उच्च न्यायालय - संगठन, शक्तिया और अधिकार
B.A-I-Political Science II
प्रश्न 15. उच्च न्यायालय के
संगठन, क्षेत्राधिकार एवं शक्तियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा ''उच्च न्यायालय के संगठन, शक्तियों और अधिकार
क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर - उच्च न्यायालय राज्य
का प्रमुख न्यायालय होता है। संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय
की व्यवस्था की गई है, लेकिन एक ही उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र
दो या दो से अधिक राज्यों या संघीय क्षेत्रों तक विस्तृत हो सकता है। केन्द्र शासित
राज्यों के लिए पृथक् उच्च न्यायालय का प्रावधान नहीं है, अपितु उनको समीपवर्ती
राज्यों के उच्च न्यायालय से सम्बद्ध किया गया है। दिल्ली इसका अपवाद है। वह
केन्द्र शासित राज्य है, तथापि उसका पृथक् उच्च न्यायालय है। राज्यों
में उच्च न्यायालय की स्थापना या उससे सम्बन्धित व्यवस्था में परिवर्तन का अधिकार
संसद को प्राप्त है।
उच्च न्यायालय का संगठन
(1) न्यायाधीशों की नियुक्ति -
प्रत्येक उच्च न्यायालय में
एक मुख्य न्यायाधीश व कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं, जिनकी संख्या निश्चित करने का अधिकार राष्ट्रपति
को होता है। राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत
के प्रधान (मुख्य) न्यायाधीश और उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श से करता है। अन्य
न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय वह उस राज्य के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श करता
है।
(2) न्यायाधीशों की योग्यताएँ-
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए किसी व्यक्ति में निम्नलिखित अर्हताओं (योग्यताओं) का
होना अनिवार्य
(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) वह भारत के किसी भी न्यायालय में कम-से-कम 10 वर्षों तक न्यायाधीश
के पद पर कार्य कर चुका हो अथवा भारत के किसी एक या अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार
10 वर्षों तक वकालत कर चुका हो अथवा राष्ट्रपति की दृष्टि में लब्धप्रतिष्ठ न्यायविद्
हो।
(3) न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते-
संविधान के अनुच्छेद 221 के अनुसार उच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतन दिये जाएँगे जो संसद विधि द्वारा निर्धारित
करे। ये वेतन और भत्ते राज्य की संचित निधि से दिये जाते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति
के बाद उनके वेतन तथा भत्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹ 90,000 तथा अन्य न्यायाधीशों को ₹
80,000 प्रतिमाह वेतन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों
को निवास-स्थान, विभिन्न प्रकार के भत्ते, कार तथा सेवानिवृत्ति के पश्चात् पेंशन आदि सुविधाएँ
प्राप्त होती हैं।
(4) न्यायाधीशों का कार्यकाल -
मूल संविधान के अनुसार न्यायाधीश
60 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकते हैं, परन्तु 15वें संविधान संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर
62 वर्ष कर दी गई। 104वें संविधान संशोधन विधेयक, 2010 के द्वारा उच्च
न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी है। इससे पूर्व भी
यदि कोई न्यायाधीश अपने पद से त्याग-पत्र देना चाहे, तो वह राष्ट्रपति को त्याग-पत्र भेजकर अपना पद त्याग
सकता है। उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को असमर्थता (कार्य करने में
अक्षम) या कदाचार (नियम विरुद्ध कार्य) के आधार पर भी राष्ट्रपति द्वारा
हटाया जा सकता है। इसके लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल संख्या के बहुमत
तथा उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रतिवेदन का समर्थन किया जाना आवश्यक है।
(5) न्यायाधीशों का स्थानान्तरण-
राष्ट्रपति को यह अधिकार भी
प्राप्त है कि वह उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को किसी अन्य उच्च न्यायालय
में स्थानान्तरित कर सकता है।
(6) न्यायाधीशों पर प्रतिबन्ध
संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार उच्च
न्यायालय का कोई स्थायी न्यायाधीश पद-निवृत्ति के पश्चात् उच्च न्यायालय में
या उस न्यायालय के किसी अधीनस्थ न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता। वह अन्य उच्च न्यायालयों
या सर्वोच्च न्यायालय में वकालत अवश्य कर सकता है।
उच्च न्यायालय की शक्तियाँ तथा अधिकार क्षेत्र
भारत के प्रत्येक उच्च न्यायालय को दो प्रकार
की शक्तियाँ प्राप्त हैं—न्याय सम्बन्धी और प्रशासन सम्बन्धी। इसके अतिरिक्त
उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है। उच्च न्यायालय
