फ्रांस की न्याय व्यवस्था - निबन्ध

B. A. II, Political Science II

प्रश्न 19. फ्रांस की न्यायिक व्यवस्था की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा  '' फ्रांस की न्याय व्यवस्था पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर - फ्रांस की 1789 ई. की राज्यक्रान्ति से पूर्व कोई व्यवस्थित न्यायपालिका नहीं थी। समय-समय पर राजाओं द्वारा स्वेच्छा से कानून लागू किए जाते थे और वे स्थानीय परम्पराओं पर आधारित होते थे। उनमें एकरूपता का अभाव था। क्रान्ति के पश्चात् भी इस स्थिति में कोई महत्त्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ। जब फ्रांस का शासन नेपोलियन बोनापार्ट के हाथों में   आया, तो उसने कानूनों को एकरूपता प्रदान करने के लिए एक संहिता का निर्माण करवाया, जो 'नेपोलियन कोड' के नाम से विख्यात है। 'नेपोलियन कोड' को फ्रांस की न्याय व्यवस्था का आधार कहा जाता है।

फ्रांस में न्यायालयों का संगठन

फ्रांस में पाँच प्रकार के न्यायालयों की व्यवस्था की गई है

(1) सामान्य न्यायालय- सामान्य न्यायालय जन-साधारण से सम्बन्धित विवादों पर न्याय प्रदान करते हैं। इन न्यायालयों का संगठन अग्र प्रकार है

फ्रांस की न्याय व्यवस्था

(i) शान्ति न्यायाधीश के न्यायालय

ये सामान्य न्यायालयों में सबसे निम्न स्तर के न्यायालय होते हैं । फ्रांस में इस प्रकार के कुल 3,000 न्यायालय हैं। इनमें 1 न्यायाधीश होता है, जिसे 'शान्तिपाल' कहते हैं। ये न्यायालय दीवानी और फौजदारी, दोनों ही प्रकार के विवादों का निर्णय करते हैं। इनका प्रमुख कार्य विवादों का निर्णय करने की अपेक्षा विवादों को उत्पन्न होने से रोकना है। ये न्यायालय दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर अथवा मध्यस्थता द्वारा समझौता कराकर. विवादों को रोकने का प्रयत्न करते हैं। इन न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध प्रारम्भिक न्यायालय में अपील की जा सकती है।

(ii) प्रारम्भिक न्यायालय-

शान्तिपाल के न्यायालय के ठीक ऊपर प्रथम अथवा प्रारम्भिक न्यायालय होता है। प्रत्येक एरोण्टाइजमेण्ट में इस प्रकार का एक न्यायालय होता है। इसमें कम-से-कम 3 न्यायाधीश होते हैं और अधिक-से-अधिक 15 न्यायाधीश हो सकते हैं। इसे दीवानी व फौजदारी मुकदमों में प्रारम्भिक और अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है। इसके कुछ निर्णयों के विरुद्ध अपीलीय न्यायालय में अपील की जा सकती है।

(iii) अपील के प्रादेशिक न्यायालय-

प्रारम्भिक न्यायालयों के ऊपर अपील के प्रादेशिक न्यायालय होते हैं। इनका कार्यक्षेत्र सामान्यतया 7 प्रान्तों तक रहता है। फ्रांस में इस प्रकार के 27 न्यायालय हैं। प्रत्येक न्यायालय में दीवानी, फौजदारी और दोषारोपण-तीन विभाग होते हैं। ये मुख्यतया प्रारम्भिक न्यायालयों के दीवानी मामलों से सम्बन्धित निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनते हैं।

(iv) निषधा (Assize) न्यायालय-

ये न्यायालय बड़े-बड़े नगरों का क्रम से दौरा करके केवल फौजदारी के मुकदमों का निर्णय करते हैं। इसमें प्रारम्भिक न्यायालय के 2 न्यायाधीश और अपीलीय न्यायालय का 1 न्यायाधीश होता है। यह न्यायालय 12 सदस्यीय ज्यूरी की सहायता से अपना कार्य करता है। इस न्यायालय का निर्णय अन्तिम होता है और इसके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती।

