केन्द्र-राज्य सम्बन्ध - in India
B. A. I, Political
Science II
(I) विधायी
सम्बन्ध,
(1) संघ सूची :–
(2) राज्य सूची :–
(3) समवर्ती सूची :–
(4) संसद की राज्य सूची के विषयों पर कानून-निर्माण
की शक्ति :-
(II) प्रशासनिक
सम्बन्ध :-
(4) राज्यों को संघ से अनुदान:-
प्रश्न 9. भारत में केन्द्र-राज्य सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
अथवा '' भारतीय संविधान में संघ और राज्यों के मध्य
विधायी और प्रशासनिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर - वर्तमान समय में भारतीय संघ में 28 राज्य और 9 केन्द्र शासित क्षेत्र
हैं। भारतीय संघ में संविधान के द्वारा केन्द्र और राज्यों में शक्तियों का विभाजन
किया गया है। भारतीय संविधान के अन्तर्गत संघ और राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों
का अध्ययन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(I) विधायी
सम्बन्ध,
(II) प्रशासनिक सम्बन्ध, और
(III)
वित्तीय सम्बन्ध।
(I) विधायी सम्बन्ध
संघ व राज्यों के विधायी
सम्बन्धों का संचालन तीन सूचियों के आधार पर होता है, जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची व
समवर्ती सूची का नाम दिया गया है। इनका विवरण निम्न प्रकार है-
(1) संघ सूची :–
इस सूची में राष्ट्रीय
महत्त्व के ऐसे विषयों को रखा गया है जिनके सम्बन्ध में सम्पूर्ण देश में एक ही
प्रकार की नीति का अनुसरण आवश्यक कहा जा सकता है। इस सूची में कुल 97 विषय हैं और इन
सब विषयों पर संघीय संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। संघ सूची के प्रमुख
विषय हैं-रक्षा व वैदेशिक मामले, युद्ध व सन्धि, देशीयकरण और नागरिकता, विदेशियों का आना-जाना, रेल,
बन्दरगाह, हवाई मार्ग, डाक, तार, टेलीफोन, मुद्रा निर्माण, बैंकिंग, बीमा आदि।
(2) राज्य सूची :–
इस सूची में साधारणतया वे
विषय रखे गए हैं जो क्षेत्रीय महत्त्व के हैं। इस सूची के विषयों पर विधि-निर्माण
का अधिकार सामान्यतया राज्यों की व्यवस्थापिका को प्राप्त है। इस सूची में 66 विषय हैं, जिनमें से कुछ
प्रमुख विषय हैं, पुलिस, न्याय, जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक
स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई और सड़कें
आदि।
(3) समवर्ती सूची :–
इस सूची के विषयों पर संघ
तथा राज्य, दोनों को ही
कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। यदि इस सूची के किसी विषय पर संघ तथा राज्य
सरकार द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हों, तो सामान्यतया संघ का कानून मान्य होगा। इस सूची में कुल 47 विषय हैं, जिनमें से कुछ
प्रमुख हैंफौजदारी विधि तथा प्रक्रिया, निवारक निरोध, विवाह और विवाह-विच्छेद, कारखाने, श्रमिक संघ, आर्थिक-सामाजिक योजना, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा, शिक्षा, जनसंख्या
नियन्त्रण और परिवार नियोजन, वन आदि।
उल्लेखनीय है कि 42वें संविधान
संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था के परिणामस्वरूप गणना की दृष्टि से राज्य सूची के
विषयों की संख्या घटकर 62 रह गई है और
समवर्ती सूची के विषयों की संख्या बढ़कर 52 हो गई है। लेकिन यह स्थिति मात्र गणना की दृष्टि से है।
संविधान के अध्ययन के अन्तर्गत गणना की तुलना में संवैधानिक दृष्टि का अधिक
महत्त्व होता है। संवैधानिक दृष्टि से संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों की संख्या
आज भी क्रमश: 97,66 447 ही बनी हुई है।
(4) संसद की राज्य सूची के विषयों पर कानून-निर्माण
की शक्ति :-
राष्ट्रीय हित और
राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से संसद के द्वारा कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के
विषयों पर भी कानून का निर्माण किया जा सकता है। ये विशेष परिस्थितियाँ निम्न
प्रकार हैं-
