भारतीय संविधान की 17 प्रमुख विशेषताएँ

B.A.I, Political Science II 

प्रश्न 6. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर - भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं


(1) लिखित तथा निर्मित संविधान - 

भारत का संविधान ' संविधान सभा ने निश्चित समय तथा योजना के अनुसार बनाया था, इसलिए इसमें सरकार के संगठन के आधारभूत सिद्धान्त औपचारिक रूप से लिख दिए गए हैं। कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका आदि की रचना की प्रक्रिया, कार्य-प्रणाली, नागरिकों के साथ उनके सम्बन्ध, नागरिकों के अधिकार, कर्त्तव्य आदि के विषय में स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

(2) विस्तृत तथा व्यापक -

भारतीय संविधान बहुत विस्तृत तथा व्यापक है। इसमें 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ व 2 परिशिष्ट हैं तथा इसे 22 खण्डों में विभाजित किया गया है। एच. वी. कामथ ने इसकी विशालता के सम्बन्ध में कहा था, "हमें इस बात का गर्व है कि हमारा संविधान विश्व का सबसे विशालकाय संविधान है।" डॉ. जैनिंग्स के अनुसार, "भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है।"
bhartiya samvidhan ki pramukh visheshta

(3) लचीले और कठोर संविधान का सम्मिश्रण - 

भारत का संविधान लचीलेपन और कठोरपन का अच्छा सम्मिश्रण है। यह न तो अमेरिका के संविधान की तरह कठोर है और न ही इंग्लैण्ड के संविधान की तरह लचीला है। संविधान की अनेक धाराओं में परिवर्तन करने की सरल प्रक्रिया उसे लचीला बना देती है। कुछ अनुच्छेदों में संसद साधारण बहुमत से ही संशोधन कर सकती है, लेकिन अन्य अनुच्छेदों में संशोधन के लिए सदन में उसकी समस्त सदस्य संख्या के बहुमत से तथा उस सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के | दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता पड़ती है। संविधान के उन भागों में, जिनका सम्बन्ध संघ और राज्य के अधिकार क्षेत्र से है; के लिए संविधान में व्यवस्था है कि संशोधन उस समय तक नहीं होगा जब तक कि आधे राज्य इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान न कर दें।

(4) सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य की स्थापना - 

संविधान द्वारा भारत में सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य की स्थापना की गई है। सम्पूर्ण प्रभुत्व का आशय है कि भारत आन्तरिक और बाह्य, दोनों ही क्षेत्रों में सर्वोच्च है। वह स्वतन्त्र रूप से अपनी विदेश नीति निर्धारित करता है तथा उस पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोई भी विदेशी दबाव नहीं है। भारत दोनों ही क्षेत्रों में पूर्णतया स्वतन्त्र है।

(5) गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना - 

संविधान की प्रस्तावना में गणराज्य की स्थापना का संकल्प व्यक्त किया गया है। गणराज्य का तात्पर्य ऐसे राज्य से है जिसमें शासन का प्रधान आनुवंशिक न होकर जनता द्वारा निर्वाचित हो। हमारे शासन का सर्वोच्च पदाधिकारी राष्ट्रपति होता है, उसका निर्वाचन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं। अत: भारत में सदियों से चली आ रही राजतन्त्रात्मक शासन प्रणाली को समाप्त करके गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है।

(6) संघात्मक शासन की स्थापना - 

भारत 29 राज्यों का एक संघ है। भारत "में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है। इस हेतु तीन सूचियाँ बनाई गई हैं-संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। अवशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त है। केन्द्र तथा राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों के समाधान की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को प्रदान की गई है। डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में, "संविधान ने शक्तिशाली संघीय शासन की स्थापना की है।"

(7) संघात्मक होते हुए भी एकात्मक - 

भारत के संविधान का ऊपरी ढाँचा संघात्मक है, लेकिन इसकी आत्मा एकात्मक है। हमारे संविधान में संघात्मक तथा एकात्मक, दोनों संविधानों की विशेषताएँ पाई जाती हैं।

(8) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना - 

भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है। हमारे संविधान में लिखा हुआ है कि धर्म के आधार पर सरकारी नौकरियों में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। देश के सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को स्वीकार करने तथा उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता होगी। राज्य से सहायता प्राप्त स्कूलों तथा कॉलेजों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। प्रत्येक सम्प्रदाय को धार्मिक संस्थाएं स्थापित करने, उनका प्रबन्ध करने तथा चल अथवा अचल सम्पत्ति रखने का अधिकार होगा।


(9) समाजवादी राज्य की स्थापना - 

42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' शब्द जोड़ा गया है। संविधान के 44वें संशोधन में भी इसको प्रस्तावना में स्थान दिया गया है, जिसका उद्देश्य भारत में समाजवादी राज्य की स्थापना करना है।

