ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्ति और कार्य

B. A. II, Political Science II 

प्रश्न 4. ब्रिटिश शासन में प्रधानमन्त्री की भूमिका की विवेचना कीजिए। 
अथवा '' ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्तियों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा "ब्रिटिश प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला है।" इस कथन की दृष्टि से ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्तियों और स्थिति की विवेचना कीजिए।
अथवा प्रधानमन्त्री समस्त शासन तन्त्र की धुरी है।" ब्रिटिश शासन व्यवस्था के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर - ब्रिटेन में संसदीय शासन व्यवस्था है। संसदीय शासन में कार्यपालिका का एक औपचारिक प्रधान होता है और दूसरा वास्तविक प्रधान सत्ता का प्रयोग वास्तविक प्रधान करता है, औपचारिक प्रधान नहीं । ब्रिटेन में सम्राट को औपचारिक प्रधान कहते हैं और मन्त्रिमण्डल के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री को कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान कहा जाता है । मन्त्रिमण्डल के गठन की प्रक्रिया प्रधानमन्त्री की नियुक्ति से आरम्भ होती है।

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की नियुक्ति :-
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री - शक्ति और कार्य

सैद्धान्तिक रूप में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है,परन्तु व्यवहार में कॉमन सभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री बनाया जाता है। ब्रिटेन में ऐसे भी अवसर आए
हैं जब सम्राट् ने अपने विवेक के आधार पर प्रधानमन्त्री की नियुक्ति की है, परन्तु अब सम्राट को अपने विवेक के प्रयोग के अवसर कम ही मिलते हैं।
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ व कार्य :- ब्रिटेन में प्रधानमन्त्री को व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। इन शक्तियों का विवेचन निम्न प्रकार किया जा सकता है-

(1) मन्त्रिमण्डल का निर्माण -

 यद्यपि औपचारिक रूप से मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है, परन्तु यह नियुक्ति प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही की जाती है। प्रधानमन्त्री अपने साथियों में से कुछ संसद सदस्यों को मन्त्री पद प्रदान करता है, परन्तु अन्तिम रूप से इनकी नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है। प्रधानमन्त्री जिस व्यक्ति को भी मन्त्री बनाना चाहता है,सम्राट् उसकी इस सिफारिश को स्वीकार कर लेता है। किसी व्यक्ति को मन्त्री बनाने में प्रधानमन्त्री अनेक बातों को ध्यान में रखता है। ब्रिटेन में एकदलीय मन्त्रिमण्डल की परम्परा है। परन्तु यदि प्रधानमन्त्री किसी दूसरे दल के सदस्य को मन्त्री नियुक्त कर देता है, तो इस सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं उठाई जा सकती। प्रधानमन्त्री ही मन्त्रियों के विभागों का वितरण करता है। विभागों के वितरण में प्रधानमन्त्री का निर्णय अन्तिम माना जाता है। प्रधानमन्त्री अपने मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन भी कर सकता है।

(2) मन्त्रिमण्डल का कार्य -

संचालन मन्त्रिमण्डल के कार्य-संचालन में जो बात सबसे अधिक ध्यान में रखी जाती है, वह मन्त्रियों के विभागों का वितरण है। यदि मन्त्रिमण्डल के सभी सदस्य उनको सौंपे गये विभागों से सन्तुष्ट है, तो मन्त्रिमण्डल का कार्य सुचारु रूप से चलाया जा सकता है। ब्रिटेन में ऐसा देखा गया है कि जिस मन्त्री को जो विभाग सौंपा जाता है, वह उसे स्वीकार कर लेता है। स्वीकार न करने का अर्थ यह है कि उसे उस विभाग से हटाया जा सकता है अथवा उसको सदैव के लिए मन्त्री पद से अलग किया जा सकता है। इस प्रकार प्रधानमन्त्री विभाग वितरण में स्वेच्छाचारी है। प्रधानमन्त्री ही मन्त्रियों की संख्या निश्चित करता है। प्रधानमन्त्री ऐसे व्यक्तियों को भी मन्त्री पद दे सकता है जो संसद के सदस्य न हों। इस सम्बन्ध में संसद और कार्यपालिका प्रधानमन्त्री के ऊपर किसी प्रकार दबाव नहीं डाल सकती हैं।

