार दूसरे राष्ट्र के साथ सरकारी स्तर पर स्थापित करती है। गैर-सरकारी स्तर पर स्थापित किए गए सम्बन्धों को विदेश नीति में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है।

जॉर्ज मोडेल्सकी के अनुसार, “विदेश नीति राज्य की गतिविधियों का वह व्यवस्थित और विकसित रूप है जिसके माध्यम से वे राज्य दूसरे राज्यों के व्यवहार को अपने अनुकूल बनाने का अथवा (यदि ऐसा सम्भव नहीं हो तो) अपने व्यवहार को अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति के अनुरूप ढालने का प्रयल करते हैं।"

videsh neeti arth evan paribhaasha

नॉर्मन एल. हिल के शब्दों में, विदेश नीति दूसरे राष्ट्रों के सामने अपने हितों के संवर्द्धन के लिए किए जाने वाले एक राष्ट के प्रयासों का सार है।"

चार्ल्स श्लाइचर के शब्दों में, अपने व्यापक अर्थ में विदेश नीति उन उद्देश्यों, योजनाओं तथा क्रियाओं का सामूहिक रूप है जो एक राज्य अपने बाह्य सम्बन्धों को संचालित करने के लिए करता है।

रोडी, एण्डरसन और क्रिस्टल के अनुसार विदेश नीति के अन्तर्गत ऐसे सामान्य सिद्धान्तों का निर्धारण और कार्यान्वयन सम्मिलित है जो किसी राज्य के व्यवहार को उस समय प्रभावित करते हैं जब वह अपने महत्त्वपर्ण हितों की रक्षा अथवा सवद्धन के लिए दूसरे राज्यों से बातचीत चलाता है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विदेश नीति राज्यों की गतिविधियों का एक व्यवस्थित रूप है. जिनका विकास दीर्घकालीन अनभव के आधार पर राज्य पर किया जाता है और जिसका उद्देश्य दसरे राज्यों के व्यवहार अथवा आचरण हितों के अनुरूप परिवर्तित करना है और यदि यह सम्भव न हो, तो अन्तराष्ट्राय परिस्थितियों का आकलन करते हुए स्वयं अपने व्यवहार में ऐसा परिवर्तन लाना जिसस अन्य राज्यों के व्यवहार अथवा क्रियाकलापों के साथ तालमेल बैठ सके,

इस प्रकार विदेश नीति एक गतिशील तत्त्व है जिसका समय और आवश्यकता के अनुसार तथा परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन संवर्द्धन होता रहता है। एक राज्य दूसरे राज्यों के साथ अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए व्यवहार के सामान्य सिद्धान्तो का निर्धारण करता है और विदेश नीति बहत कछ इन सामान्य सिद्धान्तों का समुच्चय है। विदेश नीति में केवल सामान्य सिद्धान्त ही सम्मिलित नहीं हैं, वरन् इस बात का भी सक्रिय विचार सन्निहित रहता है कि इन सामान्य सिद्धान्तों को किस प्रकार अथवा किस विधि से व्यवहार में लाया जाए। यह विधि सुनिश्चित, स्थायी और स्थिर नहीं होती अपित राष्ट्रीय हितों और लक्ष्यों के अनुरूप आवश्यकतानुसार परिवर्तित होती रहती है।

विदेश नीति के आधारभूत निर्धारक तत्त्व

विदेश नीति के आधारभूत निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित है--

(1) जनसंख्या -

जनसंख्या विदेश नीति का एक प्रमुख तत्त्व है। डेविड वाइटल के अनुसार, “किसी देश के क्षेत्रफल और उसकी जनसंख्या के आधार पर यह निश्चित किया जा सकता है कि वह देश महाशक्ति है या छोटा राष्ट्र । जनसंख्या के महत्त्व का मूल्यांकन दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है-संख्यात्मक और, गुणात्मक । जनसंख्या की दृष्टि से चीन और भारत विश्व के सबसे बड़े देश हैं,अत: वे विशाल स्थल सेना रखने में सक्षम हैं। वे विशाल मानव स्रोत को गुणात्मक दृष्टि से भी मजबूत कर सकते हैं। जनसंख्या के गुणात्मक पहलू का भी विशिष्ट महत्त्व है। जनता का तकनीकी ज्ञान, उसकी कूटनीतिक क्षमता, संकटों को धैर्यपूर्वक सहने की सामर्थ्य तथा राष्ट्रीय एकता का विदेश नीति-निर्धारण और संचालन पर निर्णायक प्रभाव पड़ता है। गुणात्मक विशेषता के बल पर ही जापान, जर्मनी और बिटेन जैसे भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से छोटे देश भी सम्पूर्ण विश्व को आश्चर्यजनक ढंग से प्रभावित कर सके हैं। यदि मात्रात्मक दृष्टि से बड़ी जनसंख्या वाला देश अपने देशवासियों का गुणात्मक स्तर भी समुन्नत कर ले, तो उस देश की विदेश नीति अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर पूरी तरह छा सकती है।

