राज्यसभा की रचना, कार्य और शक्तिया

प्रश्न 5. "शक्तियों के दृष्टिकोण से भारत की राज्यसभा विश्व के सबसे कमजोर सदनों में से एक है।" एम. पी. शर्मा के इस कथन की विवेचना कीजिए।,

अथवा ‘’राज्यसभा की रचना, संगठन और शक्तियों का उल्लेख कीजिए और उसकी स्थिति की विवेचना कीजिए।

अथवा ‘’ भारत में संसदात्मक प्रजातन्त्र के प्रभावशाली यन्त्र के रूप में राज्यसभा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा ‘’राज्यसभा की रचना, कार्य और शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

भारत के संविधान में कहा गया है कि संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों को मिलाकर बनेगी, जिनके नाम क्रमश: लोकसभा और राज्यसभा होंगे। राज्यसभा संसद का ऊपरी सदन है।

राज्यसभा की रचना एवं संगठन

राज्यसभा की अधिकतम सदस्य संख्या संविधान में 250 निश्चित की गई है। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 245 है। इनमें से 233 निर्वाचित और 12 मनोनीत सदस्य हैं।

rajya sabha ki rachna shakti or karya

राज्यसभा के नाम से ऐसा आभास मिलता है कि यह इकाई राज्यों की संस्था है, जो आंशिक तौर पर सही भी है, क्योंकि राज्यसभा की रचना में यह ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक राज्य को इसमें प्रतिनिधित्व प्राप्त हो, किन्तु राज्यों की समानता के सिद्धान्त को नहीं अपनाया गया है। प्रतिनिधित्व प्रदान करते समय राज्य की जनसंख्या को भी ध्यान में रखा गया है। इसी कारण जहाँ उत्तर प्रदेश के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक है, वहीं कुछ राज्यों; जैसेसिक्किम, नागालैण्ड, त्रिपुरा, मिजोरम को मात्र एक ही प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है।

राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है। राज्यसभा के लिए केन्द्र शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएँगे जैसा कि संसद विधि द्वारा निश्चित करे। मनोनीत सदस्यों को राष्ट्रपति नामांकित करता है, जो साहित्य, कला, विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखते हैं।

भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। सभापति की अनुपस्थिति में राज्यसभा का सभापतित्व उप-सभापति करता है, जो सदन का सदस्य होता है और सदन के सदस्यों द्वारा ही निर्वाचित किया जाता है। यदि उप-सभापति का पद भी रिक्त हो, तो राज्यसभा का वह सदस्य कार्य करेगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करे।

अवधि  -

राज्यसभा एक स्थायी सदन है। लोकसभा की भाँति राज्यसभा कभी भंग नहीं होती, किन्तु प्रत्येक दो वर्ष बाद उसके एक-तिहाई सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जाती है। उनके स्थान पर नये निर्वाचित सदस्य आ जाते हैं। इस प्रकार एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। राज्यसभा को स्थायी और निरन्तर चलने वाली संस्था बनाकर हमारे संविधान निर्माताओं ने दूरदर्शिता का परिचय दिया है। सदस्यों के आवर्तन की पद्धति के कारण न केवल सदन की निरन्तरता बनी रहती है, अपितु प्रत्येक राज्य की विधानसभा को यह अवसर मिल जाता है कि वह समय-समय पर इस सदन में कुछ नये सदस्यों का निर्वाचन भी करती रहे। इस प्रकार राज्यसभा में वर्तमान दलीय शक्ति और प्रत्येक राज्य में व्याप्त समकालीन दृष्टिकोण और मनोवृत्ति परिलक्षित होती है।

राज्यसभा के कार्य और शक्तियाँ

राज्यसभा की शक्तियों और कार्यों का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है  -

(1) विधायी शक्तियाँ -

लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा भी विधि-निर्माण सम्बन्धी कार्य करती है। संविधान के अन्तर्गत अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्धों में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पहले प्रस्तावित किया जा सकता है और दोनों सदनों से पारित होने के पश्चात् ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाता है।

