औरंगजेब की सफलता के कारण
BA-II, History I
प्रश्न 8. शाहजहाँ के शासन के अन्तिम काल में उत्तराधिकार युद्ध के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। इस संघर्ष में औरंगजेब की सफलता के क्या कारण थे?
प्रश्न 8. शाहजहाँ के शासन के अन्तिम काल में उत्तराधिकार युद्ध के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। इस संघर्ष में औरंगजेब की सफलता के क्या कारण थे?
अथवा '' शाहजहाँ के पुत्रों में राजसिंहासन सम्बन्धी युद्ध के कारणों और घटनाओं का वर्णन कीजिए। इस युद्ध में औरंगजेब की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर- 1657 ई. में शाहजहाँ अचानक बीमार पड़ गया। इस समय
उसकी आयु 65 वर्ष की हो चुकी थीअनेक उपचार के पश्चात् भी
उसकी दशा बिगड़ती गई। वह अपने शयनागार में ही पड़ा रहता था तथा उसने दरबार में भी
जाना बन्द कर दिया। शाहजहाँ की इस दयनीय दशा से सभी चिन्तित हो उठे। शहजादे
सिंहासन प्राप्त करने के लिए आतुर होने लगे। जन-साधारण की चिन्ता दूर करने के लिए
उसने झरोखा दर्शन भी आरम्भ किया। परन्तु दिन प्रतिदिन उसकी शक्ति का ह्रास होता
रहा, जिससे वह बड़ा चिन्तित हुआ। उसने अपने अमीरों और दरबारियों
को बुलाकर उनकी उपस्थिति में दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। परन्तु
शाहजहाँ का यह कार्य व्यावहारिक रूप न ले सका। उसके अन्य पुत्र भी सिंहासन पर
अधिकार करने के लिए प्रयास करने लगे।
शाहजहाँ का परिवार -
शाहजहाँ के चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं, जिनके नाम थे—दाराशिकोह, शाहशुजा, औरंगजेब और मुराद। पुत्री
जहाँआरा दारा के पक्ष में, रोशनआरा औरंगजेब के पक्ष में और गौहनआरा मुराद
के पक्ष में थी।
उत्तराधिकार युद्ध के कारण
शाहजहाँ के शासनकाल में उत्तराधिकार युद्ध के निम्नलिखित
कारण थे।
(1) उत्तराधिकार के
निश्चित नियमों का अभाव - मुगलों में
उत्तराधिकार के नियमों का अभाव था। अत: किसी भी मुगल बादशाह की मृत्यु हो जाने पर
सिंहासन प्राप्ति के लिए संघर्ष छिड़ जाता था। हुमायूँ को मेंहदी ख्वाजा, अकबर को मिर्जा हाकिम तथा जहाँगीर को शहरयार ने चुनौती दी थी। अतः शाहजहाँ के
चार बेटे-दारा, शुजा, औरंगजेब व मुराद भी क्यों
पीछे रहते। उन्होंने भी बादशाह बनने का फैसला तलवार से करने का निश्चय किया।
(2) शाहजहाँ की लम्बी बीमारी -
शाहजहाँ दीर्घकाल
तक अस्वस्थ रहा। उसकी अस्वस्थता के काल में सिंहासन प्राप्ति के प्रयासों को
प्रोत्साहन मिला तथा अनेक षड्यन्त्र रचे जाते रहे।
(3) महत्त्वाकांक्षाएँ -
शाहजहाँ के चारों पुत्र
महत्त्वाकांक्षी थे तथा चारों ही राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए उत्सुक थे। ऐसी
दशा में संघर्ष का होना स्वाभाविक था।
(4) दारा को उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा -
सितम्बर, 1657 में जब शाहजहाँ अस्वस्थ हुआ, तो उसने अपने पुत्र
दाराशिकोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। ऐसी दशा में रोषवश तीनों शहजादों
ने एक-दूसरे के विरुद्ध युद्ध की तैयारी प्रारम्भ कर दी।
(5) शहजादों के मध्य साम्राज्य का विभाजन -
शाहजहाँ ने अपने
पुत्रों को अनेक प्रान्तों का पदाधिकारी नियुक्त किया था। दारा पंजाब तथा
उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त का सूबेदार था। शाहशुजा के अधीन बंगाल तथा उड़ीसा के
प्रान्त थे। औरंगजेब को दक्षिणी प्रान्तों का सूबेदार नियुक्त किया गया था। इस
प्रकार सभी शहजादों के पास पर्याप्त तथा संगठित सेनाएँ थीं।
(6) भाइयों में परस्पर द्वेष -
शाहजहाँ के चारों
पुत्रों में परस्पर प्रेम भावना के स्थान पर घृणा तथा द्वेष की भावना थी। शाहजहाँ
दारा से सबसे अधिक प्यार करता था। इसलिए शेष तीनों भाई उससे ईर्ष्या करते थे।
(7) दारा का सन्देहात्मक व्यवहार -
अपनी मृत्यु से
पूर्व जब शाहजहाँ अत्यधिक बीमार पड़ा, तो दाराशिकोह ने उससे
किसी को भी मिलने नहीं दिया। उसने महल में घटित होने वाली घटनाओं को अपने भाइयों
से गुप्त रखा। दारा स्वयं महल में पड़ा रहता था। '
(8) शाहजहाँ की पुत्रियों के षड्यन्त्र -
शाहजहाँ की पुत्रियाँ भी उत्तराधिकार की
राजनीति में सक्रियता से भाग ले रही थीं। जहाँआरा तथा रोशनआरा षड्यन्त्र रचने में
अत्यधिक तेज थीं।
उत्तराधिकार युद्ध की घटनाएँ
(1) शाहशुजा की पराजय
- 24 फरवरी, 1658 को बनारस के निकट बहादुरपुर नामक स्थान पर
दारा और शाहशुजा की सेना के मध्य भीषण युद्ध हुआ। शाहशुजा की पराजय हुई और वह
प्राण बचाकर बंगाल की ओर भाग गया।
(2) धरमत का युद्ध -
औरंगजेब भी सक्रियता से युद्ध में भाग लेने लगा, परन्तु उसने अत्यन्त सावधानी से काम लिया। उसने
न तो स्वयं को सम्राट् घोषित किया और न ही अपने नाम के सिक्के चलाए। उसने मुराद से
सन्धि करके आगरा की ओर प्रस्थान किया। दारा ने इस. आक्रमण का सामना करने के लिए
राजा जसवन्त सिंह व कासिम खाँ को भेजा। औरंगजेब,की सेना ने दारा की सेना को धरमत नामक स्थान पर बुरी तरह
पराजित किया।
(3) सामूगढ़ का युद्ध -
धरमत की पराजय ने दारा को हिला दिया था। नेत्र पाण्डेय के
अनुसार, "धरमत की पराजय की
सूचना पाने पर दरबार में बड़ी खलबली मच गई। जहाँआरा ने समझौते का अथक प्रयास किया,
परन्तु उसके. सभी प्रयत्न निष्फल सिद्ध हुए।
दारा अपनी तैयारी में लगा था और वह भी अपनी सेना के साथ आगे बढ़ा। 29 मई, 1658 को आगरा के पूर्व में आठ मील की दूरी पर सामूगढ़ नामक
स्थान पर दारा और उसके भाइयों की सेनाओं में उत्तराधिकार का सबसे बड़ा युद्ध हुआ,
जिसमें दारा परास्त हो गया। दारा भागकर आगरा
पहुँचा। वह इतना लज्जित था कि वह बादशाह से न मिल सका और अपनी स्त्री तथा बच्चों
के साथ दिल्ली भाग गया।"
(4) आगरा पर अधिकार-
8 जून,
1658 को औरंगजेब ने आगरा के
किले पर आक्रमण कर शाहजहाँ को बन्दी बना लिया। 1666 ई. में शाहजहाँ की जेल में ही मृत्यु हो गई।
(5) दारा का वध -
औरंगजेब ने दारा का पीछा किया। वह मुल्तान, सिन्ध, काठियावाड़,
गुजरात आदि जहाँ भी गया, औरंगजेब के सैनिकं उसका पीछा करते रहे । अन्त में दारा
पकड़ा गया और उसे औरंगजेब के समक्ष लाया गया। औरंगजेब ने उसे 'काफिर' कहकर अनित किया तथा दिल्ली की गलियों में हाथी पर बिठाकर घुमाया और अन्त में
बड़ी निर्दयता से उसका वध करवा दिया।
(6) मुराद का वध -
औरंगजेब ने यह अनुभव किया कि मुराद शक्तिशाली अमीरों के साथ मिलकर षड्यन्त्र
रच रहा है। अत: औरंगजेब ने चालाकी से काम लिया। उसने एक शानदार दावत का आयोजन
किया और उसमें मुराद को अत्यधिक शराब पिलाई। जब मुराद अत्यधिक नशे में हो गया,
तो उसको बन्दी बना लिया और उसका वध कर दिया।
(7) शुजा का वध -
