नेपोलियन बोनापार्ट - महाद्वीपीय व्यवस्था, असफलता, कारण
M.J.P.R.U.,B. A. II, History II / 2020
प्रश्न 5. नेपोलियन बोनापार्ट की महाद्वीपीय व्यवस्था से आप क्या
समझते हैं ? इसके क्या
परिणाम हुए?
अथवा ''नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
इसके प्रभाव तथा असफलता के कारण बताइए।
अथवा ''नेपोलियन की महाद्वीपीय प्रणाली की व्याख्या कीजिए। इसकी असफलता के ।
कारणों की समीक्षा कीजिए।
अथवा ''नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था क्या थी?
वह क्यों विफल हो गई?
अथवा ''महाद्वीपीय व्यवस्था क्या थी ?
यह नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के लिए ।
किस सीमा तक उत्तरदायी थी? ''
नेपोलियन बोनापार्ट - महाद्वीपीय व्यवस्था, असफलता, कारण
उत्तर- नेपोलियन बोनापार्ट ने 1805 ई. में ऑस्ट्रिया
को, 1806 ई. में प्रशा को तथा 1807 ई. में रूस को
परास्त कर दिया। अब उसे इंग्लैण्ड से निपटना था ! परन्तु नेपोलियन
यह अच्छी तरह जानता था कि इंग्लैण्ड का समुद्र पर पूर्ण अधिकार है
और 1806 ई. में ट्रेफलगर के युद्ध में उसने फ्रांसीसी
बेड़े को नष्ट कर दिया था। इंग्लैण्ड को नीचा दिखाने और उसकी शक्ति को क्षीण करने
के लिए उसने अन्य उपाय सोचा। यह उपाय था - इंग्लैण्ड की आर्थिक नाकेबन्दी करना,
जिसका अन्य नाम 'महाद्वीपीय व्यवस्था' या 'महाद्वीपीय नाकेबन्दी'
था।
महाद्वीपीय व्यवस्था के सम्बन्ध में इतिहासकार हेजन ने लिखा है "इंग्लैण्ड की शक्ति का स्रोत उसकी सम्पत्ति थी और सम्पत्ति का स्रोत था उसकी
निर्माणशालाएँ या कारखाने और उसका वाणिज्य व व्यापार, जिसके द्वारा कारखानों की निर्मित वस्तुएँ विश्व के बाजारों में पहुँचती थीं
एवं उनसे कच्चा माल उपलब्ध होता था तथा सुदूर स्थित उपनिवेशों से लाभदायक सम्बन्ध
स्थापित होते थे। यदि इस सम्बन्ध का विच्छेद कर दिया जाए, इस वाणिज्य व व्यापार पर रोक लगा दी जाए और उसके बाजार बन्द कर दिए जाएँ, तो इंग्लैण्ड की समृद्धि का नाश हो जाएगा।"
वे आगे और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, "इस बात की आवश्यकता थी कि महाद्वीप में
इंग्लैण्ड के माल का आना पूर्ण रूप से रोक दिया जाए। कोई ऐसा मार्ग न रहे. जहाँ
होकर यूरोप में उसका प्रवेश हो सके। इंग्लैण्ड तभी हथियार डाल सकता था जबकि उसके
लिए सभी बाजार बन्द हो जाएँ।"
पामर के अनुसार,
"महाद्वीपीय व्यवस्था इंग्लैण्ड के निर्यात
व्यापार को नष्ट करने के उपाय के अतिरिक्त कुछ और भी थी। वह फ्रांस को केन्द्र
बनाकर महाद्वीपीय यूरोप (इंग्लैण्ड को छोड़कर) की अर्थव्यवस्था को विकसित करने की
एक महान् योजना भी थी। इंग्लैण्ड की वस्तुओं के बिना ही अपना काम चलाने के अभ्यस्त
होने पर यूरोपीय लोग आर्थिक दृष्टि से अधिक सफल एवं स्वतन्त्र हो सकते थे।"
महाद्वीपीय व्यवस्था के उद्देश्य
नेपोलियन द्वारा प्रतिपादित महाद्वीपीय व्यवस्था के निम्नलिखित उद्देश्य थे-
(1) यूरोप में आर्थिक नाकेबन्दी करके इंग्लैण्ड
के व्यापार को नष्ट करना।
(2) इंग्लैण्ड की आर्थिक व्यवस्था को नष्ट करके
इंग्लैण्ड की राजनीतिक व्यवस्था में हलचल उत्पन्न करना।
(3) इंग्लैण्ड को फ्रांस के सम्मुख झुकने के लिए
मजबूर करना।
