अलाउद्दीन खिलजी - आर्थिक नीति


M.J.P.R.U.,B.A.I,History I / 2020
प्रश्न .7 अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का वर्णन कीजिए तथा उसकी चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा ''अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियन्त्रण नीति तथा राजस्व सम्बन्धी सुधारों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''मूल्य नियन्त्रण के विशेष सन्दर्भ में अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति की समीक्षा कीजिए। 
उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी 1296. में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। वह कुशल शासक के साथ साथ एक योग्य प्रशासक भी था। अनपढ़ होते हुए भी वह एक मौलिक विचारक था और उसके अनेक सुधार दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक नये प्रयोग के रूप में दिखाई देते हैं। उसने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ बाजार सम्बन्धी सुधार तथा आर्थिक सुधारों पर विशेष बल दिया। अलाउद्दीन खिलजी के बाजार सम्बन्धी तथा आर्थिक (राजस्व) सुधारों का विवेचन निम्न प्रकार किया जा सकता है
alauddeen_khilajee_history_in_hindi
Alauddeen Khilajee


बाजार सम्बन्धी सुधार

अलाउद्दीन ने बाजार मूल्यों को नियमित करने हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाए-

(1) वस्तुओं के मूल्यों का निर्धारण-

उसने प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की एक सूची तैयार करवाई। आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित कराए "गए। एक टंका एक तोले के बराबर होता था। एक टंके में 50 जीतल होते थे। गेहूँ 7 जीतल प्रति मन, चना 5 जीतल प्रति मन, जौ 4 जीतल प्रति मन, अच्छा लट्ठा 1 टंके का 20 गज था। इस प्रकार उसने वस्तुओं के मूल्यों को बढ़ने से रोकने के प्रयास किए, जिससे जन-साधारण को कुछ राहत मिली।

(2) वस्तुओं की पूर्ति-

अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार में वस्तुओं की पूर्ति पर भी सम्यक् रूप से विचार किया। उसने वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रयास कराए। सरकारी नियन्त्रण द्वारा उसने अनाज संग्रह का समुचित ढंग से प्रबन्ध करवाया। कृषकों को यह निर्देश दिए गए कि वे अपनी उपज की एक निश्चित मात्रा सरकार को नियन्त्रित मूल्य पर दें। लगान भी नकद न लेकर अन्न के रूप में लिया जाता था। इससे आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में सुधार हुआ।

(3) व्यापारियों का पंजीकरण-

व्यापारियों के लिए आवश्यक कर दिया गया कि वे अपना पंजीकरण कराएँ। सरकार की ओर से व्यापारियों की सहायता हेतु उन्हें ऋण भी दिया जाता था।

(4) राशन व्यवस्था-

आवश्यकता के अनुसार राशन प्रणाली भी लागू की जाती थी। प्रतिदिन 1/2 मन प्रति घर की दर से अनाज दिया जाता था।

(5) बाजार निरीक्षकों की नियुक्ति

बाजार में समुचित ढंग से निरीक्षण हेतु निरीक्षकों की नियुक्ति की गई। बाजारों के लिए 'दीवान-ए-रियासत' नियुक्त किए गए। मलिक काफूर को 'शहना-ए-मण्डी' के पद पर नियुक्त किया गया। वह व्यापारियों का पंजीकरण करने का सर्वोच्च अधिकारी था। बाजार का दूसरा उच्च अधिकारी 'बरीद-ए-मण्डी' होता था। वह बाजार में वस्तुओं के मूल्य तोल का निरीक्षण करता था। उसके अधीन कई छोटे और बड़े अधिकारी होते थे। वे सभी बाजारों का निरीक्षण करते थे। कम तोलने वाले या अधिक मूल्य लेने वाले को दण्ड दिया जाता था।

