1848 की फ्रांसीसी क्रांति के क्या कारण थे
प्रश्न
11.
"यूरोप के इतिहास में 1848 ई. का वर्ष
क्रान्तियों का वर्ष था।" इस कथन की व्याख्या कीजिए
तथा 1848 ई. की क्रान्ति के कारण बताइए।
अथवा ''1848 ई. की क्रान्ति के
क्या कारण थे? इसके यूरोप पर क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
"1848 ई. का वर्ष यूरोप के
इतिहास में एक आश्चर्यजनक घटनाओं का वर्ष था।"
इस कथन की सत्यता प्रमाणित कीजिए।
अथवा
''1848 ई. की क्रान्ति के कारणों के बारे में
आप क्या जानते हैं ? इस क्रान्ति के परिणामों पर प्रकाश
डालिए।
अथवा ''1848 ई. की फ्रांस की क्रान्ति
पर निबन्ध लिखिए।
1848 ई. की फ्रांस की क्रान्ति पर निबन्ध
उत्तर-1848 ई. की क्रान्ति का मुख्य
कारण लुई फिलिप की आन्तरिक और बाह्य नीतियाँ थीं, जिनके कारण फ्रांस में उसका
शासन अलोकप्रिय हो गया। 1848 ई.
में फ्रांस में जो क्रान्ति हुई, वह केवल फ्रांस तक ही सीमित
नहीं रही, वरन् इस क्रान्ति की चपेट में सम्पूर्ण यूरोप आ
गया। इस प्रकार क्रान्ति को नष्ट कर पुरातन व्यवस्था को लादने का मैटरनिख का
स्वप्न चकनाचूर हो गया और हर जगह नवीन शासन की स्थापना हुई।
1848 ई. की क्रान्ति के कारण
1848 ई. में यूरोप में एक-दो नहीं, वरन् छोटी-बड़ी सत्रह (17) क्रान्तियाँ
हुई। इसीलिए यूरोप के इतिहास में 1848 ई. का वर्ष क्रान्तियों का वर्ष माना जाता है। इन क्रान्तियों के कारण
अग्रलिखित थे-
(1) 1830-1848 ई. के बीच हुए आर्थिक परिवर्तन-
इस
काल में औद्योगीकरण तीव्रता से हो रहा था। यातायात के साधनों के विस्तार ने बड़े
पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन को बढ़ा दिया
था और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक नवीन पूँजीवादी
व्यवस्था को जन्म दे चुका था। मजदूरों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनकी समस्याएँ
और आवश्यकताएँ भी बढ़ती जा रही थीं। 1838-1839 ई. तथा 1846-47 ई. में यूरोप में आर्थिक संकट आए, जिनसे जनता के
कष्टों में मूल्य वृद्धि के कारण और अधिक बढ़ोत्तरी होती रही।
(2) बुद्धिजीवी और श्रमिकों का शक्तिशाली होना-
औद्योगीकरण
ने समाज के नये प्रभावशाली तत्त्वों, बुद्धिजीवियों व श्रमिक वर्ग को और अधिक
विकसित किया प्रथम वर्ग ने उदारवादी शक्तियों को आत्मबल प्रदान किया, तो दूसरे वर्ग के आर्थिक शोषण के कारण सामाजिक एवं आर्थिक असन्तोष को
तीव्रता मिली। परिणामस्वरूप 1848.ई. की क्रान्ति का विस्फोट
हुआ।
(3) समाजवाद का प्रसार-
1848 ई. की क्रान्ति का एक अन्य
प्रमुख कारण इस समय तक समाजवाद का व्यापक प्रसार था। औद्योगीकरण ने पूँजीवाद को
जन्म दिया और पूँजीवाद के परिणामस्वरूप समाजवाद नामक विचारधारा ने जन्म लिया।
श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए आन्दोलन होने लगे। समाजवादियों ने देश के
कल-कारखानों का राष्ट्रीयकरण करने की जबरदस्त. माँग करनी प्रारम्भ कर दी। जगह-जगह
मजदूर संघों की स्थापना होने लगी। श्रमिक नेता मताधिकार विस्तृत करने की मांग करने
लगे।
(4) खिजों की नीतियाँ-
लुई
फिलिप का मन्त्री खिजों भी रूढ़िवादी और अपरिवर्तनशील विचारधारा का कट्टर समर्थक
था। वह किसी भी प्रकार के परिवर्तन एवं सुधार को खतरनाक समझता था। उसने फ्रांस के
प्रत्येक आन्दोलन को
स्वार्थ का साधन बताकर उसकी अवहेलना ही नहीं की. वरन दमन भी किया। उसकी इन
अपरिवर्तनशील निषेधात्मक नीतियों से फ्रांस के क्रान्तिकारी बड़े असन्तुष्ट हुए।
(5) लुई फिलिप की दुर्बल नीतियाँ-
लुई
फिलिप की आन्तरिक और बाह्य, दोनों ही नीतियाँ क्रान्ति का महत्त्वपूर्ण
कारण बनीं। उसने केवल मध्यम वर्ग को महत्त्व दिया और अन्य वर्गों की पूर्ण उपेक्षा
