बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त - गुण, दोष और महत्त्व

M.J. P.R. U., B.A. III, HistoryI / 2020 

प्रश्न 3. लॉर्ड कॉर्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त के गुण व दोषों की विवेचना कीजिए। 

अथवा , बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त का विवरण दीजिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा, लॉर्ड कॉर्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण एवं दोष बताइए।

उत्तर - लॉर्ड क्लाइव और वारेन हेस्टिंग्स ने अच्छी शासन व्यवस्था स्थापित नहीं की थी। अतः शासन व्यवस्था में सुधार करने, विशेष रूप से राजस्व व्यवस्था को अच्छी प्रकार स्थापित करने के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने लॉर्ड कॉर्नवालिस को भारत भेजा। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने सर जॉन शोर की सहायता से भू-राजस्व व्यवस्था स्थापित ही नहीं की, वरन् अंग्रेजी साम्राज्य की सुरक्षा के लिए अंग्रेज भक्त जमींदारों की फौज भी इकट्ठी कर दी। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने गवर्नर-जनरल के रूप में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए, परन्तु उसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था 'स्थायी बन्दोबस्त' या 'इस्तमरारी बन्दोबस्त'
बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त

 बंगाल की स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था

लॉर्ड कॉर्नवालिस स्वयं जमींदार वर्ग से सम्बन्धित था और कम्पनी के डायरेक्टर भी जमींदारों से कोई समझौता करने पर विचार कर रहे थे। कॉर्नवालिस ने सरकार के लिए निश्चित राजस्व और प्रजा की सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से जमींदारों को विरासत के आधार पर भूस्वामी मानने का विचार स्थायी बन्दोबस्त के रूप में क्रियान्वित किया।
लॉर्ड कॉर्नवालिस ने 1793 ई. में एक अध्यादेश जारी करके स्थायी भू-व्यवस्था लागू करने की घोषणा की। उसने कहा कि हमें उन बुराइयों और कमियों को दूर करना है जिसे जनहित को हानि पहुँचती है। एक निर्धारित राशि के आधार पर लगातार चलने वाले पट्टे पर जमीनें देकर हम अपनी प्रजा को भारत में सबसे अधिक सुखी बना देंगे। इस घोषणा के द्वारा किए गए स्थायी बन्दोबस्त की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं

(1) इस व्यवस्था के अनुसार जमींदारों को अपनी भूमि का स्वामी ही नहीं माना गया, वरन् उनके बच्चों एवं कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी मृत्यु के . पश्चात् उस भूमि का स्वामी बनने का अधिकार भी प्रदान कर दिया गया।

(2) जमींदारों को भूमि के हस्तान्तरण का भी अधिकार प्रदान किया गया।

(3) इस व्यवस्था के अनुसार लगान की एक राशि निश्चित कर दी गई, जिसे सदैव के लिए निर्धारित कर दिया गया।

(4) एक निश्चित तिथि तक लगान की राशि सरकारी खजाने में जमा न कर पाने पर जमींदार के भूमि पर से सभी प्रकार के अधिकार समाप्त हो जाते थे।

(5) पट्टे पर जमीन लेने वालों के अधिकारों की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं जमींदारों पर रखी गई, साथ ही पट्टे की शर्तों को स्पष्ट करने के निर्देश भी जमींदारों को इसी व्यवस्था के द्वारा दिए गए।

(6) पट्टेदारों के अधिकारों व हितों की रक्षार्थ कानून बनाने का अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास सुरक्षित रखा गया, जिससे जमींदार कानून मानने के लिए बाध्य हो।

उपर्युक्त विशेषताओं को देखते हुए ही प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आर. सी. दत्त ने कहा था, "यदि बुद्धिमानी और सफलता की कसौटी किसी राष्ट्र की समृद्धि और खुशहाली है, तो 1793 ई. की लॉर्ड कॉर्नवालिस की स्थायी भू-व्यवस्था सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण और सरल उपाय था, जो ब्रिटिश राज्य ने भारत में कभी भी अपनाया था

स्थायी बन्दोबस्त के गुण

अथवा

 स्थायी बन्दोबस्त का महत्त्व

स्थायी बन्दोबस्त के प्रमुख गुण निम्नांकित थे,

(1) इस भू-व्यवस्था ने जनता को निश्चितता प्रदान कर अनिश्चितता की स्थिति से पूर्ण रूप से उबार दिया। जमींदारों को अपनी जमीन एवं लगान, दोनों के बारे में पता था। उसे पता था कि लगान का भुगतान कब, किसे एवं किस प्रकार करना है।

