राजनीतिक आधुनिकीकरण सिद्धान्त की विशेषता

प्रश्न 6. राजनीतिक आधुनिकीकरण पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा ''राजनीतिक आधुनिकीकरण को परिभाषित कीजिए तथा इसके विभिन्न प्रतिमानों एवं लक्षणों का वर्णन कीजिए।

अथवा ''राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख उपकरणों (साधनों) की व्याख्या करते हुए राजनीतिक विकास तथा राजनीतिक आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।

अथवा ''राजनीतिक व्यवस्था के राजनीतिक आधुनिकीकरण सिद्धान्त की विशेषताएँ बताइए।

अथवा ''राजनीतिक आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके लक्षणों पर प्रकाश डालिए तथा तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक आधुनिकीकरण दृष्टिकोण की उपयोगिता बताइए।

उत्तरराजनीतिक आधुनिकीकरण की संकल्पना उस राजनीतिक परिवर्तन की स्थिति की ओर संकेत करती है जो विशेषकर आधुनिक काल में यूरोपीय देशों की ओर फिलहाल ही के वर्षों में विश्व के अन्य देशों में सामने आई। यह एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है, जिसके कई आयाम हैं  -

(1) मनोवैज्ञानिक स्तर पर इसमें लोगों के मानकों, मूल्यों और अभिविन्यासों में परिवर्तन की अपेक्षा की जाती है।

(2) बौद्धिक स्तर पर इसमें अपने पर्यावरण के बारे में व्यक्ति की विपुल जानकारी और अधिक साक्षरता व जनसंचार के माध्यमों के इस ज्ञान के वितरण की अपेक्षा की जाती है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण सिद्धान्त की विशेषता

(3) जीवन-स्तर में सुधार एवं नगरीकरण।

(4) परिवार और अन्य प्राथमिक गुटों के प्रति निष्ठा की भावना के केन्द्र-बिन्दु को स्वैच्छिक रूप से संगठनों के प्रति निष्ठा में बदला जाए, और

(5) आर्थिक स्तर पर इसमें बाजारी कृषि के विकास, औद्योगीकरण का विकास एवं आर्थिक कार्यकलाप का व्यापक होना है।

तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों में आधुनिकीकरण का उपागम राजनीतिक व्यवहार को समझने के प्रयत्न और सन्दर्भ को अधिक व्यापक बनाने के प्रयास स्वरूप स्थापित हुआ है। कतिपय विचारकों का मानना है कि राजनीतिक व्यवस्थाओं को विकास के परिप्रेक्ष्य में देखने के बजाय आधुनिकीकरण के एक पक्ष के रूप में देखने से राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की वास्तविकता की तह तक पहुँचना सम्भव होगा।

इन लोगों की मान्यता रही है कि राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का परिणाम है। राजनीतिक आधुनिकीकरण समाज की आधुनिकीकरण प्रक्रिया से प्रेरित और निरूपित होता है। राजनीतिक व्यवस्था को आधुनिकीकरण की समग्र प्रक्रिया के सन्दर्भ में समझने के लिए राजनीतिक आधुनिकीकरण उपागम की आवश्यकता अनिवार्य हो गई।

आधुनिकीकरण से अभिप्राय-

आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है, जो साधनों के विवेकपूर्ण प्रयोग पर आधारित होती है।

रॉबर्ट ई. वार्ड के अनुसार, "आधुनिकीकरण आधुनिक समाज की तरफ ले जाने वाली ऐसी प्रवृत्ति है जिसकी प्रमुख विशेषता इनके वातावरण की भौतिक और सामाजिक परिस्थितियों को नियन्त्रित या प्रभावित करने की अभूतपूर्व सार्थकता है और जो मूल्य व्यवस्था की दृष्टि से इस समता या समर्थता की वांछनीयता व परिणामों के बारे में आधारभूत रूप में आशावादी है।"

