लोकसभा - रचना,शक्ति तथा कार्य

प्रश्न 12. लोकसभा की रचना, शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।

अथवा '' भारतीय लोकसभा के गठन और कार्यों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - लोकसभा ' संसद का प्रथम और निम्न सदन है। इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं, इसलिए इसे लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है।

लोकसभा का गठन (संरचना)

लोकसभा के गठन (संरचना) को निम्नलिखित शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(1) सदस्य संख्या-

लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या (530 + 20 + 2) 552  हो सकती है, किन्तु वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या (530 + 13 + 2) 545 है। इनमें से 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से, 13 सदस्य संघ शासित क्षेत्रों से एवं 2 सदस्य आंग्ल-भारतीय वर्ग के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। लोकसभा के इन सदस्यों में 78 सदस्य अनुसूचित जातियों के तथा 41 सदस्य अनुसूचित जनजातियों के होते हैं।

लोकसभा

(2) लोकसभा सदस्यों का निर्वाचन-

लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। 18 वर्ष की आयु का प्रत्येक भारतीय अपने मत का उपयोग कर सकता है। लोकसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्र 'एकल सदस्यीय' रखे गए हैं। इन निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण इस प्रकार किया गया है कि लोकसभा का एक सदस्य कम-से-कम 5 लाख जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे। इस सम्बन्ध में अधिकतम सीमा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित की जाती रहेगी। मूल संविधान में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों हेतु 10 वर्ष की अवधि तक के लिए स्थान सुरक्षित रखे गए थे, किन्तु बाद में यह अवधि बढ़ाई जाती रही। वर्ष 2009 में किए गए 109 संविधान संशोधन द्वारा अब उनके लिए 25 जनवरी, 2020 तक स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं।

(3) मतदाताओं की योग्यताएँ-

लोकसभा के निर्वाचन में उन सभी व्यक्तियों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है जो निम्नलिखित योग्यताएँ पूर्ण करता हो

(i) वह भारत का नागरिक हो।

(ii) उसने कम-से-कम 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो।

(iii) उसका नाम उसके निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में अंकित हो।

(iv) वह पागल, दिवालिया अथवा कोढ़ी न हो।

(v) उसे संसद के किसी कानून द्वारा किसी अपराध के कारण मताधिकार से वंचित न किया गया हो।

(4) सदस्यों की योग्यताएँ -

संविधान के अनुसार लोकसभा की सदस्यता के लिए उम्मीदवार में निम्न योग्यताएँ होना आवश्यक हैं

(i) वह भारत का नागरिक हो।

(ii) उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।

(iii) भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अन्तर्गत वह कोई लाभ का पद धारण न किए हुए हो।

(iv) वह किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया न ठहराया गया हो तथा पागल न हो।

(v) उसे संसद के किसी कानून द्वारा अयोग्य न ठहराया गया हो।

(5) लोकसभा का कार्यकाल-

लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है। प्रधानमन्त्री के परामर्श से राष्ट्रपति लोकसभा को समय से पूर्व भी विघटित कर सकता है। ऐसा अब तक 8 बार (सन् 1970; 1977; 1979; नवम्बर, 1984; नवम्बर, 1989; मार्च, 1991; दिसम्बर, 1997 एवं सन् 1998) किया जा चुका है। संकटकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि द्वारा लोकसभा के कार्यकाल में वृद्धि कर सकती है, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक न होगी।

(6) वेतन, भत्ते व पेंशन

वर्तमान में प्रत्येक संसद सदस्य को 50,000 मासिक वेतन तथा 45,000 मासिक निर्वाचन क्षेत्र भत्ता प्राप्त होता है। प्रत्येक सांसद को अधिवेशन, समितियों आदि की बैठकों में भाग लेने और अन्य ऐसे ही कार्यों के लिए 2,000 प्रतिदिन के हिसाब से भत्ता प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त निवास, टेलीफोन, प्रथम श्रेणी में रेल यात्रा, बिजली-पानी व चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। ये सभी सुविधाएँ निःशुल्क हैं। सांसद के रूप में 4 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लेने पर अथवा दो लोकसभा के कार्यकाल में सदस्य रहने पर प्रत्येक सांसद को 20,000 प्रतिमाह पेंशन प्राप्त करने का प्रावधान किया गया है। भूतपूर्व सांसदों को नि:शुल्क रेल यात्रा व चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।

(7) लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अपने सदस्यों में से ही एक अध्यक्ष व एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती है। अध्यक्ष सभा की कार्यवाहियों का संचालन करता है, उसकी अनुपस्थिति में उसके कार्यों को उपाध्यक्ष करता है।

(8) अधिवेशन -

लोकसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं। लोकसभा की बैठक की अन्तिम तिथि और दूसरी बैठक की प्रथम तिथि में 6 महीने से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए। आवश्यकतानुसार दो से अधिक अधिवेशन भी बुलाए जा सकते हैं।

(9) गणपूर्ति-

लोकसभा की गणपूर्ति के लिए समस्त सदस्यों की संख्या के 1/10 सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वर्तमान लोकसभा के कुल 545 सदस्यों में से 55 सदस्य उपस्थित होने पर लोकसभा की कार्यवाही प्रारम्भ हो सकेगी।

