मॉर्गन्थाऊ - यथार्थवाद के 6 सिद्धान्त,आलोचनात्मक
B. A. III, Political Science III / 2020
प्रश्न 2. "मॉर्गन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद के छ: सिद्धान्त न केवल एक-दूसरे के प्रतिरोधक हैं, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के यथार्थ का भी प्रतिरोध करते हैं।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद के सिद्धान्त
:-
(1) मानवीय प्रकृति पर आधारित राजनीति के वस्तुगत
नियम :-
(2) परिस्थितियों का राष्ट्रीय हितों पर प्रभाव :-
(3) शक्ति के सन्दर्भ में राष्ट्रीय हितों की
व्याख्या:-
(4) नैतिक आदशों में यथार्थवाद :-
(5) राज्यों की आकांक्षाएँ तथा विश्व के नैतिक नियम :-
(1) सिद्धान्त की अपूर्णता :-
(2) गहनता एवं गूढ़ता का प्रभाव :-
(3) सिद्धान्त द्वारा केवल राष्ट्रीय हित, शक्ति तथा संघर्ष पर बल
देना :-
प्रश्न 2. "मॉर्गन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद के छ: सिद्धान्त न केवल एक-दूसरे के प्रतिरोधक हैं, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के यथार्थ का भी प्रतिरोध करते हैं।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा ''मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक
यथार्थवाद के सिद्धान्तों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा ''अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी सिद्धान्त का
मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर - मॉर्गेन्थाऊ शिकागो विश्वविद्यालय (अमेरिका) के राजनीति विज्ञान विभाग
में प्रोफेसर हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवादी विचारधारा के प्रतिनिधि
प्रवक्ता हैं तथा वर्षों तक वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रधान सिद्धान्तकारों
में अग्रणी रहे हैं । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सिद्धान्त के रूप में मान्यता
पाने के क्षेत्र में राजनीतिक आदर्शवाद और राजनीतिक यथार्थवाद दो प्रमुख प्रतियोगी
दृष्टिकोण हैं।
आदर्शवादी दृष्टिकोण मानव प्रकृति को मूलतः अच्छा मानकर चलता है। इसके विपरीत
यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार मानव स्वभाव में निहित अन्तर्विरोधों के कारण
शुद्ध नैतिक मान्यताओं पर विश्व समाज का संचालन पूर्णतया असम्भव है। यथार्थवादी
दृष्टिकोण में यह विचार निहित है कि विश्व के राष्ट्रों के बीच किसी-नकिसी रूप में
वैमनस्य, संघर्ष आदि मौजूद रहता है।
अतः कूटनीति का प्रमुख कार्य यही है कि शक्ति प्रतिस्पर्धा पर किसी-न-किसी रूप में
अंकुश लगाया जाए। संक्षेप में, यथार्थवाद विरोध एवं संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शाश्वत तत्त्व के
रूप में देखता है। एक ऐसे तत्त्व के रूप में जिसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं
संस्था द्वारा नियन्त्रित . नहीं किया जा सकता है । इसलिए कूटनीति
की चुनौती यही है कि ऐसे साधनों को विकसित किया जाए, ताकि शक्ति संघर्ष में सफलता प्राप्त की जा सके। __मॉर्गेन्थाऊ की मान्यता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का मूल आधार शक्ति के रूप में परिभाषित हित की अवधारणा है। शक्ति के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रहित की महत्ता पर बल देने के कारण मॉर्गेन्थाऊ का दृष्टिकोण यथार्थवादी दृष्टिकोण बन जाता है। मॉर्गन्थाऊ के अनुसार उनका सिद्धान्त यथार्थवादी इसलिए है कि वह मानव स्वभाव को उसके यथार्थ रूप में देखते हैं। अनुभव व तर्क इस सिद्धान्त के प्रमुख गुण रहे हैं। यह सिद्धान्त यथार्थ तथ्यों तथा वास्तविकताओं पर आधारित है। पूर्व मान्यताओं तथा अमूर्त तथ्यों का यथार्थवादी सिद्धान्त में कोई महत्त्व नहीं है। इसकी महत्ता स्टेनले हाफमैन के इन शब्दों में प्रकट होती है, “मॉर्गेन्थाऊ का यथार्थवादी सिद्धान्त विश्व सम्बन्धों को समझने के लिए हमें एक विश्वसनीय नक्शा प्रदान करने का प्रयास हैं।"
