राष्ट्रीय शक्ति के 12 मूल तत्त्वों की विवेचना

B.A. III, Political Science III

प्रश्न 6. राष्ट्रीय शक्ति से आप क्या समझते हैं ? राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्त्वों की विवेचना कीजिए। 

अथवा '' राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित कीजिए तथा राष्ट्रीय शक्ति के मूल तत्त्वों की विवेचना कीजिए।

उत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वानों ने राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्र का केन्द्र-बिन्दु माना है, जिसके चारों ओर उसकी विदेश नीति के विभिन्न पहलू चक्कर काटते हैं। मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, “राष्ट्रीय शक्ति वह शक्ति है जिसके आधार पर कोई. व्यक्ति दूसरे राष्ट्रों के कार्यों,व्यवहारों और नीतियों पर प्रभाव और नियन्त्रण रखने की चेष्टा करता है। यह राष्ट्र की वह क्षमता है जिसके बल पर वह दूसरे राष्ट्रों से अपनी इच्छा के अनुरूप कोई कार्य करा लेता है।"

ऑर्गेन्स्की ने कहा है कि अपने हितों के अनुकूल दूसरे राष्ट्रों के साथ व्यवहार को प्रभावित करने की योग्यता का नाम शक्ति है। जब तक कोई राष्ट्र यह नहीं कर सकता चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, चाहे वह कितना ही सम्पन्न क्यों न हो, परन्तु उसे शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता।"

पैडलफोर्ड व लिंकन के अनुसार, “यह (राष्ट्रीय शक्ति ) शब्द राष्ट्रीय शक्ति की भैतिक और सैनिक शक्ति तथा सामर्थ्य दो सूचक है ..... राष्ट्रीय शक्ति को हम शक्ति एवं सामर्थ्य का वह योग मान सकते हैं जो एक राज्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए तथा राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाता है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर राष्ट्रीय शक्ति के दो मुख्य उद्देश्यआत्म-रक्षा तथा अपना प्रभाव-विस्तार हैं।

किसी भी राष्ट्र का प्रथम उत्तरदायित्व राष्ट्रीय सुरक्षा है । इसके लिए उसे स्वयं शक्तिशाली बनना पड़ता है। परन्तु कुछ राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने महत्त्व में वृद्धि करना चाहते हैं । इस महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति वह राष्ट्र अपने देश की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या, धन, खनिज और सैन्य शक्ति आदि से सम्पन्न होने पर ही कर सकता है। परन्तु साथ ही शक्तिशाली बनने के लिए उसका अपने साधनों का समुचित प्रयोग तथा दूसरे राष्ट्रों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने के लिए समर्थन होना आवश्यक है, अन्यथा वह राष्ट्र शक्तिशाली नहीं माना जा सकेगा।

राष्ट्रीय शक्ति के 12 मूल तत्वों की विवेचना

राष्ट्रीय शक्ति के सन्दर्भ में मॉर्गेन्थाऊ के विचार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उसके अनुसार राष्ट्र का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया जा सकता। राष्ट्र उन व्यक्तियों का अमूर्त रूप है जिनकी कुछ विशेषताएँ सामान्य हैं। मॉर्गेन्थाऊ ने यह भी कहा है कि शक्ति का अर्थ मनुष्य की शक्ति है,जो दूसरे मनुष्यों के मस्तिष्क और कार्यों के ऊपर हो । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति का तात्पर्य राजनीतिक शक्ति से है।

राष्टीय शक्ति का स्वरूप

' राष्ट्रीय शक्ति के स्वरूप के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं

(1) राष्ट्रीय शक्ति राजनीति का मूल तत्त्व मानी जाती है तथा शक्ति के बिना जीवित रहना असम्भव है । अन्तराष्ट्रीय सम्बन्धों की वास्तविकता निरन्तर शक्ति के प्रयास पर ही आधारित है।

(2) राष्ट्रीय शक्ति में वृद्धि की भावना में सुरक्षा की भावना निहित होती है। राइनहोल्ड नेबूर ने तो कहा है, "जीने की इच्छा और शक्ति प्राप्त करने की इच्छा के मध्य अन्तर नहीं किया जा सकता।"

(3) कोई भी राष्ट्र शक्ति प्राप्त करने के लिए तब प्रेरित होता है जबकि अन्य राष्ट्र शक्ति का दुरुपयोग करने लगे।

(4) राष्ट्रीय शक्ति सम्प्रभुता का अनिवार्य तत्त्व है। शक्ति के बिना राष्ट्र का अस्तित्व असम्भव है।

