प्रयोजनमूलक हिन्दी/कार्यालयी हिन्दी की विशेषताएं लिखिए

प्रश्न 2. प्रयोजनमूलक हिन्दी के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तार से वर्णन कीजिए। 

अथवा ‘’ कार्यालयी हिन्दी के गुणों का उल्लेख कीजिए।  

अथवा ‘’ प्रयोजनमूलक हिन्दी के कौन-कौन से गुण हैं ? सविस्तार वर्णन कीजिए।  

अथवा  ‘’ प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- प्रयोजनमूलक हिन्दी से अभिप्राय हिन्दी के उस रूप से है जिसको अंग्रेजी में फंक्शनल हिन्दी (Functional Hindi) कहा जाता है। यह अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान (Applied Linguistic) के अन्तर्गत नव विकसित बहुआयामी उपशाखा है जो ज्ञान-विज्ञान की सोच को अभिव्यक्त कर विभिन्न प्रयोजनों में प्रयुक्त होकर अपने कार्य को यथासाध्य सम्पन्न करती है।

Prayojanmulak Hindi

इसके सम्बन्ध में डॉ. दिलीप सिंह जी की मान्यता है, जीवन और समाज की विभिन्न आवश्यकताओं व दायित्वों की पूर्ति के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हिन्दी ही प्रयोजनमूलक हिन्दी है।

जबकि डॉ. बृजेश्वर वर्मा ने इसे इस प्रकार परिभाषित किया हैप्रयोजनमूलक विशेषण हिन्दी के व्यावहारिक पक्ष को अधिक उजागर करने के लिए प्रयक्त हआ है। आज प्रयोजनमूलक शब्द अंग्रेजी के Functional Language के रूप में प्रयुक्त हो रहा है।"

प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रमुख विशेषताएँ-

प्रयोजनमूलक हिन्दी की अधोलिखित विशेषताएँ हैं

(1)प्रयोजनीयता-

हिन्दी की जीवन्तता का रहस्य ही उसकी प्रयोजनीयता है। वे भाषाएँ मर जाती हैं जिनका प्रयोग विकास एवं परिवर्तन नहीं होता। हिन्दी के प्रयोजनमूलक रूप का सर्वोत्कृष्ट विकास इसलिए हुआ कि उसमें प्रयोजनीयता का गुण विद्यमान है। आज राजभाषा के रूप में कार्यालयों, वाणिज्यिक, प्रौद्योगिक क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिन्दी का ही प्रयोग हो रहा है।

(2) वैज्ञानिकता-

किसी भी विषय के तर्क संगत.कार्य-कारण भाव से युक्त विशिष्ट ज्ञान पर आश्रित प्रवृत्ति को वैज्ञानिक कहा जाता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी सम्बन्धित विषय-वस्तु को विशिष्ट तर्क एवं कार्य-कारण सम्बन्धों पर आश्रित नियमों के अनुसार विश्लेषित करती है। विज्ञान की भाषा तथा शब्दावली के अनुसार ही इसकी शब्दावली में स्पष्टता, तटस्थता तथा तार्किकता पायी जाती है । अतः यह अपनी प्रवृत्ति, भाषिक संरचना एवं विषम विश्लेषण आदि सभी स्तरों पर वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है।

(3) भाषिक विशिष्टता-

भाषिक विशिष्टता के कारण ही प्रयोजनमूलक हिन्दी साहित्यिक हिन्दी से पृथक् है । विभिन्न भाषाओं के शब्दों को ग्रहण कर अपने शब्द भण्डार की श्रीवृद्धि की है। इसकी भाषा वाच्यार्थ प्रमुख तथा एकार्थक होती है तथा इसमें कहावतें, मुहावरे, अलंकार आदि को स्थान नहीं दिया जाता है। इसमें तकनीकी तथा पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग विद्यमान रहता है । कर्मवाच्य प्रधान होती है।

(4) सामाजिकता-

प्रयोजनमूलक हिन्दी में सामाजिकता के तत्व समाविष्टं रहते हैं। सामाजिक परिस्थिति, सामाजिक भूमिका तथा सामाजिक स्तर के अनुरूप प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रयुक्ति-स्तर तथा भाषा-रूप होते हैं। सामाजिक विज्ञान के समान ही प्रयोजनमूलक हिन्दी में अन्तर्निहित सिद्धान्त और प्रयुक्त ज्ञान मनुष्य के सामाजिक प्रयुक्तिपरक क्रियाकलापों का कार्य-कारण सम्बन्ध से तर्कनिष्ठ अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। अतः सामाजिकता प्रयोजनमूलक हिन्दी का प्रमुख गुण है।

 

 

 

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