(2) भौगोलिक स्थिति-

किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति विदेश नीति के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह स्थायी तत्व है, जिसमें अधिकांशतया परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिए, भारत की भौगोलिक स्थिति रोगी कि उसे स्थल सेना, नौसेना और वायु सेना, तीनों का अपार व्यय वहन करना । नेपाल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसे नौसेना रखने की आवश्यकता ही नहीं है,क्योंकि उसकी कोई भी सीमा समुद्र से लगी हुई नहीं है। इस प्रकार कभी-कभी किसी देश को भौगोलिक स्थिति से उत्पन्न समस्याओं का सामना करना पडता है.तो कभी-कभी किसी देश को उससे उत्पन्न फायदे भी अर्जित होते है। अन भौगोलिक स्थिति विदेश नीति-निर्धारण का एक प्रमुख तत्त्व है, जिसकी विश्व का कोई भी राष्ट्र उपेक्षा नहीं कर सकता।

(3) प्राकृतिक सम्पदा -

प्राकृतिक सम्पदा भी विदेश नीति-निर्धारण का एक निश्चित और स्थायी तत्त्व है । लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें परिवर्तन ही न हो सके। नवीन अन्वेषण और तकनीकी ज्ञान के बल पर एक देश के प्राकृतिक स्रोतों का विकास किया जा सकता है । प्राकृतिक संसाधनों का विपुल भण्डार होने के कारण ही अमेरिका में इतनी सामर्थ्य है कि वह अपना और दूसरों का निर्वाह कर सके और इसीलिए उसकी विदेश नीति में विदेशी सहायता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राकतिक सम्पदा के बल पर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका इतना सबल है कि वह सभी खतरों का सामना कर सकता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण उदाहरण मध्य पूर्व के देशों का है, जो खनिज तेल जैसी महत्त्वपूर्ण वस्तु के बल पर विश्व की बड़ी शक्तियों की अर्थव्यवस्था तक को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका और अन्य बड़ी शक्तियाँ मध्य पूर्व के देशों से अच्छे सम्बन्ध कायम करने की कोशिश करती हैं। इस प्रकार विदेश नीति-निर्धारण में प्राकृतिक सम्पदा की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

(4) औद्योगिक स्रोत -

विदेश नीति-निर्धारण में औद्योगिक स्रोत और क्षमता एक प्रभावशाली तत्त्व है। विज्ञान और तकनीकी के इस आधुनिक युग में औद्योगीकरण के चरण तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। दोनों ही विश्व युद्धों में औद्योगिक क्षमता ने जय-पराजय में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। अपनी विपुल औद्योगिक क्षमता के बल पर ही संयुक्त राज्य अमेरिका आज विश्व का सर्वाधिक सम्पन्न और शक्तिशाली राष्ट्र बना हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैण्ड, इटली, कोरिया, जर्मनी और जापान के अनेक देशों में उद्योग-धन्धे स्थापित हैं, जिनसे वे अरबों डॉलर प्रतिवर्ष कमाने के साथ-साथ उन देशों के आन्तरिक घटनाक्रम को भी अपने पक्ष में बनाते हैं। इस प्रकार औद्योगिक दष्टि से विकसित देश अन्य देशों को औद्योगिक सहायता प्रदान कर उनकी विदेश नीति को प्रभावित करते हैं।

(5) सैनिक शक्ति

वर्तमान समय में विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच शस्त्रों का होड़ दिनोंदिन बढ़ रही है। शस्त्रीकरण की इस प्रवृत्ति का मूल कारण राष्ट्रीय सुरक्षा और विश्व में शक्तिशाली राष्ट के रूप में उभरने की महत्त्वाकांक्षा है । द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अमेरिका और सोवियत संघ विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र मान गए। इसका सबसे बड़ा कारण दोनों देशों की अपार सैनिक शक्ति रही। विश्व के अन्य राष्ट्र इन दोनों महाशक्तियों का उनकी सैनिक शक्ति के कारण सम्मान करते है  आइनिस क्लॉड ने शक्ति के अपने विश्लेषण में मख्य विषय सैनिक पहलू को ही माना है। इससे स्पष्ट है कि विदेश नीति-निर्धारण में सैनिक शक्ति का अत्यन्त महत्त्व है।

