अवसरों के विश्लेषण से क्या आशय है ?

प्रश्न 10. अवसरों के विश्लेषण से क्या आशय है ? अवसर विश्लेषण के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

अथवा‘’ किसी उपक्रम को प्रवर्तित करने के लिए अवसरों का विश्लेषण आप किस प्रकार करेंगे?

अथवा‘’उद्यमियों के व्यावसायिक अवसरवादिता विश्लेषण को समझाइए। अवसरवादिता विश्लेषण के घटकों (तत्त्वों)की विवेचना कीजिए।

उत्तर-किसी संयोग स्थिति से लाभ उठाने की सम्भावना को ही 'अवसर' कहा जाता है। अवसर अल्पकालीन एवं अस्थायी, दोनों प्रकार का होता है। आज विभिन्न क्षेत्रों में अनेक अवसर उपलब्ध हैं, परन्तु सही अवसर की पहचान करना एक जटिल कार्य है। कुछ उद्यमी ऐसे होते हैं जो अवसर देखते ही उससे लाभ उठा लेते हैं। इसके विपरीत कुछ उद्यमी ऐसे होते हैं जो उपलब्ध अवसर को हाथ से निकल जाने देते हैं और उसका लाभ नहीं उठा पाते। ऐसे उद्यमी बाद में पछताते हैं।

सामान्यत: अवसर दो प्रकार के होते हैं-

(1) पर्यावरण में विद्यमान अवसर; - जैसेकागज बनाने का कारखाना स्थापित करना, जूते का कारखना स्थापित करना एवं उसका निर्यात करना आदि।

(2) निर्मित अवसर - जैसेटेलीविजन, कम्प्यूटर, सॉफ्टवेयर तथा विभिन्न बीमारियों (जैसेडायबिटीज अथवा ब्लड प्रेशर की दवा) आदि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अनुसन्धान एवं अन्वेषण होने के कारण बड़ी मात्रा में उद्यमियों को व्यापार प्रारम्भ करने का अवसर प्राप्त होना; जैसे-निर्माण करना, मरम्मत करना, आदि। पुनर्योजन (Assembling) करना, प्रचार करना, देश-विदेश में विपणन करना I

udymita me avsaro ke prakar

अवसरों के विश्लेषण से आशय

अवसरों के विश्लेषण से आशय किसी परियोजना के विचार के गुणों, दोषों, जोखिमों, बाधाओं एवं कमियों आदि का व्यापक रूप से मल्यांकन करना है। इसके अन्तर्गत उद्यमी नये विचारों, नई अवधारणाओं व नये अवसरों की पहचान करता है। किसी परियोजना को व्यावहारिक रूप देने में उसे किन-किन बाधाओं, रुकावटों एवं जोखिमों का सामना करना पडेगा, प्रतिस्पर्धा की स्थिति कैसी है, संसाधनों का एकत्रीकरण कैसे होगा, बाजार का क्षेत्र किस प्रकार का है, कितनी मात्रा में धन विनियोजित करना होगा और यह धन किन स्रोतों से प्राप्त किया जाएगा, परियोजना का आकार कैसा होगा, परियोजना की स्थापना कहाँ पर करना लाभप्रद होगा आदि बातों पर विचार करना पड़ता है।

अवसरों के विश्लेषण के उद्देश्य

अवसरों के विश्लेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) एक निश्चित क्षेत्र में तकनीकी एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भौतिक संसाधनों के उपयोग तथा विकास की सम्भावनाओं का मूल्यांकन करना।

(2) देश एवं क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लघु, मध्यम तथा बडे पैमाने के उद्योगों की सम्भावनाओं का अध्ययन एवं परीक्षण करना। ये सम्भावनाएँ तकनीकी तथा आर्थिक दृष्टि से व्यवहारसाध्य होनी चाहिए।

(3) उन उद्योगों की पहचान करना जो स्थानीय संसाधनों पर आधारित नहीं हैं, किन्तु भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे उद्योगों पर आर्थिक रूप से विचार किया जा सकता है।

(4) अन्य क्षेत्रों के लिए सम्भावित उद्योगों के सन्दर्भ में अवसरों की पहचान करना।

(5) व्यवहारसाध्य उद्योगों के लिए श्रम, पूँजी, सामग्री आदि का अनुमान तथा मूल्यांकन करना।

(6) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन विकास सम्भावनाओं को ज्ञात करना।