यदि किसी साधारण विधेयक के सम्बन्ध में दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं, तो राष्ट्रपति के द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। इसके साथ ही विधेयक एक सदन द्वारा स्वीकार किए जाने के पश्चात् यदि 6 महीने की अवधि के अन्दर दूसरे सदन के द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है, तो संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है। संयुक्त अधिवेशन में विधेयक के भाग्य का निर्णय बहुमत के आधार पर किया जाता है। अत: लोकसभा के सदस्यों के दृष्टिकोणों की महत्ता अधिक होती है, क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों की संख्या के दुगुने से भी अधिक है। अभी तक तीन अवसरों पर सन् 1961 में 'दहेज निरोध विधेयक', सन् 1978 में 'बैंकिंग सेवा आयोग विधेयक' तथा मार्च, 2002 में आतंकवाद निरोध विधेयक' (POTA) पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई गई है।

(2) संविधान संशोधन की शक्ति  -

संविधान संशोधन के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्रदान की गई है। संविधान संशोधन सम्बन्धी विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जाता है और संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव तभी स्वीकृत समझा जाएगा जबकि उसे संसद के दोनों  सदनों द्वारा अलग-अलग कुल बहमत तथा उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित कर दिया जाए। संशोधन प्रस्ताव पर दोनों सदनों में असहमति होने पर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति में संशोधन प्रस्ताव गिर जाएगा।

(3) वित्तीय शक्तियाँ  -

वित्तीय क्षेत्र में राज्यसभा की सत्ता नगण्य है। धन विधेयकों की पुनर्स्थापना केवल लोकसभा में ही हो सकती है। लेकिन संविधान द्वारा धन विधेयक के सम्बन्ध में जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है, उसमें राज्यसभा को जाँच करने से रोक नहीं लगाई गई है। लोकसभा द्वारा पारित होकर प्रत्येक धन विधेयक राज्यसभा को भेजा जाता है। राज्यसभा उन विधेयकों पर 14 दिन के अन्दर अपनी सिफारिशें दे सकती है। यदि वह उसे पारित कर दे, तो विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। यदि विधेयक को राज्यसभा अस्वीकृत करे अथवा उस पर अपनी सिफारिशें दे, तो उस विधेयक को लोकसभा के पास वापस भेज दिया जाता है जहाँ उस पर पुनः विचार किया जाता है और साधारण बहुमत द्वारा पारित कर उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। इस प्रकार वित्तीय विधेयकों पर लोकसभा को अन्तिम शक्ति प्राप्त है।

(4) कार्यपालिका शक्तियाँ  -

संसदीय शासन व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति ही उत्तरदायी होती है। अत: भारत में मन्त्रिपरिषद् केवल लोकसभा के प्रति ही सामूहिक रूप से उत्तरदायी है, न कि राज्यसभा के प्रति। राज्यसभा के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मन्त्रियों को हटाने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल लोकसभा को प्राप्त है। अत: कार्यकारिणी पर नियन्त्रण की दृष्टि से लोकसभा राज्यसभा की तुलना में निश्चित रूप से अधिक शक्तिशाली है।

(5) विविध कार्य  -

संविधान के अन्तर्गत कुछ मामलों में संसद के दोनों सदनों को समानता का दर्जा दिया गया है। ऐसे मामले निम्नवत् हैं   -

(i) राष्ट्रपति के निर्वाचन  और उस पर महाभियोग के मामले में लोकसभा के समान अधिकार।

(ii) उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन के मामले में लोकसभा के समान अधिकार।

(iii) आपातकाल की उद्घोषणा (अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत जारी की गई) और राज्यों के संवैधानिक तन्त्र के विफल होने पर (अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत जारी की गई) उद्घोषणाओं का अनुमोदन करने के मामले में लोकसभा के समान अधिकार।