कोलमैन के अनुसार, "नगरीकरण, व्यापक साक्षरता, अधिक प्रति व्यक्ति आय, विस्तृत सामाजिक गतिशीलता, अर्थव्यवस्था में औद्योगीकरण तथा वाणिज्यीकरण की मात्रा में वृद्धि, जनसंचार साधनों का विस्तार आधुनिकीकरण के हेतु हैं।"

राजनीतिक आधुनिकीकरण का अर्थ-

राजनीतिक आधुनिकीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के कई आगाम हैं-प्रथम, मनोवैज्ञानिक स्तर पर इसके मानकों तथा मूल्यों में परिवर्तन की अपेक्षा की जाती हैं। द्वितीय, साक्षरता और जनसंचार के साधनों से ज्ञान के प्रसारण की अपेक्षा की जाती है। तृतीय, जीवन-स्तर में सुधार और लोगों की संचालनशीलता के प्रति प्रगति और नगरीकरण से है। चतुर्थ, सामाजिक स्तर पर इसमें यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि परिवार और अन्य प्राथमिक गुणों के प्रति निष्ठा की भावना के केन्द्र-बिन्दु को स्वैच्छिक संगठनों के प्रति निष्ठा में बदला जाए। पंचम, आर्थिक स्तर पर इसमें कृषि के बजाय औद्योगीकरण के विकास पर बल देना है।

कोलमैन ने राजनीतिक आधुनिकीकरण की परिभाषा करते हुए लिखा है कि "राजनीतिक आधुनिकीकरण ऐसे संस्थागत ढाँचे का विकास है जो पर्याप्त लचीला और शक्तिशाली हो कि उसमें उठने वाली माँगों का मुकाबला कर सके।"

इस प्रकार राजनीतिक आधुनिकीकरण का सम्बन्ध ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के विकास से है जो इतनी लचीली हो कि हर प्रकार की माँग को प्रस्तुत होने के अवसर प्रदान कर सके, किन्तु उसमें इतनी शक्ति और सामर्थ्य भी हो कि हर प्रकार की माँग का समुचित ढंग से मुकाबला कर सके अर्थात् हर उचित माँग स्वीकार करने के साथ ही साथ उसे पूरा करने और अनुचित माँग को दृढ़ता के साथ ठुकरा देने की क्षमता रखने वाली राजनीतिक व्यवस्था को राजनीतिक दृष्टि से आधुनिक व्यवस्था कहा जाता है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण के लक्षण (विशेषताएँ)-

राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं  -

(1) राजनीतिक आधुनिकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि मानव जीवन की गतिविधियों से सम्बन्धित सभी प्रकार की शक्तियों का राज्य या राजनीतिक व्यवस्था में केन्द्रीकरण होने लगता है अर्थात् राजनीतिक शक्ति का महत्त्व बढ़ना राजनीतिक आधुनिकीकरण का लक्षण है।

(2) राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए सरकार की जनता तक पहुँच वृद्धिपरक होनी चाहिए। जनता व सरकार की हर स्तर पर सम्पर्कता का अर्थ राज्य का समाज में अधिकाधिक प्रवेश होता है। यह तभी सम्भव होता है जब सरकारें सकारात्मक कार्यों के निष्पादन में आगे बढ़ें।

(3) आधुनिक राजनीतिक समाजों में केन्द्र और परिसर की अन्त:क्रिया बहुत बढ़ जाती है। यहाँ केन्द्र का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था से है और परिसर का अर्थ समाज से है। राजनीतिक दल, हित और दबाव समूह नौकरशाही एवं निर्वाचनों के माध्यम से यह सम्पर्कता बढ़ती है।

(4) आधुनिक राजनीतिक समाजों में धार्मिक, परम्परागत, पारिवारिक और जातीय सत्ताओं का स्थान एक लौकिकीकृत और राष्ट्रीय सत्ता के द्वारा ले लिया जाता है।