(3) दल का नेतृत्व-

 प्रधानमन्त्री दल का नेता होता है। इसी कारण वह एक प्रभावशाली व्यक्ति होता है। किसी सदस्य के द्वारा प्रधानमन्त्री पद प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह सार्वजनिक महत्व का व्यक्ति हो जाता है। उसका भविष्य उसके राजनीतिक दल से जुड़ा रहता है। सभी सरकारी विधेयक प्रधानमन्त्री के निरीक्षण में तथा उसके परामर्श से तैयार किए जाते हैं। वार्षिक आय-व्यय तैयार करने में प्रधानमन्त्री का विशेष योगदान रहता है।

(4) मन्त्रिमण्डल का अन्त -

इंग्लैण्ड में किसी मन्त्री को हटाने का विशेषाधिकार संम्राट् को प्राप्त है,परन्तु वहाँ ऐसी परम्परा स्थापित हो गई कि सम्राट ऐसा प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही करता है। प्रधानमन्त्री को यह अधिकार है कि यदि वह किसी एक मन्त्री, एक से अधिक मन्त्रियों अथवा सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को हटाये जाने की सम्राट से सिफारिश करे, तो सम्राट को ऐसी सिफारिश स्वीकार करनी ही पड़ेगी। यदि किसी कारणवश प्रधानमन्त्री त्याग-पत्र दे देता है, तो उसका त्याग-पत्र सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल का त्याग-पत्र माना जाता है। इस प्रकार पूरी मन्त्रिपरिषद् ही भंग हो जाती है।
जिस प्रकार प्रधानमन्त्री को मन्त्रिमण्डल समाप्त करने का अधिकार है, उसी प्रकार प्रधानमन्त्री को अपने मन्त्रिमण्डल में हेरफेर करने का भी अधिकार है। लास्की का कहना है कि वह अपने मन्त्रिमण्डल में जब चाहे. तब और जैसे चाहे, वैसे परिवर्तन कर सकता है। इसी आधार पर लास्की ने आगे लिखा है कि प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का केन्द्र-बिन्दु है। वह उसके निर्माण, उसके जीवन और अन्त में केन्द्रीय सिति रखता है।"

(5) कॉमन सभा का नेतृत्व -

प्रधानमन्त्री कॉमन सभा का नेता होता है। वही मन्त्रिमण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। शासन की नीतियों की घोषणा भी । प्रधानमन्त्री ही करता है। वास्तव में सरकार को जितनी महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ करनी होती हैं,वे प्रधानमन्त्री के द्वारा ही की जाती हैं। प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की नीतियों को संरक्षण प्रदान करता है। प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही बजट तैयार किया जाता है। सदन में व्यवस्था बनाए रखने का कार्य अध्यक्ष का होता है, परन्तु प्रधानमन्त्री के सक्रिय सहयोग से ही अध्यक्ष ऐसा कर पाता है। प्रधानमन्त्री संसद का पथ-प्रदर्शन करता है। प्रधानमन्त्री अपने दल में सहयोग बनाए रखता है। ऐसा वह सचेतक की सहायता से करता है। प्रधानमन्त्री सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है। वास्तव में अध्यक्ष भी अपनी स्थिति के लिए प्रधानमन्त्री की कृपा पर निर्भर रहता है। सम्राट् कॉमन सभा का विघटन किसी भी समय कर सकता है, परन्तु वह ऐसा प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही करता है। अभी तक की परम्परा यह रही है कि सम्राट् ने ऐसा परामर्श कभी भी ठुकराया नहीं है। प्रधानमन्त्री के पास सबसे प्रभावशाली शक्ति कॉमन सभा को विघटित करने की होती है।

(6) सम्राट का प्रमुख परामर्शदाता -

किसी समस्या के उपस्थित हो जाने पर सम्राट प्रधानमन्त्री से परामर्श मांगता है। प्रधानमन्त्री को यह अधिकार है कि वह सम्राट के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय ले। किसी व्यक्ति को सम्राट् से साक्षात्कार करने की आज्ञा प्रधानमन्त्री ही देता है। प्रधानमन्त्री सम्राट को मन्त्रिमण्डल की गतिविधियों की सूचना देता है। यदि सम्राट को विदेश यात्रा करनी है, वो इसका कार्यक्रम भी प्रधानमन्त्री ही बनाता है। प्रधानमन्त्री सम्राट् या साम्राज्ञी के व्यक्तिगत मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है। इसका एक उदाहरण यह है कि प्रधानमन्त्री बाल्डविन ने सम्राट् एडवर्ड अष्टम को श्रीमती सिमसन से विवाह करने की आज्ञा नहीं दी। स्पष्ट है कि सम्राट के अधिकारों का वास्तविक प्रयोग प्रधानमन्त्री ही करता है।