(1) संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि
राज्यसभा अपने दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है कि राज्य सूची का
कोई विषय राष्ट्रीय महत्त्व का है, तो संसद को उस विषय पर विधि बनाने का अधिकार प्राप्त हो
जाता है।
(ii) यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पास
करके इच्छा व्यक्त करते हैं कि राज्य सूची के विषय पर संसद द्वारा कानून का
निर्माण किया जाए, तो इन राज्यों के
लिए उन समस्त विषयों पर अधिनियम बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है।
(iii) संकटकाल की घोषणा की स्थिति में राज्य की समस्त
विधायी शक्तियों पर भारतीय संसद को अधिकार प्राप्त हो जाता है।
(iv) यदि संघ सरकार ने विदेशी राज्यों से कोई सन्धि की है, तो इस सन्धि के
पालन हेतु संघ सरकार को सम्पूर्ण भारत के सीमा क्षेत्र के अन्तर्गत किसी भी विषय
पर नियम बनाने का अधिकार होगा।
(v) यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए या
संवैधानिक तत्व विफल हो जाए, तो राष्ट्रपति राज्य विधानमण्डल के समस्त अधिकार संसद को
प्रदान कर सका है।
(vi) अनुच्छेद 304 (ख) के अनुसार कुछ विधेयक ऐसे होते हैं जिनके
सम्बन्ध में राज्य विधानमण्डल में प्रस्तावित किए जाने से पूर्व राष्ट्रपति की
पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, वे विधेयक जिनके द्वारा सार्वजनिक हित की
दृष्टि से उस राज्य के अन्दर या उसके बाहर व्यापार-वाणिज्य या मेलजोल पर प्रतिबन्ध
लगाए जाते हैं।
(vii) राज्य के राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त है कि
वह राज्य की व्यवस्थापिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के
लिए रमित कर सकता है। राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण आदि से सम्बन्धित कुछ विधेयक
ऐसे हैं जिन्हें राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाना भावश्यक
है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अपने विवेक के अनुसार विधेयक को स्वीकार करेंगे।
उपर्युक्त विवेचन से
स्पष्ट है कि संविधान द्वारा साधारणतया संघ तथा राज्य सरकारों को अलग-अलग विषयों
पर कानून-निर्माण की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में संघ सरकार द्वारा राज्य सूची
के विषयों पर कानूनों का निर्माण किया जा सकता है।
(II) प्रशासनिक
सम्बन्ध :-
दुर्गादास बसु के शब्दों में, "संघीय
व्यवस्था की सफलता और दृढ़ता संघ की विविध सरकारों के बीच अधिकाधिक सहयोग तथा
समन्वय पर निर्भर करती है।" भारतीय संविधान निर्माता इस तथ्य से परिचित थे, इसी कारण इस बात
का ध्यान रखा गया है कि संघ तथा राज्यों के मध्य संघर्ष की सम्भावना कम-से-कम हो
जाए। राज्य सरकारों पर संघीय शासन के नियन्त्रण की व्यवस्था निम्नलिखित उपायों के
आधार पर की गई है-
(1) संविधान के अनुच्छेद 256 में स्पष्ट कहा
गया है कि प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार होगा कि संसद
द्वारा निर्मित कानून का पालन सुनिश्चित रहे।
(2) संविधान के अनुच्छेद 257 में कहा गया है
कि प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार होना चाहिए कि संघ की
कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में बाधा या प्रतिकूल प्रभाव न पड़े तथा इस सम्बन्ध
में संघ की कार्यपालिका द्वारा राज्य को निर्देश दिए जा सकेंगे।
(3) संघीय सरकार राज्य सरकारों को कोई भी कार्य सौंप सकती है।
यदि राज्यों की सरकारें उसे पूरा न करें, तो राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह संकटकालीन स्थिति की
घोषणा कर राज्य का शासन अपने हाथों में ले सकता है।
(4) अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था संघ तथा राज्य सरकारों के
लिए सामान्य है। इन सेवाओं पर संघीय सरकार का विशेष नियन्त्रण है।
(5) संघीय शासन राज्यों को आवश्यकतानुसार सहायता व अनुदान दे