(7) औद्योगिक विकास प्रक्रिया के सन्दर्भ में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के प्रभाव का मूल्यांकन करना।

अवसरों के विश्लेषण के घटक  

अथवा  

अवसरों के विश्लेषण के स्त्रोत

अवसरों के विश्लेषण में निम्नलिखित घटकों अथवा स्रोतों को सम्मिलित करते हैं-

(1) बाजार एवं माँग विश्लेषण-

वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक युग में किसी व्यावसायिक इकाई की सफलता उसके उत्पादन की मात्रा पर नहीं, वरन् इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी मात्रा में माल का विक्रय कर सकती है। इसी कारण यह कहा जाता है कि बाजार एवं मॉग विश्लेषण अवसर विश्लेषण प्रारम्भिक बिन्दु है। किसी व्यावसायिक इकाई का आकार एवं उसमें प्रयक्त प्रौद्योगिकी काफी सीमा तक उसके बाजार के क्षेत्र एवं ग्राहकों की माँग पर निर्भर करती है। बाजार एवं माँग विश्लेषण के अन्तर्गत प्रमुख रूप से निम्नलिखित सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण किया जाता है-

(i) भूतकाल एवं वर्तमान में उत्पादन का विश्लेषण।

(ii) वर्तमान एवं भावी माँग का अनुमान।

(iii) उपभोक्ताओं की रुचि, पसन्द एवं आवश्यकताओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन।

(iv) निर्यात की सम्भावनाएँ।

(v) सरकारी नीति, मूल्य परिवर्तन तथा आर्थिक एवं सामाजिक घटकों का माँग पर प्रभाव।

(2) संसाधन विश्लेषण-

संसाधनों के अन्तर्गत भूमि, भवन, कच्चा माल, यन्त्र, तकनीकी, वित्तीय साधन, मानव शक्ति आदि को सम्मिलित किया जाता है। इसके अन्तर्गत यह देखते हैं कि परियोजना हेतु पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध हैं अथवा नहीं। यदि वांछित संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, तो अवसर विश्लेषण की प्रक्रिया तुरन्त प्रभाव से समाप्त हुई मानी जानी चाहिए। इसके विपरीत यदि संसाधन उपलब्ध हैं, तो उनके स्रोत कहाँ हैं तथा उन्हें किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है।

(3) तकनीकी विश्लेषण

अवसर विश्लेषण के अन्तर्गत उठाया जाने वाला तीसरा कदम परियोजना को स्थापित करने के लिए तकनीकी सम्भावनाओं का विश्लेषण करना है। यदि तकनीकी विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि तकनीकी दृष्टि से उसे स्थापित करना सम्भव नहीं है, तो ऐसी स्थिति में उक्त परियोजना पर आगे विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। सामान्य रूप से तकनीकी विश्लेषण के अन्तर्गत निम्नलिखित पहलुओं पर विचार किया जाता है-

(i) उत्पादित माल या सेवा का विवरण।

(ii) उत्पादन तकनीक तथा प्रक्रिया।

(iii) तकनीकी, कुशल एवं अकुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता।

(iv) संयन्त्र अभिन्यास।

(4) वित्तीय विश्लेषण-

इसके अन्तर्गत किसी परियोजना की लाभदेयता एवं वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता को ज्ञात किया जाता है, जिनकी आवश्यकता परियोजना की लागत, कच्चे माल की लागत, तकनीकी लागत, विपणन लागत, सचालन व्यय आदि के भुगतान करने के लिए होती है। सामान्यतः वित्तीय विश्लेषण के अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

(i) परियोजना की कुल लागत, जिसमें भूमि, भवन, यन्त्र, कच्चा माल, नकद प्रवाह आदि सम्मिलित हैं।

(ii) स्थायी एवं कार्यशील पूँजी की आवश्यकता तथा उनके स्रोत।

(iii) अनुमानित बिक्री, साख की अवधि, आय, लाभ, ब्याज, विनियोग पर प्रत्याय आदि।

(iv) सरकार से प्राप्त होने वाली वित्तीय रियायतें एवं सहायता।

(v) सार्वजनिक उद्यमों की दशा में सामाजिक लाभ विश्लेषण।

(vi) विनियोग पर प्रत्याय।

(5) व्यावसायिक पर्यावरण विश्लेषण-

एक उद्यमी सदैव नये-नये व्यावसायिक अवसरों की खोज में रहता है, किन्तु यह कार्य सरल नहीं है। किसी भी नवीन उद्यम की स्थापना करने से पूर्व उस क्षेत्र के व्यावसायिक पर्यावरण का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। व्यावसायिक पर्यावरण विश्लेषण को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं-

