द्वितीय शीत युद्ध - कारण तथा परिणाम

प्रश्न 12. नवीन शीत युद्ध की प्रकृति तथा कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा '' द्वितीय शीत युद्ध क्या है ? इसके कारण तथा परिणाम बताइए

उत्तर - सन् 1962 के क्यूबा संकट के पश्चात् शीत युद्ध में शिथिलता आने लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी और सोवियत प्रधानमन्त्री खुश्चेव ने विवेक से कार्य करते हुए विश्व को तीसरे विश्व युद्ध से उबार लिया। जहाँ अमेरिका ने क्यूबा पर आक्रमण न करने का आश्वासन दिया, वहीं सोवियत संघ ने क्यूबा से प्रक्षेपास्त्रों को हटाने का आश्वासन दिया, जिन्हें बाद में हटा भी लिया गया। आगे चलकर अमेरिका-सोवियत संघ सम्बन्धों में देतान्त अर्थात् तनाव-शैथिल्य की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे मित्रता, सहयोग और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना का विकास हुआ। परन्तु 1978-88 के मध्य अनेक ऐसी घटनाएँ घटित हुई जिन्होंने अमेरिका-सोवियत संघ सम्बन्धों में पुनः कटुता उत्पन्न कर दी। दोनों महाशक्तियाँ पुनः शीत युद्धकालीन भाषा का प्रयोग करने लगीं,शस्त्रों की होड़ पुनःप्रारम्भ हो गई, विभिन्न मुद्दों पर टकराव होने लगा और इस प्रकार नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध प्रारम्भ हो गया।

Second Cold War

द्वितीय शीत युद्ध के कारण

नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

(1) सोवियत संघ की शक्ति में वृद्धि -

देतान्त युग में सोवियत संघ परमाणु और नौसैनिक शक्ति में अमेरिका की बराबरी करने का प्रयत्न कर रहा था। जब अमेरिका विधतनाम युद्ध में उलझा हुआ था, तब सोवियत संघ ने परम्परागत अस्त्रों और अन्तरिक्ष अनसन्धान के क्षेत्र में अमेरिका से आगे निकलने का प्रयत्न किया। अमेरिका सोवियत संघ की इन गतिविधियों से सशंकित था।

(2) रीगन का राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होना -

एन् 1980 में रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। उन्होंने राष्ट्रपति बनते ही शस्त्र उद्योग और शस्त्र प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया, मित्र राष्ट्रों का पुनः शस्त्रीकरण किया तथा सोवियत संघ के प्रति उग्र नीति अपनाई, जिससे नवीन शीत युद्ध में उग्रता आई। __

(3) दक्षिण-पूर्वी एशिया में रूस का बढ़ता प्रभाव -

हिन्द चीन में सोवियत प्रभाव में दिनोंदिन वृद्धि होने लगी। कम्बोडिया और लाओस के साम्यवादियों को वियतनाम की सफलता से बल मिला । हेंग सामरिन ने वियतनाम से समर्थन व सैनिक सहायता प्राप्त करके जनवरी, 1979 में पोल पोत के ख्मेर शासन का तख्ता पलट दिया। इससे न केवल चीन रुष्ट हुआ, वरन् अमेरिका भी हड़बड़ा गया, क्योंकि वियतनाम के माध्यम से हिन्दचीन में सोवियत प्रभाव के बढ़ने की सम्भावनाएँ प्रबल हो गई थीं। फलतः चीन और अमेरिका ने हिन्दचीन में सोवियत प्रभाव के विस्तार को रोकने के लिए संयुक्त मोर्चा बना लिया। 17 फरवरी, 1979 को चीन ने वियतनाम को सबक सिखाने के उद्देश्य से अमेरिका से प्रेरणा पाकर उस पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण से वियतनाम सोवियत संघ के पक्ष में आ गया।

(4) अन्तरिक्ष अनुसन्धान में दोनों महाशक्तियों की होड़ -

सोवियत संघ और अमेरिका के मध्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ का सिलसिला विगत तीन दशकों से जारी था। सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों यह प्रचार करते रहे कि उनका अन्तरिक्ष अनुसन्धान मानव जाति के कल्याण के लिए है। किन्तु वास्तव में दोनों की ही नीयत साफ नहीं थी। दोनों का लक्ष्य अन्तरिक्ष में अपना प्रभुत्व स्थापित करना था। दोनों के अन्तरिक्ष अनुसन्धान का सम्बन्ध सैन्य प्रयोजन से था, न कि मानव-कल्याण से।