सकता है। अनुदान देते समय संघ राज्यों पर कुछ शर्ते लगाकर उनके व्यय को भी नियन्त्रित
कर सकता है।
(6) समस्त भारतीय संघ के संचार के साधनों की रक्षा का भार भी
संघीय सरकार पर है। संघ सरकार राज्यों के अन्तर्गत हवाई अड्डों, रेलों आदि की
रक्षा के लिए राज्य सरकारों को आवश्यक आदेश दे सकती है।
(7) इन सबके अतिरिक्त राज्य सरकारों पर संघीय शासन के नियन्त्रण
का एक प्रमुख उपाय है कि प्रधानमन्त्री के परामर्श से राष्ट्रपति राज्यों में
राज्यपालों की नियुक्ति भी करता है।
(8) मुख्यमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार या
अन्य किसी प्रकार के आरोप राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही लगाए जा सकते हैं।
(9) इन सबके अलावा संविधान के अनुच्छेद 356 में कहा गया है
कि यदि किसी राज्य में संवैधानिक तन्त्र भंग हो गया हो, तो राष्ट्रपति उस
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है और
ऐसी स्थिति में उस राज्य पर शासन केन्द्र के निर्देश के आधार पर चलाया जाएगा।
(III) वित्तीय सम्बन्ध : -
केन्द्र और राज्यों के
वित्तीय सम्बन्धों को निम्नांकित रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है-
(1) केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले, किन्तु राज्यों द्वारा वसूल किए जाने वाले कर :-
भारतीय संविधान की धारा
268 के अनुसार
चिकित्सालय तथा प्रसाधन सामग्री पर उत्पादन शुल्क एवं स्टाम्प शुल्क यद्यपि
केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने की व्यवस्था है, किन्तु उसकी वसूली राज्य सरकारें करेंगी और
इससे प्राप्त धन भी राज्यों का होगा।
(2) केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले तथा केन्द्र सरकार द्वारा वसूल किए जाने वाले, किन्तु राज्यों में बँटने वाले कर :-
संविधान की धारा 269 में यह व्यवस्था
की गई है कि कुछ कर यद्यपि केन्द्र सरकार द्वारा लगाए एवं वसूल किए जाएँगे, किन्तु उन करों
से प्राप्त राशि संसद के सिद्धान्तों के आधार पर राज्यों में वितरित की जाएगी।
इनमें निम्नलिखित कर आते हैं
(i) कृषि
भूमि को छोड़कर सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर।
(ii) कृषि
भूमि को छोड़कर सम्पत्ति पर जायदाद कर।
(iii) रेल, समुद्री
तथा वायुमार्ग द्वारा ले जाए गए यात्रियों एवं वस्तुओं पर सीमान्त कर।
(iv) रेल
के किराये-भाड़े पर कर।
(v) शेयर
बाजार तथा भावी बाजार के सौदों पर कर।
(vi) समाचार-पत्रों
के क्रय-विक्रय तथा उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर।
(3) आय पर कर :-
संविधान की धारा 270 के अनुसार कृषि
आय को छोड़कर अन्य आयों पर कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया एवं वसूल किया जाएगा, किन्तु उसे
केन्द्र व राज्यों के मध्य बाँटा जाएगा।
(4) राज्यों को संघ से अनुदान:-
संविधान की धारा 275 के अनुसार संसद
यह निर्धारित करती है कि किन राज्यों को सहायता की आवश्यकता है तथा विभिन्न
राज्यों की धनराशि नियत करती है। यह धनराशि भारत की संचित निधि पर उन राज्यों के
राजस्वों में अनुदान के रूप में भारित होती है।
(5) वित्त आयोग :-
संविधान के अनुच्छेद 280 में व्यवस्था की
गई है कि प्रत्येक 5 वर्ष बाद
राष्ट्रपति एक वित्त आयोग का गठन करेगा। इस आयोग के द्वारा संघ और
राज्य सरकारों के मध्य करों के वितरण, भारत की संचित निधि से धन के व्यय तथा वित्तीय व्यवस्था से
सम्बन्धित अन्य विषयों पर सिफारिश करने का कार्य किया जाएगा।
पिछले कुछ वर्षों से
राज्य सरकारें निरन्तर यह कहती रही हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा उन्हें अधिक
वित्तीय साधन प्रदान किए जाने चाहिए।
This is very helpful...
ReplyDeleteThank you ❣️
ReplyDeleteVery nice Thank you so much
ReplyDeleteHelpfull
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