1830 की फ्रांसीसी क्रांति के कारण, महत्व और परिणाम

B.A. II, History II
प्रश्न 10. फ्रांस में 1830 ई. की क्रान्ति का महत्त्व बताइए।
अथवा ''1830 ई. की फ्रांस की क्रान्ति के कारणों व प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''फ्रांस की 1830 ई. की जुलाई क्रान्ति के कारण और परिणाम बताइए।
उत्तर -1830 ई. में फ्रांस की जनता ने  बूर्बो वंश के सम्राट् चार्ल्स दशम के विरुद्ध एक सफल क्रान्ति की थी। चार्ल्स दशम सिंहासन छोड़कर भाग गया। यूरोप के इतिहास में इसे 'जुलाई क्रान्ति' के नाम से जाना जाता है।
1830-france-revolution
फ्रांस में 1830 ई. की क्रान्ति 

फ्रांस की जुलाई क्रान्ति (1830 ई.) के कारण

इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) बूबों वंश की पुनर्स्थापना-

1789 ई. की फ्रांसीसी क्रान्ति बूबों वंश के सम्राट् लुई सोलहवें के निरंकुश शासन के विरुद्ध की गई थी। फ्रांस की जनता बूबों वंश की निरंकुशता से घृणा करती थी। किन्तु वियना सम्मेलन के राजनीतिज्ञों ने उसी वंश को 1815. में पुनः सत्तारूढ़ करके जन-असन्तोष को जन्म दिया। फ्रांस में
एक वर्ग ऐसा भी था जो किसी भी दशा में बूबों वंश की अधीनता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था।

(2) संवैधानिक चार्टर के दोष-

लुई अठारहवें द्वारा लागू किया गया संवैधानिक चार्टर दोषपूर्ण तथा जनता के लिए अहितकर था। मताधिकार योग्यता सम्पत्ति पर आधारित थी। सामन्तों की सभा (Chamber of Peers) के सदस्यों का मनोनयन केवल राजा द्वारा किया जाता था। राजा के अधिकार असीमित थे। मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं था। इस प्रकार संविधान जन-भावनाओं के प्रतिकूल व अहितकर था। .

(3) राजनीतिक दलों के उद्देश्यों में एकता-

यद्यपि फ्रांस के विभिन्न राजनीतिक दलों के विचारों में विभिन्नता थी, तथापि बूबों वंश की निरंकुश नीति के विरोध में वे सभी एकमत थे। उन्होंने सामूहिक रूप से चार्ल्स दशम को हटाने का संकल्प लिया था। राजनीतिक दलों की एकता की भावना ने बूबों वंश की जड़ों को कमजोर बना दिया।

(4) चार्ल्स दशम की निरंकुश नीति

चार्ल्स दशम महान् प्रतिक्रियावादी शासक तथा कट्टर राजसत्तावादी दल का नेता था। सम्राट् बनने के पश्चात् उसने लोगों के भाषण, लेखन व प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मताधिकार योग्यता को अत्यधिक कठोर बना दिया। उसने चर्च को विशेष महत्त्व दिया। उसने प्रधानमन्त्री पद पर प्रतिक्रियावादी व्यक्तियों को नियुक्त किया। इनमें पॉलिगनेक (Polignac) का नाम उल्लेखनीय है। जब प्रतिनिधि सभा ने पॉलिगनेक के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया, तो चार्ल्स दशम ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया। इस प्रकार चार्ल्स दशम की प्रतिक्रियावादी व दमन नीति को फ्रांस की जनता ने स्वीकार नहीं किया।

(5) जुलाई अध्यादेश-

1830 ई. की फ्रांसीसी क्रान्ति का मुख्य कारण चार्ल्स दशम के 'सेण्ट क्लाउड के अध्यादेश' (Ordinances of St. Cloud) थे। चार्ल्स दशम की दमन नीति उस समय पराकाष्ठा पर पहुँच गई जब 26 जुलाई, 1830 को उसने अध्यादेश पारित करके प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया। एक नये निर्वाचन कानून की घोषणा की गई, जिसके द्वारा मतदाताओं की संख्या को सीमित कर दिया गया। नवीन चुनावों की घोषणा कर दी गई।

क्रान्ति का विस्फोट

जुलाई अध्यादेशों की घोषणा के विरोध में 27 जुलाई को पेरिस में चार्ल्स दशम के विरुद्ध जुलूस निकाला गया। तीन दिन तक सेना तथा क्रान्तिकारियों में भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में क्रान्तिकारियों की विजय हुई। स्थिति बिगड़ जाने पर चार्ल्स दशम ने जुलाई अध्यादेशों को वापस लेने की घोषणा की, किन्तु क्रान्तिकारियों को सन्तोष नहीं हुआ। अन्तत: 31 जुलाई, 1830 को चार्ल्स दशम सिंहासन छोड़कर भाग गया।

जुलाई क्रान्ति (1830 ई.) का महत्त्व (परिणाम)

