आधुनिक राज्यों में लोक प्रशासन का महत्व
B. A. III, Political Science I
प्रश्न 4. आधुनिक राज्यों में
लोक प्रशासन की भूमिका का वर्णन कीजिए।
अथवा '' लोक-कल्याणकारी राज्य
में लोक प्रशासन की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा '' आधुनिक लोक-कल्याणकारी
राज्य में लोक प्रशासन के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा '' वर्तमान समय में लोक प्रशासन के क्षेत्र में वृद्धि के कारण बताइए।
उत्तर - द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के सशक्त होने के कारण राज्य के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि हुई और इसके साथ ही लोक प्रशासन का क्षेत्र भी बढ़ गया। विकासशील देशों में तीव्र राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन हुए। प्रशासन द्वारा आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने पर बल दिया जाने लगा। परिणामस्वरूप विकास प्रशासन को भी लोक प्रशासन का एक महत्त्वपूर्ण अंग स्वीकार किया गया। प्रशासनिक क्रियाओं के बढ़े हुए कार्यक्षेत्र ने लोक प्रशासन को बहुआयामी बना दिया है।
आधुनिक राज्य व्यक्ति के जीवन
में इतना समा गया है कि आज राज्य के बिना व्यक्ति का जीवन न तो सुरक्षित है और न ही
उसका विकास सम्भव है। बालक के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक राज्य व्यक्ति की कहीं-न-कहीं
कोई सेवा अवश्य कर रहा होता है। इस प्रकार राज्य लोक प्रशासन का उद्देश्य यथासम्भव
अपने साधनों द्वारा व्यक्ति की अधिक-से-अधिक सेवा करना है, जिससे व्यक्ति अपना
पूर्ण विकास कर सके। इस प्रकार लोक प्रशासन के क्षेत्र में वृद्धि होना स्वाभाविक
है।
वर्तमान समय में लोक प्रशासन
के क्षेत्र में वृद्धि के लिए निम्न कारण उत्तरदायी हैं
(1) लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा-
लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ने लोक प्रशासन के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि की है। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में आम जनता तक पहुँच बनाई है। आज प्रशासन के सफल क्रियाकलाप ही राज्य की सफलता के मापदण्ड बन गए हैं, अत: लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र बढ़ा है।
(2) अनुसन्धान के नये उपकरणों एवं धारणाओं का उदय-
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात्
परिवर्तित परिवेश में नये व्यवसाय और उद्यम प्रारम्भ हुए। विचारधारा, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में हुए विकास ने प्रशासन का रूप-रचना को पर्याप्त
प्रभावित किया। परिणामस्वरूप विकास प्रशासन की नवीन अवधारणा को लोक प्रशासन के
अन्तर्गत सम्मिलित किया गया। देश की भौतिक सुख-समृद्धि हेतु आर्थिक नियोजन तथा उससे
सम्बन्धित विभिन्न योजनाओं के संचालन का दायित्व भी लोक प्रशासन पर आ गया।
(3) औद्योगीकरण व तकनीकी विकास–
जनता को औद्योगीकरण व तकनीकी
विकास का समुचित लाभ दिलाने हेतु लोक प्रशासन को सक्रिय, प्रभावी, अनुशासित, स्वच्छ व गतिशील
बनाने हेतु विकसित देशों में अनुसन्धान होने लगे तथा इसके लिए विदेशों से क्षेत्रीय
अनुभव प्राप्त किए गए। सहायता प्राप्त करने वाले देशों में वहाँ के वातावरण और सन्दर्भ
के अनुसार प्रशासनिक संस्थाएँ विकसित करने के लिए प्रशासनिक मिशन भेजे गए।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता—
विभिन्न राष्ट्रों एवं क्षेत्रों
के मध्य बढ़ रही पारस्परिक निर्भरता ने भी लोक प्रशासन के क्षेत्र में वृद्धि
की है। विकासशील देशों ने विकसित देशों की स्थिति का अध्ययन करके लोक प्रशासन को
तदनुरूप विस्तार देने पर बल दिया। अनेक नये राज्यों का जन्म होने से प्रशासनिक प्रयोगों