(6) विचारधारा -

विदेश नीति-निर्धारण में विचारधारा की प्रमुख भूमिका होती है। द्वितीय विश्व यद्ध के उपरान्त अमेरिका ने पँजीवादी विचारधारा का नेतृत्व किया और सोवियत संघ ने साम्यवादी विचारधारा का। दोनों महाशक्तियों ने विश्वकदूसर देशों में अपनी-अपनी विचारधारा फैलाने की नीति अपनाई । इसी प्रकार दूसरे दश भी विदेश नीति-निर्धारण में अपनी विचारधारा के सिद्धान्त को अपनाते हैं। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि विदेश नीति के निर्धारण में विचारधारा की भूनिका क्षीण हो गई है। परन्तु वास्तविकता यह है कि विचारधारा की भूमिका कम जरूर हुई है, परन्तु अभी भी उसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। 

(7) विश्व जनमत -

विदेश नीति के क्षेत्र में विश्व जनमत की प्रभावशाली भूमिका होती है। विश्व के किसी भी देश में संकट उत्पन्न होने पर अन्य देशों की उस पर प्रतिक्रिया जरूर होगी। कोई भी देश विदेश नीति-निर्माण के समय विश्व जनमत के अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने की सम्भावना पर विचार करता है। इसके अतिरिक्त आज विश्व के विभिन्न राष्ट्र विश्व जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए ' अनेक प्रकार के प्रचारात्मक कार्य करते हैं, ताकि विश्व समुदाय में उसके मित्र राष्ट्र अधिक हों और शान्तिपूर्ण परिस्थितियों में वह चहुंमुखी विकास कर सके। विदेश नीति के क्षेत्र में विश्व जनमत किस प्रकार प्रभावी भूमिका अदा करता है, इसका उदाहरण सन् 1956 में ब्रिटेन, फ्रांस और इजरायल द्वारा स्वेज संकट के बाद मिस्र पर किए गए अपने आक्रमण को वापस लेना है। विश्व जनमत के दबाव के कारण ही अमेरिका वियतनाम पर बमबारी रोकने को बाध्य हुआ। इस प्रकार विदेश नीति-निर्धारण में विश्व जनमत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

(8) विश्व संगठन -

विश्व संगठन की स्थापना का उद्देश्य विश्व-शान्ति और सुरक्षा कायम करना होता है। इस कारण विभिन्न राष्ट्र विश्व संगठन के सदस्य बन जाते हैं । उनका किसी अन्य राष्ट्र से विवाद होने की स्थिति में वे इस विश्व संगठन से अपेक्षा रखते हैं कि वह विवाद के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाए। दूसरी ओर सदस्य राष्ट्र भी विश्व संगठन के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और निर्णयों में बँध जाता है। उदाहरण के लिए,सन् 1945 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्र उसके चार्टर और घोषणा-पत्र से बँधे हुए हैं और वे उसके विभिन्न निर्णयों का पालन करते हैं। इस प्रकार विश्व संगठन की सदस्यता स्वीकार करने के बाद सदस्य राष्ट्र की विदेश नीति मर्यादित हो जाती है। अत: इसे विदेश नीति का एक निर्धारक तत्त्व माना जाता है।

(9 ) सम्बद्ध देशों की प्रतिक्रिया -

प्रत्येक देश विटेडशी इस तथ्य को सदैव दृष्टिगत रखता है कि किसी विदेश नीति को अपनाने से साखर देशों को प्रतिक्रिया क्या होगी। उसे किस सीमा तक कौन-सी नीति अपनानी नाक कि सम्बद्ध देश कम-से-कम नाराज हों । इन बातों पर विचार किए बिना किसी निर्णय के भयंकर परिणाम हो सकते हैं । उदाहरण के लिए, अमेरिका ने पाकिस्तान को शस्त्रों की सप्लाई प्रारम्भ करने से पहले इस बात पर अवश्य विचार किया होगा कि कहीं उसके इस कदम से भारत के साथ सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। यदि प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, तो वह किस सीमा तक होगा। इस प्रकार सम्बद्ध देशों की प्रतिक्रिया विदेश नीति का एक प्रमुख तत्त्व है।

 

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