मध्यकालीन इतिहास के 13 प्रमुख साहित्यिक स्रोत

BA-II-History-I

प्रश्न 1. मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी देने वाले स्रोतों पर प्रकाश डालिए। 

अथवा '' मध्यकालीन भारतीय इतिहास जानने के ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- मध्यकाल मे भारतीय इतिहास की जानकारी देने वाले स्रोतों का अध्ययन करने पर इतिहासकारो का कहना है, कि उस समय अधिकतर इतिहास के लेखक युगीन सम्राटों के दरबारी अथवा कृपापात्र थे। इसलिए उनके लिखे इतिहास मे उस समय की एकपक्षीय तस्वीर प्रस्तुत करता है। अर्थात सम्राटों के गुण गान पर अधिक महत्व दिया गया है , चूँकि मध्ययुगीन अधिकांश इतिहासकार उच्च वर्ग से थे, इसलिए उन्होंने शासक वर्ग से सम्बन्धों में विशेष रुचि ली। उनके द्वारा लिखे गयी पुस्तके , जिनसे हम मध्यकालीन भारतीय इतिहास की कुछ जानकारी हासिल होती है , 
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(1) ऐतिहासिक स्त्रोत ( Historical source )

(1) तारीख-ए-रशीदी

 इसको बाबर के मौसेरा भाई मिर्जा हैदर दुगलात ने लिखा है। उसने उस समय की घटनाओं का अच्छा जिक्र किया है जिससे लगता है उसे उस समय का अच्छा ज्ञान था। उसने बाबर के काल में युद्धों में भाग लिया था और हुमायूँ-शेरशाह के संघर्ष को भी देखा था। मिर्जा हैदर ने बाबर के पूर्वजों, मध्य एशिया तथा भारत में उससे सम्बन्धित घटनाओं, हुमायूँ और उसके भाइयों के साथ सम्बन्ध तथा युद्धों का वर्णन किया है। 'तारीख-एरशीदी' दो भागों में है। प्रथम भाग बाबर और हुमायूँ से सम्बन्धित है तथा दूसरे भाग में स्वयं से सम्बन्धित कश्मीर की घटनाओं का वर्णन किया है।

(2बाबरनामा -

 'तुजुक-ए-बाबरी' जिसको 'बाबरनामा' नाम से भी जाना जाता है ,इसमे भारत मे मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की आत्मकथा है। जो की तुर्की भाषा में है।इतिहास कारों का कहना है की बाबर के काल के बारे में जानने के लिए 'बाबरनामा' एक प्रामाणिक ऐतिहासिक स्रोत है। इसमें बाबर ने अपनी विजयों तथा अन्य घटनाओं का तथ्यात्मक वर्णन किया है। उसने अपनी कमजोरियोंत्रुटियोंनशे की आदतदावतों, भोग विलास आदि के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया है।  इसमे उसने भारत का विस्तृत वर्णन किया है। एक आक्रमण कारी होने के पश्चात उसने भारत की समृद्धि की प्रशंसा की हैलेकिन अन्य बातों में निन्दा की है। एक प्रवासी के समान वह अपनी मातृभूमि की प्रशंसा करता है और विदेश (भारत) की निन्दा करता है। 'बाबरनामामें बाबर ने सिंहासन पर बैठने से लेकर 1529 ई. तक का वर्णन किया हैलेकिन बीच-बीच में उसका वर्णन छूट गया है।

(3) तजकिरात-उल-वाकियात

इसकी रचना आफताबची ने की थी, जो की हुमायूँ का निजी सेवक था। जौहर ने इसे स्मृति के आधार पर लिपिबद्ध किया है । इस ग्रन्थ की रचना हुमायूँ की मृत्यु के 30 वर्ष उपरान्त की गयी है , एसलिए त्रुटियों होना स्वाभाविक है। लेकिन फिर भी इतिहासकार जौहर के वर्णन को अधिक प्रामाणिक मानते हैं। जौहर ईरान में हुमायूँ के साथ कुछ समय तक रहा था। इसके बाद हुमायूँ के भारत आगमन तथा हुमायूँ की मृत्यु तक वह हुमायूँ के साथ रहा। जिन घटनाओं का वर्णन उसने किया है, उनका वह प्रत्यक्षदर्शी था।

