दीन-ए-इलाही धर्म - अर्थ,महत्व,सिद्धांत,टिप्पणी,व्याख्या
B. A. II, History I
प्रश्न 6. अकबर के धार्मिक विचारों का विकास कैसे हुआ? किन कारणों ने उसे धार्मिकसहन शीलता की नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया ?
प्रश्न 6. अकबर के धार्मिक विचारों का विकास कैसे हुआ? किन कारणों ने उसे धार्मिकसहन शीलता की नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया ?
अथवा ''अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।
अथवा "अकबर 'दीन-ए-इलाही' का संस्थापक था।" स्पष्ट कीजिए ।
अथवा "दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक
था।" क्या आप इस मत से सहमत हैं ?
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अकबर, टोडरमल, तानसेन और अबुल फजल, फैजी और अब्दुर रहीम खान-ए-खाना एक अदालत के दृश्य में |
उत्तर - अपनी धार्मिक नीति के क्षेत्र में अकबर सभी मुगल शासकों की
तुलना में श्रेष्ठ था। उसका
शासनकाल (1556 से 1605 ई. तक) मुगल साम्राज्य का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। वास्तव में यह काल वैभव सम्पन्न था, किन्तु औरंगजेब की विनाशकारी नीतियों के फलस्वरूप उसका पतन हो गया। अकबर की धार्मिक नीति सहिष्णुता की थी और 'सुलह कुल' के सिद्धान्त पर आधारित थी। अकबर की धार्मिक नीति के निर्माण में विभिन्न परिस्थितियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। अकबर का पिता हुमायूँ उदार सुन्नी था, जबकि माता शिया मतावलम्बी थी। इस प्रकार बचपन में अकबर का पालन-पोषण उदार वातावरण में हुआ था। अकबर का संरक्षक बैरम खाँ शिया मतावलम्बी था। अकबर का शिक्षक अब्दुल लतीफ धार्मिक विचारों में इतना उदार था कि शिया मत के मानने वाले उसे सुन्नी और सुन्नी मत के मानने वाले उसे शिया मानते थे। गद्दी पर बैठने के बाद अकबर शैवों, सन्तों और हिन्दू योगियों के सम्पर्क में आया। इस प्रकार वंशानुगत संस्कार तथा धार्मिक वातावरण ने अकबर की धार्मिक नीति को उदारपंथी बनाने में विशेष योगदान दिया था।
शासनकाल (1556 से 1605 ई. तक) मुगल साम्राज्य का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। वास्तव में यह काल वैभव सम्पन्न था, किन्तु औरंगजेब की विनाशकारी नीतियों के फलस्वरूप उसका पतन हो गया। अकबर की धार्मिक नीति सहिष्णुता की थी और 'सुलह कुल' के सिद्धान्त पर आधारित थी। अकबर की धार्मिक नीति के निर्माण में विभिन्न परिस्थितियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। अकबर का पिता हुमायूँ उदार सुन्नी था, जबकि माता शिया मतावलम्बी थी। इस प्रकार बचपन में अकबर का पालन-पोषण उदार वातावरण में हुआ था। अकबर का संरक्षक बैरम खाँ शिया मतावलम्बी था। अकबर का शिक्षक अब्दुल लतीफ धार्मिक विचारों में इतना उदार था कि शिया मत के मानने वाले उसे सुन्नी और सुन्नी मत के मानने वाले उसे शिया मानते थे। गद्दी पर बैठने के बाद अकबर शैवों, सन्तों और हिन्दू योगियों के सम्पर्क में आया। इस प्रकार वंशानुगत संस्कार तथा धार्मिक वातावरण ने अकबर की धार्मिक नीति को उदारपंथी बनाने में विशेष योगदान दिया था।
अकबर की धार्मिक नीति
सत्तारूढ़ होने के बाद अकबर राजपूतों के घनिष्ठ सम्पर्क में आया। उसने राजपूत
राजकुमारियों से विवाह किया और उन्हें अपने हरम में हिन्दू धर्म अपनाने की पूर्ण
स्वतन्त्रता प्रदान की। इन राजपूत रानियों का अकबर की धार्मिक नीति पर सकारात्मक
प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त अकबर की उदार धार्मिक नीति के निर्माण में सूफी धर्म