(5) राष्ट्रीय शक्ति अप्रतिबन्धित तथा अनियन्त्रित है । अतः उसकी तुलना किसी संख्या आदि से नहीं की जा सकती, क्योंकि इस पर कानून का नियन्त्रण होता है।

(6) राष्ट्रीय शक्ति का नैतिक तथा कानूनी आधार होता है।

(7) राष्ट्रीय शक्ति एक स्वाभाविक तत्त्व है, क्योंकि सभी शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

 (8) राष्ट्रीय शक्ति आर्थिक, जनमत तथा सैनिक शक्ति के रूप में प्रतिपादित की जाती है, वह राज्य को युद्ध के लिए प्रेरित करती है।

(9) वर्तमान समय में आर्थिक शक्ति की वृद्धि राष्ट्रीय शक्ति के आधार पर मानी जाती है । इसके अतिरिक्त लोकमत,प्रचार, कूटनीति आदि शक्ति के ही रूप ।

राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्त्व

राष्ट्रीय शक्ति के तत्त्वों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-प्राकृतिक, सामाजिक और प्रत्ययात्मक प्राकृतिक तत्त्वों में भौगोलिक विशेषताएँ,प्राकृतिक साधन और जनसंख्या आते हैं। सामाजिक तत्वों में आर्थिक विकास, राजनीतिक ढाँचा और राष्ट्रीय मनोबल आते हैं। प्रत्ययात्मक तत्त्वों में नेतृत्व वर्ग के आदर्श,बुद्धि और दूरदर्शिता आते हैं। -

मॉर्गेन्थाऊ ने राष्ट्रीय शक्ति के दो प्रकार के तत्त्वों का उल्लेख किया है-वे तत्त्व जो कि सापेक्ष दृष्टि से स्थायी हैं तथा वे जो निरन्तर परिवर्तित होते रहते हैं। मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार इन दोनों वर्गों में समाविष्ट राष्टीय शक्ति के तत्त्व नौ हैं-भूगोल, प्राकृतिक साधन, औद्योगिक क्षमता,सैनिक तैयारियाँ,जनसंख्या, राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय मनोबल, कूटनीति का गुण और सरकार का गुण।

स्टीफन बी. जोंस ने राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्त्वों का वर्गीकरण निम्नवत् दिया  हैं।

(1) भौगोलिक संसाधन; जैसे-आकार,जलवायु आदि।

(2) प्राकृतिक संसाधन; जैसे-खनिज पदार्थ,कच्चा माल,उपज आदि।

(3) मानवीय संसाधन; जैसे-जनसंख्या,राष्ट्रीय जाति विन्यास आदि।

(4) सामग्री संसाधन; जैसे-शस्त्र सामग्री,पूँजी तथा राष्ट्रीय आय आदि ।

पामर तथा पार्किन्स ने राष्ट्रीय शक्ति के तत्त्वों को मानवीय और गैर-मानवीय वर्गों में विभाजित किया है। गैर-मानवीय तत्त्वों में भूगोल और प्राकृतिक साधनों को शामिल किया गया है और मानवीय तत्त्वों में जनसंख्या, तकनीकी ज्ञान, विचारधाराएँ, मनोबल और नेतृत्व को शामिल किया गया है।

संक्षेप में, राष्ट्रीय शक्ति के प्रमुख निर्णायक/निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं

(1) भौगोलिक तत्व -

मॉर्गेन्थाऊ के मतानुसार, “राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारण में भूगोल का स्थान बहुत महत्त्व रखता है। किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निर्धारण में भूगोल का विशेष महत्त्व होता है। राष्ट्र का भू-क्षेत्र, जलवायु, स्थिति, प्राकृतिक साधन आदि स्वयं में एक शक्ति तत्त्व होता है। इसमें भू-क्षेत्र का आकार विशेष महत्त्व रखता है। राष्ट्र के भू-क्षेत्र की विशालता के साथ उसकी शक्ति में भी वृद्धि होती है। विशाल भू-क्षेत्र में अधिक जनसंख्या तथा प्राकृतिक साधन भी बहत पाए जा सकते हैं। परन्तु केवल भू-क्षेत्र को ही राष्ट्र की शक्ति के निर्माण का आधार नहीं माना जा सकता, अन्य तत्त्वों का भी पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है।