(4) हुमायूँनामा - 


इस ग्रन्थ की रचना हुमायूँ की बहिन गुलबदन बेगम ने की थी। यह ग्रन्थ फारसी भाषा में है। उसने हुमायूँ और कामरान के मध्य हुए उन युद्धों का विस्तृत वर्णन किया है जो अफगानिस्तान में हुए थे। इस ग्रन्थ की रचना अकबर के शासनकाल में हुई थी।

(5) तारीख-ए-शेरशाही  

यह ग्रन्थ अब्बास खाँ शेरवानी ने लिखा है। वह अकबर की सेवा में था और उसने इसकी रचना अकबर के आदेश पर की थी। इस ग्रन्थ को तोहफा-ए-अकबरशाही' भी कहा गया है। अब्बास खाँ ने इस ग्रन्थ को बहलोल लोदी से आरम्भ किया है, लेकिन इस ग्रन्थ का महत्त्व शेरशाह तथा इस्लामशाह के शासनकालों के वर्णन में है। उसने चौसा तथा कन्नौज के युद्ध का विस्तृत वर्णन किया है।

 (6) तारीख-ए-अकबरी

इस ग्रन्थ का रचनाकार आरिफ कन्धारी बैरम खाँ का सेवक था। इसके बाद वह मुजफ्फर खाँ की सेवा में रहा। इस ग्रन्थ में उसने अकबर के शासनकाल की 1585 ई. तक की घटनाओं का वर्णन किया है। उसने अकबर के सुधारों, विशेष रूप से कृषि सम्बन्धी सुधारों का विवरण दिया है। तारीख-ए-अल्फीइस ग्रन्थ की रचना अकबर के आदेश पर इस्लाम के 1000 वर्ष पूरे होने पर की गई थी। अकबर ने इस ग्रन्थ की रचना के लिए सात विद्वानों का एक बोर्ड नियुक्त किया था, लेकिन यह बोर्ड ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर सका। इसलिए इसे पूरा करने का उत्तरदायित्व मुल्ला अहमद घटवी को दिया गया। उसने 1294 ई. तक का वर्णन किया। इसके बाद आसफ खाँ जफर बेगम ने इसे 1589 ई. तक पूरा किया। 1591 ई. में अब्दुल कादिर बदायूँनी ने इसके पुनरीक्षण का कार्य किया।

(8) अकबरनामा -

इस ग्रन्थ की रचना अरबी तथा फारसी के विद्वान् अबुल फजल ने की थी। इस विशाल ग्रन्थ को दो भागों में बाँटा जा सकता है-प्रथम भाग में अकबर के जन्म, तैमूरियों की वंशावली तथा बाबर-हुमायूँ का विवरण हैं। द्वितीय भाग में अकबर के राज्यारोहण से 17वें वर्ष तक का विवरण है। यह ग्रन्थ 1596 ई. में पूरा हुआ। अबुल फजल अकबर का घनिष्ठ मित्र और परामर्शदाता भी था। उसने अकबर के प्रशासन, विजयों, नीतियों आदि का विस्तृत विवरण दिया है। सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उसे अकबर की आध्यात्मिक शक्ति तथा बौद्धिक ज्ञान में अपरिमित विश्वास था। अत: उसका वर्णन व्यक्ति पूजा के समान है ,

(9) आइन-ए-अकबरी -

इस ग्रन्थ की रचना भी अबुल फजल ने की थी। वास्तव में यह ग्रन्थ अकबरनामा' का तीसरा भाग है। इसके पाँच भाग हैं। प्रत्येक भाग में राज्य के नियमों का विवरण दिया गया है। प्रथम भाग में 10, द्वितीय भाग में 30 तथा तृतीय भाग में 16 नियम हैं। चतुर्थ भाग में हिन्दुस्तान की फसलों, ऋतुओं आदि का वर्णन है। इसके अतिरिक्त हिन्दुओं के दर्शन, साहित्य आदि का भी विवरण है। साथ में सन्तों व सूफियों का विवरण भी है। पंचम भाग में अकबर को कहावतें तथा अबुल फजल की आत्मकथा है। प्रशासन के स्रोत के रूप में यह रचना मध्य काल की अनुपम कृति है।