और भक्ति आन्दोलन का भी पर्याप्त योगदान था। अकबर विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों
को एकता के सूत्र में बाँधने का इच्छुक था। वस्तुतः वह राजनीतिक सत्ता के साथ-साथ
धार्मिक सत्ता की भी स्थापना करना चाहता था।
अकबर जिज्ञासु प्रवृत्ति का चिन्तनशील व्यक्ति था। इसी आध्यात्मिक चेतना के
फलस्वरूप उसने हिन्दुओं से लिया जाने वाला जजिया (धार्मिक कर) हटा दिया।
तीर्थयात्रा पर से भी प्रतिबन्ध हटा लिया तथा युद्ध बन्दियों को मुसलमान बनाना
निषिद्ध घोषित कर दिया। उसने आदेश दिया
"विजयी सेना का
कोई भी सैनिक साम्राज्य के किसी भी भाग में इस प्रकार का कार्य न करे और
स्वतन्त्रतापूर्वक बन्दियों को अपने कुटुम्बियों के पास जाने दे।''
अकबर ने अनेक मुस्लिम सन्तों से सम्पर्क किया। उसने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति
की सन्तुष्टि के लिए 1575 ई. में फतेहपुर सीकरी में इबादतखाने की
स्थापना की। इस इबादत खाने में विभिन्न धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद होता था।
प्रारम्भ में दो वर्ष तक इसमें केवल मुस्लिम धर्माचार्य एकत्र होते थे, जिनकी बैठक जुमेरात (गुरुवार) को होती थी। कालान्तर में अकबर ने शान्ति व
सच्चे धर्म की खोज के उद्देश्य से इबादतखाने में हिन्दू, जैन, ईसाई, पारसी आदि सभी धर्मों के आचार्यों को आमन्त्रित
किया। परन्तु किसी भी धर्म का आचार्य उसे ईश्वर के अस्तित्व का ज्ञान कराने में
सफल नहीं हो सका।
दीन-ए-इलाही का अर्थ
इबादतखाने के
माध्यम से हिन्दू धर्माचार्यों,
जैन साधुओं, पारसी सन्तों एवं ईसाई मत के विद्वानों से अकबर को जो अच्छी बातें ज्ञात हुईं, उनके आधार पर वह इस निष्कर्ष
पर पहुँचा कि मौलिक रूप से सभी धर्म एक हैं और सभी का ध्येय एक है। धार्मिक
क्षेत्र में प्रमुख स्थान प्राप्त करने के लिए उसने 1589 ई. में फैजी द्वारा रचित खुतवा पढ़ा। 'मजहर' नामक प्रपत्र के द्वारा सम्राट को इस्लाम सम्बन्धी विवादों में अन्तिम निर्णय
का अधिकार प्राप्त हो गया। इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है
"जब अकबर ने अनुभव
किया कि कट्टरपंथी मुसलमान किसी धार्मिक गुरु, धर्मग्रन्थ अथवा परम्परा
का सहारा लेकर उसके मार्ग में बाधा पहुंचाते हैं, तो उसने हेनरी अष्टम
की भाँति धर्म का अध्यक्ष बनने का निश्चय किया।"
अकबर ईश्वरवादी व्यक्ति था। अवतारवाद में उसका पूर्ण विश्वास था। वह आचरण की
पवित्रता को अधिक महत्त्व देता था। वह सूर्य की उपासना करता था। विभिन्न धर्मों के
सम्पर्क में आने से उसका यह विश्वास बन गया कि जीव हत्या उचित नहीं है। अतः उसने
शिकार में रुचि लेना कम कर दिया। यद्यपि उसने मांस भक्षण का पूरी तरह परित्याग
नहीं किया, परन्तु कुछ अवसरों पर पशु-वध निषिद्ध कर दिया
था।
दीन-ए-इलाही के सिद्धान्त
अकबर की विभिन्न धर्मों के सिद्धान्तों और व्यावहारिक पक्षों को जानने में
गहरी रुचि थी। वह फतेहपुर सीकरी के शान्त वातावरण में अन्य धर्मों के विद्वानों और
सन्तों से धार्मिक चर्चा किया करता था। अकबर ने सभी धर्मों के समन्वयवादी
दृष्टिकोण को अपनाकर एक नया धर्म चलाने का विचार बनाया। इसे व्यावहारिक रूप देने
के लिए उसने 1582 ई. में नया धर्म 'दीन-ए-इलाही' चलाया। वस्तुतः वह कोई नवीन धर्म नहीं था, अपितु अकबर के विचारों एवं विश्वासों का समूह था।
डॉ. श्रीराम शर्मा ने इस धर्म के विषय में लिखा है "Din-e-ilahi was the crowning expression of the emperor's National Idealism."
