पदोन्नति क्या है ?

 BA-III-Political Science I 

प्रश्न .11-पदोन्नति से आप क्या समझते हैं ? पदोन्नति के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।

अथवा ‘’पदोन्नति के कौन-कौन से सिद्धान्त हैं ? किसी एक सिद्धान्त के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।

अथवा ‘’पदोन्नति क्या है ? लोक सेवकों की पदोन्नति के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

पदोन्नति का अर्थ है वर्तमान स्थिति से कुछ और कठिनाई वाले कार्य एवं उत्तरदायित्वपूर्ण पद पर नियुक्ति तथा वेतन में वृद्धि। 

एल. डी. ह्वाइट के अनुसार, "पदोन्नति का अर्थ है एक पद से किसी दूसरे पद पर नियुक्ति, जो उच्चतर श्रेणी का है तथा जिसमें कठिनतर प्रकृति एवं अधिक बड़े उत्तरदायित्व का कार्य करना पड़ता है। इसमें पद का नाम बदल जाता है तथा प्राय: वेतन में वृद्धि हो जाती है।"

विलियम जी. टॉपी के अनुसार, "पदोन्नति पदाधिकारी के एक पद से ऐसे दूसरे पद पर पहुँचने की ओर संकेत करती है जो उच्चतर श्रेणी या उच्चतर न्यूनतम वेतन वाला होता है। पदोन्नति का अभिप्राय है कर्मचारी के कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों में वृद्धि कर देना।"

Padonnati ka sidhant

संक्षेप में, पदोन्नति का अर्थ है निम्नतर श्रेणी से उच्चतर श्रेणी की ओर परिवर्तित कर्त्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों को ले जाना। वास्तव में यदि देखा जाए तो पदोन्नति योग्य और श्रेष्ठ सेवाओं का उचित पुरस्कार है। यह योग्य व्यक्तियों को ऐसे स्थानों पर नियुक्त करने की व्यवस्था है जहाँ वे अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। प्रायः पदोन्नति से वेतन में भी वृद्धि होती है।

पदोन्नति की विशेषताएँ -

पदोन्नति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) पदोन्नति अच्छे कर्मचारियों को संगठन की ओर आकर्षित करती है।

(2) पदोन्नति योग्य व्यक्तियों को उनकी सेवाओं का प्रतिफल है।

(3) पदोन्नति से कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।

(4) पदोन्नति से नियोक्ता को संगठन के अन्दर से ही उत्तरदायित्वों को सँभालने वाले योग्य तथा कुशल कर्मचारी मिल जाते हैं।

(5) पदोन्नति के फलस्वरूप कर्मचारी और अधिक उत्साह से कार्य करने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।

पदोन्नति के सिद्धान्त-

 पदोन्नति के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो सिद्धान्त प्रचलित हैं

(1) वरिष्ठता का सिद्धान्त -

पदोन्नति के इस सिद्धान्त के अनुसार पदोन्नति केवल वरिष्ठता के आधार पर होनी चाहिए अर्थात् जिस कर्मचारी की सेवा अवधि अधिक है, उसे पदोन्नति पहले मिलनी चाहिए और बाद में भर्ती होने वाले कर्मचारियों की पदोन्नति बाद में की जानी चाहिए। इसका कारण यह है कि सेवा में लम्बे समय तक कार्य करते रहने से कर्मचारी को व्यावहारिक ज्ञान व अनुभव प्राप्त हो जाता है, जो सैद्धान्तिक ज्ञान रखने वाले नये व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति करने से कर्मचारी उत्साह व जोश से कार्य करते हैं तथा उनके मनोबल में भी वृद्धि होती है। पदोन्नति का यह सिद्धान्त न्यायोचित माना जाता है, इसी कारण अधिकांश विद्वान् इस सिद्धान्त का समर्थन करते हैं।

वरिष्ठता के सिद्धान्त के पक्ष में तर्क-

वरिष्ठता के सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं-

(1) व्यक्ति निरपेक्षता–

यह सिद्धान्त व्यक्ति निरपेक्ष है। वरिष्ठता एक ऐसा निश्चित तथा वास्तविक तथ्य है जिसे अस्वीकृत नहीं किया जाता। मेयर्स के अनसार, "इस पद्धति में पदोन्नति के आन्तरिक झगड़े समाप्त हो जाते हैं और जिन व्यक्तियों के हाथ में पदोन्नति की शक्ति होती है, उन पर राजनीतिक या बाहरी दबाव नहीं पड़ता है।"