की चुनौती यही है कि ऐसे साधनों को विकसित किया जाए, ताकि शक्ति संघर्ष में सफलता प्राप्त की जा सके। __मॉर्गेन्थाऊ की मान्यता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का मूल आधार शक्ति के रूप में परिभाषित हित की अवधारणा है। शक्ति के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रहित की महत्ता पर बल देने के कारण मॉर्गेन्थाऊ का दृष्टिकोण यथार्थवादी दृष्टिकोण बन जाता है। मॉर्गन्थाऊ के अनुसार उनका सिद्धान्त यथार्थवादी इसलिए है कि वह मानव स्वभाव को उसके यथार्थ रूप में देखते हैं। अनुभव व तर्क इस सिद्धान्त के प्रमुख गुण रहे हैं। यह सिद्धान्त यथार्थ तथ्यों तथा वास्तविकताओं पर आधारित है। पूर्व मान्यताओं तथा अमूर्त तथ्यों का यथार्थवादी सिद्धान्त में कोई महत्त्व नहीं है। इसकी महत्ता स्टेनले हाफमैन के इन शब्दों में प्रकट होती है, “मॉर्गेन्थाऊ का यथार्थवादी सिद्धान्त विश्व सम्बन्धों को समझने के लिए हमें एक विश्वसनीय नक्शा प्रदान करने का प्रयास हैं।"
मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद के सिद्धान्त
:-
मॉर्गेन्थाऊ ने अपने यथार्थवादी विचारों को छ: सिद्धान्त रूपों में प्रस्तुत
किया है-
(1) मानवीय प्रकृति पर आधारित राजनीति के वस्तुगत
नियम :-
मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार राजनीति का नियमन-संचालन वस्तुगत नियमों से होता है और
इन नियमों का आधार मानव की प्रकृति है। वस्तुगत नियमों व राजनीति में गहरा सम्बन्ध
है। बिना इन नियमों के अध्ययन के राजनीतिक पद्धति में सुधार सम्भव नहीं है। इन
वस्तुगत नियमों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता,क्योंकि ये स्थानीय व सार्वभौम है। मानव प्रकृति
स्थायी होने के कारण इस पर आधारित नियम भी स्थायी होते हैं।
(2) परिस्थितियों का राष्ट्रीय हितों पर प्रभाव :-
परिस्थितियाँ राष्ट्रीय हितों पर अपना काफी प्रभाव डालती हैं। परिस्थिति के
आधार पर राजनीतिक निर्णय लिए जाते हैं। किसी भी देश के हित परिस्थितियों के अनुसार
बदलते रहते हैं। इसी कारण राजनीतिज्ञ यह मानते हैं कि बदलती हुई परिस्थितियों को
ध्यान में रखकर शक्ति के सन्दर्भ में विदेश नीति निर्धारित की जानी चाहिए ।
यथार्थवादी सिद्धान्त के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मूल में ही राष्ट्रीय
हित निहित हैं। इन्हीं हितों को प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता
है।
(3) शक्ति के सन्दर्भ में राष्ट्रीय हितों की
व्याख्या:-
मॉर्गेन्थाऊ शक्ति के सन्दर्भ में राष्ट्र के हितों की व्याख्या करता है।
प्रत्येक राष्ट्रीय व्यवहार ही उसके अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारों का आधार होते हैं
तथा वह अपने व्यवहारों का प्रसार अपनी शक्ति के बल पर करता है। प्रत्येक देश की
विदेश नीति का उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करना होता है। इसके लिए
वह उचित व अनुचित को ध्यान में नहीं रख पाता।
(4) नैतिक आदशों में यथार्थवाद :-
राजनीतिक नियमों में नैतिक आदर्श अमूर्त तथा सार्वभौमिक नियमों पर आधारित न
होकर किसी व्यवहार की नैतिकता व अनैतिकता, औचित्य व अनौचित्य के निर्णय पर आधारित होते हैं, क्योंकि देश या राज्यों की
प्रभावकारी नैतिकता, परिस्थितियों व समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। यथार्थवादी सिद्धान्त
में अमूर्त व नैतिक नियमों के स्थान पर बुद्धि की सर्वोच्चता को स्वीकारा गया है।
(5) राज्यों की आकांक्षाएँ तथा विश्व के नैतिक नियम :-
मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार राज्य की आकांक्षाओं तथा विश्व के नैतिक नियमों के मध्य
किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता है । इनमें भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। प्रत्येक
राष्ट्र शक्ति का प्रयोग करके या किसी भी अन्य विधि से अपनी आकांक्षाओं तथा
राष्ट्रीय हितों को सिद्ध करना चाहता है, क्योंकि राष्ट्रीय हित ही सर्वोपरि है। विश्व के
नैतिक नियमों का पालन करने के लिए कोई राष्ट्र बाध्य नहीं है । इसीलिए मॉर्गेन्थाऊ
का कहना है कि राज्यों के कार्य की समीक्षा राष्ट्रीय हितों व आकांक्षाओं को ध्यान
में रखकर की जानी चाहिए. नैतिक नियमों के आधार पर मूल्यांकन सही नहीं होगा।
(6) राजनीतिक क्षेत्र की स्वायत्तता :-
राजनीतिक यथार्थवाद राजनीतिक परिवेश की स्वायत्तता में विश्वास करता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को राष्ट्रीय हित,संघर्ष और शक्ति के आधार पर राजनीतिक क्षेत्र से
अलग किया जा सकता है। कभी-कभी इसमें गैर-राजनीतिक विचारों को सम्मिलित किया जाता
है, परन्तु प्रमुखता प्राप्त
नहीं होती, इसमें केवल राजनीतिक
मापदण्डों को ही प्रमुखता दी जाती है। मॉर्गेन्थाऊ तथा अन्य यथार्थवादी विद्वानों
के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कानून और नैतिकता को सम्मिलित नहीं करना
चाहिए।