लोकसभा की शक्तियाँ एवं कार्य -

लोकसभा समस्त भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करती है। यह संसद की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। इसे राज्यसभा से अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। डॉ. एस. पी. शर्मा के शब्दों में "यदि संसद देश का सर्वोच्च अंग है, तो लोकसभा संसद का सर्वोच्च अंग है। व्यवहार में लोकसभा ही संसद है।" -

लोकसभा की शक्तियों एवं कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(1) विधायी शक्तियाँ-

संविधान के अनुसार भारतीय संसद संघ सूची, समवर्ती सूची, अवशेष विषयों और कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानूनों का निर्माण कर सकती है। कोई भी विधेयक लोकसभा की स्वीकृति के बिना कानून का रूप धारण नहीं कर सकता, यद्यपि संविधान द्वारा साधारण और गैर-वित्तीय विधेयक के सम्बन्ध में समान शक्ति प्रदान की गई है। भारतीय संविधान में कहा गया है कि इस प्रकार के विधेयक दोनों में से किसी भी एक सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं और दोनों सदनों में पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जाएँगे। किन्तु यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाता है,

तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आहूत किया जाता है और बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाता है। लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा से अधिक होने के कारण सामान्यतया लोकसभा के पक्ष में ही निर्णय सम्भव होता है। इस प्रकार विधिनिर्माण के क्षेत्र मे अन्तिम शक्ति लोकसभा में ही निहित है और राज्यसभा साधारण और गैर-वित्तीय विधेयक को 6 माह तक रोक रखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकती है।

(2) वित्तीय शक्तियाँ-

भारतीय संविधान द्वारा वित्तीय क्षेत्र में लोकसभा को महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्रदान की गई हैं और इस सम्बन्ध में राज्यसभा की स्थिति बहुत निम्न है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पारित होने के पश्चात् विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है और राज्यसभा के लिए यह आवश्यक है कि उसे वित्त विधेयक की प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर विधेयक लोकसभा को लौटा देना होगा। संविधान में यह भी व्यवस्था है कि यदि राज्यसभा 14 दिन के अन्दर वित्त विधेयक को पारित नहीं करती है और न ही लोकसभा को वापस लौटाती है,

तो वित्त विधेयक निश्चित तिथि के बाद दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। अत: राज्यसभा को वित्त विधेयक के सम्बन्ध में केवल 14 दिन की विलम्बकारी शक्ति प्राप्त है। राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन इन्हें स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी माँगें भी लोकसभा के समक्ष रखी जाती हैं और इस प्रकार के समस्त व्ययों की स्वीकृति देने का एकाधिकार भी लोकसभा को ही प्राप्त है।

(3) कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति-

भारतीय संविधान द्वारा संसंदीय शासन की स्थापना की गई है। अत: संविधान के अनुसार संघीय कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिमण्डल संसद (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है। मन्त्रिमण्डल केवल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। संसद अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियन्त्रण रख सकती है; जैसेसंसद सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, उनकी आलोचना कर सकते हैं, उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव आदि ला सकते हैं। यही नहीं, संसद सरकारी विधेयक तथा बजट को अस्वीकार करके मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है।

(4) संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्ति

जहाँ एक ओर लोकसभा को सामान्य विधेयक पारित करने का अधिकार प्राप्त है, वहीं दूसरी ओर उसे संविधान में संशोधन-परिवर्तन करने का अधिकार भी प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान में संशोधन का कार्य संसद द्वारा ही किया जा - सकता है और इसी अनुच्छेद में उस प्रक्रिया का भी उल्लेख किया गया है जिसे संविधान संशोधन में अपनाना होता है। संविधान संशोधन के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा की स्थिति समान है, क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं और उन्हें तभी पारित समझा जाएगा जबकि संसद के दोनों सदन उन्हें अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दें।

(5) निर्वाचक मण्डल के रूप में कार्य-

लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा के सदस्य राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं तथा संघीय क्षेत्र की विधानसभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं। अनुच्छेद 66 के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर उप-राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। लोकसभा द्वारा अपने सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को निर्वाचित किया जाता है तथा यह उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।

(6) जनता की शिकायतों का निवारण-

लोकसभा सार्वजनिक विवाद का मंच है, जहाँ जनता की शिकायतों को सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। सांसद यह कार्य प्रश्न पूछकर, सार्वजनिक महत्त्व के प्रस्ताव रखकर, काम रोको प्रस्ताव रखकर आदि साधनों द्वारा पूरा करते हैं।

(7) अन्य कार्य-

लोकसभा कुछ अन्य कार्य भी करती है, जो निम्न प्रकार हैं

(i) लोकसभा और राज्यसभा मिलकर राष्ट्रपति पर महाभियोग लगा सकती

(ii) उप-राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए यदि राज्यसभा प्रस्ताव पास कर दे, तो इस प्रस्ताव का लोकसभा द्वारा अनुमोदन आवश्यक होता है।

(iii) लोकसभा और राज्यसभा मिलकर सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव पास कर सकती है।

(iv) विभिन्न संकटकालीन घोषणाओं को जारी रखने के लिए संसद की स्वीकृति आवश्यक है।

(v) लोकसभा अपने सदस्यों तथा किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकार के हनन के लिए दण्ड दे सकती है।

(vi) यदि राष्ट्रपति सर्वक्षमा देना चाहे, तो उसकी स्वीकृति संसद से लेना आवश्यक है।

 

 


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