की शक्तियों एवं अधिकार क्षेत्र को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं
(1) प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार-
मूल अधिकारों के रक्षण से सम्बन्धित
विवाद प्रारम्भ से ही उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए जाते हैं, क्योंकि इन विवादों
की सुनवाई का अधिकार राज्य के अन्य किसी न्यायालय को प्राप्त नहीं है। मूल अधिकारों
की रक्षा हेतु उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न प्रकार के लेख जारी किए जा सकते
हैं; जैसे-बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख, परमादेश लेख, प्रतिषेध लेख, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण लेख। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक
क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को वसीयत, विवाह-विच्छेद, विवाह विधि, कम्पनी कानून तथा
न्यायालय की अवमानना आदि से सम्बन्धित विवादों को सुनने का अधिकार है।
भारतीय संघ के उच्च न्यायालयों
में कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई उच्च न्यायालयों को अन्य उच्च न्यायालयों की अपेक्षा अधिक अधिकार
क्षेत्र प्राप्त है।
(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार-
इस अधिकार के अन्तर्गत उच्च
न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध प्रस्तुत की गई अपीलें
सुनता है। इनके अन्तर्गत दीवानी, फौजदारी और राजस्व सम्बन्धी सभी प्रकार के विवाद
सम्मिलित हैं। उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से किसी विवाद की समस्त
कार्यवाही मँगा सकता है। वह किसी भी विवाद का एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानान्तरण कर सकता है। किन्तु ऐसा उच्च न्यायालय तभी करता
है जब उसे यह विश्वास हो जाए कि किसी विवाद में निष्पक्षता से न्याय नहीं किया जा रहा
है। यदि किसी सेशन कोर्ट ने किसी अपराधी को मृत्युदण्ड की सजा दी है, तो इस मृत्युदण्ड
की पुष्टि उच्च न्यायालय से होनी आवश्यक है।
संविधान लागू होने के समय उच्च
न्यायालय को राजस्व सम्बन्धी मुकदमों की अपील सुनने का अधिकार नहीं था, परन्तु अब उच्च
न्यायालय को राजस्व सम्बन्धी सभी प्रकार के मुकदमों की अपील सुनने का अधिकार प्राप्त
है। ये अपीलें राजस्व मण्डल (Revenue Board) के निर्णयों के विरुद्ध होती हैं। न्यायाधिकरणों
(Tribunals) के निर्णयों के विरुद्ध भी उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
(3) लेख जारी करने का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 226 के द्वारा उच्च
न्यायालयों को मूल अधिकारों को लागू करने तथा अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए
लेख, आदेश तथा निर्देश जारी करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
(4) न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार
संविधान द्वारा उच्च न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान की गई है और उच्च न्यायालयों को अधिकार है कि वह किसी भी ऐसे संवैधानिक संशोधन, केन्द्रीय कानून या राज्य के कानून को अवैधानिक घोषित कर दे, जो संविधान के प्रावधानों के विपरीत हा।
(5) उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय के रूप में
उच्चतम न्यायालय के समान उच्च न्यायालय भी एक अभिलेख न्यायालय है। इसका अर्थ यह है कि इसके
निर्णय और न्यायिक कार्यवाहियाँ प्रकाशित होती हैं और उन्हें अपने राज्य क्षेत्र में
साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। उच्च न्यायालय अपनी अवमानना के लिए
दण्ड भी दे सकता है।
(6) प्रशासनिक शक्तियाँ -
उच्च न्यायालय अपने
अधीनस्थ राज्य की न्यायिक व्यवस्था पर निम्न प्रकार से नियन्त्रण रखता है
(i) उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों
और न्यायाधिकरणों पर निगरानी रखता है। यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों से किसी भी मुकदमे
से सम्बन्धित कागजात मँगवा सकता है।
(ii) यदि अधीनस्थ न्यायालय में कोई ऐसा मुकदमा चल रहा
है जिसमें भारतीय संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है, तो उच्च न्यायालय
ऐसे मुकदमे को अपने पास मँगा सकता है।
(iii) यह अधीनस्थ न्यायालयों के शेरिफ, लिपिक, अन्य कर्मचारी तथा
वकील आदि के वेतन, सेवा शर्ते और फीस निश्चित कर सकता है।
(iv) उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों
के प्रशासनिक नियन्त्रण के प्रति उत्तरदायी होता है। यह जिला न्यायालयों में अधिकारियों
की नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति, अवकाश आदि के सम्बन्ध में आवश्यक नियमों का निर्धारण करता है।
That's good topic l understood
ReplyDeleteThat's good topic l understood
ReplyDeleteImportant facts
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