ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की व्याख्या
B.A. I, Political Science I
प्रश्न 10. ऑस्टिन के
सम्प्रभुता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
प्रश्न 10. ऑस्टिन के
सम्प्रभुता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
अथवा ऑस्टिन के
प्रभुसत्ता सम्बन्धी सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर- जॉन ऑस्टिन
इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध विधिशास्त्री था। उसने 1832 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'Lectures on
Jurisprudence' में सम्प्रभुता
(प्रभुसत्ता) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। ऑस्टिन हॉब्स और बेन्थम के विचारों
से प्रभावित पा और बेन्थम के समान ही ऑस्टिन का उद्देश्य भी कानून और परम्परा के
बीच भेद करना तथा परम्परा पर कानून की श्रेष्ठता स्थापित करना था।
कानून के
सम्बन्ध में ऑस्टिन का विचार था कि “कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।"
अपने इसी विचार के आधार पर ऑस्टिन ने सम्प्रभुता की धारणा का प्रतिपादन किया, जो इस प्रकार है-“यदि एक निश्चित
सर्वोच्च मानव, जो अन्य किसी
सर्वोच्च व्यक्ति की आज्ञा का पालन करने का अभ्यस्त न हो और जिसकी आज्ञा का पालन
एक समाज का अधिकांश भाग स्वाभाविक रूप से करता हो, तो वह सर्वोच्च मानव उस समाज में सम्प्रभु है
तथा उस सम्प्रभु सहित वह समाज एक राजनीतिक व स्वतन्त्र समाज होता है।"
· ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की विशेषताएँ
ऑस्टिन के
सम्प्रभुता सम्बन्धी इस कथन के विश्लेषण से सम्प्रभुता की निम्नलिखित विशेषताएँ
स्पष्ट होती हैं
(1) सम्प्रभुता राज्य का एक आवश्यक तत्त्व है -
ऑस्टिन के अनुसार प्रत्येक राजा मे एक सर्वोच्च शक्ति अर्थात् सम्प्रभुता का होना आवश्यक है । सम्प्रभुता से ही एक समाज स्वतन्त्र तथा राजनीतिक बनकर राज्य का रूप धारण करता है । सम्प्रभुता ही राज्य का सार है।(2) सम्प्रभुता निश्चित व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह में निहित होती है -
राज्य में कोई न कोई ऐसा निश्चित व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह होता है जो राज्य की सत्ता का प्रयोग करता है। सम्प्रभुता का किसी ऐसे स्थान पर प्रयोग नहीं हो सकता जिसका रूपनिश्चित अथवा संगठित न हो । दूसरे शब्दों में,सम्प्रभुता ईश्वरीय इच्छा, सामान्य इच्छा, जनमत व प्राकृतिक कानून में निवास नहीं करती। यह एक ऐसा निश्चित व्यक्ति या एक निश्चित सत्ता होनी चाहिए जिस पर स्वयं कोई कानूनी प्रभुत्व न हो ।(3) सम्प्रभुता निरंकुश व असीमित है -
ऑस्टिन ने राज्य के सम्प्रभु को सर्वोच्च कहा है। राज्य सत्ता किसी दूसरे सम्प्रभु के अधीन नहीं होती। वह किसी की आज्ञा का पालन नहीं करती, परन्तु उसकी आज्ञा का पालन सभी लोग करते हैं। ऑस्टिन सम्प्रभुता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाता।(4) सम्प्रभुता कानून से उच्च है -
ऑस्टिन ने बताया है कि सम्प्रभु का आदेश ही कानून है । दूसरे शब्दों में, सम्प्रभुता कानून का एकमात्र स्रोत है। कानून सबके लिए सर्वोच्च है , परन्तु सम्प्रभुता कानून से भी उच्च है,क्योंकि सम्प्रभुता ही समस्त कानूनों का स्रोत है।(5) अधिकांश लोगों द्वारा आज्ञापालन की आदत -
ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की एक विशेषता यह है कि राज्य में सम्प्रभु वही होता है जिसकी आज्ञा का पालन समाज के अधिकांश लोग स्थायी अथवा स्वाभाविक रूप से करते हों। जो लोग कानूनों का पालन नहीं करते, उन्हें दण्ड मिलता है । तात्पर्य यह है कि समाज का अधिकांश भाग आदत के रूप में सम्प्रभु के आदेशों का पालन करे।(6) सम्प्रभुता अविभाज्य है -
ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त में एक भाव यह है कि राज्य में निश्चित तथा सर्वोच्च शक्ति केवल एक ही होती है। इस सत्ता का विभाजन नहीं हो सकता।
संक्षेप में , सम्प्रभुता राज्य
की आवश्यक , असीमित , स्थायी तथा
अविभाज्य शक्ति है,जो किसी निश्चित
व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह में निहित होती है और जिसकी आज्ञा का पालन समाज का
अधिकांश भाग स्वाभाविक रूप से करता है।
· ऑस्टिन के सम्प्रभुता सिद्धान्त की आलोचना
ऑस्टिन के
सम्प्रभुता सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है।
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