उद्यमिता का अर्थ और परिभाषा

प्रश्न 4. उद्यमिता का क्या आशय है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

अथवा '' उद्यमिता को परिभाषित कीजिए। इसकी प्रकृति स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- समाज मनोविज्ञान एवं सैन्य अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में उद्यमिता का प्रयोग प्राचीन समय से होता रहा है। आर्थिक क्षेत्र में उद्यमिता विचार का प्रारम्भ 18वीं शताब्दी से माना जाता है। उद्यमिता एक कौशल चिन्तन एवं तकनीक है। उद्यमिता औद्योगिक, सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति की आधारशिला है। वर्तमान युग भूमण्डलीकरण का युग है और इस युग में औद्योगिक एवं आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन की अनेक चुनौतियों एवं अवसरों का सामना प्रत्येक देश कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप देशों की अर्थव्यवस्था प्रबन्धकीय अर्थव्यवस्था से साहसिक (उद्यमी) अर्थव्यवस्था में बदल रही है।

पीटर एफ. ड्रकर ने कहा है, "उद्यमी समाज का उदय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण सन्धिकाल सिद्ध हो सकता है।"

उद्यमिता का अर्थ-

उद्यमिता या साहसिकता एक कार्यविधि एवं भावना का समन्वय है। यह मात्र जीविकोपार्जन की कार्य-प्रणाली ही नहीं, अपितु कौशल एवं व्यक्तित्व विकास की प्रभावी तकनीक भी है। आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत रूप में उद्यमिता का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं एवं जोखिमों का सामना करने की प्रवृत्ति है। जो व्यक्ति जोखिम वहन करते हैं, उनको साहसी या उद्यमी कहते हैं।

udymita ko paribhashita

आधुनिक युग में उद्यमिता का आशय गतिशील आर्थिक वातावरण में सृजनात्मक एवं नव-प्रवर्तनकारी योजनाओं एवं विचारों को क्रियान्वित करने की योग्यता से है। उद्यमी नये उपक्रम की स्थापना, नियन्त्रण एवं निर्देशन करने के साथ-साथ परिवर्तन एवं नव-प्रवर्तन भी करता है।

उद्यमिता की परिभाषाएँ-

उद्यमिता की परिभाषाओं को अध्ययन की सुविधा व उद्यमिता की विभिन्न विचारधाराओं के दृष्टिकोण से तीन श्रेणियों में बाँटा गया है-

(I) प्राचीन मत की परिभाषाएँ-

इस श्रेणी की परिभाषाएँ व्यवसाय के प्रवर्तन, संगठन व जोखिम वहन करने की क्षमता से सम्बन्धित हैं-

(1) ए. एच. कोल के अनुसार, उद्यमिता एक कम्पनी अथवा व्यक्तियों के समूह की एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है, जिसमें निर्णयों की एक एकीकृत श्रृंखला सम्मिलित होती है। यह आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए एक लाभप्रद व्यावसायिक इकाई का निर्माण, संचालन एवं विकास करती

(2) पीटर किल्बाई के अनुसार, "उद्यमिता व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है। इसमें विभिन्न क्रियाओं के साथ-साथ बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबन्ध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है।"

(II) नव-प्राचीन मत की परिभाषाएँ-

इस मत के विद्वानों ने उद्यमिता को प्रबन्धकीय कौशल एवं नव-प्रवर्तन के सन्दर्भ में परिभाषित किया है-

(1) जोसेफ ए. शुम्पीटर के अनुसार, "उद्यमिता एक नव-प्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा एक नेतृत्व कार्य है।"

(2) पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, "व्यवसाय में अवसरों को अधिकाधिक करना अर्थपूर्ण है। वास्तव में उद्यमिता की यही सही परिभाषा है।"

(3) एच. डब्ल्यू. जॉनसन के शब्दों में, "उद्यमिता तीन आधारभूत तत्त्वों का योग है-अन्वेषण, नव-प्रवर्तन एवं अनुकूलन।"

(III) आधुनिक मत की परिभाषाएँ

इस वर्ग के विचारकों के अनुसार उद्यमिता व्यवसाय, समाज तथा वातावरण को जोड़ने का कार्य करती है। इस वर्ग में उद्यमिता का व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है-

(1) रिचमैन तथा कोपेन के अनुसार, "उद्यमिता किसी सृजनात्मक बाह्य या खुली प्रणाली की ओर संकेत करती है। यह नव-प्रवर्तन, जोखिम वहन तथा गतिशील नेतृत्व का कार्य है।"

(2) रॉबर्ट लैम्ब के अनुसार, "उद्यमिता सामाजिक निर्णयन का वह स्वरूप है जो आर्थिक नव-प्रवर्तनों द्वारा सम्पादित किया जाता है।"

(3) राव एवं मेहता के अनुसार, "उद्यमिता पर्यावरण का सृजनात्मक एवं नव-प्रवर्तनकारी प्रत्युत्तर है।"

उपर्युक्त विभिन्न परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में विलियम वोमॉल ने कहा है कि "उद्यमिता का अर्थ सैद्धान्तिक रूप से भ्रामक रहा है।"

उद्यमिता की विशेषताएँ (प्रकृति)-

उद्यमिता आर्थिक अवसरों एवं प्रेरणाओं का परिणाम होने के साथ एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक क्रिया है। उद्यमिता की विशेषताओं (प्रकृति) को निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) जोखिम उठाना-

