लोक प्रशासन - कला तथा विज्ञान, दोनों है
B. A. III, Political Science I
प्रश्न 2. क्या लोक प्रशासन एक विज्ञान है ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। (2016)
(3) वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग:-
(1) निश्चितता का अभाव:-
(2) पर्यवेक्षण तथा परीक्षण का अभाव:-
(5) भविष्यवाणी का अभाव:-
लोक प्रशासन कला नहीं है :-
लोक प्रशासन विज्ञान और कला, दोनों है:-
प्रश्न 2. क्या लोक प्रशासन एक विज्ञान है ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। (2016)
अथवा ''लोक प्रशासन के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
अथवा '' लोक प्रशासन विज्ञान है अथवा कला ? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
अथवा "लोक प्रशासन कला तथा विज्ञान, दोनों है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लोक प्रशासन के स्वरूप के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत मतभेद है। कुछ विद्वान् इसे कला और विज्ञान, दोनों मानते हैं। किन्तु अन्य विद्वानों के अनुसार यह विज्ञान नहीं हो सकता है। यहाँ इस सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर विचार किया जाएगा।
लोक प्रशासन विज्ञान है निम्नलिखित तर्कों के आधार पर लोक प्रशासन को विज्ञान माना जा सकता है।
(1) क्रमबद्ध अध्ययन:-
लोक प्रशासन का सम्बन्ध मानवीय कार्यों से होने के कारण उसका क्रमबद्ध अध्ययन किया जा सकता है, इसलिए लोक प्रशासन विज्ञान है। एस. आर. निगम के शब्दों में, "प्रशासन सम्बन्धी ज्ञान को एकत्र करके उसका एक साथ विश्लेषण किया गया है, सम्बद्ध किया गया है, उसे व्यवस्थित किया गया है, क्योंकि विज्ञान एक व्यवस्थायुक्त ज्ञान है, इसलिए प्रशासन भी विज्ञान है।"
(2) आधारभूत सिद्धान्तों का संकलन:-
विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन के अध्ययन के लिए आधारभूत सिद्धान्तों का संकलन किया गया है। वर्तमान में लोक प्रशासन का अध्ययन लगभग उसी वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है जिस ढंग से भौतिक विज्ञानों का। साइमन, वार्नर, रूथनास्वामी आदि ने लोक प्रशासन के सिद्धान्तों के निर्माण में महान योगदान दिया है। इन सिद्धान्तों के कारण यह विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है।
(3) वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग:-
लोक प्रशासन में भी कुछ मात्रा में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे-विज्ञान की भाँति तथ्यों का संकलन व विश्लेषण किया जाना, उनमें परस्पर सह-सम्बन्ध स्थापित किया जाना आदि। जब किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, तो अन्त में पूर्ण परीक्षा करने के बाद सामान्य नियमों का निर्माण किया जाना। इस प्रकार लोक प्रशासन के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों-अवलोकन (पर्यवेक्षण), वर्गीकरण तथा सामान्य नियम निर्धारण आदि का प्रयोग किया जाता है।
(4) भविष्यवाणी की सम्भावना:-
कुछ विद्वानों का विचार है कि जिस प्रकार विज्ञान में भविष्यवाणी करने की क्षमता होती है, उसी प्रकार लोक प्रशासन में भी घटनाओं का अध्ययन करने पर कुशल प्रशासक यह अनुमान लगा सकते हैं कि इन घटनाओं के क्या परिणाम सम्भव हैं। प्रशासन के क्षेत्र में असंख्य पूर्वानुमान लगाए जाते हैं तथा ये अनुमान भविष्य में अधिकांशत: सही उतरते हैं।
लोक प्रशासन विज्ञान नहीं है :-
कुछ विचारक लोक प्रशासन को विज्ञान नहीं मानते हैं। मॉरिस कोहन ने 'समाज विज्ञान विश्वकोश' में लोक प्रशासन को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा है। फाइनर भी लोक प्रशासन को विज्ञान मानने के पक्ष में नहीं हैं। उर्विक ने लोक प्रशासन को कला माना है, विज्ञान नहीं। एल. डी. ह्वाइट ने इस विचार को कि लोक प्रशासन विज्ञान है अथवा नहीं, भविष्य के लिए स्थगित करने की सलाह दी है। लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते है