(6) विशेष शक्तियाँ  -

राज्यसभा को संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत कल ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं। अनुच्छेद 249  के अन्तर्गत राज्यसभा उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत और कुछ सदस्यों के पूर्ण बहुमत द्वारा यह घोषित कर सकती है कि राष्ट्रहित के लिए यह आवश्यक है कि संसद राज्य सूची में दिए गए किसी विषय पर, जो कि उक्त प्रस्ताव में बताया गया है, विधि-निर्माण करे। उक्त प्रस्ताव के पारित होने पर संसद के लिए उस विषय के बारे में भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र अथवा किसी भाग के लिए एक वर्ष तक की अवधि में भारत के लिए विधि बनाना विधिसंगत होगा।

राज्यसभा का दूसरा अनन्य अधिकार अनुच्छेद 312  के अन्तर्गत अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने से सम्बन्धित है। अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का प्रस्ताव राज्यसभा के उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत तथा कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत से पारित किया जा सकता है।

लोकसभा इन दोनों स्थितियों में तभी कार्य कर सकती है जबकि पहले राज्यसभा संकल्प द्वारा उसे कार्य करने की शक्ति प्रदान करे।

राज्यसभा की स्थिति

राज्यसभा की शक्ति के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राज्यसभा की स्थिति लोकसभा की अपेक्षा पर्याप्त महत्त्वहीन है। कार्यपालिका के नियन्त्रण के सम्बन्धी में राज्यसभा को कोई महत्त्वपूर्ण शक्ति प्राप्त नहीं है। राज्यसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित करके मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है। व्यवस्थापन क्षेत्र में राज्यसभा लोकसभा की तुलना में एक कम महत्त्वपूर्ण सदन है। राज्यसभा साधारण विधेयकों को अधिक-से-अधिक 6 माह तक और वित्तीय ) विधेयक को अधिक-से-अधिक 14 दिन तक रोक सकती है। वार्षिक बजट और वित्तीय विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते। संविधान में वर्णित संसद की अधिकांश शक्तियाँ व्यवहार में लोकसभा की ही शक्तियाँ हैं।

लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि राज्यसभा पूर्णतया एक महत्त्वहीन सदन है और इसका अस्तित्व पूर्णतया व्यर्थ है। राज्यसभा को कई महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं। कुछ क्षेत्रों में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्तियाँ दी गई हैं। उदाहरणार्थ, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन और उनके विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही चलाने के लिए राज्यसभा लोकसभा से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उप-राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग के सम्बन्ध में दोषारोपण का प्रस्ताव पहले राज्यसभा ही पारित कर सकती है। इसी प्रकार अन्य उच्चाधिकारियों को पदच्युत करने के सम्बन्ध में दोनों सदनों को समान अधिकार  प्राप्त है। राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाने वाली आपातकालीन उद्घोषणा का लोकसभा द्वारा स्वीकृत होने के अतिरिक्त राज्यसभा द्वारा स्वीकृत होना भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी भी शक्तियाँ हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं, अपितु केवल राज्यसभा को प्राप्त हैं। इन तथ्यों के आधार पर हम इस सदन को व्यर्थ सदन नहीं कह सकते। निःसन्देह यह सदन देश के शासन को प्रभावित करता है।

प्रो. जितेन्द्र रंजन ने राज्यसभा की स्थिति को बहुत ही सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है। उनके अनुसार, "यह न तो अमेरिका की सीनेट की भाँति अत्यधिक शक्तिशाली है और न ही ब्रिटिश लॉर्ड सभा या फ्रांस के चतुर्थ गणतन्त्र की गणतन्त्रीय परिषद् की भाँति अत्यधिक दुर्बल। जापानी व्यवस्था की तरह द्वितीय सदन की निषेधात्मक शक्तियों को हमारे संविधान में स्वीकार नहीं किया गया है। इसे सिर्फ दुहराने की पर्याप्त शक्ति दी गई है, निषेध की नहीं। राज्यसभा न केवल रचना की दृष्टि से विश्व का सबसे अधिक श्रेष्ठ द्वितीय सदन है, वरन् यह आधुनिक प्रजातन्त्र के योग्य तथा द्वितीय सदन के उद्देश्यों की पूर्ति करने की दृष्टि से भी सर्वाधिक सन्तुलित द्वितीय सदन है।"

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