गिल्लू पाठ का सारांश- महादेवी वर्मा
प्रश्न 7. "गिल्लू महादेवी वर्मा के परिवार का अभिन्न सदस्य था।" इस कथन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
महादेवी
वर्मा के रेखाचित्र 'गिल्लू' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
"महादेवी
जी ने गिल्लू के व्यक्तित्व का सजीव अंकन किया है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
गिल्लू पाठ का सारांश
उत्तर- महादेवी जी के रेखाचित्र संग्रह 'मेरा
परिवार' में उन पशु -पक्षियों का वर्णन है जो उनके घर
में पले-बढ़े थे। उनसे महादेवी जी की आत्मीयता का भी परिचय मिलता है। गिल्लू एक
गिलहरी का बच्चा था, जिसका महादेवी जी के साथ गहरा लगाव था। 'गिल्लू' रेखाचित्र का सारांश अग्र प्रकार है
गिल्लू की प्राप्ति-
एक दिन जब महादेवी जी बरामदे में बैठी हुई थीं, तो उन्होंने देखा कि एक गमले के चारों ओर दो कौए छुआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। जब वे जिज्ञासावश वहाँ पहुँची, तो उन्होंने देखा कि गिलहरी का एक छोटा बच्चा घोंसले से गिर पड़ा है और कौवे उसे अपना आहार बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी चोंच से वह लघु प्राणी आहत हो चुका था। महादेवी जी उसे उठा लाईं और उसके घाव को साफ करके पेन्सिलिन का मरहम लगाया। महादेवी जी ने रुई की बत्ती बनाकर दूध की कुछ बूंदें उसके मुँह में टपकाईं। धीरे-धीरे वह दूध पीना सीख गया और इतना स्वस्थ हो गया कि अपने नन्हे पंजों से महादेवी जी की उंगली पकड़ने लगा। फिर कुछ महीनों में उस पर कोमल रोएँ उग आए, उसकी झब्बेदार पूँछ चमक उठी और उसकी चंचल-चमकदार आँखें सबको आश्चर्यचकित करने लगीं।
नामकरण-
महादेवी
जी ने उसका नाम 'गिल्लू' रखा। उसे एक डलिया में रुई बिछाकर रखा गया और डलिया को तार से खिड़की पर
लटका दिया गया। दो वर्ष तक गिल्लू का घर वह डलिया ही रही। वह उसमें
हिल-डुलकर झूले जैसा झूलता था और अपनी मनके जैसी आँखों से इधर-उधर ताकता भी रहता
था।
गिल्लू के क्रियाकलाप –
उसके क्रियाकलाप सभी
को मोहित करते थे। जब महादेवी जी लेखन कार्य करती थीं, तो वह उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता था। वह उनके पैरों
तक दौड़कर आता और फिर सर्र से पर्दे पर चढ़ जाता। वह यह क्रिया तब तक जारी रखता,
जब तक महादेवी जी उसे पकड़ने को उठ न जातीं। वे कभी उसे पकड़कर एक
लम्बे लिफाफे में इस प्रकार बन्द कर देतीं कि उसके अगले पैर और मुँह बाहर रहते। वह
घण्टों उसमें खड़ा रहता और अपनी चमकीली आँखों से उन्हें ताकता रहता। जब उसे भूख
लगती, तो चिक-चिक की ध्वनि करता और बिस्कुट और काजू पंजे से
पकड़कर कुतरता रहता।
गिल्लू के जीवन का प्रथम बसन्त-
जब गिल्लू के
जीवन का प्रथम बसन्त आया, तो बाहर की गिलहरियाँ खिड़की
की जाली के पास आकर चिक-चिक की ध्वनि करके उसे आमन्त्रित करने लगीं। वे गिल्लू
को इतनी लालसा भरी नजरों से ताकती थीं कि महादेवी जी ने उसे मुक्त करने का
निश्चय किया। उन्होंने एक कील निकालकर जाली का थोड़ा-सा कोना उठा दिया, ताकि वह सुगमता से बाहर निकल सके और यदि भीतर आना चाहे, तो आ सके। जाली से बाहर निकलकर गिल्लू ने मुक्ति की साँस ली,
पर उसने अपना घर नहीं छोड़ा। दिनभर गिलहरियों का नेता बना घूमता
रहता, डाल-डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे खिड़की से
भीतर आकर झूले पर झूलने लगता।
गिल्लू
के मन में आत्मीयता —
गिल्लू
के मन में महादेवी जी के प्रति असीम आत्मीयता थी। वह कभी फूलदान में छिपकर, कभी पर्दे की चुन्नर या सोनजही की पत्तियों में छिपकर महादेवी जी को
चौंकाकर प्रसन्न करने की चेष्टा करता। यह उसी का साहस था कि महादेवी जी की थाली से
भोजन कर सके। काज उसका प्रिय भोजन था। महादेवी जी एक मोटर दुर्घटना में घायल होकर
कुछ दिन अस्पताल में रहीं। उस अवधि में गिल्लू ने काजू बहुत कम खाए। उनकी
अस्वस्थता की स्थिति में वह अपने नन्हे-मुन्ने पंजों से उनके सिर और बालों को
परिचारिका की तरह सहलाया करता। गर्मी के दिनों में जब महादेवी जी काम कर रही होती
थीं, तो वह सुराही पर लेट जाता और महादेवी जी के सामीप्य सुख
के साथ ठण्डक भी पाता रहता।
गिल्लू की मृत्यु और अन्तिम संस्कार -
प्रायः गिलहरी की आयु दो
वर्ष मानी जाती है। गिल्लू की आयु सीमा निकट आ चली। उसने भोजन छोड़ दिया, रात में ठण्ड की यातना से पीड़ित होकर महादेवी जी के बिस्तर पर आया और
पंजे से उंगली पकड़कर चिपक गया। महादेवी जी ने हीटर जलाकर उसे उष्णता देने का
प्रयास किया, पर प्रभात की प्रथम किरण के उदित होते ही वह
चिरनिद्रा में लीन हो गया।
गिल्लू
सोनजुही की लता के नीचे से प्राप्त हुआ था। अत: उसी के नीचे उसकी समाधि बनाई गई।
महादेवी जी को ऐसा लगता है कि किसी बसन्ती दिन सोनजुही की पीताभ कली बनकर वह खिल
उठेगा।
गिल्लू के न रहने पर उसका झूला उतार दिया गया और खिड़की की जाली बन्द कर दी गई। पर अब भी गिलहरियों की नई पीढ़ी जाली के पार चिक-चिक करती रहती है और सोनजुही की लता में बसन्त छाया रहता है।
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