(5) राजनीति के क्षेत्र में रहकर भी सरकार को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदि कार्यों को सम्पादित करना पड़ता है। कार्यों की अधिकता से व्यवस्था में जटिलता उत्पन्न हो जाती है। इस दुरूहता को समाप्त करने के लिए कार्य की विशेष दक्षता की आवश्यकता होती है। इसी कारण आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक संस्थाओं का विभिन्नीकरण और विशेषीकरण होना अनिवार्य है।

(6) राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए संस्थात्मक और प्रक्रियात्मक परिवर्तन ही पर्याप्त नहीं हैं। संस्थाओं और प्रक्रियाओं में जन-सहभागिता कितनी है, यह भी राजनीतिक आधुनिकीकरण का एक मापदण्ड है।

(7) राजनीतिक आधुनिकीकरण वाली राजनीतिक व्यवस्थाओं में व्यक्तियों की अभिवृत्तियों में परिवर्तन आना महत्त्व रखता है।

(8) राजनीतिक व्यवस्थाओं को केवल नौकरशाही के वृहत्तर आकार के आधार पर ही आधुनिक नहीं कहा जाता है। वास्तव में आधुनिकीकरण के लिए नौकरशाही के आकार के बढ़ने से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण उसके आधार की  व्यापकता है। व्यापक आधार का अर्थ यह है कि नौकरशाही के कर्मचारियों में सारे समाज में भर्ती होने की केवल प्रक्रियात्मक व्यवस्था ही नहीं हो, अपितु प्रशासक वास्तव में समाज के सभी वर्गों से आ सकें।

राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रतिमान-

राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रतिमानों से तात्पर्य यह है कि क्या सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक दृष्टि से आधुनिकीकरण का कोई निश्चित क्रम और प्रतिमान होता है ? इस सम्बन्ध में इतनी जटिलता है कि उसका कोई सुनिश्चित प्रतिमान नहीं बन पाता है। एडवर्ड शील्स ने अपनी पुस्तक 'Political Modernization' में राजनीतिक आधुनिकीकरण के पाँच प्रतिमान स्थापित किए हैं  -

(1) राजनीतिक प्रजातन्त्र,

(2) अभिभावकी प्रजातन्त्र,

(3) आधुनिकीकरणशील वर्ग तन्त्र,

(4) सर्वाधिकारी वर्ग तन्त्र,

(5) परम्परागत वर्ग तन्त्र ।

शील्स की मान्यता है कि राजनीतिक लोकतन्त्र राजनीतिक व्यवस्थाओं की आधुनिकता के स्तर तक पहुँचने का संकेतक है। राजनीतिक आधुनिकीकरण का श्रेष्ठतम रूप राजनीतिक लोकतन्त्र का ही है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण के अभिकरण (उपकरण/साधन)  -

राजनीतिक आधुनिकीकरण एक पेचीदा परिवर्तन है, जिसमें कई अभिकरणों और माध्यमों की भूमिका रहती है। डॉ. एस. पी. वर्मा ने स्पष्ट कहा है कि "सामाजिक संचरण और आर्थिक विकास, दोनों ही राजनीतिक आधुनिकीकरण के निर्माणक तत्त्व माने जाते हैं और इनसे विकासशील देशों के लिए घातक परिणाम निकले हैं।" मुख्य रूप से आधुनिकीकरण के प्रमुख अभिकरण इस प्रकार हैं  -

(1) राजनीतिक आधुनिकीकरण का प्रमुख अभिकरण अभिजन और बुद्धिजीवी वर्ग होता है।

(2) राजनीतिक दल राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख उपकरण हैं।

(3) सरकारों के तत्त्वावधान में ही आधुनिकीकरण की समस्त गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