(10) संसदीय शासन की स्थापना -

संविधान द्वारा संसदीय शासन की स्थापना की गई है। भारत में राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान है और उसके पास केवल नाममात्र की शक्तियाँ हैं। शासन सम्बन्धी वास्तविक शक्तियाँ प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के पास हैं। मन्त्रिमण्डल अपनी शासन सम्बन्धी नीतियों के लिए संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।

(11) मौलिक अधिकारों की व्यवस्था - 

मूल संविधान द्वारा नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे, लेकिन सन् 1978 के 44वें संविधान संशोधन द्वारा 'सम्पत्ति के अधिकार' को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से निकाल दिया गया है। अब सम्पत्ति का केवल कानूनी अधिकार है। संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार हैं-

(i) समानता का अधिकार, 

(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार, 

(iii) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,

(iv) संस्कृति व शिक्षा का अधिकार,

(v) शोषण के विरुद्ध अधिकार, 

(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

(12) मौलिक कर्तव्य -

मूल संविधान में केवल मौलिक अधिकारों की |व्यवस्था की गई थी, परन्तु 42वें संविधान संशोधन द्वारा नागरिकों के लिए 10 मौलिक कर्त्तव्य भी निर्धारित किए गए। वर्तमान में इन कर्त्तव्यों की संख्या 11

(13) नीति-निदेशक तत्त्वों की व्यवस्था -

आयरलैण्ड के संविधान की भाँति | भारतीय संविधान में भी नीति-निदेशक तत्त्वों को स्थान दिया गया है। संविधान में इन तत्त्वों के द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकारों को यह आदेश दिया गया है कि वे जनता के जीवन को अधिक-से-अधिक सुखी बनाने का प्रयत्न करें।

(14) सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना - 

सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। हमारे देश की न्यायपालिका संविधान तथा मूल अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करती है। यदि विधायिका ऐसा कोई कानून बनाती है या कार्यपालिका ऐसा कोई आदेश जारी करती है जिससे मूल अधिकारों अथवा संविधान का उल्लंघन होता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उसको असंवैधानिक घोषित कर देता है।


 (15) अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए विशेष अधिकार - 

हमारे संविधान में अनुसूचित जातियों था जनजातियों की सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पश्यता का अन्त कर दिया गया है। इस प्रकार संविधान ने देश में सामाजिक न्याय पर आधारित सामाजिक समानता स्थापित करने का प्रयत्न किया है।

(16) वयस्क मताधिकार की व्यवस्था - 

भारतीय संविधान में प्रारम्भ से ही नागरिकों को वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। प्रत्येक 18 वर्ष के स्त्रीपुरुष को मतदान का अधिकार है।

(17) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा विश्व - 

शान्ति का समर्थक भारतीय संविधान में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा विश्व-शान्ति के आदर्श को मान्यता दी गई है। संविधान में राज्य का यह कर्तव्य निश्चित किया गया है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, शान्ति और सुरक्षा के लिए प्रयत्न करे तथा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के | आदर्श को स्वीकार करे।

Comments

  1. Iss page per akar hame bahut hi prasansa huy ..yahan padhne yogya bahut acche acche topic he so meri taraf se tnx 🚶

    ReplyDelete
  2. Thanks for detailing the topic 👍

    ReplyDelete
  3. Concise but precious knowledge..👌
    Keep it up..

    ReplyDelete
    Replies
    1. Hi koi apna number bheji yrr mere email pe

      Delete
  4. TQ aapke liye jo hme ans. Mila
    Thanks 👍

    ReplyDelete
  5. hi mujhe koi number bheje

    ReplyDelete
  6. One shot
    Perfect

    ReplyDelete
  7. धन्यवाद सर जी 🙏

    ReplyDelete
  8. Nice information and thanks sir ji 🙏👌

    ReplyDelete
  9. Good 👍👍 sir

    ReplyDelete
  10. Perfect answer hai sir 🙏🙏👌👌
    Thankyou sir ye website maine apne dosto ko share Kiya hai

    ReplyDelete
  11. I say you very very thankuuuu so much

    ReplyDelete
  12. Thank you ☺️

    ReplyDelete
  13. Thanks🌹🌹❤

    ReplyDelete

Post a Comment

Important Question

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त

प्लेटो का न्याय सिद्धान्त - आलोचनात्मक व्याख्या

सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर

जोसेफ़ स्टालिन की गृह नीति

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत की आलोचना

व्यवहारवाद- अर्थ , विशेषताएँ तथा महत्त्व

मैकियावली अपने युग का शिशु - विवेचना

बड़े भाई साहब कहानी की समीक्षा

ऋणजल धनजल - सारांश