(v) विराम (Cessation) न्यायालय

यह फ्रांस का सर्वोच्च सामान्य न्यायालय है, किन्तु इसका संगठन, शक्तियाँ एवं कार्य भारत या अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से पूर्णतया भिन्न है। इसमें 1 महा अध्यक्ष,3 विभागीय अध्यक्ष तथा 45 अन्य न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें पार्षद कहते हैं। यह केवल अपीलीय न्यायालय है और अपील में भी केवल विधि सम्बन्धी प्रश्नों पर ही विचार करता है, तथ्यात्मक प्रश्नों पर नहीं।

 (2) प्रशासकीय न्यायालय-

फ्रांस में साधारण न्यायालयों के अतिरिक्त प्रशासकीय न्यायालय भी हैं,जो प्रशासकीय कानूनों को लागू करते हैं। प्रशासकीय न्यायालय के दो स्तर हैं

(i) प्रादेशिक परिषद्-

प्रशासकीय न्यायालयों में निम्नतर स्तर पर प्रादेशिक परिषद् होती है। फ्रांस में इस प्रकार की 23 परिषदें हैं। ये निर्धारण (Assessment) सम्बन्धी विवादों, सार्वजनिक निर्माण, स्थानीय निर्वाचन आदि पर निर्णय देती हैं। प्रशासन सम्बन्धी विवाद सर्वप्रथम इन्हीं न्यायालयों में आते हैं। इनके निर्णयों के विरुद्ध राज्य परिषद् में अपील की जा सकती हैं।

(ii) राज्य परिषद्-

यह फ्रांस का सर्वोच्च प्रशासकीय न्यायालय है। यह पेरिस में स्थित है और इसके कई विभाग हैं। इसका अध्यक्ष फ्रांस का न्याय मन्त्री होता है, जिसके अधीन 1 उपाध्यक्ष तथा 5 विभागाध्यक्ष होते हैं। इसमें 149 सदस्य होते हैं। सामान्यतया इसमें विधि और प्रशासनिक कार्यों में दक्ष उच्च सरकारी अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है। यह प्रादेशिक परिषदों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनती है और मन्त्रिपरिषद् को उसके द्वारा जारी की गई आज्ञप्तियों और आदेशों के सम्बन्ध में परामर्श देती है। यह स्वतन्त्र और प्रभावशाली संस्था है तथा प्रशासनिक न्याय का वास्तविक उत्तरदायित्व इसी पर है।

(3) संवैधानिक परिषद-

यह फ्रांस की एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था है, जो संसद द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता पर निर्णय देती है। यह राष्ट्रपति के निर्वाचन का निरीक्षण करती है, जनमत संग्रह की व्यवस्था करती है और परिणाम की घोषणा करती है। परिषद का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य विधेयकों, अन्तर्राष्ट्रीय प्रपत्रों, आंगिक कानूनों और संसद के स्थायी आदेशों की संवैधानिकता पर निर्णय देना है। यदि परिषद् इनमें से किसी को अवैधानिक घोषित कर दे, तो उसे कार्यान्वित नहीं किया जा सकता। परिषद् के निर्णय समस्त प्रशासनिक व न्यायिक सत्ताओं और सार्वजनिक पदाधिकारियों पर बाध्यकारी होते हैं तथा उनके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती।

(4) उच्च न्यायिक परिषद्-

न्यायाधीशों को नियुक्त करने और कुछ अन्य न्यायिक कार्यों के सम्पादन हेतु एक उच्च न्यायिक परिषद् की व्यवस्था की गई है। इसका सभापति राष्ट्रपति होता है। इसे न्यायिक क्षेत्र में अनुशासन सम्बन्धी मामलों में भी निर्णय करने का अधिकार होता है।

(5) न्याय का उच्च न्यायालय-

यह एक राजनीतिक न्यायालय है, जिसके सदस्यों को संसद के दोनों सदनों द्वारा समान संख्या में निर्वाचन किया जाता है। राष्ट्रपति या मन्त्रियों पर देशद्रोह या देश की सुरक्षा के विरुद्ध कार्य करने आदि का दोषारोपण होने पर यह न्यायालय ही उसका परीक्षण कर अपना निर्णय देता है।

इस प्रकार सैद्धान्तिक दृष्टि से भी तथा संगठन की दृष्टि से भी फ्रांस की न्याय व्यवस्था अपने ढंग की निराली व्यवस्था है और इंग्लैण्ड आदि की विधि शासन परम्परा से पूर्णतया भिन्न है।

