भारत में चुनाव सुधार पर एक निबंध लिखिए

प्रश्न 8. भारत में चुनाव व्यवस्था में क्या कमियाँ हैं? इन कमियों के निराकरण के उपाय बताइए।

अथवा   '' भारत में निर्वाचन प्रणाली की समस्याओं और समाधान पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर  -

भारत में अब तक 14 आम चुनाव हो चुके हैं। ये सभी चुनाव छिटपुट घटनाओं को छोड़कर सामान्यतया शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए हैं। लेकिन इसके साथ ही चुनावों में ऐसी बातें देखने को मिली हैं जिन्होंने जनता की चुनावों में आस्था को कम किया है। चुनावों में काले धन की भूमिका, हिंसा, फर्जी मतदान, मतदान केन्द्रों पर कब्जे करने की प्रवृत्तियाँ निरन्तर बढ़ रही हैं। इन खामियों ने बुद्धिजीवियों, विद्वानों और लेखकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

भारत में चुनाव व्यवस्था में क्या कमियाँ हैं

भारत में चुनाव व्यवस्था में कमियाँ ( समस्याएँ)

वर्तमान चुनाव व्यवस्था की कुछ प्रमुख समस्याओं, असंगतियों और दोषों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है  -

(1) राजनीतिक दलों को प्राप्त जन-समर्थन और प्राप्त स्थानों के अनुपात में गम्भीर अन्तर  -

भारत में साधारण बहुमत की निर्वाचन पद्धति अपनाई गई है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में वही प्रत्याशी विजयी माना जाता है जिसे सर्वाधिक मत मिले हों। इस प्रणाली में जब प्रत्याशी दो से अधिक होते हैं, तो इस बात की पूरी सम्भावना रहती है कि विजयी प्रत्याशी को प्राप्त मत अन्य पराजित प्रत्याशियों को प्राप्त मतों से कम हों। इस प्रकार की चुनाव प्रणाली में बहुधा उस दल को सत्तारूढ़ होने का अवसर मिलता है जिसे देश के बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं होता और जिसका मत प्रतिशत विपक्ष को प्राप्त प्रतिशत की तुलना में प्रायः बहुत कम होता है। राजनीतिक दलों को प्राप्त जन-समर्थन और उन्हें प्राप्त स्थानों के अनुपात में गम्भीर अन्तर की स्थिति को न्यायपूर्ण या लोकतान्त्रिक नहीं कह। जा सकता है।

(2) चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका  -

चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका हमारी चुनाव व्यवस्था का गम्भीर दोष है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव में उम्मीदवार द्वारा किए जाने वाले व्यय की सीमा निश्चित की गई है। यह व्यय सीमा भिन्न भिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। चुनाव में भाग लेने वाले उमीदवारों के लिए यह आवश्यक है कि वे चुनाव परिणाम की घोषणा के 30 दिन के भीतर चुनाव व्यय का हिसाब सम्बद्ध अधिकारी को प्रस्तुत कर दें।

लेकिन यह कानूनी व्यवस्था केवल कागजी है। व्यवहार में धन की भूमिका निरन्तर अधिकाधिक बढ़ती जा रही है।

(3) चुनावों में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग

सत्तारूढ़ दल सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करता है। मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए सत्तारूढ़ दल अनेक परियोजनाओं की घोषणा करता है और मतदाताओं को चुनाव के समय अनेक सहूलियतें और रियायतें देता है। सत्तारूढ़ दल निर्वाचन में लगी सरकारी मशीनरी पर तरह-तरह के दबाव डालकर उन्हें अपने पक्ष में मतदान कराने को मजबूर करता है।

(4) निर्दलीय उम्मीदवारों की भरमार

भारतीय चुनाव प्रणाली की एक त्रुटि यह है कि दर्जनों राजनीतिक दल होने के बावजूद भी निर्दलीय सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये निर्दलीय सदस्य बेदी के लोटे की तरह सत्ता व धन लोभ में कभी भी किसी भी दल में जाने को तैयार रहते हैं।