बुद्धिजीवियों के द्वारा राजनीतिक व्यवस्थाओं के साध्यों, गन्तव्यों और उद्देश्यों के विकल्प सुझाए जाते हैं। इन्हीं विकल्पों में से कुछ का चयन करके राजनीतिक शक्ति को संरचनात्मक रूप दिया जाता है। अभिजन इन संरचनात्मक व्यवस्थाओं से सम्बन्धित प्रक्रियाओं के कार्मिक होते हैं। इनकी विचारधारा और विशेष प्रकार की मान्यताएँ व आकांक्षाएँ राजनीतिक आधुनिकीकरण का परिप्रेक्ष्य तैयार करती हैं। इन्हीं के द्वारा राजनीतिक आधुनिकीकरण की क्रियाएँ सक्रिय बनती है। राजनीतिक दल भी राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख उपकरण होते हैं। लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में इनकी भूमिका सर्वविदित है। राजनीतिक दलों के माध्यम से विचारधारा को आधुनिकीकरण का शक्तिशाली अभिकरण माना जाता है।

आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में सरकारों के माध्यम से ही अधिकांशतः कार्यों की पहल होती है। सरकारों के पास बाध्यकारी शक्ति होती है। सरकारें आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बहुमुखी प्रगति की प्रेरक बनकर राजनीतिक व्यवस्था के आधुनिकीकरण की आधार भूमि तैयार करने का प्रभावी माध्यम बन जाती है।

तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों के अन्य उपागमों की तुलना में राजनीतिक आधुनिकीकरण उपागम अधिक यथार्थवादी बन जाता है। राजनीतिक विकास उपागम से यह इस दृष्टि से अधिक उपयुक्त माना जाता है क्योंकि इसमें जीवन के राजनीतिक पहलू को समग्रता से सम्बन्धित करके समझने का प्रयत्न किया जाता है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण दृष्टिकोण की तुलनात्मक  राजनीति में उपयोगिता-

राजनीतिक आधुनिकीकरण का उपागम तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन के अन्य उपागमों से अधिक व्यापक सन्दर्भ में सम्बन्धित होने के कारण अधिक यथार्थवादी है। इस उपागम में राजनीतिक व्यवस्थाओं की क्षमताओं को मापने के लिए आधुनिकीकरण के प्रवर्गों का प्रयोग किया जाता है। आधुनिकीकरण के विभिन्न पहलुओं शहरीकरण, औद्योगीकरण, लौकिकीकरण, लोकतन्त्रीकरण, शैक्षणिकता और सहभागिता में आने वाले परिवर्तनों का राजनीतिक व्यवस्था पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अत: राजनीतिक विकास अपने आप में स्वतन्त्र प्रक्रिया नहीं है। इसलिए इसको समझने के लिए व्यापक परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता होती है। कोलमैन के अनुसार, "राजनीतिक आधुनिकीकरण संक्रान्तिकालीन समाजों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में होने वाले संरचनात्मक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों का समूह है। इन परिवर्तनों का सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था से सम्बन्धित संस्थाओं, संरचनाओं, प्रक्रियाओं तथा व्यवहार प्रतिमानों से होता है।" आधुनिकीकरण का परिप्रेक्ष्य इसी प्रकार की व्यापकता रखता है। अतः तुलनात्मक विश्लेषणों में इनका उपयोग अधिक गहराई तक ले जाने में सहायक समझा  गया है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण का उपागम राजनीतिक विकास की तुलना में अधिक उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि जीवन के राजनीतिक पहलू को समग्रता से सम्बन्धित करके समझने का इसमें प्रयत्न किया जाता है। ऐसा तुलनात्मक विश्लेषण अधिक अन्तर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। इससे राजनीतिक व्यवस्थाओं की वास्तविक गत्यात्मकताओं का ज्ञान भी प्राप्त किया जा सकता है।