(2) अनुभव के आधार पर-

वरिष्ठता के साथ अनुभव जुड़ता रहता है। अत: वरिष्ठ व्यक्ति की पदोन्नति का अर्थ होता है कि अनुभवी व्यक्ति को पदोन्नत करना और ऐसा करना संगठन के दृष्टिकोण से लाभदायक होता है।

(3)न्यायोचित एवं निष्पक्ष आधार-

वरिष्ठता पदोन्नति का न्यायोचित एवं निष्पक्ष आधार है। इसमें प्रत्येक कर्मचारी को क्रमिक रूप से पदोन्नति का समान अवसर प्राप्त होता है।

(4) स्वयंचालित-

 यह पद्धति स्वयंचालित रहती है अर्थात् वरिष्ठता के आधार पर अपनी बारी आने पर कर्मचारियों को पदोन्नति अपने आप मिल जाती है। इसके लिए उन्हें कोई प्रयास नहीं करना पड़ता और न ही किसी की मुट्ठी गरम करनी होती है।

(5) कर्मचारियों का ऊँचा मनोबल-

इस पद्धति का एक अन्य लाभ यह है कि इसमें कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा रहता है, क्योंकि वे जानते हैं कि पदोन्नति निष्पक्ष तथा न्यायोचित आधार पर हो रही है और क्रमिक रूप में उन्हें भी अपने आप पदोन्नति मिल जाएगी।

(6) राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त-

यदि वरिष्ठता को पदोन्नति का आधार मान लिया जाए, तो राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि राजनेता वरिष्ठता बदलने में असमर्थ हैं।

(7) सरकारी सेवा जीवन वृत्ति के रूप-

में इस व्यवस्था के अन्तर्गत पदोन्नति सुनिश्चित रहती है, इसीलिए अत्यन्त योग्य व्यक्ति भी सरकारी सेवा की ओर आकर्षित होते हैं। इस प्रकार यह पद्धति सरकारी सेवा के एक स्थायी जीवन वृत्ति के रूप में अपनाए जाने में सहायक होती है।

वरिष्ठता के सिद्धान्त के विपक्ष में तर्क-

 वरिष्ठता के सिद्धान्त के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं

(1) वरिष्ठता योग्यता का सही आधार नहीं-

इस सिद्धान्त के आलोचकों का मत है कि वरिष्ठता और योग्यता एक वस्तु नहीं है। यह धारणा गलत है कि वरिष्ठ कर्मचारी नवागन्तुक कर्मचारी से निश्चित रूप से अधिक योग्य होता है। अतएव पदोन्नति वरिष्ठता नहीं, अपितु योग्यता के आधार पर की जानी चाहिए।

(2) स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का अभाव-

केवल वरिष्ठता को ही पदोन्नति का आधार मान लेने से कर्मचारियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है। अत: वे अधिक परिश्रम से काम नहीं करते।

(3) नवयुवकों का अहित-

इस सिद्धान्त से नवयुवकों का अहित होता है। यह सम्भव है कि वरिष्ठ कर्मचारियों की अपेक्षा नवागन्तुक कर्मचारी अधिक योग्य एवं कार्यकशल हों, किन्तु विभाग के वरिष्ठ कर्मचारियों से पहले उनकी पदोन्नति नहीं की जा सकती।

(II) योग्यता का सिद्धान्त-

 पदोन्नति के सम्बन्ध में योग्यता के सिद्धान्त की मान्यता यह है कि पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर न दी जाकर योग्यता के आधार पर दी जानी चाहिए अर्थात् पदोन्नति के आधार के रूप में कर्मचारी की व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता, दक्षता कायकुशलता को महत्त्व दिया जाना चाहिए। इस सिद्धान्त का उद्देश्य परिश्रमी और कार्यकुशल व्यक्तियों को पुरस्कृत करना तथा उन्हें अभिप्रेरित करना है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यदि योग्यता को पदोन्नति का आधार नहीं बनाया गया, तो एक ओर तो लोक सेवकों की प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा और दूसरी ओर प्रशासन में असक्षम और अकार्यकुशल व्यक्तियों का बोलबाला हो जाएगा। परन्तु किसी भी व्यक्ति की ये पता का पता लगाना आसान काम नहीं है। सामान्यतया कर्मचारियों की योग्यता आँकने के लिए निम्न तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं

(1) प्रतियोगी परीक्षाएँ-

 योग्यता निर्धारित करने के लिए प्रत्याशी की परीक्षा ली जा सकती है। ये परीक्षाएँ तीन प्रकार की होती हैं

(i) खुली प्रतियोगिता परीक्षा, (ii) सीमित प्रतियोगिता परीक्षा, तथा (iii) उत्तीर्णता परीक्षा।

(2) सेवा अभिलेख-

 प्रत्येक कर्मचारी की सेवा का एक अभिलेख अथवा विवरण रखा जाता है और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा इस सेवा अभिलेख के आधार पर कर्मचारी की कार्यक्षमता का मूल्यांकन कर लिया जाता है। इन सेवा अभिलेखों के आधार पर कर्मचारियों की सापेक्षिक योग्यता का निर्धारण कर लिया जाता है।

(3) विभागाध्यक्ष का निर्णय-

 योग्यता निर्धारित करने के लिए विभागाध्यक्ष का अभिमत भी प्रयोग में लाया जाता है। चूंकि कर्मचारी सबसे अधिक अपने विभागाध्यक्ष के सम्पर्क में आता है, इसलिए उसके विषय में सही अभिमत उसका ही होता है। यदि विभागाध्यक्ष किसी कर्मचारी को पदोन्नति के योग्य बताता है, तो उसको पदोन्नत कर दिया जाना चाहिए और यदि वह अयोग्य बताता है, तो उसको पदोन्नत नहीं किया जाना चाहिए।

इन परीक्षाओं एवं जाँचों की व्यवस्था इसलिए की जाती है जिससे पदोन्नति की शुद्ध एवं ठोस नीति का निर्माण किया जा सके। पदोन्नति नीति की सफलता की कसौटी है-कर्मचारियों में पाया जाने वाला सन्तोष, उच्च मनोबल, सहयोग एवं कर्त्तव्यनिष्ठा की भावना। यदि पदोन्नति मनमाने ढंग से की जाती है, तो कर्मचारियों में असन्तोष, ईर्ष्या, पारस्परिक मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे प्रशासन में घुन लग जाता है।

पदोन्नति का महत्त्व

पदोन्नति प्रशासन की कुशलता के लिए परमावश्यक है। प्रो. ह्वाइट का कथन है कि "लोकहित की रक्षा सर्वोत्तम ढंग से तभी हो सकती है जब समस्त अर्हता प्राप्त कर्मचारियों को पदोन्नति के यथोचित अवसर उपलब्ध हों।"

प्रॉक्टर के अनुसार, "कर्मचारियों के लिए पदोन्नति पुरस्कार अथवा सम्भावी परस्कार के रूप में प्रत्यक्ष महत्त्व रखती है। वास्तविक पदोन्नति एक पुरस्कार है, जबकि पदोन्नति का अवसर सम्भावी पुरस्कार है।"

प्रो. विलोबी के अनुसार, "पदोन्नति प्रणाली का महत्त्व दो कारणों से है प्रथमतः इससे योग्य व्यक्ति आकर्षित होते हैं और दूसरे इससे कर्मचारियों को कुशलता से कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।"

पदोन्नति के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं

(1) पदोन्नति अच्छे कार्य का पुरस्कार है। इससे कर्मचारी अपने कार्य को लगन, परिश्रम तथा ईमानदारी से पूरा करते हैं।

(2) पदोन्नति कर्मचारियों के लिए व्यापक प्रेरणा का स्रोत है। यह कर्मचारियों को आन्तरिक रूप से अभिप्रेरित करती है।

(3) पदोन्नति के फलस्वरूप संगठन को योग्य, अनुभवी तथा क्षमतावान कर्मचारी मिल जाते हैं। इससे प्रशासकीय कुशलता में वृद्धि होती है।

(4) पदोन्नति से कर्मचारियों के मनोबल तथा उत्साह में वृद्धि होती है।

(5) पदोन्नति लोक सेवकों को विकास के अवसर प्रदान करती है।

(6) यह प्रणाली नैतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त है, क्योंकि इसके कारण लोक सेवक सुखी तथा सम्मानित अनुभव करता है।

Comments

  1. इस जानकारी का पत्र चाहिए।

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