(6)कठोर दण्ड व्यवस्था -

सुल्तान ने अपनी बाजार नीति को सफल बनाने के लिए कठोर नियम बनाए थे। प्रत्येक प्रकार की सट्टेबाजी तथा चोरबाजारी का कठोरता से दमन किया। दोआब क्षेत्र के पदाधिकारियों को इस बात की लिखित गारण्टी देनी पड़ती थी कि हम किसी को चोरी से अनाज जमा न करने देंगे। इसी प्रकार व्यापारियों को अनाज तथा अन्य वस्तुएँ जमा करके रखने का अधिकार नहीं था, बल्कि माँगे जाने पर उन्हेंवे चीजें बेचनी पड़ती थीं। प्रमुख व्यक्तियों, अमीरों,पदाधिकारियों तथा धनी व्यक्तियों को बाजार से बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने से पहले शहना-ए-मण्डो के दफ्तर से परमिट लेना पड़ता था। दीवान-ए-रियासत तथा शहना-ए-मण्डी नामक दो पदाधिकारी सराय अटल' नामक एक न्यायाधीश तथा अनेक अन्य अधीनस्थ अफसरों की सहायता से इन नियमों को कठोरतापूर्वक कार्यान्वित कराते थे। वे ईमानदारी से तथा नियमानुसार अपने कर्तव्यों का पालन करते और नियमों का उल्लंघन करने वालों को कठोर दण्ड देते थे। इन सुधारों के परिणामस्वरूप अनाज, कपड़ा तथा अन्य वस्तुएँ बहुत सस्ती हो गईं।
इतिहासकार नासिरुद्दीन के अनुसार, "अलाउद्दीन का बाजार नियन्त्रण उसकी 'परोपकार की भावना का परिणाम था।" जबकि बर्नी के अनुसार, "अलाउद्दीन का मूल्य नियन्त्रण शाही सैनिकों के लिए और राजकोष की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए था।"

आर्थिक (राजस्व) सुधार

 सुल्तान ने एक विशाल सेना का गठन किया। उसका खर्च चलाने के लिए उसने निम्नलिखित आर्थिक सुधार किए-
(1) सुल्तान ने जागीर प्रथा का अन्त करके जागीरदारों से जागीरें छीन लीं।
(2) दान की गई समस्त भूमि पर सुल्तान ने अधिकार कर लिया।
(3) सुल्तान ने कर वसूलने के लिए एक अर्थ सचिव नियुक्त किया और साम्राज्य को कई भागों में विभाजित करके प्रत्येक भाग के लिए अध्यक्ष नियुक्त किए।
(4) राज्य में सब प्रकार की भूमि की पैमाइश कराई गई। इससे यह पता लगाने की कोशिश की गई कि किसानों के पास कितनी जमीन है और उसमें कितनी तथा कैसी पैदावार होती है। उसी के अनुसार कर वसूल किया जाता था। यह व्यवस्था दिल्ली और दोआब में भी लागू की गई। उनसे अन्न के रूप में लगान वसूल किया जाता था और उसे सरकारी गोदामों में जमा कर दिया जाता था।
(5) दोआब प्रान्त उपजाऊ होने के कारण भूमि कर अनाज के रूप में देता था। उससे अधिक कर वसूल किया जाता था।
(6) सुल्तान ने विशाल सेना के सैनिकों का वेतन कम कर दिया और बाजार की सभी वस्तुओं का भाव इस प्रकार नियत कर दिया कि सैनिकों के कम वेतन से भी उनका खर्च चल सकता था। उसने वस्तुओं के भाव निर्धारित करने के साथसाथ वस्तुओं के वितरण के लिए बाजारों की भी व्यवस्था की थी।
अलाउद्दीन के शासन सम्बन्धी सिद्धान्त उसकी मृत्यु के पश्चात् भी जीवित रहे। आगे आने वाले शासकों में से कई ने उसके विभिन्न शासन सिद्धान्तों तथा सैनिक सुधारों को अपनाया और लाभान्वित हुए। डॉ. एस. राय लिखते हैं, "अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम साम्राज्यवादी और भारत का प्रथम महान् मुसलमान शासन प्रबन्धक था। भारत में मुस्लिम साम्राज्य और मुस्लिम शासन का इतिहास उसी से प्रारम्भ होता है।"

अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र का मूल्यांकन-

 मध्ययुगीन शासकों में अलाउद्दीन खिलजी का स्थान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वह सैनिक एवं प्रशासनिक प्रतिभा से युक्त सफल सुल्तान था। उसका मूल्यांकन करते समय निम्नलिखित उपलब्धियों एवं चारित्रिक विशेषताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है-