उद्यमी जोखिम उठाने वाला होता है, न कि जोखिम से बचने वाला। अनिश्चितताओं एवं जोखिमों को वहन करने की भावना एव क्षमता उद्यमिता की प्रमुख विशेषता है। पीटर एफ. डकर का मत है कि "उद्यमिता को अत्यन्त जोखिमपूर्ण मानना केवल एक भ्रम है। उद्यमिता जुआ नहीं है। उपक्रम का प्रबन्ध व व्यवस्था उचित रूप से होने तथा उपयुक्त अनुसन्धान विाध एवं सिद्धान्तों का पालन करने पर उद्यमिता जोखिमपूर्ण नहीं रह जाती है।

(2) नव-प्रवर्तन-

उद्यमिता एक नव-प्रवर्तनकारी कार्य है। नव-प्रवर्तन में नवीन संसाधनों, नवीन उत्पादन, नवीन तकनीक, नवीन उपयोगिताओं का सृजन, नवीन प्रबन्धकीय कौशल आदि को शामिल किया जाता है। नव-प्रवर्तन सुनियोजित, सुव्यवस्थित एवं सकारात्मक ढंग से किया जाता है।

(3) रचनात्मक क्रिया-

शुम्पीटर का कथन है कि "उद्यमिता एक सृजनात्मक क्रिया है।" उद्यमिता की प्रकृति रचनात्मक होती है। कार्य संस्कृति एवं गुणवत्ता वृद्धि का प्रयास रचनात्मक चिन्तन द्वारा किया जाता है। रचनात्मक चिन्तन हमेशा सकारात्मक, व्यावहारिक एवं मौलिक विचारों का क्रियान्वयन करने की प्रेरणा प्रदान करता है।

(4) ज्ञान पर आधारित क्रिया-

उद्यमिता ज्ञान पर आधारित क्रिया है। बिना ज्ञान के उद्यमिता अर्जित नहीं होती एवं बिना अनुभव के उद्यमिता का कोई व्यवहार नहीं होता। उद्यमिता सिद्धान्तों, विचारधारा एवं आचरण पर आधारित होती है। सांख्यिकी, अर्थशास्त्र, प्रबन्धशास्त्र, मनोविज्ञान एवं व्यवहार विज्ञान का ज्ञान उद्यमिता को विकसित करने के लिए आवश्यक है।

(5) व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया-

उद्यमिता व्यवसाय अथवा उद्योग प्रवर्तन या नव-प्रवर्तन की क्रिया के साथ-साथ व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया भी है। कोई भी व्यक्ति नव-प्रवर्तन को अपनाकर उद्यमी नहीं बन जाता, अपितु उसमें निरन्तर संलग्न रहकर अपनी पहचान स्थापित करता है।

 (6) वातावरण से सम्बन्धित प्रक्रिया-

शुम्पीटर का कथन है कि "उद्यमिता प्रत्येक बाह्य स्थिति का रचनात्मक उत्तर है।" उद्यमिता वातावरण से सम्बन्धित एक प्रक्रिया है। उद्यमी प्रवृत्तियों का विकास सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक तकनीकी, आर्थिक एवं भौतिक वातावरण के घटकों एवं उनमें परिवर्तनों को ध्यान में रखने से होता है।

(7) व्यवसाय अभिमुखी-

उद्यमिता व्यक्ति को व्यावसायिक कल्पना एवं व्यवसाय प्रवर्तन की प्रेरणा देती है। उद्यमिता सामग्री एवं श्रम को रूपान्तरित करके उनके आर्थिक मूल्य को विकसित करने की क्रिया है।

(8) प्रबन्ध उद्यमिता का आधार है-

उद्यमी प्रवृत्तियों के क्रियान्वयन का आधार प्रबन्ध है । प्रबन्ध के द्वारा ही उद्यमी आर्थिक नेतृत्व का कार्य करता है एवं प्रबन्धक उद्यमी के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करता है। जोखिम वहन, प्रवर्तन, नव-प्रवर्तन एवं उद्यमी निर्णयों व योजनाओं के क्रियान्वयन का माध्यम प्रबन्ध है।

(9) उद्यमिता एक अर्जित व्यवहार-

उद्यमिता एक अर्जित व्यवहार जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और संगठन को उद्यमिता के प्रति सजग रहकर सार्थक प्रयास करना होता है। पीटर एफ. ड्रकर ने कहा है, "उद्यमी व्यवसाय एवं उद्यम को कर्त्तव्य मानते हैं। वे इसके प्रति अनुशासित होते हैं, प्रयास करते हैं तथा व्यवहार में लाते हैं।"

(10) सामूहिक आचरण-

उद्यमिता में नेतृत्व एक व्यक्ति से विशेषज्ञों के एक संगठित समूह में हस्तान्तरित हो जाता है। अत: उद्यमिता को सामूहिक आचरण कहा जाता है। इसमें विनियोजक, प्रवर्तक, पूँजीपति, आविष्कारक और प्रबन्धक समूह में उद्यमी प्रवृत्तियों का आचरण करते हैं।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर उद्यमिता की विशेषताएँ (प्रकृति) पूर्ण रूप से स्पष्ट होती हैं। प्रत्येक व्यवसाय, समाज एवं अर्थव्यवस्था में उद्यमिता विद्यमान होती है। 

लैम्ब ने ठीक ही कहा है, "सभी समाज अपने ढंग से उद्यमी होते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि उद्यमिता जीवन के प्रत्येक पग पर आवश्यक है।"

 

 

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