(5) मतदाताओं की उदासीनता  -

चुनाव व्यवस्था में एक गम्भीर दोष यह देखा गया है कि अधिकांश मतदाताओं की चुनावों में कोई रुचि नहीं है। प्रथम तो मतदाता वोट देने के इच्छुक ही नहीं हैं या फिर जबरदस्ती किसी दल या उम्मीदवार के वाहन में बैठकर जाते हैं और उसी को वोट दे आते हैं। देखा यह गया है कि लगभग 50% लोग अपने मताधिकार का प्रयोग ही नहीं करते। , मतदाताओं की यह उदासीनता प्रजातन्त्र को दृढ़ बनाने में बाधक है।

(6) अनेक दलों की भरमार

भारत में बहुदलीय प्रणाली है। न केवल राष्ट्रीय स्तर के अनेक दल हैं, वरन् क्षेत्रीय दल भी अधिक संख्या में हैं; जैसे  - अकाली दल, तेलगुदेशम, नेशनल कॉन्फ्रेंस, डी. एम. के., असम गण परिषद्, समाजवादी पार्टी आदि। ये दल चुनावों के समय सिद्धान्तों की तिलांजलि देकर सत्ता प्राप्त करने के लिए गठबन्धन करते रहते हैं। देश या मतदाताओं के हित से इनका कोई सम्बन्ध नहीं होता।

(7) मतदाता सूचियों की अपूर्णता  -

हमारी चुनाव व्यवस्था का एक अन्य गम्भीर दोष यह है कि चुनावों के समय और विशेषकर मध्यावधि चुनावों के समय मतदाता सूचियाँ प्रायः अपूर्ण रहती हैं। परिणामस्वरूप अनेक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह जाते हैं। चुनाव के दौरान कई बार मतदाता सूचियों में ऐसा परिवर्तन कर दिया जाता है जो शासक दल के अनुकूल हो।

(8) राजनीतिक दबाव  -

निर्वाचन अधिकारियों पर दबाव भी हमारी चुनाव व्यवस्था का गम्भीर दोष है। दबाव में आकर ये अधिकारी मतदाता सूचियों तथा मतगणना के समय हेराफेरी कर देते हैं।

निर्वाचन व्यवस्था को सुधारने तथा स्वस्थ बनाने सम्बन्धी सुझाव  -

समय-समय पर विभिन्न विचारकों, कानूनशास्त्रियों तथा राजनीतिक दलों ने चुनावों की त्रुटियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं  -

(1) चुनाव आयोग बहुसदस्यीय हो।

(2) चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में विपक्ष तथा भारत के प्रमुख न्यायाधीश से भी परामर्श लिया जाए।

(3) सभी संसद सदस्यों, विधायकों तथा मन्त्रियों की आय के ब्यौरों और स्रोतों को प्रकाशित किया जाए।

(4) चुनावों में प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए जमानत राशि को बढ़ाया जाए।

(5) फर्जी (जाली) मतदान करने वाले मतदाताओं या उम्मीदवारों को कड़ी सजा दी जाए।

(6) चुनाव खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाए, राजनीतिक दलों द्वारा नहीं।

(7) मतदान अनिवार्य किया जाए।

(8) धन की शक्ति को कम किया जाए।

(9) निर्वाचन याचिकाओं का शीघ्र निपटारा किया जाए।

(10) चुनाव के दौरान मन्त्रियों के सरकारी दौरे समाप्त किए जाएँ और इस दौरान मतदाताओं को लालच के बतौर नई योजनाओं की घोषणा न की जाए।  

निर्वाचन व्यवस्था की खामियों को दूर करने के लिए प्रमुख व्यक्तियों और विभिन्न समितियों द्वारा की गई सिफारिशों का विवरण निम्न प्रकार है  -

के. संथानम समिति के सुझाव  -

के. संथानम समिति द्वारा निर्वाचन व्यवस्था में सुधार हेतु दिए गए सुझाव निम्न प्रकार हैं   -

(1) मुख्य चुनाव आयुक्त को विरोधी दल के एक प्रतिनिधि तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के उपरान्त नियुक्त किया जाना चाहिए।

(2) लोकसभा के लिए 250 निर्वाचन क्षेत्र होने चाहिए। प्रत्येक क्षेत्र से दो-दो उम्मीदवार निर्वाचित होने चाहिए। बड़े निर्वाचन क्षेत्रों के निर्माण से साम्प्रदायिक और जातीय हितों का प्रभाव न्यूनतम हो जाएगा।