के लिए प्रयोगशालाएँ मिल गईं। भविष्य में इन देशों के प्रशासनिक शोध अधिक सम्पन्न राज्यों
के लिए भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। आजकल विकासशील देशों ने सरकारी नियमों का व्यापक
प्रयोग करके लोक प्रशासन के क्षेत्र को विकसित किया है।
(5) व्यवहारवादी क्रान्ति–
व्यवहारवादी क्रान्ति के परिणामस्वरूप
लोक पशासन में भी व्यक्ति के वास्तविक व्यवहार को अध्ययन का केन्द्र बनाया जाने लगा
और लोक प्रशासन को व्यक्ति केन्द्रित करने हेतु इसके क्षेत्र का विस्तार आवश्यक
हो गया। विकास प्रशासन तथा प्रशासन की विकेन्द्रीकृत व्यवस्था इसके प्रत्यक्ष उदाहरण
हैं।
इस प्रकार वातावरण, परिस्थिति, उपयोगिता, वर्तमान समय
की नई चनौतियाँ, दृष्टिकोण तथा विचारों की मान्यताओं आदि के कारण
लोक प्रशासन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
लोक प्रशासन का महत्त्व (भूमिका)
आज पलिस राज्य के स्थान पर लोक-कल्याणकारी
राज्य के विचार के बलशाली हो जाने से राज्य के कार्यो में वृद्धि हुई है और इसके साथ
ही लोक प्रशासन के अध्ययन का महत्त्व बढ़ गया है। राज्य की क्रियाओं की असफलता
लोक प्रशासन पर निर्भर करती है। लोक प्रशासन का मुख्य कार्य की नीतियों
को लागू करना है। यही कारण है कि राज्य की नीतियाँ कितनी ही श्रेष्ठ और अच्छी क्यों
न हों, यदि उन्हें अयोग्यता से लागू किया जाता है तो भयंकर परिणाम निकलते हैं। लोक
प्रशासन के महत्त्व को देखते ही इसे 'आधुनिक सभ्यता का हृदय' कहा गया है।
आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य
में लोक प्रशासन के महत्त्व को निम प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं
(1) आर्थिक नियोजन और देश की भौतिक सुख-समृद्धि
की सार्थकता लोक प्रशासन की कुशलता पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार की योजनाओं
की सफलता के लिए एक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष प्रशासन का होना अत्यधिक आवश्यक
है।
(2) वर्तमान समय में लोक प्रशासन का दायित्व निरन्तर
बढ़ रहा है। औद्योगीकरण और पुनर्जागृति का समुचित लाभ जनता को तब ही मिल सकता है जबकि
लोक प्रशासन सक्रिय, प्रभावी, अनुशासित, स्वच्छ और गतिशील हो। औद्योगीकरण, नगरीकरण आदि विभिन्न
उपलब्धियों के कारण लोक प्रशासन मनुष्य और समाज के बहुत निकट पहुँच गया है।
(3) लोक प्रशासन का मुख्य कार्य राज्य
की नीतियों को लागू करना है। यही कारण है कि राज्य की नीतियाँ कितनी ही श्रेष्ठ और
अच्छी क्यों न हों, यदि उन्हें अयोग्यता से लागू किया जाता है, तो उसके भयंकर परिणाम निकलते हैं।
डोनहम ने लिखा है कि "यदि हमारी सभ्यता का पतन होता है, तो वह हमारी प्रशासकीय
असफलता का परिणाम होगा।"
सर जोशिया स्टाम्प का मत है कि "मेरे मन में यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि प्रशासकीय कर्मचारी
नये समाज को प्रेरणा देने वाला स्रोत होगा। प्रत्यक मंजिल पर पथ-प्रदर्शन, प्रोत्साहन और अपना
परामर्श देगा।"
गोरवाला का कथन है,
"प्रजातन्त्र में बिना स्पष्ट, कुशल तथा निष्पक्ष
प्रशासन के कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती। नीतियों, कार्यक्रमा तथा योजनाओं
को बनाना सरल है, पर बिना कुशल प्रशासन के उनका क्रियान्वित करना असम्भव
है।"
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते
हैं कि आज के युग में राज्य का उद्देश्य लोक कल्याण है।
प्रो. हाइट ने लिखा है कि '' आज से दो शताब्दी पूर्व लोग राज्य से केवल
दमन की आशा करते थे। एक शताब्दी पूर्व यह आशा करने लगे कि राज्य व्यक्तियों को उनके
मामलों में स्वतन्त्र छोड़ दे, परन्तु आज लोग राज्य से
विभिन्न सेवाओं और सुरक्षाओं की आशा करते हैं।"
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