(1) निश्चितता का अभाव:-
लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के पक्ष में पहला कारण यह है कि इसमें निश्चितता का अभाव पाया जाता है, जबकि प्राकृतिक विज्ञानों में निश्चितता रहती है, जैसे—H, + O = पानी अर्थात् हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिलकर पानी बनता है। इसी प्रकार 'गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त', 'हवा में भार का सिद्धान्त' आदि ऐसे सिद्धान्त हैं जो सभी देशों में, सभी कालों में, सभी परिस्थितियों में समान रूप से लागू होते हैं, लेकिन लोक प्रशासन के निष्कर्ष निश्चितता से वंचित रहते हैं। उसके द्वारा किए गए प्रयोगों तथा साधनों का फल प्रत्येक परिस्थिति में समान नहीं रहता। इसका कारण यह है कि सामाजिक विज्ञानों को मनुष्यों से व्यवहार करना पड़ता है, जबकि प्राकृतिक विज्ञान जड़ पदार्थों से सम्बन्धित होते हैं।
(2) पर्यवेक्षण तथा परीक्षण का अभाव:-
पर्यवेक्षण पद्धति का प्रयोग जिस प्रकार भौतिक विज्ञानों में किया जा सकता है, उस रूप में लोक प्रशासन में नहीं किया जा सकता। विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन की कोई प्रयोगशाला नहीं होती, जो किसी चहारदीवारी में बन्द हो तथा जहाँ पूर्व में एकत्रित किए गए तथ्यों की सत्यता की जाँच की जा सके। विज्ञान की भाँति लोक प्रशासन में स्थिरता नहीं होती, क्योंकि भौतिक विज्ञानों के अध्ययन पदार्थ जड़ पदार्थ होते हैं, जबकि लोक प्रशासन का अध्ययन पदार्थ मानव होता है। जड़ पदार्थों के गुण एकं समान रहते हैं, जबकि मानव के विचार समय और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं।
(3) सैद्धान्तिक एकरूपता का अभाव:-
लोक प्रशासन में सर्वसम्मत सिद्धान्तों का अभाव पाया जाता है। यद्यपि हेनरी फेयोल, उर्विक, टेलर, विलोबी, स्टेने आदि ने सैद्धान्तिक एकरूपता के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए, परन्तु सैद्धान्तिक एकरूपता स्थापित करने में असफल रहे। प्रत्येक विचारक अपने ढंग से उनकी व्याख्या करता है। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका में राजनीतिशास्त्रियों का एक सम्मेलन इसलिए बुलाया गया कि लोक प्रशासन के सम्बन्ध में एकमत स्थापित करें, परन्तु उनमें से कोई भी एक ऐसा मत प्रस्तुत नहीं कर सका जो सर्वमान्य होता। आदेश की एकता' पर ही विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए।
(4) आदर्शात्मकता:-
प्राकृतिक विज्ञान अनिवार्य रूप से तथ्यपरक होते हैं, उनमें दृष्टिकोण निरपेक्ष होता है, उनमें आदर्शों के लिए कोई स्थान नहीं होता, जबकि लोक प्रशासन आदर्शमूलक होता है। प्रशासन के समक्ष निश्चित लक्ष्य की स्थापना की जाती है, जिसमें नैतिकता का पुट होता है। प्रशासन, प्रशासन के लिए नहीं, अपितु लोकहित की सिद्धि के लिए होता है।
(5) भविष्यवाणी का अभाव:-
भौतिक विज्ञानों में भविष्यवाणी की जा सकती है, जबकि लोक प्रशासन में यह सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि लोक प्रशासन मनुष्य की प्रशासन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन करता है। मानव की इच्छाओं, भावनाओं, मूल्यों, पसन्दों को मापना और वर्गीकृत करना सम्भव नहीं है।
लोक प्रशासन कला के रूप
निम्न तर्कों के आधार पर लोक प्रशासन को कला माना जा सकता है
(1) सर्वमान्य सिद्धान्त :-
प्रत्येक कला के कतिपय सर्वमान्य सिद्धान्त होते हैं, जिन पर वह आधारित होती है। यदि इन सिद्धान्तों या नियमों का पालन न किया जाए, तो कला में कौशल एवं निपुणता प्राप्त नहीं की जा सकती। इसी. प्रकार लोक प्रशासन के भी कुछ सर्वमान्य सिद्धान्त हैं। यदि प्रशासक इनकी उपेक्षा करे, तो उसे किसी भी हालत में सफलता नहीं मिल सकती। इस दृष्टि से लोक प्रशासन स्पष्टतः कला होने का दावा कर सकता है।