(10) मुन्तखब-उल-तवारीख - 

इस ग्रन्थ के लेखक अब्दुल कादिर बदायूँनी हैं। वह अकबर का दरबारी था। अकबर ने उसे इमाम नियुक्त किया था। सम्राट पर अबुल फजल का अधिक प्रभाव होने के कारण बदायूँनी का महत्त्व कम हो गया था। बदायूँनी कट्टर रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था। उसने अकबर की उदारवादी नीति की कड़ी निन्दा की है। उसने इस ग्रन्थ की रचना गुप्त रूप से की थी, जिससे अकबर के काल में इस ग्रन्थ के बारे में लोगों को मालूम नहीं था।

(11) तबकात-ए-अकबरी  

इस ग्रन्थ का लेखक निजामुद्दीन अहमद था, जो अकबर का मीरबख्शी था। उसका पिता बाबर और हुमायूँ के काल में उच्च पदों पर रहा था। उसे अकबर के शासनकाल की घटनाओं का ज्ञान था। अत: उसका ग्रन्थ इस काल का महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है। निजामुद्दीन ने 997 ई. से 1593 ई. तक का इतिहास प्रस्तुत किया है, लेकिन इसका महत्त्व मुगल काल के इतिहास के लिए है। एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि निजामुद्दीन ने प्रान्तीय मुस्लिम राज्यों का वर्णन किया है। इससे इस ग्रन्थ का महत्त्व बढ़ जाता है। इसमें अब्दुल फजल की तरह अलंकारप्रियता तथा प्रशंसा और बदायूँनी की तरह धार्मिक कट्टरता नहीं है।

(12) तुजुक-ए-जहाँगीरी - 

यह ग्रन्थ जहाँगीर की आत्मकथा है। जहाँगीर ने अपने 12 वर्षों के शासनकाल का वर्णन स्वयं लिखा है। ऐसा प्रतीत होता है कि शेष 7 वर्षों का वर्णन मोअतमिद खाँ ने लिखा। वह जहाँगीर का मीरबख्शी था। इसका कारण सम्भवतः जहाँगीर का खराब स्वास्थ्य था। इसमें जहाँगीर के अभियानों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इसमें इस काल के विद्रोहों का भी वर्णन किया गया है। जहाँगीर ने दरबार के उत्सवों का वर्णन किया है। उसने प्रकृति, पशु-पक्षियों आदि का भी वर्णन किया है, लेकिन उसने खुसरो, परवेज, शहरयार, नूरजहाँ के साथ विवाह आदि घटनाओं को वर्णन संक्षेप में किया है।

(13) मुन्तखब -

उल-लुवाब-इस ग्रन्थ के लेखक हाशिम खफी खाँ हैं। इस ग्रन्थ को 'तारीख-ए-खफी खाँ' भी कहते हैं। वह औरंगजेब के दरबार में उच्च पद पर था। बाद में वह निजाम-उल-मुल्क का दीवान बना। उसने बाबर के आक्रमण से मुहम्मद शाह के प्रथम 15 वर्षों तक का ऐतिहासिक विवरण दिया है।
औरंगजेब के काल में दक्षिण भारत के इतिहास को जानने का यह महत्त्वपूर्ण स्रोत है ,
इसके अतिरिक्त मीरखोन्द द्वारा लिखित 'हबीब-उस-सियर', गियासहीन मुहम्मद खोदमीर द्वारा लिखित 'कानून-ए-हुमायूँनी', रिजकुल्लाह मुश्ताकी द्वारा लिखित 'वाकियात-ए-मुश्ताकी', अहमद यादगार द्वारा लिखित 'तारीख-एशाही', बायजीद बयात द्वारा रचित 'तजकिरा-ए-हुमायूँ व अकबर', मीर हो अलाउद्दौला कजवीनी द्वारा लिखित 'नफाइस-उल-मआसिर', मोतमिद खाँ द्वारा लिखित 'इकबालनामा-ए-जहाँगीरी', सादिक खाँ द्वारा लिखित 'तारीख-ए आ शाहजहाँनी', चन्द्रभान ब्राह्मण द्वारा लिखित 'चहार-चमन', भीमसेन द्वारा लिखित . 'नुस्ख-ए-दिलकुशा', साकी मुस्तैद खाँ द्वारा लिखित 'मआसिर-ए-आलमगीरी' व सुजानराय खत्री द्वारा लिखित 'खुलासात-उल-तवारीख' आदि ग्रन्थों से भी मध्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।