औरंगजेब ने शुजा
को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के खानवा नामक स्थान पर हरा दिया। उसने भागकर
अराकान की ओर शरण ली, 'परन्तु वहाँ उसे
मेवों ने मार डाला। इस प्रकार औरंगजेब मुगल साम्राज्य का निर्विरोध शासक बन गया।
उत्तराधिकार युद्ध में औरंगजेब की सफलता के कारण
उत्तराधिकार युद्ध में औरंगजेब की सफलता के
निम्न कारण थे
(1) शाहजहाँ की अस्वस्थता - औरंगजेब की सफलता का मुख्य कारण शाहजहाँ का दीर्घकाल तक
अस्वस्थ रहना था। उसके अस्वस्थता काल में औरंगजेब को अपनी शक्ति में वृद्धि करने
का पर्याप्त अवसर मिल गया।
(2) शाहजहाँ की निष्क्रियता -
शाहजहाँ की निष्क्रियता ने भी औरंगजेब को सफल बनाने में
विशेष योगदान दिया। उसने अपनी बीमारी के काल में अपनी मृत्यु के झूठे समाचार का
खण्डन नहीं किया।
(3) औरंगजेब की कूटनीतिज्ञता तथा रण कुशलता -
औरंगजेब निःसन्देह ही दारा से कहीं अधिक कुशल
सेनानायक, वीर, दृढ़ संकल्प तथा कूटनीतिज्ञ था। उसने प्रारम्भ
में अपनी शक्ति को अजेय बनाने के लिए मुराद को अपनी ओर मिलाकर अपनी शक्ति को
द्विगुणित कर लिया था। उसने मीरजुमला जैसे योग्य सेनापति व यूरोपियनों द्वारा
संचालित तोपखाना भी अपनी कूटनीति से अपने अधीन कर लिया था, जिसके सम्मुख दारा की सेना नहीं ठहर सकी। सामूगढ़ के युद्ध
में दारा ने औरंगजेब की थकी हुई सेना पर आक्रमण न करके अपनी रण कुशलता की
अनुभवहीनता का परिचय दिया।
(4) दारा की दुर्बलताएँ-
यद्यपि दारा उदार तथा
सहृदय व्यक्ति था, परन्तु उसमें
कूटनीति और दूरदर्शिता का अभाव था। उसकी प्रथम भूल तो शाहजहाँ की बीमारी के काल
में उसकी मृत्यु की घोषणा करना था तथा दूसरी भूल धरमत के युद्ध में राजा जसवन्त
सिंह और कासिम खाँ को संयुक्त रूप से सेना के साथ भेजना था। इन दोनों के सम्बन्ध
परस्पर अच्छे नहीं थे। अतः उन्होंने युद्ध के समय, परस्पर सहयोग व सक्रियता से काम नहीं किया। इसके अतिरिक्त
दारा ने अपने पुत्र सुलेमान के सामूगढ़ पहुँचने से पहले ही औरंगजेब के विरुद्ध
युद्ध छेड़ दिया, जिससे उसे पराजय
का मुँह देखना पड़ा।
(5) औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता -
औरंगजेब दारा की अपेक्षा कट्टर धार्मिक नीति में विश्वास
करता था। औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता की नीति ने मुस्लिम सैनिकों को अपनी ओर
आकर्षित किया तथा वे दारा के विरुद्ध कार्य करने लगे। एक इतिहासकार के अनुसार,
"मुसलमान सैनिक अधिकारियों
ने हृदय से दारा का साथ ही नहीं दिया। यही नहीं, वे उल्टे औरंगजेब की ओर चले गए। सामूगढ़ के युद्ध में
लगभग सभी मुसलमान सैनिक अधिकारी औरंगजेब की ओर मिल गए थे। इस प्रकार शत्रु सेना को
अपनी सेना में मिलाकर औरंगजेब ने अपनी शक्ति अजेय कर ली थी। किन्तु यह सब
मुसलमानों के नैतिक पतन तथा अवसरवादिता के कारण ही कर सका था।"
(6) दारा की सैनिक दुर्बलताएँ -
दारा की सेना औरंगजेब की सेना की अपेक्षा अव्यवस्थित एवं
असंगठित थी। उसमें अनुशासन का अभाव था। उसमें रण कौशल का भी अभाव था। यद्यपि वह
विद्वान् तथा उदार हृदय वाला था, परन्तु कुशल सेनापति
नहीं था।
उपर्युक्त सभी कारणों से उत्तराधिकार के
युद्ध में औरंगजेब को सफलता मिली और वह विशाल मुगल साम्राज्य का सम्राट् बन गया।
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