राजनीतिक आधुनिकीकरण उपागम में यह ध्यान रखा जाता है कि राजनीतिक संस्थाएँ और राजनीतिक मूल्य परिवर्तनशील हैं। राजनीतिक व्यवस्थाओं में अनेक प्रकार की स्थिरताएँ और अस्थिरताएँ होती हैं। इन स्थिरताओंअस्थिरताओं को राजनीतिक आधुनिकीकरण के उपागम में विश्लेषित करके समझने का प्रयास किया जाता है अर्थात् यह विकास की ओर उन्मुखी परिवर्तन प्रक्रिया के सन्दर्भ में राजनीतिक परिवर्तन को नापने और समझने में सहायक होता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त आधुनिक बनने के प्रयत्न में संलग्न राजनीतिक व्यवस्थाओं की वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए राजनीतिक आधुनिकीकरण के कई मानदण्डों को आधार के रूप में लेकर उपयोगी तुलनाएँ हो सकती हैं और इसमें राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ने वाली माँगों का सगाधान करने की उसकी क्षमता का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार राजनीतिक आधुनिकीकरण के परिप्रेक्ष्य में विकासशील देशों के राजनीतिक दृष्टिकोणों को समझने में और सामान्यीकरण तक पहुँचने में काफी सफलता मिली है।

राजनीतिक विकास और राजनीतिक आधुनिकीकरण में अन्तर-

राजनीतिक विकास को राजनीतिक आधुनिकीकरण और आधुनिकीकरण के समान ही विकास की प्रक्रिया मानने की प्रवृत्ति काफी प्रचलित रही है। सर्वप्रथम हण्टिंगटन ने राजनीतिक विकास को आधुनिकीकरण से पृथक् प्रक्रिया माना और यह बताया कि दोनों में सम्बन्ध होते हुए भी दोनों पृथक् प्रकार की प्रक्रियाएँ हैं। उसने आधुनिकीकरण को राजनीतिक विकास का प्रेरक न बताकर राजनीतिक विकास को आधुनिकीकरण लाने वाली प्रक्रियाओं और संरचनाओं से सम्बन्धित माना है। हण्टिंगटन के अनुसार, "राजनीतिक विकास राजनीतिक संगठनों और प्रक्रियाओं का संस्थाकरण है।" इस प्रकार हण्टिंगटन ने राजनीतिक विकास को संस्थाकरण करने के समान मानकर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि अच्छी तरह संस्थाकृत राजनीतिक व्यवस्था में अधिक अनुकूलता, जटिलता, स्वायत्तता और दामिकता आ जाती है, जो राजनीतिक विकास के संकेतक हैं। इस विचार से राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण के समान विकास की प्रक्रिया नहीं माना जा सकता। हण्टिंगटन ने इसे आधुनिकीकरण से भिन्न किन्तु राजनीतिक आधुनिकीकरण से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित प्रक्रिया माना है।

जाग्वाराइव ने राजनीतिक विकास और राजनीतिक आधुनिकीकरण में अन्तर को स्वीकार किया। उसके मत में राजनीतिक विकास की अवधारणा राजनीतिक आधुनिकीकरण से अधिक व्यापक और सर्वग्राही है। उसने इस सम्बन्ध में लिखा है कि "राजनीतिक विकास एक प्रक्रिया के रूप में राजनीतिक आधुनिकीकरण  और राजनीतिक संस्थाकरण का जोड़ है।" दूसरे शब्दों में राजनीतिक विकास में राजनीतिक आधनिकीकरण के अलावा संस्थाओं या संरचनाओं का संस्थाकरण भी हो जाता है। उसने आमण्ड के अभिमत का उल्लेख करते हुए राजनीतिक विकास में भूमिका विभिन्नीकरण में निम्न तथ्यों को सम्मिलित किया है

