नेपोलियन बोनापार्ट - विदेश नीति

B.A.II,History II

प्रश्न 3. प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन की विदेश नीति पर प्रकाश डालिए। 

नेपोलियन की विदेश नीति 

उत्तर - प्रथम कौंसल (सलाहकार) बनने के पश्चात् फ्रांस का शासन सूत्र नेपोलियन के हाथों में आ गया था। नेपोलियन को फ्रांस में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने तथा अराजकता के स्थान पर व्यवस्था स्थापित करने के लिए समय के साथ-साथ शान्ति की भी आवश्यकता थी। इसलिए उसने ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया को पत्र लिखकर तुरन्त शान्ति स्थापना का प्रस्ताव किया तथा ब्रिटेन का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि "सुसभ्य राष्ट्रों का भाग्य युद्ध की, जो सम्पूर्ण विश्व का दाह कर रहा है, समाप्ति पर निर्भर करता है।" किन्तु अपनी सफलता से उत्साहित द्वितीय गुट के राष्ट्रों ने इस प्रस्ताव की उपेक्षा की और युद्ध चलता रहा। अब नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया पर दो ओर से आक्रमण करने की योजना बनाई। उसने एक सेना सेनापति मूरो (Moreau) के नेतृत्व में दक्षिण जर्मनी की ओर से ऑस्ट्रिया पर आक्रमण करने के लिए भेजी। दूसरी सेना का नेतृत्व स्वयं नेपोलियन ने किया। नेपोलियन ने सेण्ट बर्नार्ड के दर्रे को पार कर इटली में प्रवेश किया और अचानक ऑस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण करके जून, 1800 में मरेन्गो (Marengo) के युद्ध में ऑस्ट्रिया को परास्त कर दिया। इस युद्ध में नेपोलियन ने अपनी सेना को विभाजित करके बहुत बड़ी गलती की थी और वह लगभग हार ही चुका था, परन्तु ऐन मौके पर उसका एक अधिकारी अपनी सेना सहित आ पहुँचा और पराजय विजय में परिणत हो गई। उधर मूरो ने भी ऑस्ट्रियन सेना को होहेनलिण्डन नामक स्थान पर परास्त कर दिया। इस विजय से उसके लिए वियना का मार्ग खुल गया। ऑस्ट्रिया का सम्राट् फ्रांसिस द्वितीय नेपोलियन मूरो की निरन्तर सफलताओं से भयभीत हो उठा।
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उसने विवश होकर 1801 ई. में फ्रांस के साथ ल्यूनेविले की सन्धि कर ली। ल्यूनेविले की सन्धि फ्रांस की इच्छाओं के अनुकूल थी। इस सन्धि के द्वारा महाद्वीप में शान्ति स्थापित हुई, फ्रांस को राइन नदी की सीमा प्राप्त हो गई तथा उत्तरी इटली ऑस्ट्रिया के नियन्त्रण से मुक्त होकर उसके प्रभाव में आ गया। नेपिल्स ने भी नेपोलियन के साथ सन्धि कर. ली और फर्डिनेण्ड ने अपने बन्दरगाहों में अंग्रेजी तथा तुर्की जहाजों को न आने देने का वचन दिया। स्पेन ने भी सन्धि करके उत्तरी अमेरिका में लुइसाना का प्रदेश फ्रांस को दे दिया। ल्यूनेविले की सन्धि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं-
(1) ऑस्ट्रिया हैल्वेटिक, बेटेवियन तथा सिस-अल्पाइन गणराज्यों को मान्यता प्रदान करने के लिए तैयार हो गया।
(2) इटली के गणराज्यों को मान्यता प्रदान कर दी गई।
(3) बेल्जियम पर फ्रांस का अधिकार मान लिया गया।
(4) ऑस्ट्रिया को फरवरी, 1801 में केम्पोफोर्मिया की सन्धि की पुनः पुष्टि . करनी पड़ी।
- अब इंग्लैण्ड अकेला पड़ गया था। मिस्त्र में फ्रांसीसी सेनाओं को एलेक्जेण्ड्रिया में राफ एवरक्रॉम्बी ने मार्च, 1801 में परास्त करके हथियार डलवा दिए थे। उत्तरी यूरोप में ऑस्ट्रिया तथा रूस में मनमुटाव हो गया था और रूस का जार पॉल नेपोलियन के साथ सहयोग करने के लिए तैयार था। नेपोलियन के कहने से उसने प्रशां, स्वीडन तथा डेनमार्क के साथ मिलकर सशस्त्र तटस्थता की योजना को, जो अमेरिका के स्वतन्त्रता युद्ध के समय में बनाई गई थी, फिर से स्थापित किया। इसके अनुसार युद्ध के समय में तटस्थ राज्यों के जहाजों की तलाशी लेने के इंग्लैण्ड के अधिकार का विरोध किया जाने लगा। अत: नेल्सन ने अप्रैल, 1801 में कोपेनहेगन पर आक्रमण करके डेनमार्क के बेड़े को नष्ट कर संघ को तोड़ दिया।