मॉर्गेन्थाऊ के यथार्थवादी
सिद्धान्तों का अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है
(1) यथार्थवादी सिद्धान्त मानवीय सिद्धान्तों
पर आधारित होता है तथा ऐसे कानून खोजता है जिनके द्वारा संसार की समस्त राजनीति का
संचालन किया जाता है।
(2) इस सिद्धान्त के अनुसार राजनीतिक
गतिविधियों का महत्त्व राष्ट्रीय हितों की पृष्ठभूमि में पाया जाता है।
(3) इस सिद्धान्त के अनुसार राष्ट्रीय
हित पूरे करने के लिए संघर्ष आवश्यक होता है, परन्तु यह संघर्ष नियन्त्रण
रूपान्तरण तथा समझौते द्वारा भी किया जा सकता है।
मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद सिद्धान्त की आलोचना :-
प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक वासरमैन ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए
कहा है कि “जब तक अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में मॉर्गन्थाऊ के यथार्थवादी सिद्धान्त का प्रभाव बना रहेगा तब तक
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन वैज्ञानिक विकास की ओर उन्मुख नहीं हो
सकेगा।"
मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक यथार्थवाद सिद्धान्त की
निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जा सकती है-
(1) सिद्धान्त की अपूर्णता :-
कुछ आलोचकों के अनुसार यह सिद्धान्त अपूर्ण है। स्प्राउट के अनुसार यह
सिद्धान्त राष्ट्रीय नीति के उद्देश्यों के प्रेरकों का विवेचक न होने के कारण
अपूर्ण है। क्विन्सी राइट ने यह भी कहा है कि मॉर्गेन्थाऊ के सिद्धान्त में
विभिन्न मूल्यों के राष्ट्रीय नीति पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख नहीं
होने के कारण यह अपूर्ण है।
(2) गहनता एवं गूढ़ता का प्रभाव :-
आलोचकों के अनुसार इस सिद्धान्त में गहनता और गूढ़ता जैसे आवश्यक गुणों का
पूर्ण अभाव है। उनके अनुसार मॉर्गेन्थाऊ का सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं है।
(3) सिद्धान्त द्वारा केवल राष्ट्रीय हित, शक्ति तथा संघर्ष पर बल
देना :-
अनेक विद्वानों ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि इस सिद्धान्त के
द्वारा केवल राष्ट्रीय शक्ति एवं संघर्ष को प्रमुखता प्रदान की गई है।
(4) राजनीतिक क्षेत्र की स्वायत्तता का प्रश्न अस्पष्ट :-
मॉर्गेन्थाऊ अपने सिद्धान्त में स्वायत्तता के
प्रश्न को उठाकर भी स्पष्ट नहीं कर पाए हैं।
(5) राष्ट्रीय हितों का वस्तुगत न होना :-
कुछ विद्वानों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय हित
वस्तुगत नहीं होते । वर्तमान समय में प्रत्येक राष्ट्र का जीवन संघर्षमय है तथा
उसका अस्तित्व भी हर पल संकट में होता है । अतः राष्ट्र अपने अस्तित्व की सुरक्षा
पर बहुत ध्यान देता है । इस प्रकार अस्तित्व की सुरक्षा को वस्तुगत तथ्य नहीं माना
जा सकता, क्योंकि अस्तित्व की
सुरक्षा का प्रश्न राष्ट्र का आत्मगत विषय है,जिसके लिए प्रत्येक राष्ट्र प्रयास करता है।
(6) सिद्धान्त में अस्पष्टता एवं विरोधाभास :-
मॉर्गेन्थाऊ के विचारों में अस्पष्टता एवं
विरोधाभास पाया जाता है। उसने अपनी एक पुस्तक में कहा है कि “जिस प्रकार अर्थशास्त्र का
सम्बन्ध धन से है, उसी प्रकार राष्ट्रीय हित का सम्बन्ध शक्ति से है।" परन्तु उसने अपनी
दूसरी पुस्तक में कहा है कि “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का समान लक्ष्य होगा, तो अन्य क्षेत्रों में भी प्रवेश कर
सकेगा।"
(7) सिद्धान्त का वर्तमान स्थिति से मेल न खाना :-
मॉर्गेन्थाऊ के मतानुसार सम्पूर्ण संसार
स्वार्थी होता है तथा सभी राष्ट्रों का लक्ष्य शक्ति है। मॉर्गेन्थाऊ के इस मत की
आलोचना करते हुए कुछ विद्वान कहते हैं कि आज जबकि विश्व की राजनीतिक स्थितियाँ
तेजी से परिवर्तित हो रही हैं,शक्ति को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एकमात्र उद्देश्य नहीं माना जा सकता।
आधुनिक युग में सहयोग है, अतः मॉर्गेन्थाऊ का राजनीतिक यथार्थवाद सिद्धान्त वर्तमान में असंगत है।
उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी मॉर्गेन्थाऊ के सिद्धान्त का अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसको पूर्ण रूप से निरर्थक नहीं कहा जा
सकता है। थॉम्पसन के अनुसार, “मॉर्गेन्थाऊ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के
विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ है।
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