(1) साहसी योद्धा - 

अलाउद्दीन प्रारम्भ से ही वीर था। सुल्तान बनने से पूर्व ही वह भिलसा व देवगिरि पर आक्रमण करके अपनी सैन्य प्रतिभा का परिचय दे चुका था। सुल्तान बनने के उपरान्त उसने अनेक विजय अभियानों का स्वयं नेतृत्व किया था। अनेक अभियानों में अपने योग्य सेनापति का मार्गदर्शन किया था। उसने अनेकों बार विषम परिस्थितियों में अपूर्व साहस, धैर्य, शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करके अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों को आश्चर्यचकित कर दिया था।

(2) साम्राज्यवादी -

अलाउद्दीन का शासनकाल साम्राज्य-विस्तार की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उसने सम्पूर्ण उत्तर व दक्षिण भारत पर अपनी विजय पताका फहराकर अपनी साम्राज्यवादी नीति को सिद्ध कर दिया। दिल्ली सल्तनत का कोई अन्य सुल्तान इस महान् कार्य को पूरा नहीं कर सका, जिसे अलाउद्दीन ने अपनी सामरिक प्रतिभा तथा साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के बल पर पूरा किया था। इस दृष्टि से उसे भारत का पहला तुर्की सम्राट् कहा जा सकता है।
डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है-"He may, therefore, rightly be called the first Turkish emperor of India.”

(3) निरंकुश शासक -

अलाउद्दीन अत्यन्त कठोर एवं निरंकुश शासक था। उसने अपने शासनकाल में किसी प्रान्तीय सूबेदार को विद्रोह का अवसर नहीं दिया। इसके लिए उसने अपने अधीनस्थ सूबेदारों की शक्ति पर कठोर नियन्त्रण लगाकर उनकी विद्रोह करने की शक्ति को समाप्त कर दिया। उसने पूरे साम्राज्य में शासन के नियमों को कठोरता से लागू किया तथा अपनी प्रजा को शान्ति व सुरक्षा प्रदान की। फरिश्ता के शब्दों में, "न्याय इतना कठोर था कि चोरी और. डकैती, जिनका पहले देश में बोलबाला था, अब सुनने को भी नहीं मिलता था। राजमार्गों पर यात्री निश्चिन्त होकर सोते थे और व्यापारी पूर्ण सुरक्षा के साथ अपना सामान बंगाल की खाड़ी से काबुल तक और तेलंगाना से कश्मीर तक ले जा सकते थे।"

(4) महान् सुधारक-

अलाउद्दीन खिलजी ने प्रशासनिक क्षेत्र में नवीन सुधारों का सूत्रपात करके स्वयं को महान् सुधारकों की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया। शासन की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से उसने राजस्व व लगान व्यवस्था को नवीन सिद्धान्तों पर आधारित किया। भूमि की पैमाइश कराई गई तथा लगान की धनराशि को निर्धारित किया। सेना को भी नीन सिद्धान्तों के आधार पर संगठित किया गया। सैनिकों को अनेकों सुविधाएँ प्रदान की गईं। कीमतों पर नियन्त्रण रखने तथा चोरबाजारी, सट्टेबाजी एवं वस्तुओं के अनधिकृत संग्रह पर रोक लगाने के लिए उसने आवश्यक कानून बनाए और उन्हें कठोरता से लागू किया। नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की गई। इस प्रकार उसके आन्तरिक सुधारों के फलस्वरूप उसका सम्पूर्ण शासन एक सूत्र में बँध गया था। इन्हीं उपलब्धियों के कारण डॉ. के. एस. लाल ने अलाउद्दीन को सल्तनत के सुल्तानों में सर्वश्रेष्ठ माना है। उन्होंने लिखा है-
“Alauddin stands head and shoulder above his predecessors for successors in the Sultanata.".
इस प्रकार अलाउद्दीन के चरित्र में महान् योद्धा, विजेता तथा सुधारक के सभी गुण विद्यमान थे। डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने ठीक ही लिखा है--
"यदि अलाउद्दीन के कार्यों एवं उपलब्धियों का निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाए तो यह कहना पड़ेगा कि दिल्ली के मध्ययुगीन शासकों में उसका स्थान उच्च है,


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