(1) भूमिकाओं और उप-व्यवस्थाओं का विशेषीकरण,

(2) स्रोतों का लचीलीकरण,

(3) प्रकार्यों की बुद्धिसंगतता,

(4) साधनों को निर्मित करना,

(5) उप-व्यवस्था की स्वायत्तता, और

(6) लौकिकीकरण।

इसमें जाग्वाराइव यह स्पष्ट करने का प्रयत्न करता है कि राजनीतिक विकास में राजनीतिक आधुनिकीकरण से अधिक व भिन्न प्रकार का विभिन्नीकरण होता है। राजनीतिक आधुनिकीकरण में सत्ता की बुद्धिसंगतता राजनीतिक संरचनाओं का विभिन्नीकरण और राजनीतिक सहभागिता ही प्रमुख आयात माने गए हैं, जबकि राजनीतिक विकास में अगर आमण्ड द्वारा दिए गए उपयक्त लक्षणों को ही लें तो भी इसमें वहत्तर और भिन्न प्रकार की परिवर्तन प्रक्रियाओं का अर्थ-बोधन होता है। लूसियन पाई ने जिन तीन लक्षणों को सर्वप्रथम राजनीतिक विकास के लिए प्रतिपादित किया, उस आधार पर भी राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण से व्यापक अवधारणा बन जाती है। इसका सम्बन्ध लूसियन पाई के शब्दों में समानता, क्षमता और विभिन्नीकरण से होता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राजनीतिक आधुनिकीकरण और राजनीतिक विकास में लक्षणों की दृष्टि से मौलिक अन्तर नहीं पाया जाता है, किन्तु बारीकी से देखने पर राजनीतिक आधुनिकीकरण, संक्रमणशील समाजों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में आने वाले संरचनात्मक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों तक ही सीमित है। यद्यपि इससे राजनीतिक व्यवस्था की उप-व्यवस्थाओं, राजनीतिक संस्कृति तथा उनकी प्रक्रियाओं में आने वाले परिवर्तनों का बोध भी होता है, परन्तु इससे राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता, उप-व्यवस्थाओं की स्वायत्तता आदि का संकेत नहीं मिलता। इस प्रकार राजनीतिक विकास न तो आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का परिणाम कहा जा सकता है और न ही राजनीतिक आधुनिकीकरण का पर्याय माना जा सकता है। यद्यपि राजनीतिक विकास और राजनीतिक आधुनिकीकरण गत्यात्मक अवधारणाएँ हैं और तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों में इनका विशेष  रूप से प्रयोग उपयोगी निष्कर्षों तक पहुँचने में सहायक होता है। फिर भी दोनों में पर्याप्त अन्तर पाए जाते हैं, जो संक्षेप में निम्नलिखित हैं  -

(1) राजनीतिक विकास की संकल्पना व्यापक है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण एक सीमित अवधारणा है।

(2) राजनीतिक विकास राजनीतिक प्रक्रियाओं और राजनीति का संस्थापन है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण का सम्बन्ध राजनीति में संरचनात्मक परिवर्तनों से है, जिसमें संस्थापन हो यह आवश्यक नहीं है।

(3) राजनीतिक विकास आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से स्वायत्त होता है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण राजनीतिक विकास की प्रक्रिया से स्वायत्त न होकर उसका एक महत्त्वपूर्ण पहलू ही होता है।

(4) राजनीतिक विकास उलटनीय प्रक्रिया है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया उलट नहीं सकती है।

(5) राजनीतिक विकास की सुनिश्चित अवस्थाएँ होती हैं, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण में क्रम और प्रतिमान ही हो सकते हैं, परन्तु सुनिश्चित अवस्थाएँ नहीं हो सकती हैं। ,

(6) राजनीति में होने वाले विकास अनिवार्यतः राजनीतिक विकास ही हों यह आवश्यक नहीं है। ऐसे विकास राजनीतिक पतन भी हो सकते हैं, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण मूलतः हर आधुनिकीकृत अवस्था से सम्बद्ध रहता है।

(7) राजनीतिक विकास कभी-कभी स्थैतिकता की स्थिति का बोधक हो सकता है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण में कभी भी स्थैतिकता की स्थिति नहीं आती है।

वास्तव में जाग्वाराइव ने इन दोनों के अन्तर को एक ही वाक्य में समझा दिया है कि राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण तथा राजनीतिक संस्थापन का योग है।

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