इंग्लैण्ड से समझौता -

युद्धका अन्त कहीं दिखाई नहीं देता था। समुद्र पर इंग्लैण्ड को परास्त करना नेपोलियन के लिए असम्भव था। महाद्वीप पर इंग्लैण्ड फ्रांस का कुछ नहीं बिगाड़ सका था। लड़ते-लड़ते दोनों राष्ट्र थक गए थे। इंग्लैण्ड में पिट हट गया था और उसका उत्तराधिकारी एडिंग्टन युद्ध जारी रखना नहीं चाहता था। अत: उसने समझौते की वार्ता प्रारम्भ की। वैसे तो नेपोलियन सत्तारूढ होने के समय से ही शान्ति के पक्ष में था, किन्तु अब उसने देरी करनी चाही, क्योंकि वह कुछ ऐसे प्रदेशों, विशेषकर पुर्तगाल पर अधिकार कर लेना चाहता था, जिसका उपयोग सौदेबाजी के लिए किया जा सकता था। इस उद्देश्य की शीघ्र पूर्ति होते देखकर वह भी समझौते के लिए तैयार हो गया और 27.मार्च, 1804 को आमियों की सन्धि से युद्धबन्द हो गया। यह सन्धि एक ओर इंग्लैण्ड तथा दूसरी ओर फ्रांस, स्पेन तथा हॉलैण्ड के मध्य हुई। इस सन्धि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थी--
(1) इंग्लैण्ड ने फ्रांस की कॉन्स्यूलेट सरकार को मान्यता प्रदान की।
(2) इंग्लैण्ड ने ल्यूनेविले की सन्धि को मान्यता प्रदान की।
(3) इंग्लैण्ड ने श्रीलंका और मिनिदाद को छोड़कर शेष सभी उपनिवेश, जिन्हें उसने पिछले युद्धों में फ्रांस से जीता था, फ्रांस को लौटा दिए।
इस सन्धि से इंग्लैण्ड में सब प्रसन्नथे, परन्तु उस पर किसी को अभिमान नहीं था। यह बात सत्य ही थी, क्योंकि इस सन्धि से फ्रांस को ही अधिक लाभ हुआ था। जिस काम को लुई चौदहवाँ पूरा नहीं कर पाया, उसे नेपोलियन ने पूरा कर दिया। इस प्रकार युद्ध समाप्त हुआ, शान्ति स्थापित हुई और नेपोलियन को. आन्तरिक सुधार करने का अवसर प्राप्त हुआ।

ऊपरी तौर पर आमियाँ की सन्धि ने यूरोप में शान्ति तो स्थापित कर दी थी, किन्तु वह ऐसी शान्ति थी जिससे यूरोप की कोई भी बडी शक्ति सन्तुष्ट न थी। रूस का जार नेपोलियन के प्रति व्यक्तिगत ईष्या भाव रखता था और ऑस्ट्रिया का सम्राट् प्रतिशोध की भावना से जल रहा था। 

ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री ने कॉमन सभा में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि युद्ध पुनः 'चालू होगा तथा नेपोलियन भी कहता था, "मैं उतने समय तक शान्ति रखंगा जब तक मेरे पड़ोसी रखेंगे। किन्तु वर्तमान परिस्थिति में कोई शान्ति की सन्धि एक संक्षिप्त विराम से अधिक मायने नहीं रखती। मुझे विश्वास है कि लगातार युद्ध करते रहना ही मेरा प्रारब्ध है।" इस प्रकार कुछ समय के लिए दोनों प्रमुख प्रतिद्वन्द्वियों के मध्य युद्ध विराम हो गया। किन्तु दुर्भाग्यवश यह सन्धि स्थायी प्रमाणित नहीं हुई। एक वर्ष के पश्चात् ही यह सन्धि टूट गई। किन्तु यह सन्धि निःसन्देह नेपोलियन के लिए एक कूटनीतिक विजय थी, क्योंकि इसके द्वारा इंग्लैण्ड ने फ्रांस की सरकार को मान्यता प्रदान की थी।

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