(2) प्राकृतिक संसाधन-

राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण का अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व प्राकृतिक संसाधन है । प्राकृतिक संसाधनों से तात्पर्य भूमि,खनिज, सम्पत्ति आदि से है। ये संसाधन स्थायी हैं तथा प्रत्येक राष्ट्र के लिए अनिवार्य हैं । पामर तथा पार्किन्स के अनुसार प्राकृतिक संसाधन चार हैं कच्चा माल,खनिज पदार्थ,खाद्य पदार्थ तथा औद्योगिक शक्ति के साधन । कोई भी राष्ट्र खाद्यान्न के बिना जीवित नहीं रह सकता । प्रत्येक राष्ट्र को खाद्यान्न में आत्म-निर्भर होना चाहिए । खाद्यान्न की दृष्टि से आत्म-निर्भर न होने पर देश की स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दुर्बल रहेगी। लोहा, कोयला तथा तेल को कच्चे माल में बहुत महत्त्व प्राप्त है । कच्चे माल के द्वारा ही कोई राष्ट्र सैनिक सामग्री तथा अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण करके अपनी शक्ति में वृद्धि कर सकता है।

(3) जनसंख्या -

राष्ट्रीय शक्ति के तत्त्व के रूप में जनसंख्या का कम या अधिक होना भी महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान युग में कम जनसंख्या वाला राष्ट्र भी तकनीकी विकास द्वारा शक्तिशाली बन सकता है। फिर भी राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में जनसंख्या का महत्त्व काफी है। राष्ट्र की जनसंख्या अधिक होने पर उसकी सेना में अधिक सैनिक तथा कारखानों में कार्य करने के लिए अधिक श्रमिक होंगे। परन्तु अधिक जनसंख्या राष्ट्र के विकास में बाधा भी उत्पन्न करती है। अधिक जनसंख्या से राष्ट्रीय एकता को खतरा तथा खाद्यान्न की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

(4) तकनीक -

तकनीक विज्ञान का व्यावहारिक रूप है। तकनीक ने आधुनिक युग को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। तकनीक के अन्तर्गत वे सभी वैज्ञानिक आविष्कार तथा साधन आते हैं जो राष्ट्र की भौतिक समृद्धि में सहायक होते हैं । तकनीक के विकास से तीन क्षेत्रों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति बहुत प्रभावित हुई है

(i) औद्योगिक तकनीक राष्ट्रों को कच्चे माल के अभाव से भी मुक्त करती है। इसके द्वारा निवासियों के जीवन-स्तर को भी उठाया जा सकता है।

(ii) संचार तकनीक के अन्तर्गत वे साधन आते हैं जो वस्तुओं, मनुष्यों और विचारों का आदान-प्रदान करने में सहायता करते हैं । रेडियो,टेलीविजन आदि प्रचार साधनों के माध्यम से राष्ट्रीय सरकार जन-साधारण को प्रभावित करती है। संचार साधनों द्वारा विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय कटनीति तथा नैतिकता पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के दृष्टिकोण से सैन्य तकनीक के क्षेत्र में हए विकास ने राष्ट्रीय शक्ति को बहुत प्रभावित किया है। वर्तमान समय में सैन्य तकनीक में नित नये परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। आज सैन्य संगठन के आकार का महत्त्व नहीं रह गया है, बल्कि यह साज-सामान कितना आधुनिक है.राष्ट्रीय शक्ति के दृष्टिकोण से यह तथ्य बहुत महत्त्वपूर्ण है।

(5) सैन्य शक्ति - 

जब तक राष्ट्र आपसी विवादों के समाधान के लिए युद्ध का सहारा लेते रहेंगे, तब तक आवश्यक रूप से सैनिक शक्ति राष्ट्रीय शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य बनी रहेगी। राष्ट्र की सैन्य शक्ति के अन्तर्गत हम सैनिक संगठन के आधार को महत्त्व प्रदान कर सकते हैं । सैनिक संगठन आकार में जितना बड़ा होगा, उस देश को उतना ही अधिक शक्तिशाली समझा जाएगा। परन्तु वर्तमान समय में युद्ध के साज-सामान में नवीनतम विकास के चलते सैन्य संगठन के आकार का ही महत्त्व नहीं रह गया है, बल्कि ये साज-सामान कितना आधुनिक है,राष्ट्रीय शक्ति के अवलोकन के समय यह तथ्य भी ध्यान रखना होगा। आज के युग में तकनीकी विकास के चलते साज-सामान की नवीनता एवं उसकी अभिक्षमता ही अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। वर्तमान में आणविक हथियार सैनिक शक्ति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू है।