(2) अभ्यास की आवश्यकता :-
हर कला का एक विशेष कौशल होता है। उसे हासिल करने के लिए कलाकार को अनुभवी विशेषज्ञों से प्रशिक्षण लेना होता है और उसका अभ्यास करना होता है। इसी प्रकार प्रशासन का भी एक कौशल होता है और एक अच्छा प्रशासक बनने के लिए प्रशिक्षण, अनुभव और अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसी कारण आई. ए. एस. के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान, मसूरी में प्रशिक्षण दिया जाता है और तदुपरान्त उन्हें अनुभवी प्रशासकों के अन्तर्गत काम सीखना होता है।
(3) विशेष अभिरुचि एवं गुण :-
जिस प्रकार किसी भी कला में सफलता प्राप्त करने के लिए विशेष रुचि एवं गुणों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार एक कुशल प्रशासक बनने के लिए भी विशेष रुझान तथा गुण आवश्यक माने जाते हैं। प्राचीन काल से ही अनेक चिन्तक इस विषय पर विचार करते रहे हैं। कौटिल्य ने 'अर्थशास्त्र' में और मैकियावली ने 'The Prince' में शासन की कला पर विस्तार से विचार किया है और प्रशासकों के लिए आवश्यक विशेष गुणों पर प्रकाश डाला है।
(4) विकास की प्रक्रिया :-
विकास की प्रक्रिया की दृष्टि से भी लोक प्रशासन एक कला है। जैसे कि अन्य कलाओं का क्रमिक विकास होता है, उसी प्रकार लोक प्रशासन का भी धीरे-धीरे विकास हुआ है और अभी भी हो रहा है।
(5) परिवर्तनशीलता :-
जिस प्रकार अन्य कलाएँ और उनकी प्रक्रिया अथवा पद्धतियाँ परिवर्तनशील हैं, उनमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं, उसी प्रकार लोक प्रशासन की प्रक्रियाएँ भी समय और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। अतः लोक प्रशासन एक कला है।
लोक प्रशासन कला नहीं है :-
जो विचारक लोक प्रशासन को कला नहीं मानते, उनका कहना है कि प्रशासन की सफलता और असफलता मानवीय वातावरण एवं परिस्थितियों पर निर्भर करती है। एक स्थान पर एक प्रशासक उन्हीं तकनीकों से सफल हो जाता है और दूसरे स्थान पर असफल हो जाता है। यह सत्य है कि सामाजिक और मानवीय पर्यावरण प्रशासन की कार्यकुशलता को उसी प्रकार प्रभावित करते हैं जिस प्रकार खेल का मैदान बदलने पर नया वातावरण खिलाड़ी के कौशल को प्रभावित करता है। किन्तु प्रशासन एक कौशल है और प्रत्येक व्यक्ति इस कौशल को हासिल नहीं कर सकता। प्रशिक्षण और अभ्यास के बाद ही इस उच्चतम कला को ग्रहण किया जाता है। सुकरात प्रशासन को कला मानते हुए उसके लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण आवश्यक मानता था।
संक्षेप में, लोक प्रशासन एक कला है, क्योंकि यह सिद्धान्तों की अपेक्षा व्यवहार पर अधिक बल देता है।
लोक प्रशासन विज्ञान और कला, दोनों है:-
वास्तव में लोक प्रशासन विज्ञान भी है और कला भी। वस्तुतः यह कला अधिक है, विज्ञान कम; क्योंकि यह व्यावहारिक अधिक है, सैद्धान्तिक कम। प्रशासन के इन दोनों पक्षों को इस प्रकार जोड़ना चाहिए कि उत्तम परिणाम निकल सकें। चार्ल्सवर्थ के शब्दों में, "प्रशासन एक कला है, क्योंकि इसमें उत्तमता, नेतृत्व, उत्साह तथा उच्च विचारों की आवश्यकता होती है।" उन्हीं के शब्दों में, "यह एक विज्ञान है, क्योंकि इसमें निगमनात्मक विश्लेषण, पद्धत्यात्मक संगठन, सतर्कतायुक्त नियोजन तथा विवेकपूर्ण साधनों की आवश्यकता है।"
Thanks
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ReplyDeletemost usefull is topics and thank you provide is content
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ReplyDeleteThanks 😊
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ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteGood job
ReplyDeleteThanks a lot
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