(4) फ्रांस को केन्द्र बनाकर इंग्लैण्ड को छोड़
यूरोप के अन्य देशों की आर्थिक व्यवस्था को दृढ़ करना।
(5) अपने नेतृत्व में यूरोप के अन्य देशों का संघ
बनाना।
नेपोलियन की यह व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नहीं थी,
क्योंकि संविधान परिषद् और डायरेक्टरी
के समय में भी आर्थिक नाकेबन्दी की नीति को निर्धारित किया गया था। नेपोलियन ने तो
इसे व्यवस्थित करके विशाल पैमाने पर व्यावहारिक रूप देने का निश्चय किया।
महाद्वीपीय व्यवस्था का आरम्भ (क्रियान्वयन)
नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था को लागू करने के उद्देश्य से निम्नलिखित आदेश
जारी किए थे
(1) बर्लिन की विज्ञप्ति -
नवम्बर, 1806 में नेपोलियन ने बर्लिन से आज्ञा जारी की कि
ब्रिटिश द्वीप समूह और अंग्रेजी उपनिवेशों का विरोध या नाकेबन्दी आरम्भ की जाती
है। अब यदि ब्रिटिश द्वीप समूह या अंग्रेजी उपनिवेशों का कोई जहाज फ्रांस अथवा
उसके मित्र राष्ट्रों के किसी बन्दरगाह में प्रवेश करेगा,
तो उसे जब्त कर लिया जाएगा तथा फ्रांस
द्वारा मित्र राष्ट्रों के राज्यों में पाए जाने वाले अंग्रेज व्यापारियों को
बन्दी बनाकर उनका माल जब्त कर लिया जाएगा। इस विज्ञप्ति के द्वारा नेपोलियन ने
इंग्लैण्ड के व्यापार के बहिष्कार के प्रयत्न किए।
(2) वारसा आदेश-
यह आदेश नेपोलियन ने 25 जनवरी, 1807 को जारी । किया था। इसके द्वारा प्रशा तथा हैनोवर के
समुद्री किनारों पर अंग्रेजों से व्यापार : करना निषेध कर दिया गया। इन आदेशों का
पालन न करने वाले देशों को नेपोलियन ने युद्ध की चेतावनी दे दी।
(3) मिलान आदेश-
17 दिसम्बर, 1807 को यह आदेश जारी किया गया था। इसके अनुसार जो जहाज
अंग्रेजों को तलाशी देगा अथवा अंग्रेजी बन्दरगाहों पर उपस्थित होगा,
उनका पूरा माल जब्त कर लिया जाएंगा।
(4) फाण्टेनब्ल्यू आदेश-
18 अक्टूबर, 1810 को जारी किए गए इस आदेश के अनुसार जब्त किए माल को
सार्वजनिक रूप से जलाकर नष्ट किया जाएगा। एक न्यायालय की स्थापना की गई,
जो अवैध व्यापार करने वालों को दण्ड
देगा।
नेपोलियन के उपयुक्त आदेशों का उत्तर इंग्लैण्ड ने भी दिया था। उसने 1807 ई. में यह घोषणा की कि जिन जहाजों में फ्रांस का बना हुआ
माल होगा, उन्हें जब्त कर
लिया जाएगा। यह चेतावनी भी दी गई कि कोई भी तटस्थ राज्य शत्रु देश (फ्रांस) का माल
नहीं खरीदेगा। इस प्रकार इंग्लैण्ड व फ्रांस, दोनों देशों के व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो गए। नेपोलियन
की महाद्वीपीय योजना से प्रारम्भ में अंग्रेजी व्यापार को बहुत वका लगा,
फिर भी अवैध रूप से अंग्रेजों का
व्यापार यूरोपीय देशों के साथ चलता रहा। नेपोलियन ने इस अवैध व्यापार को रोकने के
लिए काफी प्रयास किए। इस कार्य में उसे स्वीडन, हॉलैण्ड, इटली, पुर्तगाल, रूस व ऑस्ट्रिया आदि देशों के साथ युद्ध लड़ना पड़ा।
फलस्वरूप नेपोलियन का साम्राज्य विघटित होने लगा। अन्ततः यह व्यवस्था नेपोलियन के
पंतन का महत्त्वपूर्ण कारण सिद्धहुई।
महाद्वीपीय योजना को सफल बनाने के प्रयास
हेजन के मत में,
"केवल फ्रांस अथवा फ्रांस द्वारा अधिकृत
देशों को बन्द करने से नेपोलियन का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता था। अतः आवश्यक था.