(6) राष्ट्रीय मनोबल -

राष्ट्रीय मनोबल देश के लोगों की उन इच्छाओं के योग को कहा जाता है जिनके चलते वे राष्ट्रीय कल्याण को व्यक्तिगत कल्याण से ऊपर रखते हैं । स्वाभाविक रूप से इनके अन्तर्गत जनता के द्वारा त्याग की भावना का समावेश हो जाता है। राष्ट्रीय मनोबल का युद्ध के समय विशेष महत्त्व होता है, जब सैनिक उद्देश्यों के लिए सेना के लोग एवं देश के नागरिक धैर्य का परिचय देते हैं। यद्यपि शान्तिकाल में भी मनोबल के महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण सन् 1940 का ग्रेट ब्रिटेन है । भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए चार युद्धों (1948, 1965, 19711999) तथा 1962 में चीन से युद्ध के समय भारतीय जनता ने अपने मनोबल का परिचय दिया।

(7) राष्ट्रीय नैतिकता

वास्तव में राष्ट्रीय नैतिकता राष्ट्रीय एकता का प्रतीक तथा आत्मा है। राष्ट्रीय नैतिकता रखने वाले राष्ट्र पर बाह्य आक्रमण भी सफल नहीं हो सकते हैं। राष्ट्रीय नैतिकता के निर्माण में राष्ट्रीय चरित्र, सरकार के स्वरूप, संस्कृति, नेतृत्व, परिस्थिति आदि का प्रभाव पड़ता है।

(8) आर्थिक प्रणाली - 

आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत वे आधारभूत सिद्धान्त आते हैं जिनके द्वारा उत्पादन तथा वितरण की परिस्थितियाँ नियन्त्रित होती हैं। आर्थिक प्रणाली व्यक्तिगत सम्पत्ति, राजकीय पूजीवाद या समाजवाद पर आधारित , सकती है।

(9) राजनीतिक प्रणाली

राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में राजनीतिक प्रणाली: प्रमुख स्थान है। वास्तव में सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक प्रणाली वह है जो राष्ट्र की सांस्कति मान्यताओं के अनुकूल हो तथा प्रशासन सुसंगठित, निष्पक्ष एवं प्रभावशाली हो राजनीतिक प्रणाली का राष्ट्र की विदेश नीति के निर्धारण तथा उसे लागू करने में विशेष स्थान होता है।

(10) सामाजिक प्रणाली -

राष्ट्रीय शक्ति के तत्त्व के रूप में सामाजिक प्रणाली का अत्यन्त महत्त्व है। जिस समाज के वर्गों में परस्पर तनाव हो तथा असन्तान अल्पसंख्यक हों. तो वह राष्ट शक्तिशाली नहीं हो सकता।

(11) विचारधाराएँ  -

अधिकांश विद्वानों के अनुसार राष्ट्रीय शक्ति के विकास में राजनीतिक विचारधारा का भी बहुत महत्त्व है। प्रत्येक देश की अपनी अलग राजनीतिक व्यवस्था होती है, जो विशेष विचारधारा पर आधारित होती है। राष्ट्र के नागरिक उसी विचारधारा से प्रेरित होकर स्वयं को राष्ट्रहित के लिए बलिदान करने को तत्पर रहते हैं। पाश्चात्य देश लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों में आस्था रखते हैं तथा साम्यवादी विचारधारा को आक्रमणकारी तथा शक्ति पर आधारित बताते हैं। इसके विपरीत साम्यवादी देश पश्चिमी देशों के साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध करते हैं । उनके अनुसार पश्चिमी पूँजीवादी विचारधारा साम्राज्यवाद को बढ़ावा देती है तथा संघर्ष एवं युद्धों को जन्म देती है। लेकिन फिर भी आधुनिक युग में लोकतान्त्रिक एवं साम्यवादी दो मुख्य विचारधाराएँ वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापकता के साथ प्रभावित कर रही हैं।

(12) नेतृत्व-

राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्त्वों में नेतृत्व का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। नेतृत्व न होने से राष्ट्रीय मनोबल भी महत्त्वहीन हो जाता है। युद्ध तथा शान्ति, दोनों ही कालों में नेतृत्व राष्ट्रीय शक्ति के तत्त्व के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। युद्ध के दौरान विपुल खाद्य सामग्री के भण्डार, औद्योगिक कच्चे माल की रक्षा,

औद्योगिक कारखानों का संचालन, राष्ट्रीय मनोबल को बढ़ाना आदि कार्य कुशल नेतृत्व के द्वारा ही सम्भव हैं । शान्तिकाल में नेतृत्व अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपने राष्ट्र की शक्ति का चातुर्यपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करता है । इस प्रकार राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में नेतृत्व का बहुत अधिक महत्त्व होता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में सभी तत्त्व महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये तत्त्व परस्पर सम्बद्ध होते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

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