(i) औद्योगिक नीति,

(ii) लाइसेन्सिंग नीति,

(iii) विभिन्न औद्योगिक एवं व्यापारिक अधिनियम,

(iv) मूल्य नियन्त्रण नीति,

(v) कर-भार,

(vi) आयातनिर्यात नीति,

(vii) वितरण प्रणाली,

(viii) लघु उद्योग की दशा में सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाएँ, रियायतें, अनुदान एवं प्रेरणाएँ,

(ix) औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित की जाने वाली इकाइयों को प्रदत्त छूटें, रियायतें एवं अन्य प्रेरणाएँ,

(x) निर्यात प्रधान इकाइयों के लिए प्रेरणाएँ,

(xi) विद्यमान उद्योगों की स्थिति एवं उनकी लाभदेयता।

(6) जोखिम विश्लेषण-

किसी भी व्यवसाय में अनेक जोखिम सम्मिलित रहते हैं, जिनमें आर्थिक जोखिम, सामाजिक जोखिम, वातावरणीय जोखिम, तकनीकी जोखिम आदि प्रमुख हैं। वातावरण में परिवर्तन के साथ जोखिम की मात्रा एवं प्रकृति भी बदलती रहती है। उद्यमशील जोखिम वह जोखिम है जो परिवर्तनों एवं नई क्रियाओं के साथ नये व्यावसायिक अवसरों का सृजन करता है तथा उद्यमी को प्रवर्तन कार्य हेतु प्रेरित करता है। उद्यमी को यह निर्णय करना होता है कि व्यावसायिक अवसरों की पहचान में कब तथा कितना जोखिम विद्यमान हो सकता है तथा साहसिक कार्य का प्रवर्तन करने पर किस सीमा तक जोखिम को स्वीकार करना लाभप्रद हो सकता है।

 (7) संयन्त्र स्थान एवं अभिन्यास विश्लेषण-

संयन्त्र स्थान विश्लेषण उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि संयन्त्र का स्थापना किस स्थान पर की जाएगी। निर्णय अनेक घटकों पर निर्भर करता है; जैसेकच्चे माल की उपलब्धता, TO ईंधन, जल शक्ति, परिवहन, संचार, बैंक, बाजार की निकटता, सहायक उद्योगी की स्थिति आदि। सामान्यतः प्रत्येक राज्य में उद्योग-धन्धों की स्थापना सरकार द्वारा औद्योगिक बस्तियों की स्थापना की जाती है, जिसमें सरकार विभिन्न प्रकार की छूटें एवं रियायतें प्रदान की जाती हैं; जैसेसस्ती भमिव बिजली, करों में छूट, प्रारम्भ में सरकार द्वारा उत्पाद के क्रय की गारण्टी, प्रशिक्षण की सुविधाएँ, कच्चे माल के आयात की सुविधा, वित्तीय अनुदान आदि। उद्यमी को संयन्त्र के स्थान का चयन करते समय इन सुविधाओं को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना चाहिए।

संयन्त्र अभिन्यास विश्लेषण के अन्तर्गत संयन्त्र अभिन्यास, यन्त्रों, प्रविधियों, प्रक्रियाओं तथा अन्य सेवाओं को सम्मिलित करते हैं। उद्यमी को अपने उद्यम का श्रेष्ठ अभिन्यास तैयार करना चाहिए, ताकि न्यूनतम लागत एवं अपव्ययों पर प्रभावी नियन्त्रण के साथ अधिकतम एवं श्रेष्ठतम उत्पादन किया जा सके।

(8) मूल्यांकन विश्लेषण-

यह अवसर विश्लेषण का अन्तिम चरण है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

(i) परियोजना के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन।

(ii) परियोजना की लागत का मूल्यांकन एवं लागत की तुलना में लाभों का । मूल्यांकन।

(ii) आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता का मूल्यांकन।

(iv) विद्यमान प्रतिस्पर्धा का मूल्यांकन।

(v) लाभदेयता का मूल्यांकन।

(vi) सामाजिक (राष्ट्रीय) लाभदेयता का विश्लेषण।

 

 

 

 

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