कि उसे यूरोप के प्रत्येक तटवर्ती देश का समर्थन प्राप्त हो। इसे प्राप्त करने का
उसने प्रयत्न किया। इसके लिए वह शान्तिमय तरीकों का प्रयोग करने के लिए तैयार 'था, परन्तु यदि शान्ति से काम न चलता,
तो वह बल प्रयोग करने के लिए भी उद्यत
था।"
संक्षेप में, महाद्वीपीय
व्यवस्था को सफल बनाने के लिए नेपोलियन ने समझौता तथा युद्ध,
दोनों का ही सहारा लिया।
(1) रूस का समर्थन उसने टिलसिट की सधि के द्वारा
प्राप्त कर लिया था।
(2) ऑस्ट्रिया और एशिया को अपनी पराजय के कारण
महाद्वीपीय व्यवस्था लागू करने की अनुमति देनी पड़ी। डेनमार्क ने भी ऐसा ही किया।
(3) स्वीडन ने इंग्लैण्ड के साथ मैत्री सम्बन्ध
कायम रखा। अत: नेपोलियन ने रूस पर दबाव डाला कि वह फिनलैण्ड को, जो स्वीडन का था, हड़प ले तथा उसके बन्दरगाहों पर अधिकार कर
ले।
(4) हॉलैण्ड के राजा ने नाकेबन्दी को नहीं माना, अत: उसे सिंहासन त्यागने के लिए विवश किया गया।
(5) पोप के राज्य को छीनकर इटली में मिला दिया
गया।
(6) पुर्तगाल पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर
लिया। पुर्तगाल ने महाद्वीपीय योजना को अस्वीकार कर दिया था।
(7) नेपोलियन ने कूटनीति के द्वारा स्पेन पर
अधिकार कर लिया।
महाद्वीपीय व्यवस्था के परिणाम -
महाद्वीपीय व्यवस्था के अनेक परिणाम निकले। इन परिणामों को निम्नलिखित
शीर्षकों में वर्णित किया जा सकता है
(1) राजनीतिक परिणाम -
महाद्वीपीय व्यवस्था से अंग्रेजों का यूरोप में राजनीतिक
प्रभाव कम हुआ। डेनमार्क पर गोलाबारी करने से वह अंग्रेजों को छोड़कर नेपोलियन का
मित्र बन गया। इंग्लैण्ड के अमेरिका से भी सम्बन्ध बिगड़ गए,
परन्तु नेपोलियन को भी उसके दुष्परिणाम
भुगतने पड़े। इस व्यवस्था को लागू करने के लिए यूरोप के अनेक देशों से युद्ध करने
पड़े, जिससे फ्रांस
को अत्यधिक धन-जन की हानि उठानी पड़ी। राजकोष पर्याप्त खाली हो गया। वास्तव में नेपोलियन
के पतन का कारण उसकी महाद्वीपीय व्यवस्था ही थी।
नेपोलियन ने इस योजना को जिस ढंग से लागू किया, उससे यूरोप के अधिकांश देश उससे नाराज हो गए। स्पेनवासियों
ने अन्तिम क्षण तक संघर्ष किया। वहाँ के निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना
उत्पन्न करने का श्रेय वास्तव में, नेपोलियन को ही जाता है।
(2) आर्थिक परिणाम -
महाद्वीपीय व्यवस्था के आर्थिक परिणाम भी अत्यधिक भयंकर निकले। यह बात सत्य है
कि यदि यूरोप के समस्त देश दृढ़ता से नेपोलियन का साथ देते,
तो वह इंग्लैण्ड से घुटने टिकवा सकता था,
परन्तु नेपोलियन द्वारा शक्ति प्रयोग
करने पर भी ऐसा न हो. सका। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड का माल लुके-छिपे आता रहा। इस
पर यूरोपीय देशों की आर्थिक दशा शोचनीय हो गई। यूरोप की समस्त प्रणाली ठप्प हो गई।
वस्तुओं के मूल्य बढ़ गए नथा चाय व चीनी जैसी साधारण वस्तुएँ भी मिलना कठिन हो
गईं। हेजन के शब्दों में, "महाद्वीपीय व्यवस्था से वाणिज्य और व्यवसाय का सामान्य क्रम