की। इसी प्रकार आवश्यकता से अधिक शान्तिप्रिय विदेश नीति ने उसे फ्रांस में दब्बू
शासक के रूप में स्थापित किया, जिसे फ्रांसीसी कभी स्वीकार
नहीं कर सकते थे। बेल्जियम के मामले में तो वह बहुत अधिक झुका ही नहीं, वरन् दब गया था। नेपोलियन के गौरवपूर्ण काल को देखने के पश्चात् फ्रांस की
जनता दुर्बल शासक को अपना स्वामी स्वीकार नहीं कर सकी और उसने शासन को उखाड़
फेंका।
(6) गौरवशाली विदेश नीति का परित्याग-
फ्रांसीसी
गौरव से सदा पूर्ण रहे। हैं। उन्हें लुई फिलिप की तुष्टीकरण और शान्ति की विदेश
नीति बिल्कुल पसन्द नहीं आई। फ्रांस के क्रान्तिकारी चाहते थे कि फ्रांस विदेशों
के क्रान्तिकारियों की मदद करे। परन्तु लुई फिलिप ने यूरोप के क्रान्तिकारियों की
मदद तो की ही नहीं, वरन् अपने देश तक में क्रान्तिकारियों की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
(7) शासन पर मध्यम वर्ग का प्रभाव-
लुई
फिलिप के शासन पर मध्यम वर्ग का ही विशेष प्रभाव था और यह भी लुई फिलिप के भाग्य
की विडम्बना थी कि इसी प्रभावशाली वर्ग ने उसे सत्ता से अलग कर दिया। मतदान की
प्रणाली इस प्रकार रखी गई थी कि राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा में मध्यम वर्ग के धनवान व्यक्तियों का ही बहुमत रहा। फलतः अन्य वर्गों की उपेक्षा होती रही, जिसका परिणाम क्रान्ति के
रूप में सामने आया।
1848 ई. क्रान्ति का अन्य देशों पर प्रभाव -
वास्तव
में 1848 ई. का वर्ष एक चमत्कारी वर्ष था। इस वर्ष यूरोप के विभिन्न राज्यों में
क्रान्तियाँ प्रारम्भ हुईं। ऑस्ट्रिया, जर्मनी, इटली, इंग्लैण्ड तथा स्विट्जरलैण्ड आदि सभी देश इस
क्रान्ति से प्रभावित हुए।
(1) ऑस्ट्रिया पर प्रभाव-
1848 ई. की क्रान्ति की सफलता का
समाचार जब ऑस्ट्रिया की राजधानी पहुंचा, तो वहाँ के देशभक्त
नवीन उत्साह से भर गए। 18 मार्च को उन्होंने संगठित होकर एक
विशाल जुलूस निकाला, जिसमें विद्यार्थी, अध्यापक, कारीगर, दुकानदार तथा
मजदूर आदि सभी सम्मिलित थे। जुलूस की भीड़ ने मैटरनिख के घर को घेर लिया और उसके
विरुद्ध नारे लगाए। मैटरनिख ने विवश होकर अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया और
इंग्लैण्ड भाग गया। वास्तव में 1848 ई. की क्रान्ति ने
मैटरनिख के प्रतिक्रियावादी शासन का अन्त कर दिया।
(2) बोहमिया पर प्रभाव-
बोहमिया
ऑस्ट्रिया का एक अंग था। वहाँ पर भी क्रान्ति का प्रभाव पड़ा। राजा
ने क्रान्तिकारियों की माँगें स्वीकार कर लीं, परन्तु बाद में क्रान्ति का दमन कर दिया
गया।
(3) हंगरी पर प्रभाव-
हंगरी
की
अधिकांश जनता मग्यार जाति की थी। वे ऑस्ट्रिया की अधीनता से मुक्त होना चाहते थे।
जब उन्हें वियना की क्रान्ति का समाचार मिला, तो उन्होंने भी क्रान्ति का झण्डा खड़ा कर
दिया। सम्राट को भयभीत होकर क्रान्तिकारियों से समझौता करना पड़ा। परन्तु आगे चलकर
ऑस्ट्रिया ने रूस का सहारा लेकर क्रान्ति को विफल कर दिया।
(4) प्रशा पर प्रभाव -
जब
जर्मनवासियों को मैटरनिख के पतन का ज्ञान हुआ, तो वे बड़े प्रसन्न हुए। क्रान्तिकारियों
ने जुलूस निकालकर राजा के महल को घेर लिया। अंगरक्षकों द्वारा गोलियाँ चलाने पर
क्रान्तिकारी भड़क उठे। राजा को विवश होकर संविधान सभा बुलानी पड़ी और नया
लोकतान्त्रिक संविधान बनाया गया।
(5) स्विट्जरलैण्ड पर प्रभाव-
फ्रांस
की क्रान्ति से प्रेरित होकर स्विस लोगों ने धनवानों की प्रभुता के
विरुद्ध संघर्ष प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने संगठित होकर प्रतिक्रियावादी
कैथोलिक संघ पर आक्रमण कर उसे परास्त किया एवं स्विट्जरलैण्ड के लिए नया
संविधान बनाकर उदारवादी शासन की स्थापना की।
(6) इंग्लैण्ड पर क्रान्ति का प्रभाव-
फ्रांस
की 1848 ई.