(3) उम्मीदवारों के लिए कुछ न्यूनतम अहर्ताएँ निश्चित की जानी चाहिए।

(4) राजनीतिक दलों के आय-व्यय के शुद्धतापूर्वक लेखन के सम्बन्ध में कानून बनाया जाना चाहिए।

तारकण्डे समिति की सिफारिशें

सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण ने देश को निर्वाचन व्यवस्था में निहित दोषों को दूर करने के उपाय सुझाने के लिए महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी. एम. तारकुण्डे की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं।

(1) लोकसभा अथवा विधानसभा के विघटन और नये चुनावों की घोषणा के बाद से सरकार कामचलाऊ सरकार की तरह काम करे। वह नई नीतियों की घोषणा न करे और न ही नई परियोजनाएं लागू करे।

(2) चुनाव के दौरान मन्त्रिमण्डल के सदस्य सरकारी खर्च पर यात्रा न करें।

(3) जमानत की राशि लोकसभा के उम्मीदवारों के लिए ₹500 से बढ़ाकर ₹2,000 और विधानसभा के उम्मीदवारों के लिए ₹200 से बढ़ाकर ₹1,000 कर दी जाए।

(4) आय-व्यय के स्रोतों का उल्लेख और आय-व्यय का पूरा हिसाब रखना समस्त राजनीतिक दलों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए और चुनाव आयोग उसकी जाँच कराए। उम्मीदवारों के चुनाव खर्च के हिसाब की जाँच कराई जाए। राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों पर किया जाना वाला खर्च उम्मीदवारों के हिसाब में जोड़ा जाए तथा चुनाव खर्च की वर्तमान सीमा को दुगुना कर दिया जाए।

(5) राज्यों में चुनाव आयोग स्थापित किए जाएँ, केन्द्रीय चुनाव आयोग में एक के बजाय तीन सदस्य हों तथा उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति केवल प्रधानमन्त्री के परामर्श पर नहीं, अपितु तीन व्यक्तियों की एक समिति की सिफारिश पर करे। इस समिति में प्रधानमन्त्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा लोकसभा में विरोधी दल का नेता अथवा विरोधी दल का प्रतिनिधि हो।

दिनेश गोस्वामी समिति के सुझाव  -

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने विधि मन्त्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव से सम्बन्धित सुधारों की अनुशंसा करने के लिए एक समिति नियुक्त की थी। इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए  -

(1) बूथ कब्जे की घटनाओं को रोकने के लिए पुनर्मतदान कराया जाए।

(2) आरक्षित सीटों के लिए भ्रमणशील (Rotation) पद्धति अपनाई जाए।

(3) निर्वाचन याचिकाओं का शीघ्र निस्तारण किया जाए।

(4) इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों का प्रयोग प्राराम्भ किया जाए।

(5) छह माह में किसी भी रिक्त स्थान के लिए उप-चुनाव का प्रावधान अनिवार्य किया जाए।

(6) मतदाताओं को फोटोयुक्त पहचान-पत्र जारी किए जाएँ।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन का चुनाव  सुधार सम्बन्धी दृष्टिकोण

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन ने चुनाव प्रणाली को जिस तरहसंचालित किया, उसके लिए देश उन्हें सदैव याद रखेगा। अपने कार्यकाल के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ने चुनाव सुधारों के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए, जो निम्नलिखित हैं  -

(1) बूथ कब्जे की घटनाओं के सम्बन्ध में प्रतिवेदन मिलने पर पुनर्मतदान कराना।

(2) चुनाव प्रक्रिया के दौरान अधिकारियों के स्थानान्तरण पर पूर्ण रोका

(3) चुनावों के दौरान आचार संहिता को राजनीतिक दलों पर सख्ती से लागू करना।

(4) चुनावी व्यय के सम्बन्ध में उम्मीदवारों द्वारा जमा किए गए विवरणों की जाँच-पड़ताल करना ।

(5) चुनाव की अवधि में मन्त्रियों द्वारा अधिकाधिक दौरों को चुनाव प्रचार कार्यक्रम से अलग रखना।

