स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन - सारांश

 प्रश्न 2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के व्यंग्य चित्र 'स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन' का सारांश देते हुए इसमें निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। (2018)

अथवा भारतेन्दु जी द्वारा रचित निबन्ध 'स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- युग-निर्माता साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का सर्जनात्मक व्यक्तित्व बहुमुखी था। वह सहृदय कवि, नाटककार, निबन्धकार, सम्पादक और अनुवादक होने के साथ-साथ उच्च कोटि के देशभक्त और हिन्दी प्रेमी थे। उन्होंने तन-मनधन से हिन्दी भाषा और उसके साहित्य-संसार को अपनी रचनाओं से समृद्ध किया।

भारतेन्दु जी ने अनेक विषयों पर विचारपूर्ण निबन्ध लिखे हैं, जिनमें हास्य और व्यंग्य से परिपूर्ण निबन्ध 'स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन' अधिक चर्चित हुआ। इस निबन्ध में भारतेन्दु जी ने उन्मुक्त कल्पना का प्रयोग कर अपने युग के दो महान् समाज सुधारकों-स्वामी दयानन्द सरस्वती और बंगाल के केशवचन्द्र सेन के कृतित्व की समालोचना की है।

swarg me vichar sabha ka adhiveshan

स्वर्ग में दो दल-

भारतेन्दु ने ब्रिटिश पार्लियामेण्ट के दो राजनीतिक दलों के समान स्वर्ग में भी दो दलों- कजरवेटिव' और 'लिबरल' दलों की कल्पना को है। जो ऋषि-मुनि तपस्या के अपने शरीर को सुखाकर स्वर्ग पहुँचे थे, उनकी आत्माओं का दल 'कंजरवटिव' था और जो आत्मा की उन्नति से अथवा परमेश्वर की भक्ति से स्वर्ग गए थे. उनकी आत्माओं का दल लिबरल' था। वैष्णवों को दोनों दलों ने खारिज कर दिया था।

स्वामी दयानन्द और केशवचन्द्र सेन की निन्दा-

दोनों दलों के लोग स्वामी दयानन्द और केशवचन्द्र की निन्दा करते थे कि इनके विचारों से धर्म की हानि हुई है, अत: इन्हें स्वर्ग से निकालना चाहिए। दोनों दल अपनी-अपनी सभा करते थे। वेदव्यास को दोनों दल अपनी-अपनी सभा में बुलाते थे। लिबरल दल भी दो दलों में विभक्त हो गया। एक दयानन्द का समर्थन करता था, दूसरा केशवचन्द्र सेन का।

स्वामी दयानन्द के विरोधी कहा करते थे कि दयानन्द ने पुराणों का खण्डन किया, मूर्ति-पूजा की निन्दा की, वेदों का अर्थ उल्टा-पुल्टा कर डाला, नियोग करने की विधि निकाली, देवताओं का अस्तित्व मिटाना चाहा और अन्त में संन्यासी होकर स्वयं को जलवा दिया।

केशवचन्द्र सेन के विरोधी कहा करते थे कि केशवचन्द्र सेन ने सारे भारत वर्ष का सत्यानाश कर डाला, वेद-पुराण मिटाया, क्रिस्तान-मुसलमान सबको हिन्दू बनाया, खाने-पीने का विचार बाकी  नहीं रखा, मद्य की तो नदी बहा दी।

समर्थकों द्वारा प्रशंसा-

इसके विपरीत स्वामी दयानन्द के लिबरल समर्थक कहा करते थे कि स्वामी दयानन्द ने आर्यावर्त के निन्दित मूर्खो को मोह-निद्रा से जगाया, उन ब्राह्मणो के चंगुल से छुड़ाया अनेकों को उद्योगी और उत्साही बनाया, वेद मे रेल -तार आदि दिखाकर आर्यों की कटती हुई नाक बचा ली।

केशवचन्द्र सेन के लिबरल समर्थक कहा करते थे कि हे केशव ! तुम साक्षात् केशव हो। तुमने बंग देश की मनुष्य रूपी नदी को क्रिश्चन रूपी समुद्र में मिल जाने से रोका। तुमने ज्ञान-कर्म की अपेक्षा परमेश्वर की निर्मल भक्ति का मार्ग प्रचलित किया।

सिलेक्ट कमेटी का गठन

उपर्युक वैचारिक मतभेद पर विचार करने के लिए एक सिलेक्ट कमेटी का गठन किया गया, जिसमें राजा राममोहन राय, व्यासदेव, टोडरमल, कबीर आदि के अलावा मुसलमानी स्वर्ग से एक 'इमाम', क्रिस्तानी से 'लूधर, जैनी से 'पारसनाथ', बौद्धों से 'नागार्जुन' और अफरीक से 'सिटोबायो' के बाप को कमेटी का 'एक्स अफोशियो मेम्बर' नियुक्त किया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इस निबन्ध में अनेक स्वर्गों का उल्लेख कर अन्धविश्वासों का उपहास किया है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार धरती पर अनेक धर्म, मजहब और सम्प्रदाय प्रचलित हैं, उसी प्रकार स्वर्ग में भी अनेक धर्मों के पुण्यात्मा लोगों का निवास है।

सिलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट

दोनों दलों के डेप्यूटेशन को ईश्वर ने फटकारा था, अत: सिलेक्ट कमेटी ने उपर्युक्त प्रकरण पर विचार-विमर्श करने के बाद अपनी रिपोर्ट परमात्मा के पास भेजी। उस रिपोर्ट में मर्म की बात यह थी कि दोनों अर्थात् स्वामी दयानन्द और केशवचन्द्र सेन ने परमात्मा की सृष्टि का कल्याण किया है। स्वामी दयानन्द ने रूढ़ियों का प्रबल विरोध कर भारतीयों को ब्राह्मणों के चंगुल से छुड़ाया, स्त्रियों का कल्याण किया तथा केशवचन्द्र सेन ने भक्ति की लहरों से लोगों का चित्त आर्द्र किया। दोनों में कुछ कमियाँ भी थीं, लेकिन कमियों के कारण इनका अपमान करना अनुचित है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने सिलेक्ट कमेटी की विस्तृत रिपोर्ट में इस बात की ओर संकेत किया है कि 19वीं शताब्दी में हिन्दू समाज परम्परागत रूढ़ियों से बँधा हुआ था, जिससे समाज की प्रगति रुक गई थी। स्वामी दयानन्द और केशवचन्द्र सेन ने अपने नवीन विचारों से जनता के आचरण को प्रभावित किया और उन्हें प्रगति-पथ पर अग्रसर किया। परम वैष्णव होने के नाते भारतेन्दु ने स्वामी दयानन्द के अतिवादी विचारों का समर्थन नहीं किया। उन्होंने केशवचन्द्र सेन की दुर्बलता का उल्लेख कर लिखा है कि मृत्यु के बाद जैसा आदर केशवचन्द्र सेन का हुआ, वैसा दयानन्द का नहीं हुआ।

स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन का सारांश 

अन्त में भारतेन्दु ने लिखा है कि रिपोर्ट परमात्मा के पास भेजी गई। उसे देखने के बाद परमात्मा की क्या आज्ञा हुई, यह कुछ दिन बाद लोग स्वयं जान लेंगे। सारांश यह है कि भारतेन्दु ने अपने वैष्णव धर्म के अनुसार स्वामी दयानन्द और केशवचन्द्र सेन की समुचित आलोचना की है।

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