(7) शासन का संचालन -

इंग्लैण्ड के शासन का वास्तविक संचालन प्रधानमन्त्री एवं मन्त्रिमण्डल के द्वारा किया जाता है। इसी कारण प्रधानमन्त्री 'शासन का मुखिया' कहलाता है। सभी विभाग उसकी देखरेख में रहते हैं। प्रधानमन्त्री विभिन्न मन्त्रियों के कार्यों में सामंजस्य बनाए रखता है।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि -

देश में जितने भी अन्तर्राष्ट्रीय उत्सव होते हैं एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य कार्यक्रमों में प्रधानमन्त्री देश के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेता है। इस प्रकार वह सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रधानमन्त्री विदेश मन्त्री भी हो, परन्तु वैदेशिक नीति पर प्रधानमन्त्री का पूर्ण नियन्त्रण रहता है। विदेश मन्त्रालय पर भी उसका पूर्ण प्रभुत्व रहता है। जब कभी विदेशों में कोई अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन होता है, तो उसमें प्रधानमन्त्री अथवा उसका प्रतिनिधि ही भाग लेता है। स्पष्ट है कि ब्रिटिश प्रधानमन्त्री को ब्रिटिश राष्ट्र का अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि कहा जा सकता है।

(9) आपातकालीन शक्तियाँ-

ब्रिटिश संविधान में प्रधानमन्त्री की आपातकालीन स्थिति की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है, परन्तु व्यवहार में ऐसा देखा गया है कि संकट के समय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के दायित्व और शक्तियों में वृद्धि हो जाती है। प्रजातन्त्र में रहते हुए भी वह एक संवैधानिक तानाशाह बन जाता है। इसका उदाहरण प्रथम विश्व युद्ध में लॉयड जॉर्ज और द्वितीय विश्व युद्ध में चर्चिल का है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल की शक्ति हिटलर या मुसोलिनी से किसी भी प्रकार कम न थी। .

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की वास्तविक स्थिति : -

ब्रिटिश संविधान में प्रधानमन्त्री की स्थिति अत्यन्त गौरवपूर्ण है। सम्राट प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही देश का शासन चलाता है। इस कारण उसकी स्थिति काफी महत्त्वपूर्ण होती है। वह 'शासन की धुरी' कहलाता है। कुछ विद्वान् ब्रिटिश प्रधानमन्त्री को 'समान पद वालों में प्रथम' कहते हैं, परन्तु जैसा कि मॉरीसन का कथन है,“प्रधानमन्त्री को 'समान पद वालों में प्रथम' कहा जाना, उसकी स्थिति को कम समझना है।" उसी के शब्दों में,“शासन प्रमुख के रूप में प्रधानमन्त्री समान पद वालों में प्रथम है।" परन्तु ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की स्थिति का यह मूल्यांकन आज वास्तविकता से कहीं कम है। 'समकक्षों में प्रथम उसकी सही स्थिति का वर्णन नहीं करता। ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की सही स्थिति का वर्णन हरकोर्ट ने किया है। उसने लिखा है कि ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की स्थिति ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार नक्षत्रों के बीच चन्द्रमा की होती है।" .
परन्तु यह प्रधानमन्त्री के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह अपने मन्त्रिमण्डल के सहयोगियों पर छा जाए अथवा उनसे दब जाए। इंग्लैण्ड में कुछ अत्यधिक शक्तिशाली प्रधानमन्त्री हुए हैं, जिनमें रॉबर्ट पील, ग्लैडस्टोन, डिजरायली, लॉयड जॉर्ज और चर्चिल प्रमुख हैं। इसके विपरीत कुछ दुर्बल प्रधानमन्त्री भी हुए हैं, जिनमें बाल्डविन एटली, विल्सन आदि प्रमुख हैं।
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री का पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। उसके पद का मूल्यांकन करते हुए फाइनर ने लिखा है, वह जीन पर दृढ़ता से अवस्थित है, परन्तु वह मॅझा हुआ सवार है। वह लुढ़कने वाले टट्ट के योग्य है अथवा फौजों एवं घुड़दौड़ के घोड़े के योग्य है, यह उस पर निर्भर करता है।एमरी के शब्दों में, "प्रधानमन्त्री कप्तान तथा कर्णधार, दोनों ही है।"



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