इसके साथ ही मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा देश के सभी मतदाताओं को फोटोयुक्त पहचान-पत्र जारी किए जाने पर बल दिया गया, क्योंकि पहचान-पत्रों   के जरिये फर्जी मतदान को काफी सीमा तक रोका जा सकता है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एम. एस. गिल का चुनाव  सुधार सम्बन्धी दृष्टिकोण

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एम. एस. गिल ने चुनाव प्रक्रिया से अपराधियों को अलग करने के उद्देश्य से इस आशय का परिपत्र जारी किया कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को किसी अपराध के कारण दण्डित न किए जाने के सम्बन्ध में एक शपथ-पत्र दाखिल करना होगा। इस परिपत्र के माध्यम से अपराधियों के चुनाव लड़ने के इरादों पर काफी सीमा तक रोक लग सकेगी। इसके बावजूद अभी भी चुनाव प्रक्रिया में सुधार की दिशा में काफी कानूनी पग उठाए जाना आवश्यक प्रतीत होता है।

अक्टूबर, 1997 में निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव  -

14 अक्टूबर, 1997  को चुनाव आयोग ने चुनावों से सम्बन्धित कानूनों में व्यापक बदलाव की कुछ सिफारिशें केन्द्र सरकार से की, जिनमें से प्रमुख सिफारिशें अग्रलिखित हैं

(1) जिन लोगों को 6 वर्ष कैद की सजा हुई है, उन्हें 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाए। आयोग ने कहा है कि ऐसा करने से अपराधियों का प्रवेश संसद और विधानमण्डलों में रुक जाएगा, जो आज समाज के लोगों के लिए गम्भीर समस्या का विषय बना हुआ है।

उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने अगस्त, 1997 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई व्यक्ति, जिसे किसी भी निचली अदालत द्वारा सजा दी गई हो, उसे जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 के अन्तर्गत चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी। चुनाव आयोग ने इस आदेश में यह भी कहा था कि यदि उक्त व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय से जमानत प्राप्त कर जेल से बाहर भी हो, तो भी उसे चुनाव लड़ने के योग्य नहीं माना जाएगा, परन्तु इसमें वर्तमान सांसदों और विधायकों को शामिल नहीं किया जाएगा।

(2) संविधान में संशोधन कर चुनाव आयुक्तों की संख्या तीन निश्चित कर दी जाए, जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो आयुक्त हों। यह भी सुझाव दिया गया है कि दोनों चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर ही शक्तियाँ प्राप्त होनी चाहिए।

(3) राजनीतिक दलों, अन्य संस्थाओं अथवा उम्मीदवारों के निकट सम्बन्धियों द्वारा खर्च किए जाने वाले धन को भी उम्मीदवार के लिए निश्चित चुनाव खर्च सीमा में शामिल किया जाना चाहिए।

(4) चुनाव आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा को लोकसभा चुनावों के लिए ₹ 15 लाख और विधानसभा चुनावों के लिए ₹ 6 लाख तक बढ़ा देने की । सिफारिश भी की। 6 (5) चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया जाए कि चुनाव कार्यों में लापरवाही और अनियमितता बरतने के आरोप में वह सम्बन्धित अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही और दण्ड निर्धारित कर सके।

विधि आयोग की सिफारिशें

चुनाव सुधारों के लिए 20 सितम्बर, 1999 को विधि आयोग ने अपनी महत्त्वपूर्ण सिफारिशें रखीं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं  -

(1) पाँच वर्ष में एक ही बार चुनाव सुनिश्चित किया जाए अर्थात् लोकसभा एवं विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष सुनिश्चित हो।

(2) निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव न लड़ने दिया जाए।

(3) आयोग ने दल-बदल सम्बन्धी कानूनों में संशोधन की सिफारिश करते हुए सुझाव दिया है कि चुनाव पूर्व होने वाले गठबन्धन के मोर्चे को एक राजनीतिक पार्टी माना जाए।

(4) आयोग ने राजनीतिक दलों द्वारा अपने खाते बनवाने, उसका ऑडिट कराने और उसे चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने की अनिवार्यता पर बल दिया है।

(5) आयोग ने सजा होने के साथ-साथ किसी मामले में अदालत में आरोप-पत्र दाखिल हो जाने के आधार पर भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किए जाने की सिफारिश की है    अधिक वोट पाने वाला व्यक्ति ही विजयी घोषित किया जा सके।

 

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