(5) अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप -

अफगानिस्तान में सौर क्रान्ति की सफलता और वहाँ की सत्ता साम्यवादियों के हाथों में आना अमेरिका के लिए एक बड़ा धक्का था। 27 दिसम्बर, 1979 को सोवियत संघ ने जिस तत्परता से अफगानिस्तान में कार्यवाही की, उससे अमेरिका सहित सम्पूर्ण विश्व हत्प्रभ रह गया । अमेरिका ने अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप की कटु निन्दा की। अमेरिका ने सोवियत संघ को अनाज देने और तेल की खोज के लिए आधुनिक संयन्त्र तथ तकनीकी जानकारी देने के अपने निर्णय को बदल दिया। यहाँ तक कि अमेरिका ने सन् 1980 में मॉस्को में होने वाले ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार कर दिया अमेरिका की ये कार्यवाहियाँ नवीन शीत युद्ध की शुरुआत थीं।

(6) यूरोप में मध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्रों का उलझा प्रश्न-

 सोवियत संघ ने यूरोप में एस.एस.20 प्रक्षेपास्त्रों को लगाने का निर्णय लिया। इससे नाटो देशों को भय था कि सोवियत संघ द्वारा लगाए जा रहे प्रक्षेपास्त्रों के कारण उनकी स्थिति दयनीय हो जाएगी,क्योंकि ब्रिटेन और फ्रांस के पास जो प्रक्षेपास्त्र थे, वे सोवियत संघ के नये और आधुनिक प्रक्षेपास्त्रों की तुलना में बहुत हल्के थे। अत: दिसम्बर, 1979 में निर्णय किया गया कि अमेरिका से अत्याधुनिक प्रक्षेपास्त्र मँगाकर नाटो देशों में लगाए जाएँ। सोवियत संघ के लिए यह बात चिन्ता का विषय थी।

नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध की प्रकृति (विशेषताएँ)

नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध की प्रकृति (विशेषताएँ) निम्न प्रकार हैं

(1) शीत युद्ध साम्यवाद बनाम पूँजीवाद के मध्य संघर्ष था, जबकि नवीन शीत युद्ध उपयोगिता पर आधारित था।

(2) शीत युद्ध का उद्देश्य साम्यवाद के विस्तार को रोकना था,जबकि नवीन शीत युद्ध का उद्देश्य सोवियत संघ की शक्ति और प्रभाव को सीमित करना था।

(3) नवीन शीत युद्ध में अमेरिका, साम्यवादी चीन और यूरोपीय देश एक साथ थे और दूसरी ओर अकेला सोवियत संघ था। अमेरिका ने सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए चीन की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, जबकि एक समय ऐसा था कि अमेरिका चीन की विस्तारवादी नीति का घोर विरोधी था।

(4) नवीन शीत युद्ध का क्षेत्र फारस की खाड़ी, पश्चिमी एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा हिन्द महासागर थे।

(5) शीत युद्ध स्टालिन की उग्र नीतियों का परिणाम था, किन्तु नवीन शीत युद्ध अमेरिका की मजबूरी थी । अमेरिका आर्थिक, राजनीतिक व तकनीकी चुनौतियों का सामना करने के लिए स्वयं को सुदृढ़ करने की नीति अपना रहा था।

नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध के परिणाम

नवीन (द्वितीय) शीत युद्ध के निम्न परिणाम सामने आए

(1) देतान्त को क्षति -

नवीन शीत युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम देतान्त की क्षति माना जा सकता है । क्यूबा संकट के पश्चात् दोनों महाशक्तियों के मध्य हॉट लाइन के माध्यम से वार्ता प्रारम्भ हुई । किन्तु दूसरे शीत युद्ध के प्रारम्भ होने के कारण महाशक्तियों के मध्य संवाद निरर्थक सिद्ध हो गया।

(2) तनाव क्षेत्रों में वृद्धि-

नवीन शीत युद्ध ने तनाव क्षेत्रों में वृद्धि की है। दक्षिण-पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया, फारस की खाड़ी और हिन्द महासागर क्षेत्र में उग्र प्रतिद्वन्द्विता को बढ़ावा मिला है।

(3) नि:शस्त्रीकरण के प्रयास विफल-

दूसरे शीत युद्ध ने शस्त्रों की होड़ को तेज किया है । परमाणु अप्रसार सन्धि, साल्ट वार्ताओं आदि ने देतान्त के लिए अनुकूल वातावरण सृजित किया था, किन्तु दूसरे शीत युद्ध से यह सब छिन्न-भिन्न हो गया। नवीन शीत शुद्ध ने परमाणु शस्त्रों के मामलों में ही नहीं, परम्परागत शस्त्रास्त्रों के क्षेत्र में भी निःशस्त्रीकरण को क्षति पहुँचाई है। इसका खतरनाक उदाहरण स्टारवार्स परियोजना है।

संक्षेप में नवीन शीत यद्ध काल में शान्तिपूर्ण प्रतिद्वन्द्विता का स्थान आक्रामक राजनीतिक-सैनिक प्रतिद्वन्द्विता ने ले लिया है। अब पुराने सैनिक अड्डों का आधुनिकीकरण, नये सैनिक अड्डों की खोज, नये शस्त्रों की खोज, अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित सेना युद्ध उन्माद की मनोवृत्ति को अभिव्यक्त करती है।

 

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