फ्रांस की न्यायिक व्यवस्था की विशेषताएँ

फ्रांस की न्यायिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(1) संहिताबद्ध कानून-

1789 ई. की राज्यक्रान्ति से पूर्व फ्रांस की न्याय व्यवस्था अत्यन्त दोषपूर्ण थी, उसमें एकरूपता और क्रमबद्धता का अभाव था। 1799 ई. में नेपोलियन बोनापार्ट के सत्ता में आने के पश्चात् फ्रांसीसी कानूनों को एक संहिता के रूप में लिपिबद्ध करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। नेपोलियन द्वारा बनवाई गई यह संहिता 'नेपोलियन कोड' के नाम से विख्यात है। इसे फ्रांस की. न्याय व्यवस्था का आधार कहा जा सकता है।

(2) लिखित कानून-

फ्रांस में सभी कानून पूर्णतया लिखित रूप में पाए जाते .

(3) संसदीय कानून-

फ्रांस में सभी कानूनों का निर्माण संसद अथवा अन्य किसी संगठित संस्था के द्वारा किया गया है। वहाँ कोई कानून प्रथाओं और रूढ़ियों पर आधारित नहीं है और न ही फ्रांस में न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानूनों का विकास हो पाया है।

(4) न्यायपालिका प्रशासन का एक अंग मात्र है-

फ्रांस में न्यायपालिका को मूलत: एक प्रशासकीय अंग माना गया है और न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को मान्यता नहीं दी गई है। मुनरो ने लिखा है कि फ्रांस के लोग न्यायपालिका को व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका से भिन्न शासन की पृथक् शाखा नहीं मानते हैं, वरन् डाकखाने की भाँति केवल प्रशासकीय अंग ही मानते हैं।फ्रांस में न्यायिक कार्य पर सरकारी वकील का पर्याप्त नियन्त्रण होता है।

(5) न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था का अभाव-

फ्रांस में न्यायपालिका कानूनों की संवैधानिकता की जाँच नहीं कर सकती। इस प्रकार फ्रांस में न्यायिक पुनरावलोकन का अभाव है। पंचम गणतन्त्र के संविधान के अनुसार यह कार्य एक संवैधानिक परिषद् को सौंपा गया है, जो संसद द्वारा निर्मित कानूनों की संवैधानिकता पर अन्तिम निर्णय देती है।

(6) न्यायाधीशों की नियुक्ति-

फ्रांस में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली भी इंग्लैण्ड, अमेरिका, भारत आदि देशों से भिन्न है। फ्रांस में न्यायाधीशों की नियुक्ति ख्याति प्राप्त वकीलों में से नहीं की जाती। उनकी नियुक्ति अन्य सरकारी कर्मचारियों की भाँति की जाती है, जो प्रतियोगी परीक्षा के परिणाम के आधार पर होती है। फ्रांस में न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायिक परिषद् द्वारा की जाती है।

(7) पूर्व निर्णयों (नजीरों) को मान्यता नहीं-

फ्रांस में पूर्व निर्णयों को मान्यता नहीं दी जाती जैसी इंग्लैण्ड, भारत आदि देशों में दी जाती है। फ्रांस में केस लॉ नहीं होता। फ्रांस में कानूनों के 5 संग्रह हैं दीवानी संहिता, वाणिज्य संहिता, दीवानी व्यवहार संहिता, दण्ड व्यवहार संहिता और दण्ड विधान । न्यायालय इन संहिताओं के आधार पर ही न्याय प्रदान करते हैं, पूर्व निर्णयों के आधार पर नहीं।

(8) प्रशासकीय न्यायालयों की व्यवस्था-

इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि देशों से भिन्न फ्रांस में दो पृथक् तथा समानान्तर विधि संहिता और न्यायालय हैं। एक साधारण न्यायालय हैं, जो नागरिकों के झगड़ों का निर्णय करते हैं और दूसरे प्रशासकीय न्यायालय हैं, जो प्रशासकीय कानून को लागू करते हैं। प्रशासकीय न्यायालय उन विवादों पर भी विचार करते हैं जो साधारण नागरिक और सरकारी पदाधिकारियों के मध्य उत्पन्न होते हैं।

 

 

 

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