(2) जमीदारों ने कृषि कार्यों में रुचि लेना आरम्भ कर दिया, क्योंकि कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि का लाभ उन्हीं को मिलना था।

(3) कृषि में उन्नति होने से उद्योग और व्यापार की भी प्रगति हुई।

(4) सरकार को स्पष्ट पता था कि उसे लगान से कितनी आय होनी है। इस आधार पर सरकार अपनी योजनाएँ बना सकती थी।

(5) सरकार ने लगान वसूली एवं स्थायी प्रशासनिक बोझ को जमींदारों पर डालकर स्वयं को अन्य कार्यों के लिए काफी स्वतन्त्र कर लिया था। अब कम्पनी स्वतन्त्रतापूर्वक अपने व्यापार के विस्तार की ओर ध्यान दे सकती थी।

(6) जमींदार वर्ग के रूप में अंग्रेजों को एक स्वामिभक्त वर्ग मिल गया, जिसने आगे आने वाले समय में अंग्रेजी साम्राज्य की बहुत सेवा की।

 स्थायी बन्दोबस्त के दोष

स्थायी बन्दोबस्त अनेक अच्छाइयों से परिपूर्ण था, परन्तु उसमें अनेक दोष भी विद्यमान थे। इस व्यवस्था के सम्बन्ध में बेवरिज ने लिखा था, "केवल जमींदारों के साथ समझौता करके और किसानों के अधिकार को पूर्णतया भुलाकर एक महान् भूल और अन्याय किया गया।"

 इस व्यवस्था के प्रमुख दोष निम्नलिखित थे

(1) इस व्यवस्था में लगान की मात्रा स्थायी थी। लगान की राशि बहुत अधिक होने के कारण किसानों को अत्यन्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। लगान न देने पर किसानों से उनकी भूमि छीन ली जाती थी।

(2) जमींदार लगान की राशि अपने ठाट-बाट एवं ऐशो-आराम पर खर्च करते थे। इस कारण किसानों की दशा अत्यन्त दयनीय होती गई, क्योंकि किसानों की भूमि की उपज बढ़ाने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए थे। 

(3) किसानों को जमींदारों की दया दृष्टि पर छोड़ दिया गया। जमींदार प्रशासनिक दृष्टि से पूर्णतया अयोग्य थे और किसानों पर अत्याचार करते थे। जमींदारों के डर के कारण किसान उसकी शिकायत भी न कर पाते थे।

(4) सरकार लगान से प्राप्त धनराशि का उपयोग जन-कल्याण में नहीं करती थी, वरन् उसे ब्रिटिश सरकार के प्रशासन पर खर्च किया जाता था।

(5) खेती में उपज की वृद्धि होने का लाभ न तो किसानों को मिलता था और न ही सरकार को, बल्कि इस लाभ को जमींदार हड़प कर जाते थे।

स्पष्ट है कि इस व्यवस्था से न तो किसानों को लाभ पहुँचा और न ही सरकार को, बल्कि इस व्यवस्था के द्वारा जमींदार किसानों के स्वामी बन गए और उनके परिश्रम से फलते-फूलते रहे। इसी वर्ग ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अंग्रेजों का साथ देकर भारत को और अधिक दिनों तक गुलाम बनाए रखा। इस प्रकार इस व्यवस्था के द्वारा एक छोटे से वर्ग (जमींदार) के हितों के लिए जनहित की बलि दे दी गई।
'स्थायी बन्दोबस्त निश्चित रूप से इस समय की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था थी, परन्तु यह दोष रहित नहीं थी। स्थायी बन्दोबस्त के सम्बन्ध में इतिहासकारों में पर्याप्त मतभेद हैं। 

मार्शमैन के अनुसार, "यह साहस, बहादुरी और बुद्धिमानी का कार्य था। इस प्रादेशिक अधिकार पत्र के प्रभाव के कारण, जिसने प्रथम बार भूमि के स्थायी लगान और अधिकारों को स्थापित किया, जनसंख्या में वृद्धि हुई, कृषि में . उन्नति हुई और व्यक्तियों के स्वभाव एवं सुविधाओं में धीरे-धीरे स्पष्ट रूप से सुधार दिखाई दिया।" इसके विपरीत होम्स ने लिखा है, "स्थायी बन्दोबस्त एक दु:खद भूल थी। साधारण किसानों को इससे कोई लाभ नहीं हुआ। जमींदार निरन्तर लगान देने में असमर्थ रहे और उनकी जमीनें सरकार के लाभार्थ बेच दी गईं।" 

इस प्रकार इस व्यवस्था में अच्छाइयों के साथ अनेक बुराइयाँ भी विद्यमान थीं।

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