संक्षेपण का अर्थ एवं परिभाषा

प्रश्न 15. संक्षेपण की अर्थच्छवियों का सुस्पष्ट विवेचन कीजिए। 

अथवा ‘’ संक्षेपण से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे संक्षेपण में किन गुणों का होना आवश्यक है ?

अथवा संक्षेपण संक्षिप्त होते हुए भी अपने में पूर्ण होता है।" इस उक्ति के परिप्रेक्ष्य में आदर्श संक्षेपण की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।  

अथवा ‘’संक्षेपण के तत्वों पर प्रकाश डालिए।  

अथवा संक्षिप्तता ही वाक्-विदग्धता की आत्मा है।" इस कथन के परिप्रेक्ष्य मेंसंक्षेपण के गुणों का सविस्तार उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

संक्षेपण का अर्थ एवं परिभाषा-

संक्षेपण 'गागर में सागर भर देने की कला है। इसमें कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक विचारों को प्रकट कियाजा सकता है। 

इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा में 'क्षिप्' धातु में सम् उपसर्ग और 'ल्युट' प्रत्यय जोड़ने पर होती है। इसका अर्थ है छोटा करना या संक्षिप्त करके प्रस्तुत करना । 

'संक्षेपण' को अंग्रेजी में 'प्रेसी राइटिंग' कहते हैं। प्रेसी (Precis) मूलतः 'फ्रेंच' भाषा के 'प्रेसीड्यूअर' शब्द से बना है। अंग्रेजी भाषा में इसका समानार्थी शब्द 'प्रिसाइज' (Precise) है। जिसका अभिप्राय संक्षेप, सार आदि है। 

इसे इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, "किसी लिखित सामग्री को मूल के लगभग एक-तिहाई भाग में संक्षिप्त रूप में,सहज भाषा और व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना 'संक्षेपण' कहलाता है।"

इसके सम्बन्ध में एक पाश्चात्य विद्वान का कथन है-संक्षिप्तता ही वाक्-विदग्धता की आत्मा है । वास्तव में संक्षेपण हमारी बौद्धिकता की कसौटी है।

sankshepan ka arth aur paribhasha

संक्षेपण की विशेषताएँ-

संक्षेपण के महत्वपूर्ण तत्व हो इसके गुण या विशेषताएँ भी कहलाती हैं जो अधोलिखित हैं-

(1) संक्षिप्तता-

यह संक्षेपण का आधार स्तम्भ है। इसमें अनावश्यक विशेषणों दृष्टान्तों, उद्धरणों और वर्णनों की आवश्यकता नहीं

होती। इसमें सरल समास-पदों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(2) पूर्णता और बोधगम्यता-

इसमें मूल बातें ही देनी चाहिए। जो अवतरण के सन्दर्भ में हों, न अपनी ओर से बढ़ायी जायें,न घटायी जायें। क्योंकि संक्षेपण में न तो अपनी ओर से मूल्यांकन शैली में कुछ रिप्पणी की सम्भावना होती है और न ही निष्कर्ष की शैली में कोई निर्णय देने की । संक्षेपण बोधगम्य और स्वतः पूर्ण होना चाहिए । इसमें विषय-सामग्री का नीर-क्षीर विवेक सम्मत पूर्णरूप उभरकर आना चाहिए।

(3) सुसम्बद्धता-

संक्षेपण की तीसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें मूल का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत करते समय उपयोगी, यथार्थ और महत्वपूर्ण बातों में पारस्परिक बिखराव नहीं आना चाहिए। इसमें भाव क्रमबद्ध भाषा प्रवाहपर्ण एवं वाक्य सुसम्बद्ध और सुगठित होने चाहिए। इसको पढ़ते समय मूल अनुच्छेद का आस्वाद मिलना चाहिए।

(4) सहज स्पष्ट भाषा शैली-

संक्षेपण में भाषा सरल, सुस्पष्ट और परिष्कृत हो । इसमें क्लिष्ट वाक्य रचना, अलंकृत भाव और कल्पना की उड़ान का त्याग करना चाहिए। इसमें द्वयर्थक शब्दों का चयन नहीं करना चाहिए। शैली सरल और सर्वजन-सहज होनी चाहिए ताकि उसका अपेक्षित प्रभाव पड़ सके । संक्षेपण की भाषा में अन्य पुरुष का प्रयोग होना चाहिए।

(5) शुद्धता एवं प्रमुखता-

संक्षिप्त किए हुए तथ्यों का मूल के अनुरूप अर्थ हो, कोई भी बात शुद्ध एवं स्पष्ट हो।

(6) मौलिकता-

मौलिकता ही संक्षेपण को प्रभावी बनाती है। संक्षेपण में मूल सामग्री को यथावत् नहीं अपनाना चाहिए बल्कि उसको आत्मसात् कर मौलिक रूप से अपनी भाषा में अभिव्यक्त करना चाहिए।

(7) आकार की लघुता-

संक्षेपण आकार में लघु होना चाहिए, न अत्यन्त छोटा हो और न बड़ा हो । सामान्यतः यह मूल का तृतीयांश होता है।

 

 

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