छिन्न-भिन्न हो गया, लोगों की
जीविका जाती रही, बर्बादी और
तबाही ने उन्हें आ घेरा। जिन चीजों की उन्हें आदत पड़ी हुई थी,
उन्हें पाने के लिए वे बड़े पैमाने पर
और भारी जोखिम उठाकर तस्कर व्यापार करने लगे।"
(3) बेरोजगारी का फैलना -
महाद्वीपीय व्यवस्था से इंग्लैण्ड के उद्योगपन्धों को आघात
पहुँचा। बेरोजगारी में तीव्रता से वृद्धि हुई।
(4) मजदूर संघों का निर्माण -
इंग्लैण्ड की आर्थिक दशा शोचनीय हो जाने से तथा बेकारी
बढ़ने से संसदीय सुधारों में तीव्रता आई। नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था के
परिणामों पर प्रकाश डालते हुए मार्कहम लिखते हैं - "महाद्वीपीय व्यवस्था द्वारा नेपोलियन ने अपने साम्राज्य के
विरुद्ध केवल यूरोपीय जनता को नहीं उभारा, वरन् उसने फ्रांस के मध्यम वर्ग का भी विश्वास खो दिया। इस
व्यवस्था को लागू करने के प्रयास में फ्रांस के आर्थिक साधन छिन्न-भिन्न हो गए और
अधिकांश देशों ने उसका साथ छोड़ दिया।"
इसी प्रकार मेडलिन लिखतें हैं "नेपोलियन की महाद्वीपीय प्रणाली उसके पतन के नाटक में सबसे
बड़ी दुःखद घटना थी।' महाद्वीपीय
व्यवस्था की असफलता के कारण -
नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था पूर्णतया असफल रही। इसके असफल होने के
निम्नलिखित कारण थे
(1) हॉलैण्ड, स्वीडन, रूस और पोप इस प्रणाली का गुप्त रूप से, तो कभी खुले रूप से विरोध करते थे।
(2) नेपोलियन के अधीन देश भी इस व्यवस्था के
प्रति विशेष उत्साह नहीं रखते थे, क्योंकि इससे उनकी अर्थव्यवस्था को गहरा आघात
पहुँचता था।
(3) नेपोलियन ने स्वयं दोहरी नीति अपनाई। एक ओर
तो उसने इंग्लैण्ड तथा उसके उपनिवेशों को खाने की वस्तुओं का आयात बन्द कर दिया, परन्तु दूसरी ओर अपनी सेना के लिए वस्त्र तथा जूते इंग्लैण्ड से परोक्ष रूप से
क्रय करता रहा।
(4) इस व्यवस्था को सफल बनाने के लिए यूरोप की
सम्पूर्ण जल सीमा को बन्द करना आवश्यक था, परन्तु यह सम्भव न हो सका।
(5) हॉलैण्ड रोज के विचार में, "महाद्वीपीय व्यवस्था उसी हाल में सफल हो सकती थी जब नेपोलियन इंग्लैण्ड के लिए
अनाज का भेजा जाना बन्द कर देता। परन्तु नेपोलियन द्वारा यह अमानवीय कदम नहीं
उठाया गया और इस कारण योजना भी सफल नहीं हो सकी।"
(6) सर्वाधिक प्रमुख बात यह थी कि इंग्लैण्ड की
समुद्री शक्ति फ्रांस की तुलना में बढ़ी चढ़ी थी। नेपोलियन के लिए उसे पराजित करना
सम्भव नहीं था।
(7) फ्रांस का औद्योगिक विकास इतना नहीं हुआ था
कि वह प्रत्येक वस्तु का इतना उत्पादन कर सके कि सम्पूर्ण यूरोप के देशों में उनकी
पूर्ति कर सके।
(8) आगे चलकर रूस ने इसका खुलेआम विरोध करना शुरू
कर दिया। रूस के विरोध का अन्य देशों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
(9) जब नेपोलियन के शिकंजे से पुर्तगाल और स्पेन
मुक्त हो गए, तो इस व्यवस्था को गहरा आघात पहुँचा।।
Thanks
ReplyDelete