फ्रांस के इतिहास में इस क्रान्ति को महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है, क्योंकि
(1) इसके फलस्वरूप न्यायोचित राजसत्ता के सिद्धान्त को समाप्त कर दिया गया। बूओं वंश की निरंकुश सत्ता के स्थान पर लुई फिलिप के नेतृत्व में संवैधानिक राजतन्त्र की स्थापना की गई।
(2) 1789 ई. की क्रान्ति के अधूरे कार्य को इस क्रान्ति ने पूरा कर दिया।
(3) इस क्रान्ति के फलस्वरूप सामन्तों, पादरियों व कुलीनों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
(4) यह क्रान्ति मैटरनिख व्यवस्था के पतन का संकेत थी।
(5) इस क्रान्ति से बेल्जियम पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हो गया।
(6). इस क्रान्ति का प्रभाव लगभग सम्पूर्ण यूरोप पर पड़ा।

 यूरोप के देशों पर जुलाई क्रान्ति का प्रभाव

 इस क्रान्ति ने मुख्य रूप से निम्नलिखित देशों की राजनीति को प्रभावित किया

(1) स्पेन -

स्पेन की जनता ने फर्डिनेण्ड सप्तम के निरंकुश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यद्यपि यह विद्रोह कुचल दिया गया, तथापि 1834 ई. के चुनावों में राष्ट्रवादियों को सफलता मिल जाने के कारण राजा को 1837 ई. में उदार संविधान स्वीकार करना पड़ा। इसके फलस्वरूप स्पेन में वैध राजसत्ता की स्थापना हुई और लोकप्रिय मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया।

(2) पुर्तगाल -

पुर्तगाल की शासिका डोना मारिया के चाचा डॉन मिगुएल ने. डोना मारिया से सिंहासन छीनकर अपना निरंकुश शासन स्थापित कर लिया था। राष्ट्रवादियों ने फ्रांस की क्रान्ति से प्रेरणा पाकर क्रान्ति कर दी। फलस्वरूप डोना मारिया की सरकार पुनः सत्तारूढ़ हो गई।

(3) बेल्जियम -

बेल्जियम की जनता ने हॉलैण्ड की सरकार के विरुद्ध क्रान्ति कर दी। ब्रुसेल्स में हॉलैण्ड की सेना तथा बेल्जियम की जनता में युद्ध हुआ। सेना बुरी तरह पराजित हो गई। इंग्लैण्ड, रूस व ऑस्ट्रिया ने बेल्जियम की स्वतन्त्रता को मान्यता दे दी। राजकुमार लियोपोल्ड को वहाँ का राजा बनाया गया।

(4) स्विट्जरलैण्ड -

जुलाई क्रान्ति से प्रेरित होकर स्विट्जरलैण्ड की जनता ने सरकार के समक्ष संविधान में संशोधन तथा प्रशासनिक सुधारों की माँग प्रस्तुत की। सरकार ने जनता की प्रायः सभी माँगों को स्वीकार कर लिया।

(5) इंग्लैण्ड-

इंग्लैण्ड में टोरी दल की सरकार कार्य कर रही थी। 1820 ई. के आम चुनावों में जनता ने संसदीय सुधारों के समर्थन में बिग (उदार) दल को अपना समर्थन दिया। फलस्वरूप बिग दल सत्तारूढ़ हो गया। उसने 1832 ई. में प्रथम संसदीय सुधार अधिनियम पारित किया, जिसके फलस्वरूप जनता के संवैधानिक अधिकारों में वृद्धि हो गई।

(6) जर्मनी-

1830 ई. में जर्मनी के देशभक्तों ने राष्ट्रीय एकता के उद्देश्यों से कई जर्मन राज्यों में विद्रोह किए। किन्तु मैटरनिख ने हस्तक्षेप करके इन विद्रोहों का दमन कर दिया तथा यथास्थिति को कायम कर दिया। फिर भी । राष्ट्रीयता की भावना को समूल नष्ट नहीं किया जा सका।

(7) इटली-

1815 ई. में जर्मनी की भाँति इटली को भी छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित करके उसकी राष्ट्रीय एकता को समाप्त कर दिया गया। अत:  असन्तुष्ट राष्ट्रवादियों ने जुलाई क्रान्ति की सफलता से प्रेरित होकर इटली के राज्यों में भी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए। कई स्थानों पर क्रान्तियाँ सफल रहीं, किन्तु मैटरनिख ने तुरन्त हस्तक्षेप करके उन क्रान्तियों का दमन कर दिया।

(8) पोलैण्ड-

1830 ई. में पोलैण्ड की जनता ने रूस की अधीनता के विरुद्ध क्रान्ति कर दी। क्रान्तिकारियों ने इंग्लैण्ड, फ्रांस व जर्मनी के राष्ट्रवादियों से सहायता माँगी, किन्तु उन्हें सहायता नहीं मिली। फलस्वरूप रूस की सेना ने पोलैण्ड की क्रान्ति का दमन कर दिया।
इस प्रकार 1830 ई. की जुलाई क्रान्ति का यूरोप के प्रत्येक देश पर प्रभाव पड़ा। यद्यपि कुछ देशों की क्रान्तियाँ असफल हो गईं, तथापि प्रतिक्रियावादी व निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध राष्ट्रीयता के सिद्धान्त की यह प्रथम विजय थी। 
लिप्सन के अनुसार, "1688 तथा 1830 ई. की क्रान्ति में भी प्रजातन्त्र की दिशा में विशेष उन्नति नहीं की गई थी। लेकिन इंग्लैण्ड और फ्रांस, दोनों देशों में राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त की स्थापना हुई। 
संक्षेप में इतना कह सकते हैं कि ''1830 ई. की क्रान्ति 1789 ई. की क्रान्ति की पूर्ति थी।"


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