की क्रान्ति के प्रभाव से इंग्लैण्ड भी अछूता नहीं रहा। 1832 ई. का सुधार अधिनियम केवल मध्यम वर्ग के लोगों
को ही सन्तुष्ट कर सका था, मजदूर-किसानों को नहीं। 1848
ई. की क्रान्ति के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में
चार्टिस्ट आन्दोलन ने जोर पकड़ा।
(7) आयरलैण्ड पर प्रभाव-
फ्रांस
की क्रान्ति से प्रेरणा लेकर आयरलैण्ड की जनता ने इंग्लैण्ड
के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया। यद्यपि यह आन्दोलन सफल नहीं हो सका, क्योंकि आयरलैण्ड की जनता को
फ्रांस की सहायता की उम्मीद थी, जो नहीं मिल सकी।
1848 ई. की क्रान्ति केक्रान्ति के परिणाम
मध्य
यूरोप में क्रान्ति, जिसका प्रारम्भ बड़े उत्साहपूर्ण एवं आशाजनक ढंग से हुआ था, थोड़े ही दिनों में शान्त हो गई। किन्तु यह आश्चर्य की बात नहीं थी,
क्योंकि क्रान्ति मुख्यतः नगरों तथा मध्यम वर्ग तक ही सीमित थी।
गाँवों की जनता अमूर्त भावात्मक स्वतन्त्रता की अपेक्षा अपने परम्परागत रीति-रिवाजों
के प्रति अधिक आसक्त थी। 1850 ई. में उदारवाद तथा राष्ट्रीयता की प्रगतिशील शक्तियाँ मध्य यूरोप में
प्रतिक्रिया की शक्ति के सामने पराजित हुई और प्रतिक्रिया की पूर्ण रूप से विजय
हुई। मैटरनिख के स्थान पर श्वार्जेनबर्ग चांसलर बना। ऑस्ट्रिया का
संविधान रद्द हो गया, हंगरी का गणतन्त्र नष्ट हो गया,
स्लाव राष्ट्रीयता कुचल दी गई और समस्त साम्राज्य पर फिर से
हात्सबुर्ग वंश का एकछत्र निरंकुश शासन स्थापित हो गया तथा लोम्बार्डी एवं
वेनेशिया फिर से ऑस्ट्रिया की अधीनता में पहुँच गए। सार्जीनिया के राजा
के राष्ट्रीय एकीकरण के प्रयत्न निष्फल हुए और फ्रांसीसी तलवार के बल पर पोप फिर
निरंकुश हो गया। जर्मनी फिर 1815 ई. की स्थिति में पहुँच गया।
परन्तु
फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि क्रान्ति पूर्णतया असफल रही। प्रतिक्रियावादियों की
अनेक सफलताओं के बीच भी कुछ लाभ बचे रहे। ऑस्ट्रिया के साम्राज्य में अर्द्ध-दास
व्यवस्था, जिसे क्रान्ति ने नष्ट कर दिया था, पुनः जीवित नहीं
की गई। सार्जीनिया, स्विट्जरलैण्ड, हॉलैण्ड,
डेनमार्क तथा प्रशा में किसीन-किसी रूप में संवैधानिक शासन बना रहा।
इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उदारवाद एवं राष्ट्रीयता की जिन भावनाओं का
परिणाम यह क्रान्ति थी, उनका अस्तित्व नष्ट नहीं किया जा सका था।
Very nice sir I am very happy
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ReplyDeleteSir I want full revolutionary movement in Europe between 1830-1848
ReplyDeleteSonali kumari
ReplyDeleteHii
DeleteMain exam time me esi website se study karta hu
DeleteThanks
ReplyDeletePlz tell topic wise 🙏🙏
ReplyDeleteIt's amazing.. It's very easy to understand.. Liked it... 🙌
ReplyDeleteThanx
ReplyDeleteThanks
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