वैगनर का सार्वजनिक व्यय का सिद्धान्त
प्रश्न 8. सार्वजनिक व्यय से सम्बन्धित वैगनर के नियम की व्याख्या कीजिए तथा इस नियम के लागू होने के कारण बताइए।
अथवा '' वैगनर के सार्वजनिक व्यय के
सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर-जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडॉल्फ वैगनर द्वारा प्रतिपादित किए गए राज्य के कार्यों में वृद्धि के नियम को ही वैगनर का नियम कहा जाता है। वैगनर का यह मत था कि "अर्थव्यवस्था के विकास एवं सार्वजनिक क्षेत्र के सापेक्षिक विकास के महत्त्व में 'कारण' एवं 'प्रभाव' का सम्बन्ध होता है। सरकारी क्षेत्र का सापेक्षिक विकास अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण की विशेषता पर निर्भर है।"
स्पष्ट शब्दों में वैगनर का यह मत था कि सभी स्तर की सरकारों, चाहे वे केन्द्र स्तर की हों अथवा राज्य स्तर की, क्रियाओं में विस्तृत तथा गहन, दोनों प्रकार की क्रियाओं में वृद्धि होने की प्रवृत्ति निहित होती है।
प्रो. एफ. एस. निट्टी ने भी
वैगनर के नियम का समर्थन करते हुए कहा था कि "सभी प्रकार की सरकारों के सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि की प्रवृत्ति निहित
होती है, चाहे वह केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, शान्तिकाल हो या युद्धकाल, छोटो सरकार हो या बड़ी
सरकार।"
वैगनर के नियम के लागू होने के कारण-
वैगनर के नियम के लागू होने के कारणों
का आशय यहाँ उन कारणों से है जिनको वैगनर ने सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि के लिए
उत्तरदायी ठहराया है। इन्हें निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है-
(1) सामाजिक प्रगति–
वैगनर ने सामाजिक प्रगति को सार्वजनिक
व्यय में वृद्धि के कारणों के लिए उत्तरदायी ठहराया है। उन्होंने अपनी बात को
स्पष्ट करते हुए बताया कि सामाजिक प्रगति से सरकार के कार्यों में वृद्धि होती है, जिससे
सरकार की सापेक्षिक एवं निरपेक्ष क्रियाएँ बढ़ जाती हैं, जिनको
पूरा करने के लिए सरकार को अधिक मात्रा में धन व्यय करना पड़ता है।
(2) युद्ध एवं युद्ध की तैयारी-
वर्तमान समय में सभी देश युद्ध एवं
युद्ध की तैयारी पर भारी मात्रा में धन व्यय कर रहे हैं। देखा यह गया है कि कुछ
देशों में तो वहाँ की सरकारें अपने बजट का लगभग आधा भाग इन पर व्यय कर रही हैं।
(3) मूल्यों में वृद्धि एवं राष्ट्रीय आय-
प्रायः सभी देशों के मूल्य-स्तरों एवं
राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके कारण सरकार
को अपनी खरीद पर पहले से अधिक धन व्यय करना पड़ता है। इससे इस बढ़े हुए व्यय की
पूर्ति हेतु पहले से अधिक वित्तीय स्रोतों को जुटाना पड़ता है। इसका परिणाम यह
होता है कि जब सरकारी व्यय बढ़ते हैं, तो मूल्य-स्तर में पुनः वृद्धि हो जाती है और एक
प्रकार का चक्र चलना प्रारम्भ हो जाता है।
(4) सरकारी क्रियाओं का विस्तार-
वर्तमान समय में प्रत्येक देश की सरकार
अपने परम्परावादी कार्यों को सम्पन्न करने के अतिरिक्त कल्याण एवं आर्थिक
क्रियाओं के अनेक कार्यक्रमों का संचालन कर रही है, जिससे सार्वजनिक व्ययों
में वृद्धि हुई है।
(5) परम्परावादी कार्यों का अधिक जटिल एवं व्ययी होना-
आन्तरिक प्रशासन, सुरक्षा
एवं न्याय; ये सरकार के तीन परम्परागत कार्य हैं । इन
कार्यों के क्षेत्रों का विस्तार हुआ है और इनमें अनेक जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं।
दोनों ही दृष्टिया से इन कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए अब सरकार को
पहले से अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ रही है।
(6) जनसंख्या की वृद्धि एवं शहरीकरण–
देश की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि
होने के साथ-साथ शहरीकरण की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। शहरीकरण होने के कारण
जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकारी व्ययों में निरन्तर
वृद्धि होती जा रही है।
(7) आर्थिक नियोजन-
वर्तमान समय में राज्यों के दायित्व में
देश के आर्थिक नियोजन एवं विकास को सम्मिलित किया जाने लगा है, जिससे
सरकार का सार्वजनिक क्षेत्र में पहले से कहीं अधिक व्यय बढ़ता जा रहा है।
वैगनर के नियम की आलोचनाएँ-
वैगनर के राज्य की बढ़ती हुई क्रियाओं
के नियम की मुख्य आलोचनाओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है -
(1) अन्य शास्त्रों की अवहेलना-
वैगनर के इस सिद्धान्त में केवल आर्थिक
पहलुओं पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया है, जबकि वास्तव में इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र
पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए तथा समाज के सांस्कृतिक लक्षणों को भी ध्यान
में रखा जाना चाहिए था। अत: इस दृष्टि से उनका सिद्धान्त अपूर्ण है।
(2) ऑर्गेनिक स्वयं निर्धारित सिद्धान्त पर आधारित-
वैगनर का नियम ऑर्गेनिक स्वयं सिद्धान्त
पर आधारित है, जबकि अधिकांश पश्चिमी राष्ट्रों ने इस सिद्धान्त
पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
(3) समय तत्त्व की अवहेलना-
वैगनर ने अपने सिद्धान्त में आर्थिक
सार्वजनिक क्रियाओं की दीर्घकालीन प्रवृत्ति पर बल दिया है और समय तत्त्व की
अवहेलना की है, जबकि वास्तव में समय तत्त्व को सार्वजनिक व्यय एवं
विकास का महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्त्व माना गया है।
(4) विश्लेषणात्मक अध्ययन का अभाव-
वैगनर के सिद्धान्त में ऐतिहासिक तथ्यों
पर बल दिया गया है, किन्तु उन्होंने अपने सिद्धान्त का विश्लेषणात्मक
अध्ययन नहीं किया है, जिससे यह सिद्धान्त अधूरा एवं काल्पनिक
सिद्धान्त बनकर रह गया है।
(5) युद्ध का अभाव-
वैगनर ने अपने सिद्धान्त में युद्ध के
सरकारी व्ययों पर पड़ने वाले प्रभावों का कोई उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार यह
सिद्धान्त अपूर्ण तथा एकपक्षीय है।
Comments
Post a Comment