अबुल फजल ने 'आइन-ए-अकबरी' में 'दीन-ए-इलाही' के कुछ सिद्धान्त बताए हैं, जो निम्न प्रकार हैं
(1) ईश्वर
एक है और अकबर उसका पैगम्बर है।
(2) इसके
अनुयायियों के लिए मांस भक्षण निषेध था।
(3) सभी
को सूर्य और अग्नि की उपासना करनी चाहिए।
(4) गर्भवती, वृद्ध, बाँझ स्त्रियों और बालिकाओं के
साथ सहवास करना निषेध था।
(5) मृतक
देह के सिर को पूर्व की ओर और पैरों को पश्चिम की ओर करके नहीं दफनाया जा सकता था।
(6) धर्म
परिवर्तन केवल रविवार को किया जा सकता था।
(7) प्रत्येक
व्यक्ति को सम्राट के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
(8) परस्पर
अभिवादन के लिए 'अल्ला
हो अकबर' और 'जल्ले जलालहू' का उच्चारण करना चाहिए।
दीन-ए-इलाही के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के मत
अकबर द्वारा चलाए गए 'दीन-ए-इलाही' धर्म की कुछ विद्वानों ने कटु आलोचना की है। अब्दुल कादिर बदायूँनी ने इसकी आलोचना करते हुए लिखा
है कि "मुसलमानों के साथ अकबर ने अमानुषिक
व्यवहार किया और ऐसे नियम बनाए जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध थे।"
वी. स्मिथ ने 'दीन-ए-इलाही' को अकबर का मूर्खतापूर्ण
कार्य बताते हुए लिखा है कि "दीन-ए-इलाही
अकबर के अज्ञान, न
कि उसकी बुद्धिमत्ता का सूचक था। यह समस्त योजना हास्यप्रद, अहंकार एवं स्वेच्छाचारिता की
उपज थी।"
परन्तु स्मिथ व बदायूँनी की आलोचनाएँ
ठीक नहीं हैं। अकबर का 'दीन-एइलाही' उसकी मूर्खता का सूचक नहीं, वरन् उसके ज्ञान और बुद्धि का
प्रतीक है। यह सहिष्णुता की नीति का परिचायक है और राष्ट्रीय आदर्शवाद का प्रमाण
है।
इस सम्बन्ध में डॉ. ताराचन्द का यह मत
अधिक समीचीन प्रतीत होता है कि "अकबर का 'दीन-ए-इलाही' एक निरंकुश शासक का क्षणिक
उद्वेग नहीं था, जिसके
पास आवश्यकता से अधिक शक्तियाँ थीं, वरन्
उन तत्त्वों का परिणाम था जो भारत भूमि में विकसित हो रहे थे और कबीर आदि की
शिक्षाओं द्वारा व्यक्त किए जा रहे थे। परिस्थितियों ने उसे विफल कर दिया, परन्तु दैव अब भी उसी लक्ष्य की
ओर इंगित करता है।"
- डॉ.
ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है, "अकबर ने हिन्दुओं और मुसलमानों
को एक किया और एक ऐसा आदर्श सामने रखा जिसका यदि बाद में अनुकरण किया जाता, तो सहानुभूति और भ्रातृत्व में
बँधे हुए एक राष्ट्रीय भारत का जन्म होता।"
शाहजादा खुसरो और दाराशिकोह , अकबर की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे, परन्तु दुर्भाग्य से सत्ता उनके हाथों में नहीं आ पाई। इसलिए 'दीन-एइलाही' अधिक समय तक अपना अस्तित्व नहीं बनाए रख सका।
Nice sir
ReplyDeleteThx for the half truth history. Talk about his list. His barberic killing. His enormous affection about females. His FANATIC live towards Islam. His wine shop bear his haram
ReplyDeleteबिलकुल मै भी जनता हूं की अकबर ने क्या जुल्म किए और मुगलिया इतिहास करो में उसका महिमा मंडन चांदी के जूते खा कर किया है ,
Deleteआप भी अगर जानते है तो बस यही चाहिए ,बाकी अपना दिन भी आयेगा , तब तक यही झूठ लिखना पड़ेगा ये मेरी मर्जी नही है बोर्ड की मर्जी है , क्योंकि कोई भी फेल नही होना चाहता , आप प्रधान मंत्री बने, और सारा कोर्स बदल दे यही सुभकामनाएं है ,
Dimag me pura download ho gya TNX a lot sir
ReplyDeleteThanks
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