(II) साहित्यिक स्रोत -

ऐतिहासिक ग्रन्थों के अतिरिक्त साहित्यिक ग्रन्थ भी मध्यकालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। मोहम्मद ओफी द्वारा लिखित 'जवानी-उल-हिकायत' एक महत्त्वपूर्ण व रोचक कहानी-संग्रह है। इसमें इल्तुतमिश के काल में दिल्ली की दशा का विवरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें गजनी व बगदाद का भी वर्णन किया गया है। मलिक मुहम्मद जायसी शेरशाह सूरी के समकालीन थे। इनके प्रमख काव्य-ग्रन्थ 'पदमावत' में चित्तौड नरेश का पद्मिनी के साथ प्रेम विवाह का अतुलनीय वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में अलाउद्दीन खिलजी के साथ हुए युद्ध का भी विवरण है। विद्यापति द्वारा
राजा रचित ग्रन्थ 'पुरुष परीक्षा मुख्यत: नीति विषयक है, परन्तु इसमें हिन्दू व मुस्लिम,  दोनों वर्गों के सामाजिक ताने-बाने का वर्णन किया गया है। सामाजिक जीवन का वर्णन बंगाली कवि मुकन्दराम व चण्डीदास के गीतों में भी प्राप्त होता है। सूरदास द्वारा रचित पदों, तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस', कबीर के दोहों व गुरुनानाक की रचनाओं में उस युग के समाज का वर्णन प्राप्त होता है। कबीर के  काव्य में तत्कालीन समाज में व्याप्त बुराइयों व कुप्रथाओं का सजीव वर्णन प्राप्त होता है।

 (III) पुरातात्त्विक स्रोत  

पुरातात्त्विक स्रोत भी मध्यकालीन इतिहास की जानकारी का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इस काल की प्राप्त मुद्राओं से शासकों की अभिरुचि व कलाक्रम का ज्ञान होता है। मुगल काल में स्थापत्य कला, चित्रकला व संगीत कला का पर्याप्त विकास हुआ। इससे ज्ञात होता है कि मुगलकाला शासक कला प्रेमी थे। मुगल काल में सबसे अधिक उन्नति स्थापत्य कला की हुई। मुगलकालीन स्थापत्य कला पर देशी व विदेशी, दोनों ही शैलियों का मिश्रण दिखाई पड़ता है। इस काल के भवनों में शेरशाह का मकबरा, आगरे का लालकिला, फतेहपुर सीकरी की इमारतें, एत्मादउद्दौला का मकबरा, ताजमहल, दिल्ली का लालकिला, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शीशमहल, माता मस्जिद, जामा मस्जिद आदि प्रमुख हैं। इन भवनों से तत्कालीन स्थापत्य कला, उस युग की समद्धता व शासकों की रुचि का ज्ञान होता है। जहाँगीर के काल में चित्रकला का सर्वाधिक विकास हुआ। इस काल के स्थापत्य के नमने इस काल के इतिहास के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। औरंगजेब के काल में अनेक मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण करवाया गया। इससे उसकी धर्मान्धता उजागर होती है।

(IV) विदेशी यात्रियों के विवरण

मुगल काल में अनेक विदेशी यात्री भारत. आए, जिन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने ग्रन्थों व डायरी में किया है। इन यात्रियों का वर्णन मुगल काल के इतिहास का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इन यात्रियों ने जो कुछ देखा, उसका वर्णन किया। इन यात्रियों में विशेष रूप से फादर एन्थोनी मान्सेरेट, राल्फ फिंच, विलियम हॉकिन्स, विलियम फिंच, जॉन जुरदाँ, निकोलस डाउनटन, निकोलस विथिंगटन, थॉमस कोर्यत, सर टॉमस रो, एडवर्ड टेरी, पीट्रो डेला वेली, फ्रान्सिसको पलसार्ट, जीन बेपटिस्ट टेवर्नियर, फ्रांसिस बर्नियर आदि उल्लेखनीय हैं।



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